सामाजिक न्याय
भारत में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का कल्याण
- 11 Jun 2025
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प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, अनुच्छेद 342, अनुच्छेद 341, अनुच्छेद 15 (4), अनुच्छेद 16 (4), अनुच्छेद 46, अनुच्छेद 340, NCST, पाँचवीं अनुसूची, छठी अनुसूची, वन अधिकार अधिनियम, 2006, नमस्ते, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS)। मेन्स के लिये:अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा आगे की राह। |
स्रोत: पीआईबी
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर अस्पृश्यता तथा अत्याचार के अपराधों को रोकने के तरीके और साधन तैयार करने के लिये 28वीं समन्वय समिति की बैठक आयोजित की।
- बैठक में नागरिक अधिकार संरक्षण (PCR) अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जैसे मौजूदा कानूनों के कार्यान्वयन पर चर्चा की गई।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति क्या हैं एवं भारतीय कानूनी ढाँचे में उन्हें किस प्रकार मान्यता दी गई है?
- अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ: 'अनुसूचित जाति' शब्द को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 में परिभाषित किया गया है।
- अनुच्छेद 341 के अनुसार, राष्ट्रपति संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (UT) के लिये अनुसूचित जातियों को अधिसूचित कर सकते हैं। इस सूची में संसद द्वारा कानून बनाकर संशोधन किया जा सकता है।
- "अनुसूचित जाति" शब्द को पहली बार भारत सरकार अधिनियम, 1935 में शामिल किया गया था, जिससे कानूनी और प्रशासनिक ढाँचे में इसकी मान्यता को चिह्नित किया गया।
- अनुसूचित जनजातियाँ: अनुच्छेद 366 अनुसूचित जनजातियों को जनजातियों, जनजातीय समुदायों या उनके भीतर के भागों/समूहों के रूप में परिभाषित करता है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत नामित किया गया है।
- अनुच्छेद 342 के तहत भारत के राष्ट्रपति को संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श से प्रत्येक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के लिये अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करने का अधिकार है।
- भारत में जाति-आधारित अत्याचारों से निपटने की रूपरेखा:
- मूल अधिकार: अनुच्छेद 14, 15, 16 और 17।
- राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP): अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जातियों (SC) के शैक्षणिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा के लिये राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की स्थापना करता है।
- कानूनी ढाँचा:
- अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955: अस्पृश्यता की प्रथा को दंडनीय बनाने के लिये इसे लागू किया गया था। बाद में इसमें संशोधन कर इसे सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1976 नाम दिया गया, जिसके तहत सामाजिक और धार्मिक प्रतिबंधों के कारण उत्पन्न अस्पृश्यता को दंडनीय अपराध बनाया गया।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: यह एक विशेष कानून है जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के विरुद्ध विशेष रूप से किये गए अपराधों, जिन्हें "अत्याचार" कहा जाता है, से संबंधित है। यह ऐसे मामलों के शीघ्र निपटारे के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: इस अधिनियम का उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा को समाप्त करना और इसमें संलिप्त व्यक्तियों के पुनर्वास को सुनिश्चित करना है।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015: इस संशोधन ने अत्याचार की परिभाषा का विस्तार करते हुए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों की महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों को भी शामिल किया, जिससे कानूनी संरक्षण को और सशक्त बनाया गया।
भारत में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?
- आर्थिक असुरक्षा: भूमि विस्थापन और बँधुआ मज़दूरी के साथ-साथ न्यूनतम वेतन का भुगतान न होना अनुसूचित जातियों (SC) को आर्थिक रूप से पिछड़ी और कमज़ोर स्थिति में रखता है।
- लगभग 34% अनुसूचित जाति (SC) के लोग गरीबी रेखा (BPL) के नीचे जीवन यापन करते हैं, जबकि सामान्य जनसंख्या में यह आँकड़ा लगभग 9% है।
- सामाजिक पूर्वाग्रह: उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में अन्य जातियों के प्रभुत्व के कारण अक्सर जाति-आधारित हिंसा होती है।
- वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले 97.7% अत्याचार 13 राज्यों में दर्ज किये गए।
- कानूनी प्रवर्तन की कमज़ोरी: कानूनी संरक्षणों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफलता रहती है और शैक्षणिक भेदभाव जारी है, जैसा कि वर्ष 2007 में थोराट समिति द्वारा उजागर किया गया था।
- 498 ज़िलों में से, जहाँ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) मामलों में अत्याचारों की सबसे अधिक घटनाएँ दर्ज की गईं, केवल 194 ज़िलों में ही विशेष न्यायालय स्थापित किये गए थे।
- पारंपरिक भूमिकाओं की अस्वीकृति: 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम (CAA) के कारण अनुसूचित जातियों के बीच बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के कारण प्रमुख जातियों के साथ तनाव उत्पन्न हो गया है।
- इसके परिणामस्वरूप पारंपरिक कार्यों को भी अस्वीकार कर दिया गया है, जिन्हें करने के लिये अनुसूचित जातियाँ कभी बाध्य थीं, जिससे संघर्ष को और बढ़ावा मिला।
- राज्य की लापरवाही: सुरक्षा प्रकोष्ठों की कमी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की उदासीनता समय पर हस्तक्षेप में बाधा डालती है। अत्याचारों के शिकार व्यक्तियों को अपर्याप्त राहत व पुनर्वास का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी और दुर्दशा हो जाती है।
- केवल 5 राज्यों - बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश ने अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराधों की शिकायत दर्ज करने के लिये विशेष पुलिस स्टेशन स्थापित किये हैं।
- प्रणालीगत विफलताएँ: अनुसूचित जातियों के लिये कई योजनाएँ, जैसे नमस्ते और प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAGY) खराब कार्यान्वयन का सामना कर रही हैं, जिसके कारण सफाई कर्मचारियों के बीच शून्य मृत्यु दर जैसे लक्ष्य पूरे नहीं हो पा रहे हैं।
- लक्षित क्षेत्र में हाई स्कूल के विद्यार्थियों के लिये आवासीय शिक्षा योजना (SHRESHTA) में देखी गई निधि समर्पण और देरी कल्याण प्रयासों को और कमज़ोर करती है।
भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ाने हेतु क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं?
