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गोवा की धीरियो बुल फाइटिंग

  • 14 Aug 2025
  • 12 min read

स्रोत: IE

गोवा में सांस्कृतिक और पर्यटन कारणों से सांडों की लड़ाई जिसे धीरियो या धीरी नाम से जाना जाता है, को वैध बनाने की मांग उठती रही है। प्रतिबंध के बावजूद, गोवा के कुछ गाँवों में यह प्रथा जारी है।

  • उत्पत्ति और प्रकृति:  यह पुर्तगालियों के समय से गोवा का एक पारंपरिक खेल है जिसमें 2 विशेष रूप से पाले गए तथा प्रशिक्षित बैल/सांड शक्ति प्रदर्शन की प्रतियोगिता में शामिल होते हैं।
    • यह स्पेनिश बुलफाइटिंग से भिन्न है क्योंकि इसमें कोई मैटाडोर (एक बुलफाइटर जिसका काम सांड को मारना होता है) या अनुष्ठानिक हत्या शामिल नहीं है
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह चर्च से संबंधित समारोहों एवं कृषि उत्सवों का अभिन्न अंग है तथा यह एक लोकप्रिय सामाजिक आयोजन है। यह स्थानीय अनुयायियों को आकर्षित करता है।
  • खेल का आयोजन: गाँव में भोज या फसल कटाई के बाद के उत्सवों के दौरान धान के खेतों या फुटबॉल मैदान में आयोजित किया जाता है।
  • विधिक स्थिति: इसे वर्ष 1997 में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
    • जल्लीकट्टू (तमिलनाडु में खेले जाने वाला पारंपरिक खेल जिसमें बैलों को नियंत्रित किया जाता है) को पशु क्रूरता के कारण वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन बाद में वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा मानते हुए इस खेल को जारी रखने की अनुमति दी।

और पढ़ें: परंपरा का संरक्षण: जल्लीकट्टू पर ऐतिहासिक फैसला

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