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शासन व्यवस्था

कंपनी अधिनियम में संशोधन

  • 21 May 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कंपनी अधिनियम, 2013, कंपनी लॉ कमेटी (CLC)।

मेन्स के लिये:

कंपनी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन।

चर्चा में क्यों? 

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में कंपनी अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित करने पर   विचार किया जा रहा है।

  • मंत्रालय को कंपनी लॉ कमेटी द्वारा की गई इन सिफारिशों पर विशेषज्ञों तथा पेशेवरों से प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है, जिसने अप्रैल 2022 में अपनी रिपोर्ट वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री को सौंपी थी।

प्रमुख प्रस्ताव:

  • इससे कॉरपोरेट गवर्नेंस पर प्रतिबंध बढ़ने की उम्मीद है, विशेष रूप से बोर्ड पदों के लिये भर्ती और लेखा परीक्षकों एवं शीर्ष अधिकारियों के इस्तीफे से संबंधित मामलों को संभालने के लिये।
  • इसके प्रमुख प्रस्तावों में यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि स्वतंत्र निदेशक वास्तव में स्वतंत्र हों और कंपनियाँ वैधानिक लेखा परीक्षकों द्वारा वित्तीय विवरणों पर प्रतिकूल टिप्पणी या योग्यता या यहाँ तक कि अपने लेखा-परीक्षा को छोड़ने के कारणों के बारे में अधिक पारदर्शी हों।
  • यह कुछ प्रकार की कंपनियों के लिये अनिवार्य संयुक्त ऑडिट सहित कानून में कई बदलाव करके वैधानिक लेखा परीक्षकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है।
  • कंपनी अधिनियम में प्रस्तावित परिवर्तनों का उद्देश्य सुशासन के पथ-प्रदर्शकों को मज़बूत करना है, स्वतंत्र निदेशकों और लेखा परीक्षकों ने कंपनी के मामलों में अधिक पारदर्शिता का संचार किया है तथा कंपनियों को व्यापार करने में सुगमता (Ease of Doing Business) में सुधार के प्रयासों के तहत आंशिक शेयर और रियायती शेयर जारी करने की अनुमति दी है।
    • कंपनी अधिनियम के तहत वर्तमान में प्रतिबंधित आंशिक शेयरों का मुद्दा खुदरा निवेशकों को उच्च मूल्य वाले शेयरों तक पहुंँचने में मदद करेगा, जबकि रियायती शेयर संकट में एक कंपनी को ऋण को इक्विटी में बदलने की अनुमति देगा।
  • कॉरपोरेट क्षेत्र में कुछ दिवालिया कंपनियाँ, विशेष रूप से बड़ी गैर-बैंक वित्तीय कंपनियाँ, जिन्होंने पिछले कुछ समय में गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना किया है, ने सरकार को इनमें से कुछ परिवर्तनों पर विचार करने के लिये प्रेरित किया है।

भारतीय कंपनी अधिनियम:  

  • भारतीय कंपनी अधिनियम संसद का एक अधिनियम है जिसे वर्ष 1956 में अधिनियमित किया गया था। यह कंपनियों को पंजीकरण द्वारा गठित करने में सक्षम बनाता है, कंपनियों, उनके कार्यकारी निदेशक और सचिवों की ज़िम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
  • वर्ष 2013 में सरकार ने भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 में संशोधन किया और एक नया अधिनियम जोड़ा जिसे भारतीय कंपनी अधिनियम, 2013 कहा गया।
    • कंपनी अधिनियम, 1956 को आंशिक रूप से भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
    • यह एक अधिनियम बन गया और अंततः यह सितंबर 2013 में लागू हुआ।
  • वर्ष 2020 में भारत की संसद ने कंपनी अधिनियम में और संशोधन करने तथा विभिन्न अपराधों को कम करने के साथ-साथ देश में व्यापार करने में सुगमता को बढ़ावा देने के लिये कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया।

कंपनी अधिनियम 2013 की विशेषताएंँ:

  • यह कंपनी के निगमन,  कंपनी की ज़िम्मेदारियों, निदेशकों और कंपनी के विघटन को नियंत्रित करता है।
  • इसे 29 अध्यायों में विभाजित किया गया है जिसमें पूर्व कंपनी अधिनियम, 1956 में 658 धाराओं की तुलना में 470 धाराएँ हैं और इसमें 7 अनुसूचियाँ हैं।
  • इसमें अधिकतम 200 सदस्य हैं, पहले निजी कंपनियों में सदस्यों की अधिकतम संख्या 50 थी।
  • इस अधिनियम में 'एक व्यक्ति कंपनी’ (One Person Company) नया शब्द शामिल किया गया है।

स्रोत: मिंट

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