उत्तर प्रदेश ने 50 नदियों का पुनरुद्धार किया | उत्तर प्रदेश | 18 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य स्तरीय पहलों और स्थानीय सहभागिता के समन्वित प्रयासों के माध्यम से 3,363 किमी लंबाई वाली 50 नदियों का सफलतापूर्वक पुनरुद्धार किया है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- प्रभाव:
- नदियों के पुनरुद्धार और ग्रामीण क्षेत्रों में 3,388 तालाबों के निर्माण से भूजल स्तर तथा जल भंडारण क्षमता में वृद्धि हुई।
- इससे जल की कमी दूर होगी तथा स्थानीय किसानों की कृषि एवं पशुधन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
- स्थायित्व और मृदा संरक्षण:
- सरकार ने कटाव को रोकने और तटबंधों को मज़बूत करने के लिये नदी के किनारों पर पौधे लगाए, तथा नदी पुनरुद्धार एवं जलग्रहण विकास के लिये नई परियोजनाओं की पहचान की।
- सामाजिक-सांस्कृतिक और रोज़गार लाभ:
- नदी पुनरुद्धार प्रयासों से सांस्कृतिक स्थलों का जीर्णोद्धार हुआ है, जल संरक्षण जागरूकता बढ़ी है, सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहन मिला है तथा मनरेगा के माध्यम से ग्रामीण रोज़गार सृजित हुए हैं, जिससे स्थानीय विकास को सहायता मिली है।
नमामि गंगे कार्यक्रम
- लॉन्च: इसे भारत सरकार द्वारा एक प्रमुख एकीकृत संरक्षण मिशन के रूप में वर्ष 2014-15 में लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्य: गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के प्रदूषण उन्मूलन तथा पुनर्जीवन के दोहरे लक्ष्य। "निर्मल धारा" (अप्रदूषित प्रवाह) एवं "अविरल धारा" (निरंतर प्रवाह) को बहाल करने पर विशेष ध्यान।
- कवरेज: गंगा बेसिन 11 राज्यों में फैला हुआ है, जो भारत के 27% भूमि क्षेत्र को कवर करता है और 47% जनसंख्या को पोषण प्रदान करता है।
- मुख्य घटक:
- निर्मल गंगा: सीवेज उपचार और अपशिष्ट प्रबंधन के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण।
- अविरल गंगा: पारिस्थितिकी प्रवाह बहाली और वनीकरण।
- जन गंगा: सामुदायिक जागरूकता और सहभागिता।
- ज्ञान गंगा: अनुसंधान, नीति समर्थन और नदी बेसिन योजना।
- नवीनतम पहलें:
- वाराणसी और भदोही में नए एसटीपी एवं नाला अवरोधन (400 करोड़ रुपए से अधिक निवेश)।
- उत्तर प्रदेश सहित 3 राज्यों के 7 ज़िलों में जैवविविधता पार्क और प्राथमिकता वाली आर्द्रभूमियों का विकास।
- उपचारित जल के सुरक्षित पुनः उपयोग के लिये राष्ट्रीय ढाँचे का शुभारंभ।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- इसे वर्ष 2005 में पारित किया गया था और यह एक अधिकार-आधारित रोज़गार गारंटी योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- मुख्य उद्देश्य: प्रत्येक ग्रामीण परिवार, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिये इच्छुक हों, को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों का मज़दूरी युक्त गारंटीकृत रोज़गार प्रदान करना।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- पात्रता: आवेदक भारतीय नागरिक होना चाहिये, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक हो, वह ग्रामीण परिवार का हिस्सा हो और अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिये इच्छुक हो।
- विकेंद्रीकृत योजना: योजना निर्माण और क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी ग्रामसभाओं तथा पंचायती राज संस्थाओं को सौंपी गई है, जिससे नीचे से ऊपर तक भागीदारी सुनिश्चित होती है।
- बेरोज़गारी भत्ता: यदि आवेदन के 15 दिनों के भीतर कार्य उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो मुआवज़े के रूप में पहले 30 दिनों तक चौथाई मज़दूरी, तत्पश्चात् आधी मज़दूरी दी जाती है।
- कार्यस्थल मानक: रोज़गार 5 किमी के दायरे में ही उपलब्ध कराया जाना चाहिये; पीने का पानी, छाया और प्राथमिक चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
