भूगोल
वर्ष 2025 में समय से पूर्व मानसून का आगमन
- 28 May 2025
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत मौसम विज्ञान विभाग, दक्षिण-पश्चिम मानसून, पश्चिमी पवन, मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन, सोमाली जेट मेन्स के लिये:भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन को प्रभावित करने वाले कारक। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य समय से पूर्व आगमन की घोषणा की है। यह समय से पूर्व आगमन इसलिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मानसून भारत की वार्षिक वर्षा में 70% से अधिक योगदान देता है, जो कृषि और अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 2025 से पहले आखिरी बार समय से पूर्व मानसून आगमन वर्ष 2009 में हुआ था।
मानसून की शुरुआत की घोषणा के मानदंड क्या हैं?
- आवश्यक मानदंड: IMD प्रमुख मानदंडों के आधार पर 10 मई के बाद किसी भी समय मानसून के आगमन की घोषणा करता है:
- वर्षा मानदंड: 10 मई के बाद, यदि केरल और आसपास के क्षेत्रों (जैसे-तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, मं गलोर) में 14 नामित मौसम स्टेशनों में से 60% लगातार दो दिनों तक ≥2.5 मिमी वर्षा रिकॉर्ड करते हैंतो दूसरे दिन वर्षा की शुरुआत पर विचार किया जा सकता है।
- पवन क्षेत्र: पछुआ पवन उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्धों में 30 से 60 डिग्री अक्षांशों पर पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है ।
- शुरुआत के लिये, पश्चिमी पवन की गहराई 600 हेक्टोपास्कल या hPa तक बनाए रखी जानी चाहिये, जो वायुमंडलीय दाब को मापने की इकाई है और पवन की गति 925 hPa पर 15-20 समुद्री मील (27-37 किमी/घंटा) के बीच होनी चाहिये।
- आउटगोइंग लॉन्गवेव रेडिएशन (OLR): INSAT-व्युत्पन्न OLR मान, जो पृथ्वी की सतह, महासागरों और वायुमंडल द्वारा अंतरिक्ष में उत्सर्जित ऊर्जा को मापता है, 5°N एवं 10°N अक्षांश व 70°E तथा 75°E देशांतर के बीच के क्षेत्र में 200 वाट प्रति वर्ग मीटर (W/m²) से कम होना चाहिये, जो वर्षा के लिये अनुकूल पर्याप्त वायुमंडलीय गर्मी का संकेत देता है।
- जब लगातार दो दिनों तक ये स्थितियाँ पूरी हो जाती हैंतो IMD मानसून के आगमन की घोषणा कर देता है।
वर्ष 2025 में मानसून के समय से पूर्व आगमन के क्या कारण होंगे?
- मैडेन-जूलियन दोलन (MJO): MJO पवन, बादलों और दाब के असंतुलन की एक क्षणिक पूर्व की ओर बढ़ने वाली प्रणाली है, जो भूमध्य रेखा के चारों ओर यात्रा करती है।
- इसकी पहचान वर्ष 1971 में कोलोराडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के वैज्ञानिक रोलाण्ड मैडेन और पॉल जूलियन द्वारा की गई थी।
- MJO सामान्यतः 4-8 मीटर/सेकें ड की गति से पूर्व की ओर यात्रा करता है तथा 30-60 दिनों में एक वैश्विक चक्र पूरा करता है, हालाँकि कभी-कभी इसमें 90 दिन तक का समय लग जाता है।
- यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों, विशेषकर 30° उत्तर और 30° दक्षिण के बीच, जिसमें भारत भी शामिल है, के मौसम को प्रभावित करता है।
- MJO के दो अलग-अलग चरण हैं: सक्रिय चरण, जो संवहन को बढ़ाता है और वर्षा में वृद्धि करता है तथा दबा हुआ चरण, जो संवहन को कम करता है एवं शुष्क स्थिति उत्पन्न करता है।
- यह चक्रवातों को उत्पन्न कर सकता है तथा शुष्क अवधि के दौरान भी अल्पावधि, किंतु तीव्र वर्षा का कारण बन सकता है।
- मैस्करीन हाई: IMD मैस्करीन हाई को मानसून अवधि के दौरान मैस्करीन द्वीप (दक्षिणी हिंद महासागर में) के आसपास पाए जाने वाले उच्च दबाव वाले क्षेत्र के रूप में वर्णित करता है।
- उच्च दबाव की तीव्रता में परिवर्तन भारत के पश्चिमी तट पर भारी वर्षा के लिये ज़िम्मेदार है।
- संवहन: संवहनीय गतिविधि में वृद्धि, अर्थात वायुमंडल में ऊष्मा और नमी का ऊर्ध्वाधर परिवहन भी वर्षा लाता है।
- सोमाली जेट: यह मॉरीशस और उत्तरी मेडागास्कर के पास उत्पन्न होने वाली एक निम्न-स्तरीय, अंतर-गोलार्धीय क्रॉस-इक्वेटोरियल पवन बैंड है।
- मई के दौरान, अफ्रीका के पूर्वी तट को पार करने के बाद, यह अरब सागर और भारत के पश्चिमी तट तक पहुँचता है। एक शक्तिशाली सोमाली जेट मानसूनी पवनों के सशक्त होने से जुड़ा होता है।
- हीट-लो: जब सूर्य उत्तर की ओर गतिशील होता है, तब अरब सागर और पाकिस्तान के ऊपर एक निम्न दाब क्षेत्र बनता है, जो मानसून गर्त (Monsoon Trough) के साथ आर्द्रता युक्त पवनों को अपनी ओर खींचने वाले सक्शन पंप की तरह कार्य करता है, जिससे मानसूनी वर्षा में वृद्धि होती है।
- मानसून गर्त: यह एक लंबवत फैला हुआ निम्न दाब क्षेत्र होता है, जो निम्न ताप से लेकर उत्तर बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत रहता है। इस गर्त की उत्तर-दक्षिण दिशा में जारी रहने वाली गति जून से सितंबर के मध्य मुख्य मानसूनी क्षेत्र में वर्षा का कारण बनती है।
- चक्रवाती मानसून भँवर (Cyclonic Monsoon Vortex): इसे मानसून प्रारंभ भँवर (MOV) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक समन्वयात्मक स्तर का चक्रवाती परिसंचरण है ,जो भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान अरब सागर के ऊपर बनता है।
- ये भँवर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में परिवर्तित हो सकती हैं और मानसून के आगमन एवं उसकी प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- दाब प्रवणता (Pressure Gradients): यह किसी निर्दिष्ट दूरी पर दाब में होने वाले परिवर्तन की दर होती है। यह मानसून के प्रबल आगमन को भी समर्थन प्रदान करती है।
मानसून को प्रभावित करने वाले अन्य कारक
- मानसून-लो: यह एक प्रकार का निम्न दाब क्षेत्र (LPA) होता है, जिसके केंद्रीय भाग में दाब सबसे कम होता है तथा उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें वामावर्त (घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में) प्रवाहित होती हैं।
- यह वायुमंडलीय दाब को एकत्रित (संकेंद्रित) कर ऊपर उठने के लिये प्रेरित करता है, जिससे बादल बनते हैं और वर्षा होती है। मानसून ऋतु के दौरान, इन LPA को मानसून के निम्न दबाव के रूप में जाना जाता है और यह मानसून अवदाबों में बदल सकता है, जो भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की मुख्य वर्षा-वाहक प्रणाली है।
- तिब्बती उच्च दाब क्षेत्र (Tibetan High): यह एक उष्ण प्रतिचक्रवात होता है, जो मानसून ऋतु के दौरान मध्य से ऊपरी क्षोभमंडल में तिब्बती पठार के ऊपर स्थित रहता है।
- यह पूर्वी पवनों का बहिर्वाह उत्पन्न करता है, जो चेन्नई के निकट एक जेट स्ट्रीम का निर्माण करता है। इस पूर्वी जेट स्ट्रीम की स्थिति भारत में मानसूनी वर्षा की प्रकृति को प्रभावित करती है।
वर्षा अलर्ट को कैसे वर्गीकृत किया जाता है?
