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भारत का AMR संकट

  • 28 May 2025
  • 19 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR), नैफिथ्रोमाइसिन, सुपरबग्स, WHO, ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स, AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC), रेड लाइन अभियान, फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन (FDC), अनुसूची H1 ड्रग्स, वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी प्रणाली (GLASS)

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध, उनके निहितार्थ, AMR को रोकने के लिये उठाए गए कदम और आवश्यक अतिरिक्त उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत में 30 वर्षों में पहली बार स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन (मिक्नाफ) को लॉन्च करना रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि AMR संकट का पैमाना और तात्कालिकता कहीं अधिक व्यापक एवं निरंतर प्रयासों की मांग करती हैं।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) क्या है?

  • परिचय: AMR तब होता है, जब सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी) दवाओं जैसे एंटीबायोटिक्स एवं एंटीवायरल के प्रति अनुकूलन कर लेते हैं तथा उनका प्रतिरोध करने लगते हैं, जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है और वे अधिक आसानी से फैलते हैं।
    • इन्हें प्रायः "सुपरबग्स" कहा जाता है, ये दवा प्रतिरोधी सूक्ष्मजीव एक प्रमुख वैश्विक खतरा हैं तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इन्हें शीर्ष 10 स्वास्थ्य जोखिमों में शामिल किया गया है।
  • खतरा: इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट से पता चला है कि AMR के कारण भारत में 2,97,000 और विश्व स्तर पर 1.27 मिलियन मृत्यु हुईं।
    • यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो द लैंसेट का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक AMR से 1.91 मिलियन प्रत्यक्ष मृत्यु और 8.22 मिलियन संबंधित मृत्यु हो सकती हैं।

भारत में AMR में वृद्धि के प्रमुख कारण क्या हैं?  

  • एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक प्रयोग: इन्फ्लूएंज़ा जैसे वायरल संक्रमणों के लिये भी एंटीबायोटिक दवाओं का अनुचित और अत्यधिक प्रयोग से प्रतिरोध बढ़ता है।
    • यद्यपि मनुष्यों में केवल 30% एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है, फिर भी वर्ष 2022 में भारत की 59% एंटीबायोटिक खपत "वॉच" समूह की दवाओं से हुई थी।
      • "वॉच" समूह एंटीबायोटिक की एक श्रेणी है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वर्गीकृत किया गया है, जिसका उपयोग केवल गंभीर संक्रमणों के उपचार के लिये किया जाना चाहिये।
  • अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना: निदान उपकरणों की कमी के कारण डॉक्टर अनुभवजन्य रूप से ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स लिखते हैं। भीड़भाड़ वाले अस्वच्छ अस्पताल एवं खराब संक्रमण नियंत्रण से प्रतिरोधी बैक्टीरियाअस्पताल से होने वाले संक्रमण को बढ़ावा देते हैं।
    • भारतीय तृतीयक देखभाल केंद्रों में बार-बार होने वाले AMR प्रकोप, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) को बढ़ावा देने वाली प्रणालीगत कमियों को उजागर करते हैं।
  • नए एंटीबायोटिक्स की कमी: नेफिथ्रोमाइसिन (वर्ष 2024) के आने से पहले 30 वर्ष तक कोई नया एंटीबायोटिक नहीं बना, क्योंकि दवा कंपनियाँ एंटीबायोटिक रिसर्च से ज्यादा मुनाफे वाली लंबी बीमारियों की दवाओं पर ध्यान देती हैं।
  • कृषि और पशुपालन में अनियमित उपयोग: भारत पशुधन में शीर्ष एंटीबायोटिक उपभोक्ताओं में से एक है, जहाँ 70% का उपयोग पशुधन, कृषि और जलीय कृषि में विकास को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है। 
    • ये एंटीबायोटिक्स खाद्य शृंखला एवं पर्यावरण में प्रवेश कर प्रतिरोध फैलाते हैं। जलीय कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग से समस्या और भी बदतर हो जाती है।
  • पर्यावरणीय कारक: दवा कारखाने उचित उपचार के बिना एंटीबायोटिक अवशेषों को जल निकायों में छोड़ देते हैं, जिससे नदियाँ और मिट्टी दूषित हो जाती हैं तथा प्रतिरोध हॉटस्पॉट बनते हैं। 
    • भारत में अपर्याप्त सीवेज और अपशिष्ट प्रबंधन के कारण प्रतिरोधी रोगाणुओं को पर्यावरण में अनियंत्रित रूप से फैलने का अवसर मिल रहा है।

Antimicrobial_Resistance

बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध के परिणाम क्या हैं?

  • स्वास्थ्य आपदा: AMR संक्रमणों के उपचार को कठिन बनाता है, जिससे मृत्यु दर और रुग्णता बढ़ती है। टी.बी (तपेदिक), निमोनिया और मूत्र पथ के संक्रमण जैसे सामान्य रोग जीवन के लिये खतरा बन सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2017 में बहु-दवा प्रतिरोधी या प्रतिरोधी टी.बी के कारण 230,000 मौतें हुईं, जिनमें से अधिकतर भारत और चीन में हुईं थीं
    • सर्जरी, कीमोथेरेपी और प्रत्यारोपण प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भर करते हैं; उनके बिना नियमित प्रक्रियाएँ उच्च जोखिम वाली हो जाती हैं।
  • आर्थिक लागत: विश्व बैंक का अनुमान है कि AMR के कारण वर्ष 2050 तक स्वास्थ्य देखभाल लागत में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हो सकती है तथा वर्ष 2030 तक वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1-3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि हो सकती है।
    • लम्बी अवधि तक बीमार रहने और मृत्यु से कार्यबल की कार्यक्षमता कम हो जाती है, जबकि पशुधन की हानि से खाद्य शृंखलाएँ बाधित होती हैं।
  • खाद्य सुरक्षा संकट: कृषि में 70% एंटीबायोटिक्स का उपयोग होने के कारण, AMR खाद्य उपलब्धता, गुणवत्ता और सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा  करता है। 
    • उदाहरण के लिये पोल्ट्री में प्रतिरोधी E. कोली (E. coli) मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है तथा एंटीफंगल प्रतिरोधी ब्लाइट्स गेहूँ, चावल और केले जैसी फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • पर्यावरणीय प्रसार: दवा अपशिष्ट, अस्पताल सीवेज और खेत अपवाह प्रतिरोधी जीन को तथा प्रवासी पक्षी एवं समुद्री जीव विश्व भर में प्रतिरोधी बैक्टीरिया को फैलाते हैं। 
    • उदाहरण के लिये गंगा नदी में सुपरबग जीवाणु जीन मौजूद हैं, जो उपयोगकर्त्ताओं को एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
  • सामाजिक निहितार्थ: गरीब समुदायों और सीमित स्वास्थ्य देखभाल वाले देशों में निदान एवं दवाओं की कमी के कारण AMR से होने वाली मौतों की संख्या अधिक होती है, जिससे उपचार में जनता का विश्वास कम होने का खतरा होता है।

भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिये क्या उपाय किये जा रहे हैं?

  • AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना (वर्ष 2017): AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना उन्हीं  प्रयासों के अनुरूप है, जो निगरानी, तर्कसंगत एंटीबायोटिक उपयोग और सार्वजनिक जागरूकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं
  • AMR सर्विलांस नेटवर्क: राष्ट्रीय एंटीमाइक्रोबियल सर्विलांस नेटवर्क (NARS-Net) के माध्यम से, भारत नौ प्राथमिक बैक्टीरियल रोगजनकों की निगरानी करता है, जिनमें एस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) शामिल है। 
  • एंटीबायोटिक विनियमन: अगस्त 2024 में, सरकार ने 156 फिक्स्ड-डोज़ कॉम्बिनेशन (FDC) दवाओं पर प्रतिबंध लगाया, जिनमें लोकप्रिय दवाएँ जैसे चेस्टन कोल्ड और फोरेसेट शामिल हैं।
    • अस्पताल रोगाणुरोधी स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (AMSP) रोगी देखभाल को बेहतर बनाते हैं और रोगाणुरोधी प्रतिरोध से लड़ने में सहायता करते हैं।
    • अनुसूची H1 दवाओं (अंतिम विकल्प एंटीबायोटिक्स, जैसे कार्बापेनेम) की बिक्री से पहले रसायन विक्रेताओं के लिये पर्ची की प्रतियाँ संधारित करना आवश्यक है।
    • जनवरी 2024 में, केरल भारत का पहला राज्य बना जिसने बिना पर्ची के एंटीबायोटिक्स की काउंटर बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया, एक ऐसा उदाहरण स्थापित किया जिसे अन्य राज्य भी एंटीबायोटिक दुरुपयोग कम करने के लिये अपना सकते हैं।
  • अनुसंधान एवं नवाचार: सेलुलर और आणविक प्लेटफार्म केंद्र (C-CAMP) का इंडिया AMR चैलेंज उन स्टार्टअप्स, कंपनियों और नवाचारकर्त्ताओं की पहचान करता है और उन्हें समर्थन देता है जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटने के लिये तकनीक विकसित कर रहे हैं।
    • वॉकहार्ट, ऑर्किड फार्मा और बगवर्क्स जैसी कंपनियाँ भारत में एंटीबायोटिक विकास पर केंद्रित कुछ चुनिंदा कंपनियों में शामिल हैं।
  • सार्वजनिक जागरूकता: रेड लाइन अभियान, एंटीबायोटिक्स सहित लाल रेखा से चिह्नित दवाओं को बिना डॉक्टर के पर्चे के उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी देता है।
  • वैश्विक सहयोग: भारत WHO के GLASS (ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस सर्विलांस सिस्टम) में भाग लेता है, जो देशों में AMR से संबंधित डेटा के संग्रह, विश्लेषण और साझा करने को मानकीकृत और सुदृढ़ करता है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिए और क्या उपाय अपनाए जाने चाहिये?

  • विनियमनों को सुदृढ़ करना: अनुसूची H1 को लागू कर बिना पर्ची एंटीबायोटिक्स की काउंटर बिक्री पर प्रतिबंध लगाना एवं पर्ची की प्रतियाँ संधारित करना, पोल्ट्री उद्योग में वृद्धि प्रमोटर कोलिस्टिन सहित पशुपालन में गैर-चिकित्सीय एंटीबायोटिक्स पर प्रतिबंध का विस्तार करना, और जल स्रोतों में औषधीय एंटीबायोटिक निकासी को नियंत्रित करना।
    • भारत को अनधिकृत एंटीबायोटिक बिक्री पर दंड लगाने और पर्ची लेखा परीक्षाओं को लागू करने के लिये औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम को सुदृढ़ करना चाहिये।
  • घरेलू एंटीबायोटिक विकास: सरकार को फार्मा उद्योग को कर छूट और अनुदान (जैसे BIRAC का नैफिथ्रोमाइसिन के लिये समर्थन) के माध्यम से प्रोत्साहित करना चाहिये और स्टार्टअप्स (जैसे बगवर्क्स) का समर्थन करने के लिये C-CAMP AMR चैलेंज जैसी पहलों का विस्तार करना चाहिये।
  • एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रमों को सशक्त बनाना: अस्पतालों और क्लीनिक्स को एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम लागू करने चाहिये ताकि पर्ची और उपयोग को अनुकूलित किया जा सके, जिसके लिये तर्कसंगत उपयोग पर प्रशिक्षण और नियमित पर्ची लेखा परीक्षा द्वारा समर्थन किया जाए।
    • चिकित्सीय शिक्षा और व्यावसायिक विकास में स्टीवर्डशिप को शामिल करना स्थायी बदलाव सुनिश्चित करता है।
    • AMR की रियल टाइम ट्रैकिंग के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करना चाहिये तथा इसके प्रकोप को रोकने के क्रम में AMR रोगियों को पृथक करना चाहिये।
  • निदान सुविधाओं का विस्तार तथा उन्नयन: किफायती, त्वरित निदान परीक्षणों तक बेहतर पहुँच से एंटीबायोटिक्स का निर्धारण करने से पूर्व जीवाणु संक्रमण की पुष्टि करने में मदद मिलती है, जिससे एंटीबायोटिक्स के अनावश्यक उपयोग को रोका जा सकता है। 
    • ग्रामीण एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में निवेश करने से लक्षित चिकित्सा को समर्थन मिलता है।
  • जन जागरूकता: पशुधन और कृषि में AMR जोखिमों को शामिल करते हुए रेड लाइन जागरूकता का विस्तार करने के साथ आशा कार्यकर्त्ताओं द्वारा ग्रामीण समुदायों को शिक्षित करना चाहिये एवं किसानों को मुर्गीपालन तथा जलीय कृषि में एंटीबायोटिक उपयोग को कम करने से संबंधित कार्यशालाओं में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये। 
  • वन हेल्थ एप्रोच को बढ़ावा देना: स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा, कृषि तथा पर्यावरण क्षेत्रों में बहुक्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये तथा इससे संबंधित दुरुपयोग और संदूषण को कम करने के क्रम में पशुधन एवं कृषि में एंटीबायोटिक उपयोग संबंधी सख्त नियम लागू करने चाहिये। 

निष्कर्ष

नैफिथ्रोमाइसिन की शुरुआत एक मील का पत्थर है लेकिन रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा की रक्षा करने के क्रम में बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस क्रम में विनियमन को मज़बूत करना, वन हेल्थ संबंधी सहयोग को बढ़ावा देना, घरेलू एंटीबायोटिक नवाचार को बढ़ावा देना, तीव्र निदान और अस्पताल प्रबंधन को बेहतर करना तथा लोक जागरूकता का विस्तार करना महत्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

Q. भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के कारणों पर चर्चा कीजिये और इससे निपटने हेतु एक व्यापक रणनीति बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में सूक्ष्मजीवी रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति 
  2.   बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना
  3.   पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग 
  4.   कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b) 


प्रश्न: भारत में न्यूमोकोकल संयुग्मी वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine) के उपयोग का क्या महत्त्व है?

  1. ये वैक्सीन न्यूमोनिया और साथ ही तानिकाशोथ और सेप्सिस के विरुद्ध प्रभावी हैं।
  2.  उन प्रतिजैविकियों पर निर्भरता कम की जा सकती है जो औषध-प्रतिरोधी जीवाणु के विरुद्ध प्रभावी नहीं हैं।
  3.  इन वैक्सीन के कोई गौण प्रभाव (Side Effects) नहीं हैं और न ही ये वैक्सीन कोई प्रत्यूर्जता संबंधी अभिक्रियाएँ (Allergic Reactions) करती हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न: क्या डॉक्टर के निर्देश के बिना एंटीबायोटिक दवाओं का अति प्रयोग और मुफ्त उपलब्धता भारत में दवा प्रतिरोधी रोगों के उद्भव में योगदान कर सकते हैं? निगरानी एवं नियंत्रण के लिये उपलब्ध तंत्र क्या हैं? इसमें शामिल विभिन्न मुद्दों पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014)

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