CPGRAMS पर 35 वीं रिपोर्ट | उत्तर प्रदेश | 10 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) ने जून 2025 के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) की 35वीं मासिक रिपोर्ट जारी की।
- यह रिपोर्ट राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा लोक शिकायतों के प्रकारों और उनके निवारण का विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इस संस्करण में उत्तर प्रदेश ने सबसे अधिक (25,870) मामलों का निस्तारण किया, इसके बाद गुजरात (3,986) का स्थान रहा।
मुख्य बिंदु
- CPGRAMS के बारे में:
- CPGRAMS राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित एक 24/7 ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जहाँ नागरिक सेवा वितरण से संबंधित शिकायतें दर्ज करा सकते हैं।
- इसे कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अंतर्गत प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा लॉन्च किया गया था।
- यह भारत सरकार और राज्य सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों से जुड़ा एक एकल पोर्टल है।
- यदि नागरिक शिकायत अधिकारी द्वारा किये गए समाधान से संतुष्ट नहीं हैं तो CPGRAMS उन्हें अपील की सुविधा भी प्रदान करता है।
- जिन मुद्दों का निवारण नहीं किया गया उनमें सूचना का अधिकार (RTI) मामले, न्यायालय से संबंधित या विचाराधीन मामले, धार्मिक मामले और सरकारी कर्मचारियों की सेवा संबंधी शिकायतें शामिल हैं।
- वर्ष 2025-26 के लिये सेवोत्तम दिशानिर्देश:
- ASCI हैदराबाद के सहयोग से, DARPG ने वर्ष 2025-26 के लिये सेवोत्तम दिशानिर्देश विकसित किये हैं, जिसके साथ एक व्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी है।
- इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य सरकारी विभागों में शिकायत निवारण प्रक्रियाओं को मानकीकृत करना तथा सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में और सुधार करना है।
सेवोत्तम मॉडल
- परिचय :
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने "नागरिक-केंद्रित प्रशासन- शासन का हृदय" शीर्षक से अपनी 12वीं रिपोर्ट में सरकारी संस्थाओं को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और नागरिक-अनुकूल बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- इस दृष्टिकोण को क्रियान्वित करने के लिये, DARPG ने 'सेवोत्तम' मॉडल प्रस्तुत किया।सेवोत्तम मॉडल भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिये एक संरचित ढाँचे के रूप में कार्य करता है।
- यह सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता, जवाबदेही और सेवाओं में निरंतर वृद्धि को बढ़ावा देकर नागरिक-केंद्रित शासन को बढ़ावा देता है।
- सेवोत्तम मॉडल के प्रमुख घटक:
- नागरिक चार्टर:
- सार्वजनिक संगठन अपने द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं, सेवा वितरण समय-सीमा और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा करने के लिये नागरिक चार्टर प्रकाशित करते हैं।
- ये चार्टर नागरिकों को बेहतर सेवाओं की माँग करने तथा सेवा प्रदाताओं को जवाबदेह बनाने के लिये सशक्त बनाते हैं।
- लोक शिकायत निवारण:
- इस मॉडल में शिकायतों का प्रभावी समाधान करने के लिये एक मज़बूत शिकायत निवारण प्रणाली शामिल है।
- इसका ध्यान शिकायत के परिणाम की परवाह किये बिना नागरिक संतुष्टि सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- सेवा वितरण में उत्कृष्टता:
- यह घटक क्षमता निर्माण, प्रदर्शन प्रबंधन और निरंतर सुधार की संस्कृति के माध्यम से कुशल सेवा वितरण सुनिश्चित करता है।
- 7-चरणीय सेवोत्तम दृष्टिकोण:
- सेवाओं को परिभाषित करना: सार्वजनिक एजेंसियों को प्रत्येक विभाग या इकाई द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को स्पष्ट रूप से पहचानना और परिभाषित करना होगा।
- मानक निर्धारित करना: प्राधिकारियों को प्रत्येक चिह्नित सेवा के लिये मापनीय और समयबद्ध सेवा मानक निर्धारित करने चाहियें।
- क्षमता का विकास: विभागों को सेवा वितरण मानदंडों को पूरा करने के लिये संस्थागत और मानव संसाधन क्षमता का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- निष्पादन: आंतरिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि व्यक्ति और विभाग निर्धारित मानकों को निरंतर पूरा करें।
- निगरानी: संगठनों को निर्धारित मानदंडों के अनुरूप प्रदर्शन पर नियमित रूप से नज़र रखनी चाहिये।
- मूल्यांकन: प्राधिकारियों को सेवा की गुणवत्ता का आकलन करने के लिये नागरिकों की प्रतिक्रिया को शामिल करते हुए समय-समय पर मूल्यांकन करना चाहिये।
