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स्टेट पी.सी.एस.

  • 08 Oct 2025
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उत्तर प्रदेश Switch to English

डायरेक्ट-सीडेड राइस (DSR) कॉन्क्लेव 2025

चर्चा में क्यों?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (ISARC) में आयोजित डायरेक्ट-सीडेड राइस (DSR) कॉन्क्लेव 2025 में, उत्तर प्रदेश की 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के विज़न के अनुरूप वर्ष 2030 तक वैश्विक खाद्य भंडार बनने के लक्ष्य की पुष्टि की।

  • मुख्यमंत्री ने कृषि में आधुनिककरण और प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देने के लिये नए कृषि ज्ञान उत्पादों तथा यांत्रिकी नवाचारों का शुभारंभ किया एवं किसानों को मिनी किट वितरित की।

मुख्य बिंदु

  • कॉन्क्लेव के बारे में: 
    • यह नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों और उद्योग जगत के नेताओं के लिये एक मंच है, जहाँ वे उत्तर प्रदेश तथा उसके बाहर अनुकूल, समावेशी एवं जलवायु-संवेदनशील कृषि विकास के लिये क्रियान्वयन योग्य मार्ग तलाश करते हैं।
  • वैश्विक खाद्य भंडार विज़न :
    • मुख्यमंत्री ने कॉन्क्लेव के दौरान उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की 150वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में सतत, जलवायु-संवेदनशील और प्रौद्योगिकी-संचालित कृषि परिवर्तनों पर ज़ोर दिया।
    • उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केंद्रों (CGIAR) के संघ को सहयोग देने की राज्य की महत्त्वाकांक्षा पर ज़ोर दिया, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) और अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP) जैसे साझेदार शामिल हैं। 
    • ये सहयोग उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर खाद्य उत्पादन और गुणवत्ता को बढ़ाएंगे।
  • कृषि प्रगति और उपलब्धियाँ:
    • उत्तर प्रदेश भारत के खाद्य उत्पादन में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता है, जो देश के कृषि योग्य क्षेत्र का केवल 11% होने के बावजूद राष्ट्रीय उत्पादन में 21% का योगदान देता है।
    • विगत आठ वर्षों में, राज्य सरकार के प्रयासों के कारण कृषि-खाद्य उत्पादन में पाँच गुना वृद्धि हुई है, विशेष रूप से अनाज, दालें, तिलहन और सब्जियों में
    • यह सफलता राज्य द्वारा संचालित पहलों जैसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड, फसल बीमा तथा किसान सम्मान निधि योजना का परिणाम है, जिससे प्रतिवर्ष 10 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ हुआ है।
  • क्षमता निर्माण:
    • राज्य में चार कृषि विश्वविद्यालय हैं तथा एक अन्य विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना है। ये विश्वविद्यालय अनुसंधान, प्रशिक्षण और ज्ञान-साझाकरण प्रयासों के केंद्र के रूप में कार्य कर रहे हैं एवं कृषि परिवर्तन को गति दे रहे हैं।
  • पारंपरिक कृषि ज्ञान:
    • मुख्यमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उत्तर प्रदेश की समृद्ध कृषि परंपराएँ, जैसे प्रतिष्ठित काला नमक चावल, जो एक ज़िला एक उत्पाद पहल का हिस्सा है, ऐतिहासिक महत्त्व रखती हैं। क्योंकि इसे भगवान बुद्ध द्वारा महाप्रसाद के रूप में अर्पित किया गया था।


मध्य प्रदेश Switch to English

मध्य प्रदेश में कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर प्रतिबंध

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश सरकार ने किडनी फेल होने के कारण कई बच्चों की मृत्यु के बाद राज्य में कोल्ड्रिफ सिरप की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।

मुख्य बिंदु

  • डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की उपस्थिति की पुष्टि के पश्चात राज्य स्तर पर प्रतिबंध लगाया गया तथा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत राष्ट्रव्यापी विनियामक कार्रवाई प्रारंभ की गई।
  • डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG):
    • यह एक रंगहीन, मीठे स्वाद वाला औद्योगिक रासायनिक पदार्थ है, जिसका उपयोग प्रायः ब्रेक फ्लूइड्स (Brake Fluids) और एंटीफ्रीज़ (Antifreeze) में किया जाता है।
    • कुछ औषधीनिर्माता इसे सस्ता विलायक मानकर प्रयोग करते हैं, क्योंकि इसका भौतिक गुण सुरक्षित औषधीय यौगिकों के समान होता है।
    • DEG के सेवन से पेट दर्द, उल्टी, गुर्दे की विफलता और तंत्रिका तंत्र की क्षति हो सकती है तथा अधिक मात्रा में सेवन से मृत्यु भी हो सकती है।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940:
    • यह अधिनियम भारत में औषधियों और प्रसाधन सामग्री के आयात, निर्माण, बिक्री तथा वितरण को लाइसेंस एवं परमिट के माध्यम से नियंत्रित करता है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बाज़ार में उपलब्ध औषधियाँ और प्रसाधन सामग्री सुरक्षित, प्रभावी हों तथा राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हों। 
    • इसके साथ ही, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 औषधियाँ को विभिन्न अनुसूचियों में वर्गीकृत करते हैं तथा उनके भंडारण, बिक्री, प्रस्तुतीकरण और चिकित्सकीय पर्चे (Prescription) से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।