- समयबद्ध भुगतान: मज़दूरी साप्ताहिक रूप से और अधिकतम 15 दिनों के भीतर दी जानी चाहिये, अन्यथा मुआवज़ा देय होगा।
कौशल मेला 2025 | उत्तर प्रदेश | 18 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में विश्व युवा कौशल दिवस के अवसर पर कौशल मेला 2025 आयोजित किया गया।
- इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के युवाओं में व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना था।
मुख्य बिंदु
उत्तर प्रदेश सरकार की कौशल पहल:
- उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन (UPSDM):
- लक्ष्य समूह: यह मिशन 14 से 35 वर्ष की आयु के युवाओं को निःशुल्क, रोज़गारोन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- उद्देश्य: राज्य सरकार का उद्देश्य कौशल आधारित रोज़गार के अवसर सृजित करना है।
- वार्षिक प्रशिक्षण: हर साल 2,800 से अधिक प्रशिक्षण केंद्रों में 3 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया जाता है।
- कुल प्रशिक्षण: वित्त वर्ष 2017-18 में मिशन की स्थापना के बाद से मार्च 2025 तक 14,13,716 युवाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
- रोज़गार सुविधा: मिशन के माध्यम से 5,66,483 युवाओं को सफलतापूर्वक रोज़गार दिलाया गया है।
- साझेदारियाँ: मिशन ने 24 प्रमुख औद्योगिक प्रतिष्ठानों को प्रशिक्षण प्रदाता तथा 8 प्लेसमेंट एजेंसियों को साझेदार बनाया है ताकि रोज़गार के अवसर बढ़ सकें।
- यह भारत का पहला एकीकृत मॉडल है, जो पाँच केंद्रीय सरकार तथा एक राज्य सरकार की कौशल विकास योजनाओं को एकीकृत और समन्वित रूप से संचालित करता है।
- कौशल विकास पहल (SDI):
- कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित यह योजना 14–35 वर्ष के सभी वर्गों के युवाओं को MES कोर्स प्रदान करती है, जिसमें 30% महिलाएँ और 75% प्लेसमेंट का लक्ष्य होता है।
- अनुसूचित जाति उप-योजना हेतु विशेष केंद्रीय सहायता:
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की यह योजना अनुसूचित जाति के 14–35 वर्ष के युवाओं को लक्षित करती है। इसमें MES और QP-NOS कोर्स प्रदान किये जाते हैं, 30% महिला भागीदारी के साथ, यह योजना भारत सरकार द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित है।
- बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (MSDP):
- अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा संचालित यह भारत सरकार की वित्तपोषित योजना है, जो उत्तर प्रदेश के चयनित ज़िलों में अल्पसंख्यक युवाओं को MES प्रशिक्षण प्रदान करती है, जिसमें 33% महिला भागीदारी और 75% प्लेसमेंट का लक्ष्य होता है।
- सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP):
- गृह मंत्रालय की यह योजना उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती 19 ब्लॉकों में युवाओं को MES और QP-NOS प्रशिक्षण प्रदान करती है, जिसमें 50% महिला भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। यह योजना भी भारत सरकार द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित है।
- भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक योजना (BOCW):
- यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वित्तपोषित योजना है, जो 14–50 वर्ष के पंजीकृत निर्माण श्रमिकों और उनके परिवारों को MES तथा QP-NOS प्रशिक्षण प्रदान करती है।
- राज्य कौशल विकास निधि (SSDF):
- यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित एक टॉप-अप फंड है, जो 14–35 वर्ष के युवाओं को MES और QP-NOS प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसका उद्देश्य 20% अल्पसंख्यकों तथा 30% महिलाओं को लक्षित करना है एवं 60% प्लेसमेंट प्राप्त करना है।
- राज्य कौशल विकास निधि (SSDF) को अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करने और योजनाओं के प्रभावी एकीकरण हेतु स्थापित किया गया है।
- सामान्य न्यूनतम मानदंडों के अनुसार, प्रमाणित उम्मीदवारों की 70% नियुक्ति अनिवार्य है, जिसमें कम-से-कम 50% को वेतनयुक्त रोज़गार मिलना चाहिये।
ITI चलो अभियान
- इसे उत्तर प्रदेश में ITI में प्रवेश बढ़ाने के लिये 12 मई 2025 को लॉन्च किया गया था।
- इसका उद्देश्य मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया के साथ तकनीकी शिक्षा को मज़बूत करना तथा युवाओं में रोज़गार क्षमता को बढ़ाना है।
- यह अभियान ज़िला मजिस्ट्रेटों, स्कूल प्राधिकारियों और ग्राम प्रधानों के समन्वित प्रयासों से कार्यान्वित किया गया।
- 149 सरकारी ITI ने 11 उद्योग-संरेखित दीर्घकालिक पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिये टाटा टेक्नोलॉजीज़ के साथ साझेदारी की है।
- यह मिशन स्कूलों और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाता है, शिक्षा तथा रोज़गार के अंतर को पाटता है एवं उत्तर प्रदेश को कौशल विकास का केंद्र बनाता है।
इंदौर स्वच्छ रैंकिंग में शीर्ष पर | मध्य प्रदेश | 18 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, इंदौर को लगातार आठवें वर्ष भारत का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया है।
मुख्य बिंदु
मध्य प्रदेश के शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- इंदौर:
- उत्कृष्ट प्रदर्शन के चलते इसे ‘सुपर स्वच्छ लीग शहरों’ की श्रेणी में अपग्रेड किया गया है।
- यह इस नई विशिष्ट श्रेणी में शीर्ष स्थान पर रहा, जिसे अगले वर्ष से अलग से रैंक किया जाएगा।।
- भोपाल:
- 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में देश का दूसरा सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया।
- पिछले वर्षों की तुलना में प्रदर्शन में सुधार करते हुए यह अब केवल अहमदाबाद से पीछे है।
- जबलपुर:
- पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर पाँचवाँ स्थान प्राप्त किया।
- इसे सात-सितारा रेटिंग प्राप्त हुई तथा जल अधिशेष शहर के रूप में मान्यता मिली
- उज्जैन:
- मध्यम आकार के शहरों की श्रेणी में मान्यता प्राप्त की और 3–10 लाख आबादी वाले समूह में 'सुपर स्वच्छ लीग शहरों' की श्रेणी में शामिल हुआ
- कटनी:
- स्वच्छ सर्वेक्षण 2024–25 में देशभर में आठवाँ स्थान प्राप्त किया।
- शहरी स्वच्छता में राज्यव्यापी कवरेज:
- पुरस्कार और मान्यता:
- मध्य प्रदेश ने वर्ष 2025 में आठ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किये, जबकि 2023–24 में यह संख्या छह थी।
- शाहगंज, नगरी और नयागाँव जैसे शहरों ने भी उच्च रैंकिंग प्राप्त की, जो राज्यव्यापी प्रभाव को दर्शाता है।
- सुपर स्वच्छ लीग शहर:
- शीर्ष स्तर के प्रदर्शनकर्त्ताओं को अलग से रैंक करने के लिये एक नई श्रेणी शुरू की गई।
स्वच्छ सर्वेक्षण
- लॉन्च: इसे वर्ष 2016 में 73 शहरों के साथ लॉन्च किया गया था और इसके बाद इसमें तीव्र वृद्धि हुई है; वर्ष 2024-25 संस्करण में 4,589 शहरों को शामिल किया गया है।
- उद्देश्य: नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देना और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाना ।
- यह शहरी स्वच्छता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा सार्वजनिक स्वच्छता में सुधार के लिये शहरों को प्रतिस्पर्द्धा हेतु प्रोत्साहित करता है।
- संचालन प्राधिकरण: इसे आवास और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के अंतर्गत कार्यान्वित किया जाता है।
भोपाल की झीलों का जल पीने योग्य नहीं | मध्य प्रदेश | 18 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) ने बताया है कि झीलों की नगरी के रूप में प्रसिद्ध भोपाल की कई झीलों का जल प्रदूषित हो चुका है।
मुख्य बिंदु
- MPPCB द्वारा जल गुणवत्ता मूल्यांकन:
- मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) ने भोपाल की प्रमुख झीलों की जल गुणवत्ता का विश्लेषण जनवरी से अप्रैल तक चार माह की अवधि में किया।
- झीलों को प्रदूषण स्तर और संभावित उपयोग के आधार पर A से C श्रेणी में वर्गीकृत किया गया
