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मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन

  • 22 May 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department-IMD) के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर की शाखा सामान्य मानसून के लिये प्रभावकारी प्रमाणित होने वाली  मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Madden-Julian Oscillation- MJO) लहर की प्रतीक्षा कर रही है।

मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO)

  • मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है।
  • यह साप्ताहिक से लेकर मासिक समयावधि तक उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव लाने के लिये ज़िम्मेदार मानी जाती है।
  • मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) को भूमध्य रेखा के पास पूर्व की ओर सक्रिय बादलों और वर्षा के प्रमुख घटक या निर्धारक (जैसे मानव शरीर में नाड़ी (Pulse) एक प्रमुख निर्धारक होती है) के  रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर हर 30 से 60 दिनों में स्वयं की पुनरावृत्ति करती है।

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  • यह निरंतर प्रवाहित होने वाली घटना है एवं हिंद एवं प्रशांत महासागरों में सबसे प्रभावशाली है।
  • इसलिये MJO हवा, बादल और दबाव की एक चलती हुई प्रणाली है। यह जैसे ही भूमध्य रेखा के चारों ओर घूमती है वर्षा की शुरुआत हो जाती है।
  • इस घटना का नाम दो वैज्ञानिकों रोलैंड मैडेन और पॉल जूलियन के नाम पर रखा गया था जिन्होंने 1971 में इसकी खोज की थी।

मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Madden-julian Oscillation-MJO) का भारतीय मानसून पर प्रभाव

  • इंडियन ओशन डाईपोल  (The Indian Ocean Dipole-IOD), अल-नीनो (El-Nino) और मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन(Madden-julian Oscillation-MJO) सभी महासागरीय और वायुमंडलीय घटनाएँ हैं, जो बड़े पैमाने पर मौसम को प्रभावित करती हैं।इंडियन ओशन डाईपोल केवल हिंद महासागर से संबंधित है, लेकिन अन्य दो वैश्विक स्तर पर मौसम को मध्य अक्षांश तक प्रभावित करती  हैं।
  • IOD और अल नीनो अपने पूर्ववर्ती स्थिति में बने हुए हैं, जबकि MJO एक निरंतर प्रवाहित होने वाली भौगोलिक घटना है।
  • एमजेओ की यात्रा आठ चरणों से होकर गुज़रती  है।
  • जब यह मानसून के दौरान हिंद महासागर के ऊपर होता है, तो संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छी बारिश होती है।
  • दूसरी ओर, जब यह एक लंबे चक्र की समयावधि के रूप में होता है और प्रशांत महासागर के ऊपर रहता है तब  भारतीय मानसूनी मौसम में कम वर्षा होती है।
  • यह उष्णकटिबंध में अत्यधिक परंतु दमित स्वरूप के साथ वर्षा की गतिविधियों को संपादित करता है जो कि भारतीय मानसूनी वर्षा के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।

मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (एमजेओ-MJO) की समयावधि:

  • यदि यह लगभग 30 दिनों तक बना रहता है तो मानसून के मौसम में इसके कारण अच्छी बारिश होती है।
  • यदि यह 40 दिन से अधिक समय तक बना रहता है तो अच्छी बारिश नहीं होती  और सूखे मानसून के रहने की स्थिति बन सकती है।
  • एमजेओ का चक्र जितना छोटा होगा, भारतीय मानसून उतना ही बेहतर होगा। इसके पीछे कारण यह है कि यह चार महीने की लंबी अवधि के दौरान हिंद महासागर क्षेत्र से गुजरता है।
  • अल-नीनो के साथ प्रशांत महासागर के ऊपर एमजेओ की उपस्थिति मानसूनी बारिश के लिये हानिकारक होती है।

स्रोत: द हिंदू, बिजनेस लाइन

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