- निरंतर सुधार: निगरानी और मूल्यांकन के आधार पर, संगठनों को समय के साथ सेवा वितरण को बढ़ाने के लिये सुधार लागू करने चाहियें।
उत्तर प्रदेश एग्रीटेक इनोवेशन हब | उत्तर प्रदेश | 10 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SVPUAT) में उत्तर प्रदेश एग्रीटेक इनोवेशन हब और एग्रीटेक स्टार्टअप एवं टेक्नोलॉजी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।
मुख्य बिंदु
- प्रौद्योगिकी और प्राकृतिक खेती का एकीकरण:
- रासायनिक-रहित प्राकृतिक खेती के महत्त्व को रेखांकित किया गया तथा खेत और बाज़ार के बीच की दूरी को पाटने के लिये प्रौद्योगिकी को माध्यम बनाने का आह्वान किया गया।
- इस पहल का उद्देश्य IoT- सक्षम सेंसर, स्मार्ट सिंचाई और स्वचालन प्रौद्योगिकियों जैसी प्रौद्योगिकी के माध्यम से सतत् कृषि और सुनियोजित खेती को बढ़ाना है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में कृषि अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
- कौशल विकास और ग्रामीण युवाओं के सशक्तीकरण पर ज़ोर:
- कार्यक्रम में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि एग्रीटेक इनोवेशन हब एक सहयोगात्मक पारिस्थितिकी तंत्र है, जहाँ किसान, प्रौद्योगिकीविद् और स्टार्टअप मिलकर भविष्य के लिये समाधान तैयार कर सकते हैं।
- इस केंद्र का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं और किसानों को कृषि प्रौद्योगिकी क्रांति अपनाने के लिये सशक्त बनाना है।
- तकनीकी सहयोग:
- कृषि प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार में सहयोग के लिये IIT रोपड़ और SVPUAT के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- यह केंद्र किसानों के लिये डेटा-आधारित निर्णय लेने की सुविधा के लिये उन्नत डेटा विश्लेषण प्लेटफार्मों और वास्तविक समय निगरानी प्रणालियों से सुसज्जित है।
- प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण पहल:
- यह पहल किसानों और ग्रामीण युवाओं के लिये कार्यशालाओं और सत्रों के माध्यम से प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और किसान उत्पादक संगठन (FPO) कृषक समुदाय को प्रशिक्षित करने, प्रभावी प्रौद्योगिकी अपनाने और ज्ञान हस्तांतरण सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)
- KVK राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का एक अभिन्न अंग है।
- KVK का कार्य प्रौद्योगिकी का मूल्यांकन और उसके अनुप्रयोग तथा क्षमता विकास के लिये प्रदर्शन करना है।
- इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शन के माध्यम से कृषि और संबद्ध उद्यमों में स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का मूल्यांकन करना है।
- KVK गुणवत्तापूर्ण तकनीकी उत्पाद (बीज, रोपण सामग्री, बॉयो-एजेंट, पशुधन) भी तैयार करते हैं और उन्हें किसानों को उपलब्ध कराते हैं।
- KVK योजना भारत सरकार द्वारा 100% वित्तपोषित है और KVK कृषि विश्वविद्यालयों, ICAR संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों और कृषि के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों (NGO) को स्वीकृत किये जाते हैं।
किसान उत्पादक संगठन (FPO)
- FPO एक प्रकार का उत्पादक संगठन (PO) है, जिसके सदस्य किसान होते हैं और इसके प्रचार को लघु कृषक कृषि व्यवसाय संघ (SFAC) द्वारा समर्थन दिया जाता है।
- FPO अर्थशास्त्री वाई.के. अलघ की कंपनी अधिनियम, 1956 में संशोधन करने की सिफारिश (2002) से प्रेरित थे।
- FPO को कंपनी अधिनियम, 2013, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 या भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के तहत सार्वजनिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है।
- उत्पादक संगठन उत्पादकों, कृषि, गैर-कृषि या कारीगरों का एक समूह है, जो उत्पादक कंपनियों या सहकारी समितियों जैसे कानूनी रूप ले सकता है तथा सदस्यों के बीच लाभ साझा कर सकता है।
उत्तराखंड भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025 | उत्तराखंड | 10 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से सतत् भू-तापीय संसाधनों की खोज और विकास के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु उत्तराखंड भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025 को मंज़ूरी दी।
नोट:
- मंत्रिमंडल ने राज्य स्तरीय खनिज ट्रस्टों के गठन को प्रोत्साहित करने के लिये उत्तराखंड राज्य खनिज अन्वेषण ट्रस्ट नियम, 2025 को मंज़ूरी दी।
- इसने वर्ष 2017 के नियमों के स्थान पर उत्तराखंड ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट नियम, 2025 में संशोधन को भी मंज़ूरी दी।
मुख्य बिंदु
- भू-तापीय ऊर्जा नीति 2025 के बारे में:
- नीति का उद्देश्य भूतापीय स्थलों का उपयोग बिजली उत्पादन, जल -भोजन और शीतलन, जल शोधन और सामुदायिक विकास के लिये करना है।
- सरकार उत्तराखंड की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना और दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करना चाहती है।
- ऊर्जा विभाग, उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (UREDA) और उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) के सहयोग से राज्य की सभी भू-तापीय परियोजनाओं में इस नीति को लागू करेगा।
- परियोजना अवधि और आवंटन प्रक्रिया:
- सरकार भू-तापीय परियोजनाओं को चालू होने की तिथि से अधिकतम 30 वर्षों के लिये आवंटित करेगी।
- परियोजनाएँ प्रतिस्पर्द्धी बोली या अन्य निर्दिष्ट तरीकों के माध्यम से केंद्रीय या राज्य सार्वजनिक उपक्रमों या निजी डेवलपर्स को दी जा सकती हैं।
- उत्तराखंड में भूतापीय ऊर्जा का भूवैज्ञानिक आधार:
- हिमालयी क्षेत्र में गर्म झरने या भूतापीय स्रोत तब बनते हैं जब भूमिगत जल भूतापीय बिंदुओं तक पहुँचता है और तापीय छिद्रों के माध्यम से बाहर निकलता है।
- ऊष्मा उत्पादन ज्वालामुखी गतिविधि, टेक्टोनिक हलचल और पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टान निर्माण के कारण होता है।
- जब कोई जल स्रोत इन क्षेत्रों के पास से प्रवाहित होता है, तो वह ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है और तापीय छिद्रों के माध्यम से गर्म झरनों के रूप में बाहर निकलता है।
- भूतापीय स्रोत मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट के पास स्थित होते हैं, जो एक भूवैज्ञानिक भ्रंश रेखा है, जहाँ भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से मिलती है।
- उदाहरण के लिये, मणिकरण (हिमाचल प्रदेश), गौरीकुंड (उत्तराखंड)
भू-तापीय ऊर्जा
- भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी के आंतरिक भाग से निकलने वाली ऊष्मा है, जो रेडियोधर्मी क्षय द्वारा उत्पन्न होती है। यह नवीकरणीय है जो 24/7 आधारभूत ऊर्जा प्रदान करती है, क्योंकि पृथ्वी निरंतर ऊष्मा उत्पन्न करती रहती है।
- भारत में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा 381 भूतापीय रूप से असामान्य स्थलों की पहचान की गई है, जिनमें 10,600 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है, जो 1 करोड़ घरों को बिजली देने के लिये पर्याप्त है।
- प्रमुख परियोजनाओं में मनुगुरु, तेलंगाना में 20 किलोवाट का पायलट प्लांट और पुगा घाटी, लद्दाख में ONGC की 1 मेगावाट की परियोजना शामिल हैं।
- भारत ने भूतापीय ऊर्जा सहयोग के लिये आइसलैंड (2007), सऊदी अरब (2019) जैसे देशों के साथ समझौते किये हैं तथा अमेरिका (2023) के साथ नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी कार्रवाई मंच (RETAP) पर समझौते किये हैं।
- भूतापीय विशेषताएँ:
- गीजर (Geysers): ये भूतापीय संरचनाएँ हैं, जो भूमिगत तापन के कारण समय-समय पर पानी और भाप बाहर निकालती हैं।
- ज्वालामुखी क्षेत्रों में भूमिगत गुहाओं को भरने के लिये गीज़रों को भारी मात्रा में भूजल की आवश्यकता होती है। आस-पास के मैग्मा द्वारा गर्म होने पर, पानी भाप में बदल जाता है, जिससे गर्म पानी और भाप का विस्फोट होता है।
- उदाहरण: येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान (अमेरिका)
- फ्यूमरोलेस (Fumaroles): ये पृथ्वी की सतह पर ऐसी दरारें होती हैं जहाँ से ज्वालामुखीय गैसें और भाप बाहर निकलती हैं।
- फ्यूमरोलेस तब उत्पन्न होते हैं जब मैग्मा जल स्तर से होकर गुजरता है, जिससे पानी गर्म हो जाता है और भाप ऊपर उठती है तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) जैसी ज्वालामुखी गैसें सतह पर आ जाती हैं।
- यह संरचना अक्सर ऐसे क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ ज्वालामुखी निष्क्रिय हो रहा होता है।
- उदाहरण: बैरन द्वीप (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह)
- मडपॉट्स (Mudpots):ये मिट्टी के बुदबुदाते हुए तालाब हैं, जो भूतापीय क्षेत्रों में बनते हैं।
- यह तब बनता है जब सीमित भूतापीय जल कीचड़ और चिकनी मिट्टी के साथ मिल जाता है।
- उदाहरण: येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान (अमेरिका)
आकांक्षी डीएमएफ कार्यक्रम | राजस्थान | 10 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