- कानूनी एवं न्यायिक तंत्र को सुदृढ़ करना: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण न्यायालयों के लिये वित्तपोषण में वृद्धि करना तथा बुनियादी ढाँचे में सुधार करना, जिसमें अनिवार्य समयबद्ध सुनवाई व न्यायाधीशों और अभियोजकों के लिये विशेष प्रशिक्षण शामिल हो।
- अनिवार्य प्रशिक्षण के माध्यम से पुलिस की संवेदनशीलता को बढ़ाना, देरी के लिये कठोर दंड लागू करना तथा अत्याचार की त्वरित रिपोर्टिंग हेतु 24/7 हेल्पलाइन उपलब्ध कराना।
- रिपोर्टिंग और निगरानी में सुधार: राष्ट्रीय SC/ST अत्याचार ट्रैकिंग डैशबोर्ड के साथ डिजिटल शिकायत पोर्टल लागू करना और पीड़ितों तथा गवाहों के लिये व्हिसलब्लोअर सुरक्षा प्रदान करना।
- NCRB डेटा का उपयोग करके अत्याचार-प्रवण ज़िलों का मानचित्रण करना तथा निवारक पुलिसिंग और संघर्ष समाधान हेतु विशेष कार्य बलों की तैनाती करना।
- आर्थिक सशक्तीकरण: वन अधिकार अधिनियम, 2006 में तेज़ी लाकर, FRA का दावा है कि इससे अनुसूचित जनजातियों के लिये भूमि सुरक्षित होगी तथा बजट व उद्योग संबंधों में वृद्धि के साथ प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही (PM-DAKSH) कौशल प्रशिक्षण का विस्तार होगा।
- शून्य शेष खातों, सूक्ष्म ऋणों और सरकारी निविदाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के स्वामित्व वाले व्यवसायों के लिये 25% खरीद कोटा के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना।
- शिक्षा और जागरूकता: सभी जनजातीय ब्लॉकों में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) का विस्तार किया जाए।
- जाति-विरोधी पाठ्यक्रम लागू किया जाए और जातिगत भेदभाव के खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाए जाना चाहिये।
- राजनीतिक और प्रशासनिक जवाबदेही: राज्यों को अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) कल्याण के आधार पर रैंक किया जाए और केंद्रीय वित्तपोषण को प्रदर्शन से जोड़ा जाए। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग को स्वतः संज्ञान जाँच करने की शक्ति दी जाए और प्रतिवर्ष संसद में सामाजिक ऑडिट प्रस्तुत करना अनिवार्य किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
प्रभावी अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) कल्याण, सशक्त कानूनी तंत्र, बेहतर रिपोर्टिंग व्यवस्था, उन्नत शिक्षा और आर्थिक सशक्तीकरण — ये सभी कदम गहराई से जड़े जातिगत पूर्वाग्रहों, प्रणालीगत विफलों, लक्षित नीतियों, जवाबदेही तथा मज़बूत बुनियादी ढाँचे को संबोधित कर सकते हैं। इससे अत्याचारों में कमी आएगी, वंचित समुदायों का उत्थान होगा, सामाजिक न्याय सुनिश्चित होगा और भारत के विविध समाज में समावेशी विकास संभव हो सकेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सामने आने वाली चुनौतियों की जाँच करना तथा अत्याचारों पर प्रभावी अंकुश लगाने एवं उनके सामाजिक-आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने के उपाय सुझाना। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. मौलिक अधिकारों की निम्नलिखित श्रेणियों में से कौन-सी एक भेदभाव के रूप में अस्पृश्यता के विरुद्ध सुरक्षा को शामिल करती है? (2020) (a) शोषण के विरुद्ध अधिकार उत्तर: (d) प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक, इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से प्रतिबिंबित करता है? (2022) (a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) प्रश्न: स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |