बिहार Switch to English
देव सूर्य मंदिर और उमगा मंदिर परिसर का ऑडिट
चर्चा में क्यों?
पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार को देव सूर्य मंदिर (औरंगाबाद) तथा उमगा मंदिर परिसर (औरंगाबाद) का संरचनात्मक सुरक्षा ऑडिट कराने का निर्देश दिया है, ताकि इनके संरक्षण की स्थिति का आकलन किया जा सके तथा भविष्य में होने वाले क्षरण को रोका जा सके।
मुख्य बिंदु
- देव सूर्य मंदिर के बारे में:
- यह बिहार के औरंगाबाद ज़िले के देव शहर में स्थित है तथा सूर्य देव को समर्पित भारत के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है।
- यह मंदिर 8वीं शताब्दी का माना जाता है तथा छठ पूजा के आयोजन के लिये प्रसिद्ध है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
- यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से अद्वितीय है, क्योंकि इसका मुख्य प्रवेश-द्वार पश्चिम (अस्त होते सूर्य) की ओर है, अधिकांश हिंदू मंदिरों का मुख पूर्व (उदय होते सूरज) की ओर होता है।
- मंदिर में संरचनात्मक दबाव, क्षरण तथा अनियंत्रित आगंतुक भार के संकेत दिखाई देते हैं, जिसके कारण न्यायालय ने आकलन का आदेश दिया है।
- उमगा मंदिर के बारे में:
- उमगा मंदिर औरंगाबाद ज़िले की उमगा पहाड़ियों पर स्थित है तथा अपनी नागर वास्तुकला के लिये जाना जाता है, जिसमें विशिष्ट शैली में नक्काशीदार अनेक पत्थर के मंदिर शामिल हैं।
- इस भव्य मंदिर के निर्माण में चौकोर ग्रेनाइट प्रखंड का उपयोग किया गया है, जिसमें भगवान गणेश, सूर्य देव और भगवान शिव की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
- मंदिर परिसर की कई संरचनाओं में दरारें, झाड़ी/वनस्पति उगने तथा उपेक्षा के संकेत मिलते हैं, जिससे इनके दीर्घकालिक स्थायित्व को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
उत्तराखंड Switch to English
भारत में गंगा नदी बेसिन का पहला डिजिटल प्रतिरूप
चर्चा में क्यों?
IIT दिल्ली ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के सहयोग से भारत में गंगा नदी बेसिन का प्रथम डिजिटल प्रतिरूप (Digital Twin), जो एक उच्च परिशुद्धता वाली आभासी प्रतिकृति है, विकसित करने हेतु कार्य प्रारंभ कर दिया है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- IIT दिल्ली संपूर्ण गंगा बेसिन का एक डिजिटल ट्विन मॉडल तैयार करेगा, जो एक वास्तविक-समय, डेटा-आधारित वर्चुअल सिमुलेशन होगा, जिसमें यमुना, कोसी, घाघरा, गंडक तथा सोन जैसे प्रमुख उपनदियों को भी शामिल किया जायेगा।
- यह मॉडल जल विज्ञान, प्रदूषण भार, नदी की आकृति-विज्ञान, भूमि-उपयोग, भूजल परस्पर क्रिया तथा जलवायु प्रभावों को एकीकृत करेगा तथा बेसिन का सतत् 3D डिजिटल प्रतिरूप उपलब्ध कराएगा।
- यह प्रणाली रिमोट सेंसिंग, GIS, IoT सेंसर, उपग्रह-डेटा, मशीन लर्निंग तथा नदी-प्रवाह मॉनिटरिंग का उपयोग कर पर्यावरणीय परिवर्तनों तथा आपदा परिदृश्यों का पूर्वानुमान प्रदान करेगी।
- लाभ:
- उत्तराखंड तथा सिंधु-गंगा के मैदानों के लिये बाढ़ पूर्वानुमान को बेहतर बनाएगा, जिसमें निर्वहन, वर्षा-पैटर्न तथा हिमनद-गलन का मॉडलिंग सम्मिलित होगा।
- वास्तविक-समय में प्रदूषण मॉनिटरिंग सक्षम होगी ताकि बिंदु-स्रोत निर्वहन, औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज लोड तथा मौसमी परिवर्तन का पता लगाया जा सके।
- नदी-सफाई, नदी प्रबंधन, आर्द्रभूमि संरक्षण और जैवविविधता मूल्यांकन सहित नमामि गंगे हस्तक्षेपों के लिये वैज्ञानिक सहायता प्रदान करना।