हरियाणा Switch to English

हरियाणा ने अरावली परिभाषा में संशोधन किया

चर्चा में क्यों?

हरियाणा सरकार ने न्यूनतम भूगर्भीय आयु (Geological Age) और ऊँचाई के मानदंडों जोड़कर ‘अरावली पर्वत शृंखला’ को पुनः परिभाषित किया है, जिसके कारण संरक्षण में कमी तथा पर्यावरणीय संरक्षण पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

मुख्य बिंदु

  • परिचय:
    • अरावली की परिभाषा तय करने की प्रक्रिया वर्ष 2024 में आरंभ हुई थी, जब सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय तथा प्रभावित चार राज्यों (दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात) को एक एकीकृत परिभाषा निर्धारित करने का निर्देश दिया था।
  • हरियाणा की परिभाषा: 
    • 4 अक्तूबर 2025 को हरियाणा के भूविज्ञान एवं खनन विभाग ने अरावली की नई परिभाषा को अंतिम रूप दिया। इस परिभाषा के अनुसार केवल वे पहाड़ियाँ ‘अरावली’ मानी जाएंगी, जो आसपास की भूमि से 100 मीटर से अधिक ऊँची है और एक अरब वर्ष से अधिक पुरानी चट्टानों से निर्मित हैं।
    • 100 मीटर की ऊँचाई का मानक राजस्थान के मानक के अनुरूप है, किंतु जहाँ राजस्थान का वर्गीकरण खनन पर केंद्रित है, वहीं हरियाणा का वर्गीकरण संरक्षण पर केंद्रित है।
    • हरियाणा के नए मापदंडों को राजस्थान और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के मानकों के अनुरूप "वैज्ञानिक रूप से मापने योग्य" और "क्षेत्र-सत्यापन योग्य" बताया गया है, जिसे विशेषज्ञ तकनीकी सुधार के बजाए नीतिगत परिवर्तन के रूप में देखते हैं।
  • विशेषज्ञों की चिंताएँ: 
    • विशेषज्ञ और पर्यावरणविदों का मत है कि नई परिभाषा से संरक्षण का दायरा सिमट सकता है, विशेषकर गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूह जैसे क्षेत्रों में, जहाँ भू-आकृति 100 मीटर ऊँचाई के मानक को पूरा नहीं करती। इससे वनाच्छादित अरावली क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियाँ बढ़ने की संभावना है।
    • विशेषज्ञों का तर्क है कि संरक्षण को केवल चट्टानों की आयु के आधार पर नहीं, बल्कि झाड़ीदार वनों, जैवविविधता और भूजल पुनर्भरण सहित जीवित परिदृश्यों (living landscape) के आधार पर परिभाषित किया जाना चाहिये।
  • GSI का दृष्टिकोण: 
    • GSI ने हरियाणा के पूर्व मसौदे पर आपत्ति जताई थी कि उसमें अत्यधिक प्राचीन आर्कियन संरचनाओं को शामिल किया गया है, जो वैज्ञानिक दृष्टि से सटीक नहीं हैं।
    • नई परिभाषा अरावली को अरावली तथा दिल्ली सुपरग्रुप (पैलियोप्रोटेरोज़ोइक और मेसोप्रोटेरोज़ोइक) की चट्टानों तक सीमित करती है तथा एरिनपुरा ग्रेनाइट एवं मालानी रायोलाइट जैसी नव नियोप्रोटेरोज़ोइक अंतःप्रवेशी चट्टानों को बाहर करती है।
    • भूविज्ञान विभाग के अनुसार, हरियाणा की अरावली भू-आकृति में अंतःप्रवेशी ग्रेनाइट का अंश 3% से भी कम है, जबकि क्षेत्र में अज़बगढ़ और अलवर समूहों की चट्टानें प्रमुख हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पहले दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में अरावली की एक समान परिभाषा तय करने का निर्देश दिया था, ताकि इन राज्यों में पर्यावरणीय नियमों को मानकीकृत किया जा सके।
    • प्रस्तावित नई परिभाषा पूर्व न्यायिक निर्णयों, विशेषकर राजस्थान द्वारा वर्ष 2011-12 में ऊँचाई आधारित मानदंड अस्वीकार करने वाले निर्णय, से विरोधाभासी हो सकती है
    • इससे “अरावली पर्वत शृंखला” की परिभाषा सीमित हो सकती है, जिससे संरक्षित क्षेत्र घटने और विकास हेतु पुनःवर्गीकरण की संभावना बढ़ सकती है।
  • अरावली का महत्त्व: 
    • विश्व की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक अरावली, दिल्ली-NCR क्षेत्र में मरुस्थलीकरण को रोकने और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • अरावली-दिल्ली वलित पट्टी (Aravali-Delhi Fold Belt) गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है, जो मुख्यतः क्वार्टजाइट, शिस्ट, फिलाइट, डोलोमाइट और संगमरमर जैसी शैलों से निर्मित है
    • यह शृंखला थार रेगिस्तान के प्रसार को नियंत्रित करने में निर्णायक भूमिका निभाती है।


झारखंड Switch to English

फूलो झानो आशीर्वाद अभियान

चर्चा में क्यों?

चाईबासा में उप विकास आयुक्त (DDC) की अध्यक्षता में आयोजित झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) की समीक्षा बैठक में पश्चिमी सिंहभूम में फूलो झानो आशीर्वाद अभियान की प्रगति और आजीविका गतिविधियों की समीक्षा की गई।

मुख्य बिंदु 

  • फूलो झानो आशीर्वाद अभियान (PJAA): 
    • इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हरिया (देशी शराब) बनाने और बेचने की प्रथा को समाप्त करना है। 
      • सितंबर 2020 में ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रारंभ की गई यह योजना महिलाओं को सम्मानजनक एवं स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
  • दृष्टि: 
    • यह पहल शराब के व्यापार में संलग्न महिलाओं का पुनर्वास कर उन्हें सम्मानजनक एवं स्थायी आय स्रोतों से जोड़ने तथा मुख्यधारा में लाने पर केंद्रित है। 
    • यह अभियान ज़मीनी स्तर पर आर्थिक स्वतंत्रता, सामाजिक समावेशन एवं महिला सशक्तीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये तैयार किया गया है।
  • सहायता तंत्र: 
    • इस पहल के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह (SHG) की सदस्याओं को प्रत्येक प्रभावित परिवार तक पहुँचने और आवश्यक सहायता सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
    • सखी मंडल के माध्यम से 10,000 रुपए तक का ब्याज-मुक्त ऋण नए उद्यम शुरू करने के लिये प्रदान किया जाता है।
    • यह योजना महिलाओं को शराब उत्पादन से स्थायी आजीविका की ओर स्थानांतरित करने में मदद करने के लिये तकनीकी सहायता, मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करती है।
  • उपलब्धियाँ: 
    • कुल चिह्नित महिलाएँ: 15,284 (घर-घर सर्वेक्षण के माध्यम से)
    • पुनर्वासित महिलाएँ: 14,003 महिलाएँ अब वैकल्पिक आय-सृजन गतिविधियों के माध्यम से सम्मानजनक आजीविका अर्जित कर रही हैं।

झारखंड Switch to English

फाइलेरिया उन्मूलन पर कार्यशाला

चर्चा में क्यों?

फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत आरोग्य आयुष्मान मंदिर, चांदकोपा में स्वास्थ्य जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया।

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीणों को लिम्फेटिक फाइलेरियासिस की रोकथाम, लक्षण और उपचार के बारे में शिक्षित करना था। यह एक मच्छर जनित रोग है, जो विभिन्न क्षेत्रों में हज़ोरों लोगों को प्रभावित करता है।

मुख्य बिंदु

  • लिम्फेटिक फाइलेरियासिस के बारे में:
    • लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (एलिफेंटियासिस) एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) है, जो मच्छरों के माध्यम से फैलने वाले फाइलेरिया परजीवियों के संक्रमण के कारण होता है।
  • व्यापकता: 
    • वर्ष 2021 में, 44 देशों में लगभग 882.5 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते थे जहाँ संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये निवारक कीमोथेरेपी की आवश्यकता थी।
    • मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) के 75% ज़िले पाँच राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना से हैं।
  • कारण: 
    • यह फाइलेरियोडिडिया परिवार के सूत्रकृमि (गोलकृमि) नामक परजीवियों के संक्रमण से होता है। ये धागे जैसे फाइलेरिया कृमि तीन प्रकार के होते हैं:
      • वुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (90% मामलों के लिये ज़िम्मेदार)
      • ब्रुगिया मलेई (शेष अधिकांश मामलों का कारण)
      • ब्रुगिया टिमोरी (जो भी रोग का कारण बनता है)
  • लक्षण: 
    • अधिकांश संक्रमण लक्षणहीन रहते हैं, लेकिन दीर्घकालिक मामलों में लिम्फोएडेमा, एलिफेंटियासिस और हाइड्रोसील होता है, जिससे विकलांगता और सामाजिक कलंक होता है।
  • उपचार और रोकथाम: 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) जोखिमग्रस्त लोगों को संचरण को रोकने के लिये वार्षिक निवारक कीमोथेरेपी प्रदान करता है।
  • वैश्विक और राष्ट्रीय प्रयास: 
    • वर्ष 2000 में शुरू किया गया लिम्फेटिक फाइलेरियासिस उन्मूलन हेतु वैश्विक कार्यक्रम (GPELF) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक निवारक कीमोथेरेपी और रुग्णता प्रबंधन के माध्यम से इसका उन्मूलन करना है।
    • भारत का मिशन मोड MDA अभियान, राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (10 फरवरी और 10 अगस्त) के साथ संरेखित है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2027 तक कृमि उन्मूलन करना है, जो वैश्विक लक्ष्य से तीन वर्ष पहले है।

झारखंड Switch to English

प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना पर एक दिवसीय प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम झारखंड के करमाटांड़ में आयोजित किया गया, जिसमें 163 प्रतिभागियों ने व्यावहारिक (हैंड्स-ऑन) प्रशिक्षण प्राप्त किया।

  • इस पहल का उद्देश्य कौशल विकास, वित्तीय सहायता और आधुनिक विपणन उपकरणों के साथ एकीकरण के माध्यम से पारंपरिक शिल्पकारों को सशक्त बनाना है।

मुख्य बिंदु 

  • कौशल विकास पर केंद्रित: 
    • प्रत्येक प्रतिभागी को प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिये 15,000 रुपए दिये गए, जिसमें प्रोत्साहन के रूप में 500 रुपए प्रतिदिन शामिल थे।
    • यह पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम पारंपरिक शिल्पकारों के कौशल उन्नयन पर केंद्रित था, जिसे योजना के अंतर्गत मान्यता प्राप्त 18 पारंपरिक व्यवसायों में संचालित किया गया।
  • वित्तीय सहायता: 
    • प्रशिक्षित शिल्पकारों को न्यूनतम ऋण जोखिम के साथ 5% रियायती ब्याज दर पर 1 लाख की रुपए प्रथम ऋण किस्त उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे वे अपना व्यवसाय का विस्तार कर सकें या सूक्ष्म उद्यम प्रारंभ कर सकें।
  • प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना
    • शुभारंभ वर्ष: 2023
    • योजना का प्रकार: केंद्रीय क्षेत्रक योजना
    • नोडल मंत्रालय: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME)
    • पात्रता: 18 वर्ष से अधिक आयु के पारंपरिक कारीगर और शिल्पकार, जो 18 चिह्नित व्यवसायों में संलग्न हों।
  • लाभ: 
    • पंजीकरण एवं मान्यता: विश्वकर्मा के रूप में मान्यता: PM विश्वकर्मा प्रमाण पत्र और आई.डी. कार्ड
  • ऋण सहायता:
    • संपार्श्विक मुक्त उद्यम विकास ऋण: 
      • 1 लाख रुपए तक 
      • 2 लाख रुपए तक 
    • 5% रियायती ब्याज दर:
      • भारत सरकार द्वारा 8% तक ब्याज अनुदान सीमा के अधीन 
      • ऋण गारंटी शुल्क भारत सरकार द्वारा वहन किया जाएगा
  • कौशल उन्नयन: 
    • कौशल पहचान के बाद 5 दिन का बुनियादी प्रशिक्षण
    • 15 अथवा उससे अधिक दिन की उन्नत प्रशिक्षण
    • प्रशिक्षण वृत्ति: 500 रुपए प्रतिदिन 
  • टूलकिट प्रोत्साहन:
    • शुरुआत में DBT के माध्यम से 15,000 रुपए और तत्पश्चात् ई-RUPI/ईवाउचर के माध्यम से अंतरण तथा 500 रुपए की दैनिक वृत्ति, बाज़ार संपर्क, डिजिटल एकीकरण
  • लक्ष्य: 
    • कारीगरों और शिल्पकारों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में उन्नत करना और एकीकृत करना।
  • कुल परिव्यय: 
    • 5 वर्ष 2023-24 से 2027-28 के लिये 13,000 करोड़ रुपए

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आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में रोगियों की संख्या में कमी

चर्चा में क्यों?

