भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सुधार
- 10 Jun 2025
- 21 min read
प्रिलिम्स के लिये:विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) नियम, 2006, सेमीकंडक्टर, विदेशी मुद्रा, विदेश व्यापार नीति, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB), OECD, विश्व व्यापार संगठन (WTO), उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, बाबा कल्याणी समिति, औद्योगिक गलियारे, राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (NIMZ), राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (NICDP)। मेन्स के लिये:सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये SEZ नियमों में प्रमुख सुधार, SEZ के सामने प्रमुख चुनौतियाँ एवं बाबा कल्याणी समिति की अनुशंसाएँ, SEZ को दृढ़ करने के लिये कदम उठाए जाने की आवश्यकता। |
स्रोत: पीआईबी
चर्चा में क्यों?
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण में निवेश को प्रोत्साहित करने एवं परिचालन को सुचारु बनाने के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) नियम, 2006 में प्रमुख संशोधन पेश किये हैं।
- इन परिवर्तनों का उद्देश्य उच्च तकनीक क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना है, जो पूंजी-प्रधान, आयात-निर्भर है तथा लाभदायक बनने के लिये लंबी अवधि की आवश्यकता होती है।
- हाल के संशोधनों के बाद, माइक्रोन गुजरात के साणंद में एक सेमीकंडक्टर SEZ विकसित करेगा। एक्वस ग्रुप कर्नाटक के धारवाड़ में एक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट SEZ भी स्थापित करेगा।
सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये SEZ नियमों में प्रमुख परिवर्तन क्या हैं?
- SEZ के लिये भूमि की आवश्यकता में कमी: सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में SEZ के लिये न्यूनतम भूमि की आवश्यकता 50 हेक्टेयर से घटाकर 10 हेक्टेयर कर दी गई है, जिससे प्रवेश बाधाएँ कम हो गई हैं एवं उच्च तकनीक इकाइयों की स्थापना में सुविधा होगी।
- भूमि ऋणभार नियमों में छूट: यदि भूमि केंद्र/राज्य सरकारों या उनकी एजेंसियों के पास बंधक या पट्टे पर दी गई है, तो अनुमोदन बोर्ड अब ऋणभार मुक्त भूमि की आवश्यकता में छूट दे सकता है, जिससे भूमि अधिग्रहण और वित्तपोषण में अधिक अनुकूलता प्राप्त होगी।
- अनुमोदन बोर्ड विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिये सर्वोच्च निकाय है और इसका नेतृत्व वाणिज्य विभाग (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) के सचिव करते हैं।
- निशुल्क वस्तुओं को शुद्ध विदेशी मुद्रा में शामिल करना: संशोधित नियम निशुल्क वस्तुओं को निशुल्क विदेशी मुद्रा (NFE) गणना में शामिल करने की अनुमति देता है अर्थात् उनके मूल्य को निर्यात में जोड़ा जा सकता है या आयात से घटाया जा सकता है, जिससे SEZ इकाई के NFE प्रदर्शन में सुधार होगा।
- घरेलू बिक्री के लिये छूट: सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में SEZ इकाइयाँ अब शुल्क का भुगतान करने के पश्चात घरेलू टैरिफ क्षेत्र (DTA) को आपूर्ति कर सकती हैं, जिससे भारतीय बाज़ार तक पहुँच के माध्यम से व्यवहार्यता बढ़ेगी तथा निर्यात निर्भरता कम होगी।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) क्या हैं?
