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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रोगाणुरोधी प्रतिरोध

  • 10 Jan 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC), रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control- NCDC) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में अस्पतालों में एंटीबायोटिक दवाओं के नुस्खे और उपयोग के संबंध में कई प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया।

सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • एंटीबायोटिक्स का निवारक उपयोग:
    • सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक रोगियों (55%) को संक्रमण के इलाज के लिये चिकित्सीय उद्देश्यों (45%) के बजाय रोगनिरोधी संकेतों हेतु एंटीबायोटिक्स निर्धारित की गईं, जिनका उद्देश्य संक्रमण को रोकना था।
  • एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन पैटर्न:
    • केवल कुछ ही रोगियों (6%) को उनकी बीमारी (निश्चित चिकित्सा) का कारण बनने वाले विशिष्ट बैक्टीरिया के निदान की पुष्टि के बाद एंटीबायोटिक्स निर्धारित किये गए थे, जबकि अधिकांश (94%) बीमारी के संभावित कारण के डॉक्टर के नैदानिक ​​मूल्यांकन के आधार पर अनुभवजन्य चिकित्सा पर थे।
  • विशिष्ट निदान का अभाव:
    • 94% रोगियों को निश्चित चिकित्सा निदान की पुष्टि होने से पहले एंटीबायोटिक्स प्राप्त हुए, जो संक्रमण के कारण के सटीक ज्ञान के बिना एंटीबायोटिक दवाओं के प्रचलित उपयोग को उजागर करता है।
  • अस्पतालों में भिन्नता:
    • अस्पतालों में एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन दरों में व्यापक भिन्नताएँ पाई गई थीं, 37% से लेकर 100% रोगियों को एंटीबायोटिक्स निर्धारित किये गए थे।
    • निर्धारित एंटीबायोटिक दवाओं का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात (86.5%) पैरेंट्रल मार्ग (मौखिक रूप से नहीं) के माध्यम से दिया गया था।
  • AMR के चालक:
    • NCDC सर्वेक्षण में कहा गया है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास के लिये मुख्य कारकों में से एक एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक और अनुचित उपयोग है। 

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) क्या है?

  • परिचय:
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है। 
      • परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
    • यह एक प्राकृतिक घटना है क्योंकि बैक्टीरिया विकसित होते हैं, जिससे संक्रमण के इलाज के लिये इस्तेमाल की जाने वाली दवाएँ कम प्रभावी हो जाती हैं।
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।

AMR के प्रसार के कारण क्या हैं?

  • संचारी रोगों का उच्च प्रसार: तपेदिक, दस्त, श्वसन संक्रमण आदि जैसे संचारी रोगों का उच्च प्रसार, जिनके लिये रोगाणुरोधी उपचार की आवश्यकता होती है।
  • अत्यधिक बोझ से दबी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली: यह एटियलजि-आधारित निदान और उचित रूप से लक्षित उपचार के लिये प्रयोगशाला क्षमता को सीमित करती है।
  • खराब संक्रमण नियंत्रण प्रथाएँ: अस्पतालों और क्लीनिकों में स्वच्छता संबंधी खामियाँ प्रतिरोधी बैक्टीरिया के प्रसार को बढ़ावा देती हैं।
  • अविवेकपूर्ण उपयोग: मरीज़ों के दबाव में डॉक्टरों द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा दवाएँ लिखना (अक्सर स्व-दवा), अधूरे एंटीबायोटिक कोर्स और ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक दवाओं का अनावश्यक रूप से इस्तेमाल प्रतिरोधी बैक्टीरिया के लिये चयनात्मक दबाव पैदा करता है।
    • आसान पहुँच: एंटीबायोटिक दवाओं की अनियमित ओवर-द-काउंटर उपलब्धता और सामर्थ्य स्व-दवा तथा अनुचित उपयोग को बढ़ावा देती है।
  • जागरूकता की कमी: AMR और एंटीबायोटिक के उचित उपयोग के बारे में लोगों की कम समझ दुरुपयोग को बढ़ावा देती है।
  • सीमित निगरानी: पर्याप्त निगरानी प्रणालियों की कमी के कारण AMR के दायरे को ट्रैक करना और समझना मुश्किल हो जाता है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रसार के निहितार्थ क्या हैं?

  • स्वास्थ्य सेवा पर प्रभाव:
    • AMR बैक्टीरिया संक्रमण के खिलाफ पहले से प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं को अप्रभावी बना सकता है। इससे निमोनिया, मूत्र पथ के संक्रमण और त्वचा संक्रमण जैसी सामान्य बीमारियों का इलाज जटिल हो जाता है, जिससे लंबी बीमारियाँ, अधिक गंभीर लक्षण तथा मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि:
    • प्रतिरोधी संक्रमणों के इलाज के लिये अक्सर अधिक महंगी और दीर्घकालिक चिकित्सा, अस्पताल में अधिक समय तक भर्ती तथा कभी-कभी अधिक शल्य प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। इससे व्यक्तियों, स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों और सरकारों के लिये स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है।
  • चिकित्सा प्रक्रियाओं में चुनौतियाँ:
    • AMR कुछ चिकित्सीय प्रक्रियाओं को जोखिमपूर्ण बना देता है। मानक एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी संक्रमण के बढ़ते जोखिम के कारण सर्जरी, कैंसर कीमोथेरेपी और अंग प्रत्यारोपण अधिक खतरनाक हो जाते हैं।
  • उपचार विकल्पों में सीमाएँ:
    • जैसे-जैसे प्रतिरोध बढ़ता है, एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभाव-कुशलता कम होती जाती है। उपचार विकल्पों में यह सीमा एक ऐसे परिदृश्य को जन्म दे सकती है जहाँ पहले से प्रबंधनीय संक्रमण अनुपचारित हो जाते हैं, जिससे दवा पूर्व-एंटीबायोटिक युग में पहुँच जाती है जहाँ सामान्य संक्रमण घातक हो सकते हैं।

AMR को संबोधित करने हेतु क्या उपाय किये गए हैं?