झारखंड के बरहरवा प्रखंड में राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत संचालित आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में रोगियों की संख्या घट रही है।

  • निःशुल्क उपचार सेवाएँ उपलब्ध होने के बावजूद, जागरूकता की कमी, अपर्याप्त अवसंरचना, डॉक्टरों एवं कर्मचारियों की कमी तथा आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता के कारण इन केंद्रों का उपयोग कम हो रहा है।

मुख्य बिंदु 

आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM)

  • परिचय:
    • आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्वास्थ्य सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करते हैं, जिनमें निवारक, प्रोत्साहनात्मक, पुनर्वास और उपचारात्मक देखभाल शामिल हैं। 
  • घटक: इसके दो घटक हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं।
    • प्रथम घटक: 
      • इसके अंतर्गत 1,50,000 आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना की जाएगी, ताकि व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराई जा सके।
      • ये सेवाएँ सार्वभौमिक एवं निःशुल्क होंगी, जिनका उद्देश्य कल्याण उन्मुख और समुदाय-निकट सेवाओं की विस्तृत शृंखला का वितरण सुनिश्चित करना है।
    • द्वितीय घटक:
      • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), जो द्वितीयक और तृतीयक देखभाल हेतु 10 करोड़ से अधिक गरीब एवं कमज़ोर परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करती है।
  • महत्त्व:
  • AAM को विस्तारित स्वास्थ्य सेवाओं की श्रेणी प्रदान करने के लिये परिकल्पित किया गया है, जो केवल मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गैर-संचारी रोगों की देखभाल, उपशामक और पुनर्वास देखभाल, मौखिक, नेत्र और ENT देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य और आपात स्थिति और आघात के लिये प्रथम-स्तरीय देखभाल, मुफ्त आवश्यक दवाओं और नैदानिक सेवाओं की उपलब्धता शामिल हैं।

राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM)

  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 2014 में अनुमोदित और अधिसूचित किया गया था।
  • इसका मुख्य उद्देश्य लागत प्रभावी आयुष सेवाओं के माध्यम से आयुष चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देना, शैक्षिक प्रणालियों को सशक्त करना, आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी एवं होम्योपैथी (ASU & H दवाओं) की गुणवत्ता नियंत्रण का पालन सुनिश्चित करना, और ASU & H कच्चे माल की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है।

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कांशीराम जी की 19वीं पुण्यतिथि

चर्चा में क्यों?

बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संस्थापक कांशीराम जी का 19वाँ परिनिर्वाण दिवस (पुण्यतिथि) 9 अक्तूबर 2025 को धनबाद के लतानी स्थित अंबेडकर क्लब में मनाया गया।

मुख्य बिंदु 

कांशीराम जी के बारे में

  • जन्म एवं प्रारंभिक जीवन:
    • 15 मार्च, 1934 को पंजाब में जन्मे, कांशीराम जी ने अपना जीवन समाज के वंचित वर्गों के उत्थान और बहुजन समाज को सशक्त बनाने के लिये समर्पित कर दिया।
    • कम उम्र से ही उन्होंने उत्पीड़ित समुदायों की दुर्दशा के प्रति गहरी सहानुभूति और करुणा का भाव प्रदर्शित किया।
    • उन्होंने जाति व्यवस्था में व्याप्त असमानताओं को पहचाना और संगठित राजनीतिक कार्रवाई के माध्यम से यथास्थिति को चुनौती देने का संकल्प लिया।
  • बहुजन समाज पार्टी की स्थापना: 
    • वर्ष 1984 में उन्होंने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों से युक्त बहुजन समाज को एकजुट करके एक सशक्त राजनीतिक शक्ति बनाने के उद्देश्य से बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की।
    • उनका दृष्टिकोण समाज के वंचित वर्गों को अपने अधिकारों की मांग करने और भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में अपना उचित स्थान पाने के लिये एक मंच प्रदान करना था।
  • अन्य प्रमुख संगठन: 
    • उन्होंने वर्ष 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (BAMCEF) और वर्ष 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS-4) की भी स्थापना की।
  • मृत्यु: 
    • 9 अक्तूबर, 2006 को उनका निधन हो गया।

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भारत छोड़ो आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित

चर्चा में क्यों?

भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिये 8 अक्तूबर 2025 को पटमदा में एक श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया, जिसे पटमदा और बोड़ाम की राष्ट्र शहीद सम्मान समिति ने संयुक्त रूप से आयोजित किया।

  • इस कार्यक्रम में स्थानीय नेता और शहीद भझारी महतो, लक्ष्मण महतो, मदीराम महतो, बिप्रा महतो, रतन माझी, जुड़न मुदी एवं दुर्गा चरण सिंह शामिल थे।

मुख्य बिंदु 

भारत छोड़ो आंदोलन

  • शुरुआत और उद्देश्य: 
    • महात्मा गांधी ने 8 अगस्त, 1942 को मुंबई में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन के दौरान इस आंदोलन की शुरुआत की। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद, इस आंदोलन में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त करने की मांग की गई।
  • गांधी जी का आह्वान: 
    • गांधी जी ने गौवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) से “करो या मरो” का आह्वान किया, जिसमें भारतीयों से ब्रिटिश शासन के तत्काल अंत की मांग करने का आग्रह किया गया।
  • नारा और प्रतीकात्मकता: 
    • “भारत छोड़ो” का नारा मुंबई के समाजवादी और ट्रेड यूनियन नेता यूसुफ मेहर अली ने दिया था, जिन्होंने पहले “साइमन गो बैक” का नारा भी गढ़ा था। 
    • आंदोलन के दौरान, अरुणा आसफ अली एक प्रमुख हस्ती बन गईं, जिन्होंने गोवालिया टैंक मैदान पर अवज्ञा के प्रतीक के रूप में भारतीय ध्वज फहराया।
  • नए नेताओं का उदय: 
    • इस आंदोलन के दौरान डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नए नेता उभरकर सामने आए।
      • महिलाओं ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, कई महिलाओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया और प्राणों की आहुति तक दी, जैसे मतंगिनी हाज़रा, जो हाथ में तिरंगा लिये शहीद हुईं तथा सुचेता कृपलानी, जो बाद में भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश) बनीं।
  • भारत छोड़ो आंदोलन का स्वरूप: 
    • यह आंदोलन पहले के शांतिपूर्ण आंदोलनों जैसे असहयोग और सविनय अवज्ञा से अलग था, क्योंकि यह ब्रिटिश शासन की पूरी तरह समाप्ति के लिये जन विद्रोह था। 
      • हालाँकि गांधी जी ने अहिंसा पर ज़ोर दिया, लेकिन आंदोलन में आत्मरक्षा के लिये हिंसा को भी शामिल किया गया। इसमें ब्रिटिश संपत्तियों पर तोड़फोड़ और गुरिल्ला हमलों जैसी स्वतःस्फूर्त कार्रवाइयों की अनुमति थी।
    • कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के बाद, पूरे भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन, हड़तालें और तोड़फोड़ शुरू हो गई, जिसमें छात्रों और युवाओं ने, विशेषकर शहरी केंद्रों में, अगुवाई की।
    • मुस्लिम समुदाय ने अधिकांशतः QIM में भाग नहीं लिया, इसे एक हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन के रूप में देखा गया, जिसने बढ़ते सांप्रदायिक विभाजन और मुस्लिम लीग के अलग राज्य के लिये दबाव को उजागर किया।
  • विरासत: 
    • यह आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण मार्ग बना, जिसने एकता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः ब्रिटिश शासन का अंत हुआ।
    • भारत छोड़ो आंदोलन एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने भारत की भावी राजनीति को आकार दिया। गोवालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में, गांधी जी ने कहा था कि सत्ता भारत के लोगों के हाथ में होगी। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को वास्तव में "हम भारत के लोगों" का प्रतीक बना दिया।

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कुर्मी समुदाय को ST सूची में शामिल किये जाने जनजाति विरोध प्रदर्शन

चर्चा में क्यों?

चांडिल में जनजाति सामाजिक संगठनों द्वारा व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन और धरना दिया गया, जिसका उद्देश्य कुर्मी (कुड़मी) समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने की मांग का विरोध करना था। 

  • एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत के राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें सरकार से कुर्मियों को ST सूची में शामिल न करने की मांग की गई।

मुख्य बिंदु 

विरोध के कारण

  • जनजातीय अस्मिता पर खतरा: 
    • जनजातीय प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट किया कि कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करने से मौजूदा जनजातीय समुदायों की विशिष्ट पहचान, परंपराएँ और संवैधानिक अधिकार प्रभावित होंगे।
    • झारखंड, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के जनजाति संगठनों ने इस कदम का विरोध करते हुए एकजुटता व्यक्त की।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार: 
    • प्रदर्शनकारियों ने बिरसा मुंडा, सिद्धो-कान्हू, बुधु भगत और गंगा नारायण सिंह जैसे जनजातीय नेताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि जनजातीय पहचान एक अद्वितीय सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास में निहित है, जो कुर्मी समुदाय से अलग है।
  • 'रेल रोको' आंदोलन का विरोध: 
    • अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने के लिये कुर्मियों द्वारा चलाए जा रहे “रेल टेका आंदोलन” (रेल रोको आंदोलन) को जनजातीय नेताओं ने अन्यायपूर्ण दबाव की रणनीति बताते हुए जनजातीय स्वायत्तता के लिये चुनौती करार दिया।

कुर्मी समुदाय

  • सामाजिक संरचना: 
    • कुर्मी मुख्यतः एक कृषक समुदाय है, जिनकी जनसंख्या जंगलमहल क्षेत्रों सहित पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा के छोटा नागपुर पठार और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रित है।
  •  ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1931 की जनगणना में कुर्मियों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में वर्गीकृत समुदायों में शामिल किया गया था और वर्ष 1950 में उन्हें अनुसूचित जनजातियों की सूची से बाहर कर दिया गया था।
      • जब स्वतंत्र भारत में ST सूची तैयार की गई तो कुर्मियों को उसमें जगह नहीं मिली।
  • कुर्मियों का पक्ष: 
    • उनका तर्क है कि ब्रिटिश कालीन दस्तावेज़ों में उन्हें जनजाति समुदाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और वे उस पहचान की बहाली चाहते हैं। वे यह भी दावा करते हैं कि वे अनुसूचित जनजातियों की धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
    • वर्ष 2004 में, झारखंड सरकार ने सिफारिश की थी कि कुर्मी समुदाय को OBC के बजाए ST सूची में शामिल किया जाए।

राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English

विश्व कपास दिवस 2025

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और पबित्रा मार्गेरिटा ने 7 अक्तूबर को नई दिल्ली में विश्व कपास दिवस 2025 समारोह में भाग लिया। 

  • यह कार्यक्रम वस्त्र मंत्रालय तथा भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ (CITI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था, जिसका विषय था "कपास 2040: प्रौद्योगिकी, जलवायु और प्रतिस्पर्द्धात्मकता।"

मुख्य बिंदु

  • परिचय:
    • विश्व कपास दिवस की स्थापना वर्ष 2019 में की गयी थी, जब उप-सहारा अफ्रीका के चार कपास उत्पादक देशों (बेनीन, बुर्किना फासो, चाड और माली), जिन्हें सामूहिक रूप से “कॉटन फोर (Cotton Four)” कहा जाता है, ने 7 अक्टूबर को विश्व व्यापार संगठन (WTO) को यह दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया था।
  • उद्देश्य: 
    • इस दिवस का उद्देश्य अल्प विकसित देशों के कपास और कपास से संबंधित उत्पादों के लिये वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्रदान करने की आवश्यकता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है।
    • साथ ही यह सतत व्यापार नीतियों को बढ़ावा देने और विकासशील देशों को कपास मूल्य शृंखला के प्रत्येक चरण से अधिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाना है।
  • कपास से संबंधित तथ्य:
    • शीर्ष पाँच कपास उत्पादक देश चीन, भारत, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान हैं, जिनकी कुल मिलाकर वैश्विक उत्पादन में तीन-चौथाई से अधिक हिस्सेदारी है।
      • भारत विश्व में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कुल वैश्विक कपास उत्पादन का 23% है।
    • कपास से विश्व में लगभग 2.4 करोड़ उत्पादकों को आजीविका मिलती है तथा 10 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ मिलता है।
    • कपास विश्व में पॉलिएस्टर के बाद दूसरा सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला रेशा है, जो कुल रेशा मांग का लगभग 20% है।
    • लगभग 80% कपास का उपयोग परिधानों में किया जाता है, शेष कपास का उपयोग घरेलू वस्त्रों और औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है।
  • भारत में नियंत्रण प्रणाली: 
    •  भारतीय कपास निगम की स्थापना जुलाई 1970 में वस्त्र मंत्रालय के अधीन की गई थी।
    • इसका उद्देश्य मूल्य समर्थन उपायों के माध्यम से कपास के मूल्य स्थिरीकरण को सुनिश्चित करना है।
    • इसके अतिरिक्त, यह निगम घरेलू वस्त्र उद्योग का व्यावसायिक खरीद परिचालन के माध्यम से समर्थन करता है, विशेष रूप से कम उत्पादन वाले मौसम के दौरान।


उत्तर प्रदेश Switch to English

अभिधम्म दिवस

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) ने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान और संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से 6-7 अक्तूबर 2025 को उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में स्थित गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस मनाया।

मुख्य बिंदु

  • अभिधम्म दिवस के बारे में: 
    • यह दिवस उस अवसर को स्मरण करता है जब बुद्ध ने अपनी माता महामाया के नेतृत्व में तवतींशा स्वर्ग के देवताओं को अभिधम्म का उपदेश दिया था और बाद में इसे अपने शिष्य अरहंत सारिपुत्त के साथ साझा किया।
    • यह दिन भगवान बुद्ध के तैंतीस दिव्य जीवों (तावतींस-देवलोक) के स्वर्गलोक से उत्तर प्रदेश के संकसिया (संकिसा बसंतपुर, फर्रुखाबाद) में अवतरण का भी स्मरण कराता है।
    • इस स्थान का महत्त्व यहाँ स्थित अशोक के हाथी स्तंभ की उपस्थिति से प्रदर्शित होता है।
  • घटना का प्रतीक:
    • अभिधम्म दिवस का वर्षावास (वस्सा) और पवारणा उत्सव के समापन के साथ मेल खाता है।
      • वर्षावास (वस्सा): यह एक वार्षिक तीन महीने का मठवासी एकांतवास है, जो विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान थेरवाद बौद्ध परंपरा में किया जाता है।
      • पवारणा उत्सव: यह वास्सा के समापन का प्रतीक है, जहाँ भिक्षु एकत्र होकर एकांतवास के दौरान हुई किसी भी गलती या भूल को स्वीकार करते हैं और अपने साथी भिक्षुओं को आमंत्रित करते हैं कि वे उन कमियों को इंगित करें जो उन्होंने देखी हों। यह उत्सव 11वें चंद्र मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्तूबर में आता है।
  • मुख्य क्रियाएँ:

    • आधुनिक संदर्भ में अभिधम्म के दार्शनिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक आयामों का अध्ययन करने के लिये "बौद्ध विचार को समझने में अभिधम्म की प्रासंगिकता: पाठ, परंपरा तथा समकालीन परिप्रेक्ष्य" पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था।

    • विनोद कुमार द्वारा क्यूरेट की गई 90 देशों की 2,500 से अधिक बौद्ध डाक टिकटों की एक विशेष प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें डाक टिकट संग्रह के माध्यम से बौद्ध विरासत की झलक प्रस्तुत की गई।
      • दो विषयगत प्रदर्शनियाँ आयोजित की गईं,जिनमें "शरीर और मन पर बुद्ध धम्म" तथा पिपराहवा अवशेषों पर प्रकाश डालने वाली एक प्रदर्शनी शामिल थी, जिसमें बुद्ध की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला गया।
    • इस कार्यक्रम में दो फिल्मों का प्रदर्शन किया गया - “एशिया में बुद्ध धम्म का प्रसार” और “कुशोक बकुला रिनपोछे - एक असाधारण भिक्षु की अद्भुत कहानी”, जिसका निर्देशन डॉ. हिंडोल सेनगुप्ता ने किया था।

अभिधम्म पिटक

  • अभिधम्म पिटक तीन पिटकों में अंतिम है, जो पाली कैनन/त्रिपिटक का हिस्सा है और थेरवाद बौद्ध धर्म के सबसे लोकप्रिय ग्रंथों में से एक है।
    • यह सुत्तों में दिये गए बुद्ध के उपदेशों का विस्तृत शास्त्रीय विश्लेषण और सारांश प्रस्तुत करता है।
    • इसमें बौद्ध धर्म का दर्शन, सिद्धांत, मनोविज्ञान, दार्शनिक तर्क, नैतिकता और ज्ञानमीमांसा शामिल है।
  • त्रिपिटक के अन्य शेष पिटक विनय पिटक और सुत्त पिटक हैं। 
    • विनय पिटक संघ के भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिये आचरण के नियम हैं।
    • सुत्त पिटक में बुद्ध और उनके निकट शिष्यों द्वारा दिये गए सुत्त (शिक्षाएँ/प्रवचन) शामिल हैं।
  • अभिधम्म पिटक में सात पुस्तकें हैं:
    • धम्मसंगणि- घटनाओं की गणना 
    • विभंग- संधियों की पुस्तक 
    • धातुकथा- तत्त्वों के संदर्भ में चर्चा 
    • पुग्गलापनट्टी (Puggalapanatti)- व्यक्तित्व का विवरण
    • कथावत्थु- विवाद के बिंदु 
    • यमाका- पुस्तकों का युग्म 
    • पथना (Patthana) -संबंधों की पुस्तक
  • भारत सरकार ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित किया है तथा अभिधम्म पिटक सहित थेरवाद बौद्ध ग्रंथों की प्रामाणिक भाषा के रूप में इसके महत्त्व को मान्यता दी है।


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