- परिचय: SEZ एक शुल्क-मुक्त क्षेत्र है जिसे व्यापार, शुल्क और संचालन के उद्देश्य से विदेशी क्षेत्र माना जाता है। कोई भी निजी/सार्वजनिक/संयुक्त क्षेत्र या राज्य सरकार या उसकी एजेंसियाँ SEZ स्थापित कर सकती हैं।
- भारत में SEZ को पहली बार वर्ष 2000 में विदेश व्यापार नीति के तहत शुरू किया गया था, जिसने पहले के निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों (EPZ) की जगह ली थी। वे SEZ अधिनियम, 2005 और SEZ नियम, 2006 द्वारा शासित होते हैं।
- उद्यम एवं सेवा केंद्र विकास (DESH) विधेयक, 2022 का उद्देश्य SEZ अधिनियम, 2005 को प्रतिस्थापित करना तथा SEZ को अधिक अनुकूल एवं समावेशी विकास केंद्रों में परिवर्तित करना है।
- ये केंद्र अनेक मौजूदा विनियामक प्रतिबंधों से मुक्त होंगे तथा निर्यातोन्मुख और घरेलू दोनों प्रकार के निवेशों को समर्थन देंगे और अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलू व्यापार के लिये एकीकृत क्षेत्रों के रूप में कार्य करेंगे।
- SEZ के प्रकार: SEZ के अंतर्गत क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के क्षेत्र शामिल हैं, जैसे निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (EPZ), मुक्त क्षेत्र (FZ), औद्योगिक संपदा (IE), मुक्त व्यापार क्षेत्र (FTZ), मुक्त बंदरगाह, शहरी उद्यम क्षेत्र और अन्य।
- वर्तमान में भारत में 276 SEZ चालू हैं। वर्ष 2023-2024 में SEZ से कुल निर्यात 163.69 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा।
- उदाहरण के लिये, गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी, भारत)।
- उद्देश्य:
- अतिरिक्त आर्थिक गतिविधि सृजित करना
- वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना
- रोज़गार सृजन करना
- घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना
- बुनियादी सुविधाओं का विकास करना
- SEZ को दिये जाने वाले प्रोत्साहन:
- SEZ इकाइयों के विकास, संचालन और रखरखाव के लिये वस्तुओं का शुल्क-मुक्त आयात/घरेलू खरीद
- केंद्रीय बिक्री कर, सेवा कर और राज्य बिक्री कर (अब GST के अंतर्गत समाहित) से छूट
- संबंधित राज्य सरकारों द्वारा छूट प्राप्त अन्य शुल्क
- IGST अधिनियम, 2017 के तहत SEZ को आपूर्ति शून्य दर पर की जाती है
- केंद्रीय और राज्य स्तरीय अनुमोदन हेतु एकल खिड़की स्वीकृति
- SEZ इकाइयों द्वारा मान्यता प्राप्त बैंकिंग चैनलों के माध्यम से प्रतिवर्ष 500 मिलियन अमेरीकी डॉलर तक की बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) की अनुमति है, जिसमें परिपक्वता प्रतिबंध नहीं है।
भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- घटती लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्रों को घटती लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता का सामना करना पड़ रहा है, जिसका मुख्य कारण कच्चे माल, ऊर्जा तथा लॉजिस्टिक्स जैसी इनपुट लागत में वृद्धि है, जो चीन और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में काफी अधिक है।
- OECD कर मानदंड (न्यूनतम 15% कॉर्पोरेट कर) SEZ में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये SEZ प्रोत्साहन को और कम कर सकते हैं।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) सब्सिडी विश्व व्यापार संगठन (WTO) की जाँच के दायरे में है तथा वैश्विक व्यापार नियमों के अनुरूप निर्यात-संबंधी प्रोत्साहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का दबाव बढ़ रहा है।
- भूमि अधिग्रहण और बुनियादी ढाँचे से संबंधित मुद्दे: SEZ को उच्च भूमि लागत, खराब कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स तथा अनियमित विद्युत एवं जल आपूर्ति जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे समय पर विकास में बाधा उत्पन्न होती है और विनिर्माण दक्षता कम हो जाती है।
- नियामक एवं अनुपालन संबंधित बोझ: एकल-खिड़की स्वीकृति प्रणाली के बावजूद, विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) को कई एजेंसियों से अनुमोदन में विलंब का सामना करना पड़ता है। साथ ही, विदेशी मुद्रा की सकारात्मक बाध्यता, बार-बार होने वाले ऑडिट और उच्च अनुपालन लागत जैसे कारक, स्टार्टअप्स तथा अनुसंधान एवं विकास (R&D) केंद्रित कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ डालते हैं।
- सीमित घरेलू बाजार पहुँच: SEZ इकाइयों को घरेलू टैरिफ क्षेत्र (DTA) की बिक्री पर उच्च शुल्कों का सामना करना पड़ता है और उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना का लाभ प्राप्त करने वाली गैर-SEZ फर्मों से असमान प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका समग्र आकर्षण कम हो जाता है।
- इसके अलावा, लगभग 70% विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) IT और संबंधित सेवाओं पर केंद्रित हैं तथा विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा बहुत छोटा है, जो संभावित रूप से व्यापक औद्योगिक विकास लक्ष्यों में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
- अल्प उपयोग एवं रिक्त विशेष आर्थिक क्षेत्र: अनुमोदित एवं अधिसूचित विशेष आर्थिक क्षेत्रों के बीच 40% का अंतर तथा अधिसूचित व परिचालन विशेष आर्थिक क्षेत्रों के बीच 60% से अधिक का अंतर, लंबी निर्माण अवधि और खराब व्यवहार्यता मूल्यांकन को दर्शाता है ।
- कुछ विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) का दुरुपयोग रियल एस्टेट विकास के लिये किया जाता है , जिससे निर्यातोन्मुख विनिर्माण से ध्यान हटाकर वाणिज्यिक केंद्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- पर्यावरण एवं स्थिरता संबंधी चिंताएँ: विशेष आर्थिक क्षेत्रों में तीव्र औद्योगिकीकरण के कारण प्रायः प्रदूषण व संसाधनों का ह्रास होता है, जो पर्यावरणीय विनियमों के कमज़ोर प्रवर्तन के कारण और भी बदतर हो जाता है।
बाबा कल्याणी समिति (वर्ष 2018)
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने जून 2018 में श्री बाबा कल्याणी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी, जिसका उद्देश्य भारत की SEZ नीति की समीक्षा करना तथा वैश्विक अवसरों और घरेलू आर्थिक लक्ष्यों के साथ समंजस्य स्थापित करने के लिये रणनीतिक उपायों की सिफारिश करना था।
- प्रमुख सिफारिशें:
- SEZ का नाम बदलकर 3E - रोज़गार और आर्थिक एन्क्लेव रखना: निर्यात-केंद्रित क्षेत्रों से रोज़गार तथा आर्थिक विकास केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
- केवल निर्यात को ही नहीं, बल्कि घरेलू मांग को भी लक्ष्य बनाना।
- शुद्ध विदेशी मुद्रा (NFE) प्रदर्शन से अलग: घरेलू आपूर्ति और रुपये में भुगतान की अनुमति देना
- प्रोत्साहन निवेश, रोज़गार सृजन, महिला रोज़गार, मूल्य संवर्धन और प्रौद्योगिकी विभेदीकरण पर आधारित होंगे।
- विनिर्माण और सेवा विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग रूपरेखाएँ : बेहतर मांग और तालमेल के लिये क्षेत्र-केंद्रित परिक्षेत्रों का निर्माण
- व्यवसाय करने में आसानी (EODB): निवेश, परिचालन और निकासी के लिये एक एकीकृत ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करना
- बुनियादी ढाँचे का विकास: हाई-स्पीड रेल, एक्सप्रेसवे, बंदरगाह, गोदाम और हवाई अड्डों सहित उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढाँचे का विकास करना।
- एकीकृत औद्योगिक-शहरी विकास के लिये पैदल-कार्य क्षेत्र को सक्षम बनाना ।
- SEZ का नाम बदलकर 3E - रोज़गार और आर्थिक एन्क्लेव रखना: निर्यात-केंद्रित क्षेत्रों से रोज़गार तथा आर्थिक विकास केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- नीति एवं विनियामक सुधार: SEZ अधिनियम, 2005 को अधिक अनुकूल उद्यम एवं सेवा हब विकास (DESH) अधिनियम से प्रतिस्थापित किया जाएगा तथा गैर-निष्पादित SEZ के लिये अधिसूचना रद्द करने एवं निकास नीतियों को सरल बनाया जाएगा।
- SEZ का नाम बदलकर रोज़गार और आर्थिक एन्क्लेव (3E) रखना तथा विनिर्माण एवं सेवाओं के लिये अलग नियम बनाना, बाबा कल्याणी समिति (वर्ष 2018) की सिफारिशों को लागू करना।
- बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी उन्नयन: SEZ को औद्योगिक गलियारों के साथ एकीकृत करना और निर्बाध रसद के लिये बंदरगाहों तथा हवाई अड्डों तक अंतिम मील कनेक्टिविटी को बढ़ाना।