- श्रेणी A: केवल कीटाणुशोधन के बाद पीने योग्य जल।
- श्रेणी B: बाहरी स्नान के लिये उपयुक्त।
- श्रेणी C: केवल परंपरागत उपचार और कीटाणुशोधन के बाद पीने योग्य।
- भोपाल में प्रमुख झीलों की स्थिति:
- अपर लेक:
- यह भोपाल के लिये पेयजल का एक प्रमुख स्रोत है, इसे लगातार B श्रेणी में पाया गया है।
- श्रेणी B यह दर्शाती है कि पानी केवल बाहरी स्नान के लिये उपयुक्त है, प्रत्यक्ष उपभोग के लिये नहीं।
- लोअर लेक:
- यह झील अपर लेक की तुलना में अधिक प्रदूषित पाई गई। पूरे मूल्यांकन काल में यह लगातार श्रेणी C में रही।
- इसका जल पीने से पहले पूर्ण उपचार एवं कीटाणुशोधन की आवश्यकता है।
- शाहपुरा झील:
- शाहपुरा झील जनवरी से अप्रैल तक की मूल्यांकन अवधि में श्रेणी C में रही।
- प्रदूषण के लगातार बढ़ते स्तर के कारण झील का पानी सीधे उपयोग के लिये अनुपयुक्त हो गया है तथा इसे पीने से पहले पूर्ण उपचार की आवश्यकता है।
- हथाईखेड़ा बाँध:
- हथाईखेड़ा बाँध की जल गुणवत्ता भी सभी चार महीनों के दौरान श्रेणी C के अंतर्गत वर्गीकृत की गई।
- यहाँ का पानी उचित उपचार के बिना पीने योग्य नहीं है।
- इसबाँध का निर्माण कोलार नदी पर किया गया है।
- कलियासोत बाँध:
- यह भोपाल में कलियासोत नदी पर बना है। इसे मार्च और अप्रैल के महीनों के लिये श्रेणी 'A' तथा जनवरी और फरवरी के लिये श्रेणी 'B' का दर्जा दिया गया है।
- मूल्यांकन अवधि के दौरान न्यूनतम उपचार के साथ पानी पीने योग्य था।
- केरवा बाँध:
- इसमें भी कलियासोत बाँध के समान प्रवृत्ति देखी गई।
- इसे मार्च और अप्रैल में श्रेणी A तथा जनवरी और फरवरी में श्रेणी B में रखा गया।
- यह बाँध भोपाल के पास केरवा नदी पर स्थित है।
- प्रमुख प्रदूषण संकेतक:
- कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की उपस्थिति: कई झीलों में इसकी मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक पाई गई। यह मानव मल प्रदूषण का संकेत देता है।
- सीवेज प्रवाह: झीलों में अशोधित सीवेज का प्रवाह जल प्रदूषण का मुख्य कारण है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB)
- यह राज्य में प्रदूषण की रोकथाम और पर्यावरण संरक्षण के लिये उत्तरदायी निकाय है।
- यह विभिन्न प्रमुख पर्यावरणीय कानूनों को लागू करता है, जिनमें शामिल हैं:
- बोर्ड का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रयोजनों के लिये स्वच्छ और उपयोगी वायु, जल तथा मिट्टी को बनाए रखना है।
- इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु बोर्ड राज्य में 14 क्षेत्रीय कार्यालय तथा 3 ज़िला कार्यालय संचालित करता है।
राजस्थान में वनों की कटाई | राजस्थान | 18 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जयपुर के डोल का बाध वन और बारां के शाहाबाद संरक्षण रिज़र्व में वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिये हज़ारों वृक्षों को काटने की राज्य सरकार की कार्रवाई पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।
- सरकार की यह कार्रवाई राज्य की हरित प्रतिबद्धताओं और चल रहे 'हरियालो राजस्थान' वृक्षारोपण अभियान के सीधे विपरीत है।
मुख्य बिंदु
- डोल का बाध वन:
- यह दक्षिण जयपुर में 100 एकड़ का एक दुर्लभ हरा-भरा क्षेत्र है, जिसमें खेजड़ी के वृक्षों सहित लगभग 2,500 वृक्ष हैं।
- यह क्षेत्र 80 से अधिक पक्षी प्रजातियों का आश्रयस्थल है तथा तापमान नियंत्रण और भूजल पुनर्भरण में सहायक है।
- यह बढ़ते प्रदूषण और शहरी विस्तार के बीच जयपुर के लिये एक महत्त्वपूर्ण "ग्रीन लंग" (हरित फेफड़ा) के रूप में कार्य करता है।
- वनों की कटाई का कारण: इस वन भूमि पर प्रधानमंत्री यूनिटी मॉल और वाणिज्यिक ब्लॉकों के निर्माण का प्रस्ताव।
- सार्वजनिक प्रतिक्रिया: क्षेत्र को जैवविविधता पार्क घोषित करने की मांग।
- शाहाबाद संरक्षण रिज़र्व:
- परिचय: यह क्षेत्र राजस्थान के सबसे सघन वनों में से एक है, जो बारां में स्थित है तथा कुनो राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश) को मुकुंदरा हिल्स और रणथंभौर (राजस्थान) से जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण वन्यजीव गलियारा है।
- चिंता: यह गलियारा बाघों और चीता प्रजातियों की आवाजाही तथा आनुवंशिक विविधता के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है एवं इसमें कोई भी बाधा चीता पुनर्प्रस्थापन परियोजना की सफलता को संकट में डाल सकती है।
- वनों की कटाई का कारण: एक निजी बिजली संयंत्र के लिये 1.19 लाख से अधिक वृक्षों की कटाई प्रस्तावित।
कुनो राष्ट्रीय उद्यान
- स्थिति: यह मध्य प्रदेश में स्थित है तथा कुनो वन्यजीव प्रभाग का एक हिस्सा है।
- पारिस्थितिकी महत्त्व: कुनो क्षेत्र में विशिष्ट करधई, खैर और सालै वनों के साथ-साथ विस्तृत घास के मैदान पाए जाते हैं। आर्द्रता के प्रति संवेदनशील करधई वृक्ष पार्क के लचीलापन को दर्शाता है।
- कुनो नदी वर्षभर जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है तथा वन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखती है।
- वन्यजीव महत्त्व: यह चीता और शेर पुनर्प्रस्थापन प्रयासों के लिये एक प्रमुख स्थल है।
- संरक्षण निहितार्थ: यह क्षेत्र प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रारंभ की गई चीता पुनर्प्रस्थापन परियोजना में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है।
मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व
- स्थिति: यह दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में, कोटा से लगभग 50 किमी दूर, चंबल नदी के पूर्वी तट पर स्थित है।
- ऐतिहासिक महत्त्व: इसे पूर्व में दर्रा वन्यजीव अभयारण्य के नाम से जाना जाता था और यह कोटा के महाराजा का शाही शिकार क्षेत्र हुआ करता था।
- संरक्षित स्थिति: इसे वर्ष 2004 में मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया, जो लगभग 200 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है।
- इसमें दर्रा, चंबल और जसवंत सागर वन्यजीव अभयारण्यों को शामिल किया गया है।
- टाइगर रिज़र्व का दर्जा: इसे वर्ष 2013 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्वीकृति के बाद राजस्थान का तीसरा टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- पारिस्थितिकीय भूमिका: चंबल नदी और इसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में आवासीय विविधता तथा जल सुरक्षा को सहारा प्रदान करती हैं।
- वन्यजीव महत्त्व: वर्तमान में यह रणथंभौर से लाए गए चार बाघों का निवास है, जो बाघों की आबादी विस्तार और भूदृश्य-स्तर संरक्षण में सहायक है।
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
- स्थान: दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले में स्थित, जयपुर से लगभग 130 किमी. दूर।
- पारिस्थितिकी महत्त्व: उत्तरी भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में से एक, जो अपनी समृद्ध जैवविविधता तथा सुंदर परिदृश्यों के लिये जाना जाता है।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: पूर्व में जयपुर के महाराजाओं का शाही शिकारगाह, वर्तमान यह एक प्रमुख वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र के रूप में स्थापित है।
- वन्यजीव आकर्षण: रॉयल बंगाल टाइगर को देखने के लिये एक प्रमुख गंतव्य, जो दुनिया भर से वन्यजीव फोटोग्राफरों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है।
- पर्यटन: रणथंभौर की विरासत, वन्य क्षेत्र और वन्य जीवन का मिश्रण इसे पारिस्थितिकी पर्यटन तथा विरासत पर्यटन दोनों के लिये एक प्रमुख आकर्षण बनाता है।
पोषण एप में तकनीकी समस्या से पंजीकरण बाधित | हरियाणा | 18 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्र के पोषण ट्रैकर एप में तकनीकी समस्याओं के कारण हरियाणा में, विशेषकर रोहतक जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में, लाभार्थी पंजीकरण में बाधा आ रही है।
