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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीन थेरेपी की प्रभावकारित

  • 02 Aug 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जीन थेरेपी, DNA, अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन, प्रोटियोस्टेसिस।

मेन्स के लिये:

जीन थेरेपी की बढ़ती प्रभावकारिता और इसके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में "सीक्रेशन ऑफ फंक्शनल अल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन इज़ सेल टाइप डिपेंडेंट शीर्षक से एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है, जो दर्शाता है कि शरीर में प्रोटीन विनियमन नेटवर्क को बदलकर आनुवंशिक रोगों के इलाज में मदद करके जीन थेरेपी की प्रभावकारिता को बढ़ाया जा सकता है।

जीन थेरेपी

  • जीन थेरेपी एक मरीज के DNA (डीऑक्सी-राइबो न्यूक्लिक एसिड) में त्रुटि के स्रोत को ठीक करके आनुवंशिक रोगों का इलाज करने का एक तरीका है।
  • जीन थेरेपी तकनीक डॉक्टरों को दवाओं या सर्जरी का उपयोग करने के बजाय किसी व्यक्ति के आनुवंशिक कमी को पूरा करके विकार का इलाज करने की अनुमति देती है।
  • एक हानिरहित वायरल या बैक्टीरियल वेक्टर का उपयोग रोगी की कोशिकाओं में सुधारात्मक जीन को ले जाने के लिये किया जाता है, जहाँ जीन रोग के इलाज़ हेतु आवश्यक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिये कोशिका को निर्देशित करता है।
  • माँसपेशियों की कोशिकाएँ सामान्य इसका लक्ष्य हैं क्योंकि माँसपेशियों में इंजेक्ट की गई जीन थेरेपी अन्य मार्गों से शरीर में प्रवेश करने की तुलना में अधिक सुलभ हैं।
  • लेकिन माँसपेशियों की कोशिकाएँ वांछित प्रोटीन का उतनी कुशलता से उत्पादन नहीं कर सकती हैं, जितना कि जीन उसे करने का निर्देश देता है, वह उस कार्य से बहुत अलग होता है जिसमें वह विशेषज्ञता रखता है।

निष्कर्ष:

  • जीन थेरेपी की प्रभावशीलता:
    • इंजेक्शन के माध्यम से शरीर में AAT (अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन) जीन थेरेपी देने के लिये एक माध्यम के रूप में एडेनो- एसोसिएटेड वायरस के हानिरहित संस्करण का उपयोग करने की रणनीति विकसित की गई, जिससे कई वर्षों तक प्रोटीन निरंतर स्त्रावित हो सके।
      • AAT एक ऐसी स्थिति है जिसमें यकृत कोशिकाएँ पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन AAT बनाने में असमर्थ होती हैं।
      • इसके परिणामस्वरूप फेफड़े के ऊतकों का विखंडन होता है जो गंभीर श्वसन समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें गंभीर फेफड़े के रोग, जैसे कि- क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD) या वातस्फीति का विकास शामिल है।
    • सुबेरॉयलनिलाइड हाइड्रॉक्सैमिक एसिड (SAHA) नामक एक अणु को जोड़ने से माँसपेशियों की कोशिकाओं को AAT को उत्पादन स्तर पर यकृत कोशिकाओं की तरह बनाने में मदद मिलती है।
      • प्रोटियोस्टेसिस वह प्रक्रिया है जो कोशिकीय प्रोटिओम और जीव दोनों के स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु कोशिका के भीतर प्रोटीन को नियंत्रित करती है।
      • प्रोटियोस्टेसिस में पथों का एक अत्यधिक जटिल अंतर्संबंध शामिल होता है जो संश्लेषण से लेकर क्षरण तक एक प्रोटीन की संरचना को प्रभावित करता है।
    • SAHA या इसी तरह के प्रोटियोस्टेसिस रेगुलेटर को जीन थेरेपी में शामिल करने से कई आनुवंशिक रोगों के लिये इन उपचारों की प्रभावशीलता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
      • मरीजों का इलाज़ आमतौर पर इन्फ्यूजन के माध्यम से AAT प्राप्त करके किया जाता है। इसके लिये रोगियों को या तो नियमित रूप से अस्पताल का चक्कर लगाना पड़ता है या जीवन भर महँगे उपकरण घर पर ही रखने पड़ते हैं।
    • AAT की कमी का कारण बनने वाले दोषपूर्ण जीन को प्रतिस्थापित करना रोगियों के लिये एक वरदान साबित हो सकता है।
      • वर्तमान जीन थेरेपी AAT-उत्पादक जीन को पेशियों में इंजेक्ट करती है।
  • निहितार्थ:
    • मांसपेशियों की कोशिकाओं के प्रोटीन उत्पादन में वृद्धि संभावित रूप से वैक्सीन प्रतिरक्षा में सुधार कर सकती है।
    • कोशिकाओं में प्रोटीन होमियोस्टेसिस के वृद्धि कारक को जोड़कर प्रोटीन निर्माण का अनुकूलन हो सकता है तथा दवा की प्रभावकारिता में वृद्धि हो सकती है।
      • कई दवाएँ प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होती हैं जो किसी कोशिका की प्रोटीन उत्पादन क्षमता पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
      • लेकिन इनमें से कई दवाएँ उन कोशिकाओं का उपयोग करती हैं जो बड़ी मात्रा में प्रोटीन निर्माण के लिये विशिष्ट नहीं हैं।
    • प्रोटीन होमियोस्टेसिस के माध्यम से कोशिका तंत्र को बेहतर करके आयु वृद्धि दर में कमी करने तथा बीमारियों की एक विस्तृत शृंखला के इलाज के लिये कई नए दरवाजे खोलने में मदद की जा सकती है।

स्रोत:डाउन टू अर्थ

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