- नदी तल पर अवैध गतिविधियों, रेत खनन स्थलों और अतिक्रमणों की पहचान करने में सहायता प्रदान करेगा।
- शहरी नियोजन, सीवेज-बुनियादी ढाँचे, जलाशय संचालन और जलवायु अनुकूलन में राज्यों को समर्थन प्रदान करेगा।
- डिजिटल प्रतिरूप के बारे में:
- डिजिटल प्रतिरूप एक भौतिक प्रणाली (जैसे, नदी, शहर, मशीन या पारिस्थितिकी तंत्र) की आभासी, रियल टाइम डिजिटल प्रतिकृति है।
- यह लाइव डेटा का उपयोग करके लगातार अद्यतन करता है, जिससे सिमुलेशन, भविष्यवाणी और निर्णय लेने में सुविधा होती है।
- इसके अनुप्रयोग स्मार्ट शहर, सिंचाई, परिवहन नेटवर्क, नदी प्रबंधन, जलवायु मॉडलिंग और अवसंरचना योजना जैसे क्षेत्रों में व्यापक हैं।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
हायली गुब्बी ज्वालामुखी
चर्चा में क्यों?
इथियोपिया में स्थित हायली गुब्बी ज्वालामुखी में भयंकर विस्फोट हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप हजारों मीटर ऊँचाई तक राख के विशाल गुबार उठे। इन राख कणों का एक भाग भारतीय वायुक्षेत्र में प्रवेश कर गया है, जिसके कारण विमानन-संबंधी चेतावनी जारी की गई है।
मुख्य बिंदु
- हायली गुब्बी ज्वालामुखी के बारे में:
- यह ज्वालामुखी उत्तरी-पूर्वी इथियोपिया के अफार क्षेत्र में स्थित है और दानाकिल डिप्रेशन का हिस्सा है, जो पृथ्वी के सबसे गर्म तथा सबसे निम्न स्थलों में से एक है।
- यह विस्फोट महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अफार क्षेत्र से प्राप्त भूवैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि यह ज्वालामुखी लगभग 12,000 वर्षों के बाद सक्रिय हुआ है।
- यह विस्फोट पूर्वी अफ्रीकी दरार प्रणाली (EARS) की भूवैज्ञानिक अस्थिरता को रेखांकित करता है, जहाँ सक्रिय ज्वालामुखी, दरार-विस्फोट तथा विस्तृत रेखाएँ सामान्य हैं।
- यह विश्व की अत्यंत विवर्तनिक रूप से सक्रिय दरार प्रणालियों में से एक है, जहाँ अरब, न्युबियन और सोमाली विवर्तनिक प्लेटें अपसरण कर रही हैं।
- इस क्षेत्र की विशेषता बेसाल्टिक लावा, फिशर प्रणालियाँ और महाद्वीपीय विखंडन प्रक्रिया से संबद्ध लगातार भूकंपीय गतिविधियाँ हैं।
ज्वालामुखीय राख और विमानन जोखिम
- ज्वालामुखीय राख अत्यंत सूक्ष्म, घर्षणकारी चट्टानी तथा काँचीय कणों से बनी होती है, जो जेट इंजनों के भीतर प्रवेश कर पिघल सकती है और गंभीर क्षति पहुँचा सकती है।
- जब राख पिघलकर टरबाइन ब्लेड पर पुनः जम जाती है तो जेट इंजन बंद हो सकते हैं।
हरियाणा Switch to English
सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान में डिजिटल जियोफेंसिंग
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार के अधिकारी सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान के बफर-ज़ोन के चारों ओर डिजिटल जियोफेंसिंग लागू करने की योजना बना रहे हैं, ताकि भूमि-उपयोग परिवर्तन की वास्तविक समय निगरानी सुनिश्चित की जा सके तथा संभावित उल्लंघनों पर नियंत्रण किया जा सके।
मुख्य बिंदु
- डिजिटल जियोफेंसिंग के बारे में:
- हरियाणा वन विभाग तथा ज़िला प्रशासन सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान के बफर ज़ोन के चारों ओर एक डिजिटल भू-स्थानिक सीमा विकसित करेगा, जिससे मानचित्रित क्षेत्र में भूमि-उपयोग में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होने पर स्वचालित अलर्ट प्राप्त हो सकेगा।