- इससे पोषण अभियान योजना के अंतर्गत आहार और पोषण संबंधी लाभ प्रदान करने में अवरोध उत्पन्न हुआ है।
मुख्य बिंदु
- पोषण ट्रैकर एप के बारे में:
- यह केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक पहल है, जिसका उद्देश्य पोषण अभियान के कार्यान्वयन की निगरानी करना है।
- 1 जुलाई 2025 से, मंत्रालय ने यह अनिवार्य कर दिया है कि सभी लाभार्थियों को चेहरे की पहचान और आधार-आधारित ई-केवाईसी के माध्यम से एप पर पंजीकृत किया जाए।
- इसके अतिरिक्त, बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावकों के आधार विवरण के माध्यम से पंजीकृत किया जाना चाहिये।
- पोषण अभियान के बारे में:
- इसे वर्ष 2018 में राजस्थान के झुंझुनू ज़िले से लॉन्च किया गया था।
- यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य पोषण संबंधी परिणामों में सुधार लाना है।
- हरियाणा में कार्यान्वयन:
- हरियाणा के सभी ज़िलों में पोषण अभियान लागू किया जा रहा है।
- प्रथम चरण में नूंह और पानीपत ज़िलों का चयन किया गया।
- द्वितीय चरण में इसमें गुरूग्राम, रोहतक, सोनीपत, सिरसा और करनाल जैसे 10 ज़िले शामिल किये गए।
- चरण III में शेष ज़िलों को इसके अंतर्गत कवर किया गया।
- उद्देश्य:
- इस मिशन का लक्ष्य 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों में बौनेपन और कम वज़न की समस्या को रोकना तथा कम करना है।
- इसका लक्ष्य बच्चों (6-59 महीने), महिलाओं और किशोरियों (15-49 वर्ष की) में एनीमिया को कम करना है, साथ ही जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में कमी लाना है।
- मुख्य घटक:
- ग्रोथ मॉनिटरिंग डिवाइस सभी आँगनवाड़ी केंद्रों को प्रदान की गई हैं ताकि बच्चों के विकास पर निगरानी रखी जा सके।
- स्मार्टफोन और पावर बैंक आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं तथा पर्यवेक्षकों को फील्ड स्तर पर डाटा प्रविष्टि एवं रिपोर्टिंग के लिये वितरित किये गये हैं।
- सामुदायिक व्यवहार परिवर्तन गतिविधियाँ:.
- सामुदायिक आधारित कार्यक्रम (CBEs) हर माह की 8 और 22 तारीख को आँगनवाड़ी केंद्रों पर आयोजित किये जाते हैं, जिनमें अन्नप्राशन दिवस तथा सुपोषण दिवस जैसे विषय शामिल होते हैं।
- गाँव स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस (VHSND) हर माह की 15 तारीख को स्वास्थ्य विभाग के समन्वय से आयोजित किया जाता है, जिसमें टीकाकरण तथा स्वास्थ्य परीक्षण पर ज़ोर दिया जाता है।
- पोषण पखवाड़ा मार्च में तथा पोषण माह सितंबर में मनाया जाता है, जिनमें जागरूकता अभियानों, रैलियों और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से पोषण पर ज़ोर दिया जाता है।
मिशन पोषण 2.0 (हरियाणा) के अंतर्गत राज्य स्तरीय योजनाएँ
मिशन पोषण 2.0 (हरियाणा) के अंतर्गत राज्य स्तरीय योजनाएँ
- मुख्यमंत्री दूध उपहार योजना के तहत आँगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों को हर सप्ताह 6 दिन 200 मिली फोर्टिफाइड स्किम्ड दूध (विटामिन A और D3 युक्त) प्रदान किया जाता है।
- मोटे अनाज आधारित व्यंजन पुस्तिका लॉन्च की गई है, जिससे पारंपरिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जा सके; आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता इसके अंतर्गत पकवान प्रदर्शन आयोजित करती हैं।
- महिला एवं बाल विकास विभाग ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ साझेदारी की है ताकि खाद्य फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा दिया जा सके और पूरक पोषण कार्यक्रम को मज़बूत किया जा सके।
- हरियाणा में पोषण जागृति माह और पोषण पखवाड़ा मनाया जाता है, जिसके दौरान 20 लाख से अधिक पोषण जागरूकता गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।
- इनमें अन्नप्राशन समारोह, वृद्धि निगरानी अभियान, योग सत्र तथा गंभीर रूप से कुपोषित (SAM) बच्चों की पहचान एवं रेफरल शामिल होते हैं।