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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

AI-संचालित स्वायत्त उपग्रह

  • 29 May 2025
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जियोस्टेशनरी इक्वेटोरियल ऑर्बिट, चंद्रयान-3, केसलर सिंड्रोम, बाह्य अंतरिक्ष संधि

मेन्स के लिये:

उभरती हुई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की चुनौतियाँ और अवसर, उपग्रह प्रणालियों में तकनीकी प्रगति

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) संचालित स्वायत्त उपग्रहों के उदय ने वैश्विक अंतरिक्ष शासन में महत्त्वपूर्ण अंतराल को उजागर किया है। जब उपग्रह खुद निर्णय लेने और कार्य करने लगेंगे, तो कानूनी ज़िम्मेदारी, नैतिक नियमन एवं राजनीतिक संघर्ष के खतरे प्रमुख चिंताओं के केंद्र में आ जाते हैं।

AI-स्वायत्त उपग्रह क्या है?

  • AI-स्वायत्त उपग्रहों से तात्पर्य ऐसे अंतरिक्ष-यान से है जो न्यूनतम या बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के संचालन के लिये AI का लाभ उठाते हैं। 
    • ये उपग्रह डेटा का विश्लेषण करने, निर्णय लेने और वास्तविक समय में स्वतंत्र रूप से कार्य निष्पादित करने के लिये अक्सर मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग तकनीकों पर आधारित उन्नत एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • ऑनबोर्ड डेटा प्रोसेसिंग: AI उपग्रहों को अंतरिक्ष में डेटा का विश्लेषण करने, अप्रासंगिक विवरणों को फिल्टर करने और पृथ्वी पर केवल महत्त्वपूर्ण जानकारी भेजने में सक्षम बनाता है, जिससे बैंडविड्थ की बचत होती है तथा देरी कम होती है।
      • अंतरिक्ष आधारित डेटा सेंटर सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं और सीधे अंतरिक्ष में ऊष्मा उत्सर्जित कर सकते हैं, जिससे ऊर्जा की खपत कम हो सकती है। यह दृष्टिकोण स्थलीय डेटा केंद्रों की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कटौती कर सकता है।
    • स्वार्म इंटेलिजेंस (SI): नक्षत्रों या समूहों में, उपग्रह डेटा साझा कर सकते हैं और सामूहिक रूप से सीख सकते हैं (इसे "हाइव लर्निंग" भी कहा जाता है)। यह पूरे नेटवर्क में सहयोगात्मक व्यवहार और बेहतर प्रदर्शन की अनुमति देता है।
    • स्वचालित संचालन: वे लगातार अपनी स्थिति की निगरानी करते हैं, दोषों की पहचान करते हैं और स्वतंत्र रूप से मरम्मत करते हैं।
    • सामरिक रक्षा : अगली पीढ़ी के AI उपग्रह बेड़े GEO (जियोस्टेशनरी इक्वेटोरियल ऑर्बिट) और LEO (लो अर्थ ऑर्बिट) में एक बहुस्तरीय निगरानी प्रणाली तैयार करेंगे। 
      • उदाहरण के लिये, किसी वस्तु का पता लगाने वाला GEO उपग्रह, किसी LEO उपग्रह को अधिक निकट से निरीक्षण करने का कार्य सौंप सकता है, जिससे वास्तविक समय पर निगरानी और समन्वित प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी, जो विज्ञान और रक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • स्व-निदान: आंतरिक दोषों का पता लगाना और कक्षा में सुधार का प्रयास करना।
    • टकराव से बचाव: अंतरिक्ष में बढ़ते यातायात और मलबे के कारण, स्वायत्त उपग्रह संभावित टकरावों की भविष्यवाणी करने तथा ज़मीनी नियंत्रण से निर्देशों की प्रतीक्षा किये बिना ही बचाव कार्य करने के लिये AI का उपयोग कर सकते हैं।
    • कॉम्बैट समर्थन: उपग्रह स्वायत्त लक्ष्य ट्रैकिंग और संलग्नता के साथ वास्तविक समय में खतरे का पता लगाने की सुविधा प्रदान करते हैं। वे परिस्थितिजन्य आवश्यकताओं के आधार पर संचालन को अनुकूलित कर सकते हैं, जैसे कि आपदाओं के बाद सेंसर को पुनः लक्षित करना या पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण कक्षा को समायोजित करना।
    • अंतरिक्ष अन्वेषण में AI की प्रगति: भारत अगले पाँच वर्षों में 50 AI-संचालित उपग्रहों को लॉन्च करेगा। ये उपग्रह अंतरिक्ष अन्वेषण और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देंगे, जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में AI को एकीकृत करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
      • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा चंद्रयान-3 में AI का ऐतिहासिक उपयोग देखा गया, जब प्रज्ञान रोवर ने बिना ऑर्बिटर के, विक्रम लैंडर के साथ संवाद करने के लिये AI का उपयोग किया गया, जिससे सुरक्षित लैंडिंग, नेविगेशन और संसाधनों का पता लगाने में सहायता मिली।
      • चीन ने अपने थ्री-बॉडी कंप्यूटिंग कांस्टेलेशन के निर्माण के तहत 12 उपग्रहों को लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य विश्व का पहला अंतरिक्ष-आधारित सुपरकंप्यूटर बनाना है । AI से लैस ये उपग्रह कक्षा में डेटा प्रोसेस करते हैं और उन्नत तकनीकों का परीक्षण करते हैं।

नोट: हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी फर्म टेकमी2स्पेस (TakeMe2Space), अंतरिक्ष में भारत की पहली AI लैब, माई ऑर्बिटल इंफ्रास्ट्रक्चर - टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर (MOI-TD) लॉन्च करेगी। यह मिशन कक्षा में वास्तविक समय डेटा प्रोसेसिंग का प्रदर्शन करेगा, जिससे अंतरिक्ष अनुसंधान अधिक किफायती और सुलभ हो जाएगा।

AI-स्वायत्त उपग्रहों के उभरते जोखिम क्या हैं?

  • दोष निर्धारण और कानूनी अस्पष्टता: यदि एक स्वायत्त उपग्रह त्रुटिपूर्ण गणना करता है और लगभग संघट्ट या वास्तविक क्षति का कारण बनता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि कानूनी रूप से कौन उत्तरदायी है - AI डेवलपर, लॉन्चिंग स्टेट, ऑपरेटिंग यूनिट या स्वामी राष्ट्र।
    • इससे बहु-न्यायालयीय व्यवधान उत्पन्न होते हैं, जहाँ कोई भी एकल इकाई AI निर्णयों के लिये स्पष्ट रूप से जवाबदेह नहीं होती है।
  • AI भ्रम और गलत निर्णय: AI प्रणालियाँ खतरों को गलत तरीके से वर्गीकृत कर सकती हैं, जैसे किसी वाणिज्यिक उपग्रह को शत्रुतापूर्ण वस्तु समझ लेना या किसी हानिरहित वस्तु को टकराव के खतरे के रूप में पहचानना, जिससे अंतरिक्ष में अनपेक्षित टकराव हो सकता है।
    • इससे अनपेक्षित युद्धाभ्यास या रक्षात्मक कार्रवाइयाँ हो सकती हैं जो कूटनीतिक या सैन्य संघर्ष में बदल सकती हैं ।
  • दोहरे उपयोग एवं हथियारीकरण के जोखिम: AI प्रौद्योगिकियों में दोहरे उपयोग का जोखिम है, क्योंकि नागरिक उद्देश्यों के लिये डिज़ाइन किये गए स्वायत्त उपग्रहों को वास्तविक समय की निगरानी, ​​लक्ष्यीकरण अथवा यहाँ तक ​​कि अंतरिक्ष में आक्रामक संचालन के लिये पुन: उपयोग किया जा सकता है, जिससे सैन्य अभियानों में सहायता प्राप्त हो सकती है और साथ ही हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिल सकता है।
  • टकराव का जोखिम और कक्षीय मलबा, वर्ष 2030 तक LEO में हज़ारों स्वायत्त उपग्रहों की अपेक्षा की जाती है। समन्वित टकराव-निवारण प्रोटोकॉल के बिना, कई उपग्रहों द्वारा स्वायत्त निर्णयों से अंतरिक्ष यातायात की भीड़, दुर्घटनाएँ या मलबे (केस्लर सिंड्रोम) का कारण बन सकते हैं।
  • मानवीय निगरानी का अभाव: वर्तमान संधियाँ राज्यों द्वारा अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये " प्राधिकरण और निरंतर निगरानी " की मांग करती हैं।
  • हालाँकि सच्ची स्वायत्तता, सार्थक मानवीय नियंत्रण की गुंजाइश को सीमित करती है, जिससे उत्तरदायित्व के बिना स्वचालित निर्णयन संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • प्रमाणन एवं मानकों में अंतराल: विमानन या समुद्री क्षेत्रों के विपरीत, अंतरिक्ष में उपग्रहों में AI की सुरक्षा एवं विश्वसनीयता के परीक्षण और सत्यापन के लिये वैश्विक प्रमाणन संबंधी ढाँचे का अभाव है।
  • प्रतिकूल या असामान्य अंतरिक्ष स्थितियों में AI के प्रदर्शन के लिये कोई वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय मानक नहीं हैं।
  • नैतिक दुविधाएँ: AI उपग्रह स्वचालित घातक आयुध प्रणालियों (LAWS) का समर्थन कर सकते हैं। इससे जीवन-मरण के निर्णय मशीनों को सौंपने के संबंध में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, विशेष रूप से यदि उन्हें अंतरिक्ष में या अंतरिक्ष से तैनात किया जाए, जो कानूनी और नैतिक रूप से विवादास्पद बना हुआ है।
  • स्वायत्त AI युद्ध प्रणालियों में नैतिक दिशा-निर्देशों का अभाव होता है और वे दीर्घकालिक कूटनीतिक परिणामों पर विचार किये बिना निर्णय लेते हैं। जब अंतर्राष्ट्रीय कानूनों या मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, तब ज़िम्मेदारी सौंपना जटिल हो जाता है।
  • कानूनी अंतराल: वर्तमान अंतरिक्ष कानून जैसे कि बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) तथा दायित्व अभिसमय (1972) मानवीय नियंत्रण एवं राजकीय उत्तरदायित्व मानते हैं, लेकिन AI-संचालित स्वायत्त उपग्रहों के लिये स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है। 
  • OST का अनुच्छेद VI राष्ट्रीय अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये राज्यों को उत्तरदायी मानता है, लेकिन स्वायत्त कार्यों के लिये उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करता है।

बाह्य अंतरिक्ष संधि और दायित्व अभिसमय

  • बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967): यह वर्ष 1963 के संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र पर आधारित है और साथ ही यह अंतरिक्ष कानून की आधारशिला भी है। यह अंतरिक्ष में परमाणु और सामूहिक विनाश के हथियारों पर प्रतिबंध लगाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष का उपयोग सभी देशों द्वारा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाए। भारत ने बाह्य अंतरिक्ष संधि की पुष्टि की है।
  • दायित्व अभिसमय (1972): बाह्य अंतरिक्ष संधि (OST) के अनुच्छेद 7 के आधार पर बनाया गया यह अभिसमय प्रक्षेपण करने वाले राज्यों को उनके अंतरिक्ष पिंडों द्वारा पृथ्वी पर होने वाली क्षति के लिये पूर्णतः उत्तरदायी बनाता है और अंतरिक्ष में होने वाली क्षति के लिये दोष-आधारित उत्तरदायित्व निर्धारित करता है। भारत ने दायित्व अभिसमय की पुष्टि की है।

AI-संचालित उपग्रहों के संचालन के लिये रोडमैप क्या होना चाहिये?

  • AI प्रमाणीकरण और परीक्षण: उपग्रहों में AI स्वायत्तता को प्रमाणित करने के लिये वैश्विक मानक बनाए जाने चाहियें, जो विमानन और स्वचालित वाहनों से प्रेरित हों।
  • दायित्व और बीमा रूपरेखा: AI उपग्रहों की विफलता सीमा-पार बहुपक्षीय क्षति पहुँचा सकती है, जिससे दोष निर्धारण और क्षतिपूर्ति जटिल हो जाती है।
    • खतरनाक कार्गो दायित्व पर समुद्री सम्मेलनों (HNS कन्वेंशन,1996) और अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन नियमों (मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 1999) से प्रेरित होकर, अंतरिक्ष प्रशासन को सम्मिलित बीमा योजनाओं को अपनाना चाहिये।
    • इससे मुआवज़े  की प्रक्रिया सरल और सुचारु हो जाएगी तथा लंबे कानूनी विवादों से बचाव हो सकेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून का अद्यतन: मौजूदा बुनियादी संधियाँ मानव पर्यवेक्षण को आधार मानती हैं, लेकिन AI की स्वायत्तता दायित्व की सीमाओं को अस्पष्ट कर देती है। AI उपग्रहों की स्पष्ट परिभाषा और दायित्व की स्पष्टता के लिये COPUOS के अंतर्गत संशोधन या नए प्रोटोकॉल की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

अंतरिक्ष अब केवल एक भौतिक सीमा नहीं रह गया है, बल्कि एक डिजिटल रूप से संचालित क्षेत्र बन चुका है। स्वायत्त उपग्रहों के लिये आधुनिक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है। यदि सक्रिय रूप से इस कानूनी ढाँचे का पालन नहीं किया गया, तो अंतरिक्ष में स्वायत्तता नवाचार के बजाय अस्थिरता आ सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: स्वायत्त AI उपग्रहों से जुड़े जोखिमों की जाँच कीजिये। इन जोखिमों को कम करने के लिये कौन-से शासन तंत्र अपनाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न: भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी?  (2019)

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