- वैश्विक निवेश को आकर्षित करने और विनिर्माण दक्षता को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट क्लस्टरों को बढ़ावा देते हुए 24/7 विद्युत, जल पुनर्चक्रण एवं पूर्व-अनुमोदित बुनियादी ढाँचे को सुनिश्चित करना।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता और वैश्विक एकीकरण को बढ़ाना: अर्द्धचालक, AI और जैव प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान एवं विकास कर प्रोत्साहन प्रदान करना तथा SEZ को राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के साथ जोड़ना।
- सीमा शुल्क केंद्रों, ई-कॉमर्स क्षेत्रों और प्रमुख वैश्विक फर्मों के लिये त्वरित अनुमोदन के माध्यम से निर्यात बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
- कौशल विकास एवं रोज़गार: ITI/NSDC के सहयोग से विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निकट स्किल पार्क स्थापित करना, उद्योग-संबंधित प्रशिक्षण और जर्मन शैली के दोहरे व्यावसायिक कार्यक्रम प्रदान करना।
- कर छूट और EPF सहायता के माध्यम से स्थानीय रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करना तथा उन्नत विनिर्माण में विदेशी विशेषज्ञों के लिये विशेष वीज़ा प्रदान करना।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: भारत SEZ प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये चीन के मेगा-क्लस्टर मॉडल (शेन्ज़ेन) और संयुक्त अरब अमीरात के 100% विदेशी स्वामित्व वाले कर-मुक्त क्षेत्रों (दुबई) जैसी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपना सकता है।
औद्योगिक विकास से संबंधित अन्य प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं?
- राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (NIMZ): NIMZ (जैसे- आंध्र प्रदेश में प्रकाशम और तेलंगाना में संगारेड्डी ) विशाल, एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप हैं, जिन्हें भारत की राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP), 2011 के तहत विनिर्माण विकास को बढ़ावा देने, रोज़गार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये विकसित किया गया है।
- औद्योगिक पार्क: औद्योगिक पार्क (या औद्योगिक एस्टेट या औद्योगिक क्षेत्र ) विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये बुनियादी ढाँचे, उपयोगिताओं तथा नीतिगत प्रोत्साहनों के साथ विकसित विनिर्दिष्ट क्षेत्र हैं।
- वे व्यवसायों को उपयोग के लिये तैयार सुविधाएँ प्रदान करते हैं, जिससे अवस्थापना लागत और परिचालन संबंधी जटिलताओं में कमी आती है।
- उदाहरण के लिये, विनिर्माण पार्क (कारखानों और उत्पादन इकाइयों के लिये), खाद्य प्रसंस्करण पार्क (कृषि आधारित उद्योगों के लिये)।
- राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (NICDP): NICDP का लक्ष्य प्रमुख परिवहन मार्गों पर विश्व स्तरीय औद्योगिक नोड्स, स्मार्ट सिटीज़ और लॉजिस्टिक्स हब विकसित करना है, जिसके तहत भारत भर में प्रमुख आर्थिक केंद्रों को जोड़ने के लिये 11 औद्योगिक गलियारों की योजना बनाई गई है।
निष्कर्ष
हाल ही में किये गए SEZ नियम संशोधन का उद्देश्य भूमि मानदंडों को आसान बनाकर और घरेलू बिक्री की अनुमति देकर सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देना है। हालाँकि, नीतिगत अस्थिरता, बुनियादी ढाँचे में कमी और WTO अनुपालन जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। बाबा कल्याणी समिति के सुधारों को लागू करना, लॉजिस्टिक्स में सुधार करना और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना SEZ को मज़बूत कर सकता है, जिससे भारत उच्च तकनीक विनिर्माण और निर्यात के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी केंद्र बन सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्नप्रश्न: भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) के सामने आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये और उनके पुनरोद्धार के लिये रोडमैप सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: इसकी स्पष्ट स्वीकृति है कि विशेष आर्थिक ज़ोन (एस.इ.जैड.) औद्योगिक विकास, विनिर्माण और निर्यातों के एक साधन हैं। इस संभाव्यता को मान्यता देते हुए, एस.ई.ज़ैड़ के संपूर्ण करणत्व में वृद्धि करने की आवश्यकता है। कराधान, नियंत्रक कानूनों और प्रशासन के संबंध में एस.ई.जैडों. की सफलता को परेशान करने वाले मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2015) |