  • भारतीय:
    • AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
    • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना: यह स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है और अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
    • AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क (AMRSN): इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था ताकि देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत और प्रवृत्तियों तथा पैटर्न का अनुसरण किया जा सके।
    • AMR अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने AMR में चिकित्सा अनुसंधान को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाओं को विकसित करने की पहल की है।
      • ICMR ने नॉर्वे की रिसर्च काउंसिल (RCN) के साथ मिलकर वर्ष 2017 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में अनुसंधान हेतु एक संयुक्त आह्वान शुरू किया।
      • ICMR ने संघीय शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय (BMBF), जर्मनी के साथ AMR पर शोध के लिये एक संयुक्त भारत-जर्मन सहयोग किया है।
    • एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम: ICMR ने अस्पताल के वार्डों और आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा अति प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये भारत में एक पायलट परियोजना पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम शुरू किया है। 
      • DCGI ने अनुपयुक्त पाए गए 40 फिक्स डोज़ कॉम्बिनेशन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • वैश्विक उपाय:
    • विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (WAAW): यह वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला एक वैश्विक अभियान है, इसका उद्देश्य विश्व भर में AMR के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के विकास व प्रसार की गति को धीमा करने के लिये आम जनता, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं एवं नीति निर्माताओं के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रोत्साहित करना है।
    • वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध और उपयोग निगरानी प्रणाली (GLASS): विश्व स्तर पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध संबंधी ज्ञान के अंतराल को कम करने तथा सभी स्तरों पर रणनीतियाँ साझा करने हेतु WHO ने वर्ष 2015 में वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध और उपयोग निगरानी प्रणाली (GLASS) की शुरुआत की।
      • इसकी परिकल्पना मनुष्यों में AMR, रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग, खाद्य शृंखला तथा पर्यावरण में AMR की निगरानी से प्राप्त डेटा को क्रमिक रूप से शामिल करने के लिये की गई है।
    • ग्लोबल पॉइंट प्रेवेलेंस सर्वे मेथडोलाॅजी: रोगी स्तर पर एंटीबायोटिक दवाओं के निर्धारण और उपयोग संबंधी सीमित जानकारी की चुनौती से निपटने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अस्पतालों में निर्धारित पैटर्न को समझने के लिये ग्लोबल पॉइंट प्रेवेलेंस सर्वे मेथडोलाॅजी की शुरुआत की है। इसकी सहायता से निरंतर होने वाले सर्वेक्षणों में एंटीबायोटिक के उपयोग में बदलाव दर्ज किये जाते हैं।
    • इस पद्धति का उपयोग करके भारत में कुछ अध्ययन किये गए हैं।

आगे की राह

  • जन शिक्षण अभियान: लोगों को रोगाणुरोधी प्रतिरोध, इसके खतरों और इसे नियंत्रित करने के तरीके के बारे में सूचित करने के लिये जनसंचार माध्यमों, सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों तथा स्थानीय भाषाओं में शैक्षिक सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।
  • एंटीबायोटिक प्रबंध कार्यक्रम: एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की निगरानी और अनुकूलित करने के लिये अस्पतालों तथा क्लीनिकों में आवश्यक कार्यक्रम लागू किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल केवल आवश्यक पड़ने पर एवं सबसे कम अवधि के लिये किया जाए।
  • एंटीबायोटिक बिक्री का विनियमन: दुकानों पर एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री पर सख्त नियम लागू करने की आवश्यकता है जिससे किसी भी प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री हेतु ग्राहक को चिकित्सक की पर्ची दिखाना अनिवार्य हो।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी का दायरा बढ़ाना: मानव, पशुओं और पर्यावरण में प्रतिरोधी बैक्टीरिया की व्यापकता तथा प्रसार की निगरानी के लिये एक राष्ट्रव्यापी रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी प्रणाली स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
  • नई तकनीकों का विकास करना: रोगाणुरोधी प्रतिरोध संबंधी चुनौतियों का समाधान करने के लिये फेज़ थेरेपी जैसी नई प्रौद्योगिकियों की संभावनाओं पर विचार किये जाने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोज़ीशन) का होना।
  2.  रोगों के उपचार के लिये वैज्ञानिकों (एंटिबॉयोटिक्स) की गलत खुराकें लेना।
  3.  पशुधन फार्मिंग प्रतिजैविकों का इस्तेमाल करना।
  4.  कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1, 3 और 4 
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स: 

प्रश्न1. क्या एंटीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014)

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