अलर्ट रंग |
वर्षा श्रेणी (24 घंटे) |
मौसम विवरण |
सलाह/कार्रवाई |
हरा |
64 मिमी से कम |
हल्की वर्षा |
कोई सलाह नहीं: मौसम सामान्य रूप से सुरक्षित है; किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं। |
पीला |
64.5 – 115.5 मिमी |
मध्यम वर्षा |
सतर्क रहें: हल्के व्यवधान संभव; सूचनाएँ प्राप्त करते रहें। |
नारंगी |
115.6 – 204.4 मिमी |
भारी से बहुत भारी वर्षा |
तैयार रहें: परिवहन, विद्युत आदि में व्यवधान की संभावना; आवश्यक सावधानियाँ बरतें। |
लाल |
204.5 मिमी और उससे अधिक |
अत्यंत भारी वर्षा |
कार्रवाई करें: जीवन और संपत्ति को गंभीर खतरा; आपातकालीन उपाय तुरंत अपनाएँ। |
मानसून के शीघ्र आगमन का प्रभाव क्या होता है?
- खरीफ फसलों की बुवाई को बढ़ावा: मानसून का समय से पूर्व आना प्रमुख खरीफ फसलों, जैसे- चावल, मक्का, कदन्न, तुअर और मूंग की समय पर बुवाई को संभव बनाता है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है।
- सब्जी एवं मशरूम की कृषि को लाभ: प्री-मानसून वर्षा टमाटर, भिंडी, बीन्स जैसी सब्जियों और मशरूम की कृषि के लिये शीत एवं आर्द्र वातावरण प्रदान करती है, जो इनके उत्पादन के लिये अनुकूल होता है।
- जल संसाधन प्रबंधन में सुधार: प्रारंभिक वर्षा भूजल स्तर को पुनर्भरित करती है, जलाशयों को भरती है और सिंचाई की स्थिति में सुधार लाती है, जो कृषि एवं जलविद्युत उत्पादन, दोनों के लिये आवश्यक है।
- खराब होने की दर में वृद्धि और महँगाई का दबाव: अनपेक्षित वर्षा के कारण खेतों में फसल खराब हो जाती है, जिससे मुंबई जैसे शहरों में सब्जियों की कीमतें बढ़ जाती हैं।
- मौसम की चरम स्थिति और बाढ़ का खतरा: केरल, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में मूसलाधार वर्षा, तड़ित तथा तेज़ पवनों से स्थानीय बाढ़ और खड़ी फसलों को नुकसान होने की आशंका बढ़ जाती है।
- निर्यात क्षमता में वृद्धि: फसल उत्पादन में वृद्धि से किसानों की आय बढ़ सकती है, कृषि निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है और यह भारत की GDP वृद्धि में सहायक हो सकता है।
भारत में चक्रवात चरम मानसून महीनों के दौरान क्यों नहीं आते?
- चक्रवात निर्माण के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ: उष्णकटिबंधीय चक्रवात निर्माण (ट्रॉपिकल साइक्लोजेनेसिस) के लिये निम्नलिखित पर्यावरणीय कारकों का संयोजन आवश्यक होता है:
- कम-से-कम 26.5°C तापमान वाला गर्म समुद्री जल, जो 50 मीटर या उससे अधिक की गहराई तक फैला हो।
- मध्य क्षोभमंडल (लगभग 5 किमी ऊँचाई) में उच्च आर्द्रता, जो बादल बनने में सहायक होती है।
- निम्न ऊर्ध्वाधर विंड शियर, जिसका अर्थ है कि सतह और ऊपरी वायुमंडल के बीच वायु की गति और दिशा में न्यूनतम अंतर होना चाहिये, जिससे प्रणाली ऊर्ध्वाधर रूप से संरेखित रह सके।
- चक्रवाती घूर्णन को प्रारंभ करने के लिये सतह के समीप पहले से विद्यमान निम्न-दाब क्षेत्र।
- मानसून के दौरान वायुमंडलीय परिस्थितियाँ: हालाँकि गर्म समुद्र और उच्च आर्द्रता (जो दोनों चक्रवात निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) मौजूद होते हैं, बावजूद इसके भारत जुलाई और अगस्त, जो कि मानसून के चरम महीने होते हैं, के दौरान शायद ही कभी चक्रवातों का अनुभव करता है।
- यह मुख्यरूप से प्रतिकूल वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण होता है, विशेषकर मज़बूत लंबवत विंड शियर,जो चक्रवातों के विकास और स्थायित्व को रोकती है।
- पश्चिमी पवनें प्रायद्वीपीय भारत में 900 से 800 hPa के बीच 20–25 नॉट की अधिकतम गति प्राप्त करती हैं, जबकि पूर्वी पवनें 150 से 100 hPa के बीच 60–80 नॉट तक पहुँचती हैं।
- इससे उच्च लंबवत विंड शियर उत्पन्न होती है, जो चक्रवात के निर्माण को बाधित करती है और इन महीनों में उष्णकटिबंधीय चक्रवात निर्माण के लिये परिस्थितियों को प्रतिकूल बनाती है।
भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव है?
- अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि: मानसून के दौरान, विशेष रूप से मध्य भारत में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों में वृद्धि हो रही है। इसका कारण प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के साथ जलवायु परिवर्तन है।
- अत्यधिक घटनाओं के साथ-साथ मध्य भारत में मानसून के दौरान मध्यम वर्षा की घटनाओं में कमी का रुझान भी देखा जा रहा है।
- समग्र मानसूनी वर्षा में कमी: पिछले 50 वर्षों में भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (जून से सितंबर) लगभग 6% तक कम हुई है, जिसमें इंडो-गैंगेटिक मैदान और पश्चिमी घाट में विशेष रूप से उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
- अत्यधिक वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि: मध्य भारत में दैनिक अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति में लगभग 75% की वृद्धि हुई है, जिसे प्रतिदिन 150 मि.मी. से अधिक वर्षा के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- वायुमंडल का गर्म होना और आर्द्रता क्षमता: मानवीय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से वायुमंडल की आर्द्रता धारित करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- क्लॉसियस-क्लैपेरॉन संबंध सिद्धांत के अनुसार, वायु की आर्द्रता धारित करने की क्षमता तापमान में प्रत्येक 1°C वृद्धि पर लगभग 7% बढ़ जाती है।
- जैसे-जैसे वायुमंडल में अधिक आर्द्रता संचित होती है, बदलती जलवायु परिस्थितियों में भारी वर्षा की घटनाएँ अधिक बार और तीव्र होने की संभावना बढ़ जाती है।
मानसून का निवर्तन
- मानसून के निवर्तन को भारत के विभिन्न भागों से दक्षिण-पश्चिम (SW) मानसून के धीरे-धीरे निवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह वर्षा ऋतु के अंत को इंगित करता है और इसके लक्षण निम्नलिखित हैं:
- लगातार कम-से-कम 5 दिनों तक वर्षा का न होना।
- पवन प्रवाह में परिवर्तन, विशेषकर दक्षिण-पश्चिमी दिशा से उत्तर-पूर्वी दिशा की ओर बदलाव।
- उपग्रह जल-वाष्प चित्रों और टेफिग्राम्स में वायुमंडलीय आर्द्रता में कमी।
- निचले क्षोभमंडल (850 hPa और उससे नीचे) में प्रतिचक्रवाती परिसंचरण का बनना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: दक्षिण-पश्चिम मानसून की समय से पूर्व शुरुआत के लिये ज़िम्मेदार वायुमंडलीय और महासागरीय कारकों की चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)' के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्यभूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है? चर्चा कीजिये। (2015) |