आकांक्षी DMF कार्यक्रम ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) पहलों को आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) और आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (ABP) के साथ संरेखित करने के लिये शुरू किया गया है।
मुख्य बिंदु
- ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) के बारे में:
- DMF फंड:
- प्रत्येक खनन पट्टा धारक को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दरों के अनुसार रॉयल्टी का एक अंश, जो रॉयल्टी के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगा, DMF को देना होगा।
- इस निधि का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों में प्रभावित लोगों के कल्याण के लिये किया जाएगा।
- उद्देश्य:
- इस योगदान के पीछे यह विचार है कि स्थानीय खनन प्रभावित समुदायों, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं और जो देश के सबसे गरीब हैं, को भी अपने निवास स्थान से निकाले गए प्राकृतिक संसाधनों से लाभ प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिये।
- कार्य:
- DMF ट्रस्टों का कामकाज़ और निधियों का उपयोग, संबंधित राज्यों के DMF नियमों द्वारा शासित होता है तथा इसमें केंद्रीय दिशानिर्देश, प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY) के अधिदेश शामिल होते हैं।
- प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY)
- नोडल मंत्रालय:
- वर्ष 2025 में शुरू की गई प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY), खान मंत्रालय द्वारा ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) के तहत अर्जित धन का उपयोग करते हुए प्रभावित लोगों और क्षेत्रों के कल्याण के लिये चलाई जा रही एक योजना है।
- उद्देश्य:
- खनन प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक और कल्याणकारी परियोजनाओं/कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना, जो राज्य तथा केंद्र सरकार की मौजूदा योजनाओं/परियोजनाओं के पूरक हों।
- खनन के दौरान और उसके बाद, खनन ज़िलों में लोगों के पर्यावरण, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को न्यूनतम करना।
- खनन क्षेत्रों में प्रभावित लोगों के लिये दीर्घकालिक स्थायी आजीविका सुनिश्चित करना।
- PMKKKY 2024 दिशानिर्देश:
- PMKKKY 2024 में यह अनिवार्य किया गया है कि DMF निधि का कम-से-कम 70% हिस्सा उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर खर्च किया जाए, जो खनन प्रभावित समुदायों के प्रत्यक्ष कल्याण से संबंधित हों।
- इन क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति, पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और दिव्यांगजनों का कल्याण, कौशल विकास और आजीविका सृजन, स्वच्छता तथा आवास, कृषि एवं पशुपालन शामिल हैं।
- शेष 30% धनराशि का उपयोग अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में किया जा सकता है, जो दीर्घकालिक क्षेत्रीय विकास को समर्थन प्रदान करते हैं।
- इन क्षेत्रों में भौतिक अवसंरचना, सिंचाई एवं ऊर्जा, जलग्रहण विकास शामिल हैं। खनन प्रभावित क्षेत्रों में पर्यावरण की गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से अन्य गतिविधियाँ भी शामिल हैं।
आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP)
- इसे वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य उन ज़िलों में बदलाव लाना है, जिन्होंने प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति कीहै।
- आकांक्षी ज़िले भारत के वे ज़िले हैं, जो कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं।
- इसमें देश के 112 ज़िले शामिल हैं।
- इस कार्यक्रम का संचालन नीति आयोग द्वारा किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, अलग-अलग मंत्रालयों ने ज़िलों की प्रगति को गति देने की ज़िम्मेदारी संभाली है।
आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (ABP)
- 7 जनवरी 2023 को शुरू ABP का उद्देश्य देश के सबसे कठिन और अपेक्षाकृत अविकसित ब्लॉकों में नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये शासन में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना है।
- कार्यक्रम की रणनीति मौजूदा योजनाओं को समेकित करने, परिणामों को परिभाषित करने और पाँच क्षेत्रों– स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और संबद्ध क्षेत्र, बुनियादी ढाँचा तथा सामाजिक विकास में 40 प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (KPI) के माध्यम से प्रगति की सतर्कतापूर्वक निगरानी सुनिश्चित करने पर आधारित है।