- इस पहल का उद्देश्य अनधिकृत निर्माण, भूमि-विखंडन, मिट्टी की खुदाई तथा वाणिज्यिक भूमि-रूपांतरण जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाना है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के लिये चुनौती उत्पन्न कर रही हैं।
- उपग्रह इमेजरी, ड्रोन सर्वेक्षण तथा GIS-आधारित डिजिटल मानचित्रण को एकीकृत किया जायेगा, जिससे अभयारण्य के आसपास किसी भी भौतिक परिवर्तन की वास्तविक-समय में निगरानी की जा सकेगी।
- सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान के बारे में:
- हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले में स्थित सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान भारत के प्रमुख पक्षी-अभयरण्यों में से एक है तथा मध्य एशिया, यूरोप और साइबेरिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण शीतकालीन प्रवास-स्थल है।
- सुल्तानपुर मध्य एशियाई फ्लाईवे (CAF) के किनारे अवस्थित है, जिसके कारण प्रवासी पक्षियों के मार्गों की रक्षा हेतु भूमि-उपयोग परिवर्तन की कड़ी निगरानी आवश्यक हो जाती है।
- इसके पारिस्थितिकी महत्त्व को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2021 में इसे रामसर स्थल घोषित किया गया।
मध्य प्रदेश Switch to English
सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में देनवा नदी
चर्चा में क्यों?
वन-अधिकारियों ने मध्य प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व (STR) में देनवा नदी में तैरती हुई एक बाघिन का दुर्लभ दृश्य देखा, जो रिज़र्व में बाघों की बढ़ती गतिविधि तथा स्वस्थ नदी-आवासों को रेखांकित करता है।
मुख्य बिंदु
- देनवा नदी के बारे में:
- देनवा नदी सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व की जीवन-रेखा है और इसका उद्गम सतपुड़ा रेंज में महादेव पहाड़ियों की दक्षिणी ढलानों से होता है।
- यह नदी उत्तर की ओर बहती हुई तवा नदी में मिल जाती है, जिससे रिज़र्व के अंदर व्यापक आर्द्रभूमि का निर्माण होता है, जो समृद्ध जलीय तथा स्थलीय जैवविविधता का समर्थन करती है।
- नदी प्राकृतिक अवरोध, नदी-द्वीप और घास के मैदान बनाती है, जो बाघों, भालू, हिरण प्रजातियों तथा पक्षियों के लिये महत्त्वपूर्ण वन्यजीव गलियारे के रूप में कार्य करते हैं।
- सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के बारे में:
- यह रिज़र्व होशंगाबाद (नर्मदापुरम) ज़िले में स्थित है और सतपुड़ा-मैकाल पर्वत श्रेणी का हिस्सा है।
- इसमें सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान, पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य और बोरी वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं, जो इसे भारत के सबसे प्राचीन वन अभ्यारण्यों में से एक बनाते हैं।
- पचमढ़ी बायोस्फीयर रिज़र्व (जिसमें STR भी शामिल है) मध्य प्रदेश का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व था (वर्ष 1999 में घोषित) और बाद में इसे यूनेस्को द्वारा मान्यता दी गई।
- इस भूभाग में बलुआ पत्थर की चोटियाँ, गहरी घाटियाँ, खड्ड, नदियाँ और घने साल-सागौन के जंगल हैं, जो बाघों के लिये आदर्श आवास प्रदान करते हैं।
- यह क्षेत्र बाघों, तेंदुओं, भालू, भारतीय बाइसन (गौर), जंगली कुत्ते (ढोल) और समृद्ध पक्षी विविधता के उच्च घनत्व के लिये जाना जाता है।
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