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भारत में स्वयं सहायता समूह

  • 27 Jun 2025
  • 24 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लखपति दीदी पहल, पीएम स्वनिधि, मनरेगा, पंचायती राज संस्थान, SDG, मुद्रा, सरकारी ई मार्केटप्लेस, SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन।                       

मेन्स के लिये:

महिला सशक्तीकरण में स्वयं सहायता समूहों और लखपति दीदी पहल की भूमिका, स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महत्ता और चुनौतियाँ, स्वयं सहायता समूहों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिये आवश्यक कदम।

स्रोत: पी.आई.बी 

चर्चा में क्यों?

ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) ने कौशल एवं  उद्यमिता विकास के माध्यम से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये लखपति दीदी पहल को मज़बूत करने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।

  • समझौता ज्ञापन का उद्देश्य ग्रामीण आकांक्षाओं को संस्थागत कौशल के साथ जोड़कर, उभरते क्षेत्रों में अनुकूलित प्रशिक्षण और औपचारिक प्रमाणीकरण प्रदान करके 3 करोड़ लखपति दीदी और भविष्य की करोड़पति दीदी तैयार करना है।

लखपति दीदी पहल क्या है?

  • लखपति दीदी पहल: "लखपति दीदी" स्वयं सहायता समूह की वह सदस्य होती है, जिसने स्थायी आजीविका गतिविधियों के माध्यम से सफलतापूर्वक एक लाख रुपए या उससे अधिक की वार्षिक घरेलू आय प्राप्त कर ली हो। यह ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) का परिणाम है, न कि एक अलग योजना।
    • जून, 2024 तक 1 करोड़ लखपति दीदी बनाई जा चुकी हैं। अंतरिम बजट 2024-25 में लक्ष्य 2 करोड़ से बढ़ाकर 3 करोड़ महिलाएँ कर दिया गया है।
  • मुख्य उद्देश्य: इसका उद्देश्य स्थायी आय सृजन के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना, विविध आजीविका (कृषि, हस्तशिल्प, सेवाएं, आदि) को बढ़ावा देना तथा स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता के रोल मॉडल में बदलना है।
    • आय कम-से-कम चार कृषि मौसमों या व्यवसाय चक्रों तक (अर्थात् औसतन 10,000 रुपए प्रति माह) बनी रहनी चाहिये।
  • कार्यान्वयन रणनीति: 
    • विविध आजीविका: विविध आय स्रोतों के लिये कृषि, संबद्ध क्षेत्रों, सेवाओं और लघु उद्यमों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • डिजिटल उपकरण और प्रशिक्षण: सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (CRP) वित्तीय साक्षरता, बाज़ार पहुँच और अनुपालन में संरचित कौशल कार्यक्रमों द्वारा समर्थित आजीविका योजना में SHG को मार्गदर्शन देने के लिये डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते हैं।
    • 4-स्तंभ समर्थन प्रणाली:
      • परिसंपत्तियाँ: औज़ार, उपकरण और बुनियादी संरचना।
      • कौशल: प्रशिक्षण और व्यावहारिक ज्ञान।
      • वित्त: आसान बैंक संपर्क और सरकारी योजनाओं तक पहुँच।
      • बाज़ार पहुँच: ब्रांडिंग, पैकेजिंग, ई-कॉमर्स और विपणन सहायता।
    • अभिसरण और साझेदारी: सरकारी योजनाओं (जैसे स्किल इंडिया, पीएम स्वनिधि, मनरेगा) और निजी क्षेत्र के साथ सहयोग तकनीकी, वित्तीय और संस्थागत समर्थन सुनिश्चित करता है, जिससे प्रयासों को बड़े स्तर पर लागू करने में मदद मिलती है।

स्वयं सहायता समूहों (SHG) के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • स्वयं सहायता समूह: स्वयं सहायता समूह (SHGs) 10–20 सदस्यों के अनौपचारिक समूह होते हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएँ होती हैं। इनका उद्देश्य साझा चुनौतियों का समाधान करना और आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना होता है।
    • केरल का कुडुंबश्री, महाराष्ट्र का महिला आर्थिक विकास महामंडल और लद्दाख की लूम्स जैसी पहलें SHG की सफलता की प्रमुख उदाहरणें हैं।
  • विकास: SHG की अवधारणा की शुरुआत बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक से हुई थी, जिसकी स्थापना वर्ष 1975 में प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने की थी। यह बैंक महिलाओं को विश्वास और सामाजिक पूंजी के आधार पर बिना गिरवी के छोटे ऋण प्रदान करता था।
    • भारत में SHG की शुरुआत सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985–90) के दौरान गरीबी उन्मूलन की रणनीति के रूप में हुई।
    • MYRADA (मैसूर पुनर्वास एवं विकास एजेंसी) ने 1980 के दशक के मध्य में SHG-बैंक लिंकिंग की शुरुआत की। भारत सरकार ने वर्ष 1999 में स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) की शुरुआत की, जिसमें SHG गठन पर विशेष ध्यान दिया गया।
  • स्वयं सहायता समूहों का कार्यकरण: 
    • गठन और बैठकें: SHGs का गठन समुदायों के भीतर NGOs या सरकारी एजेंसियों की मदद से किया जाता है। सदस्य नियमित बैठकें करते हैं, मुद्दों पर चर्चा करते हैं, बचत और ऋण प्रबंधन करते हैं।
    • बचत और वित्तपोषण: सदस्य नियमित रूप से बचत को समूह कोष में जमा करते हैं, जिसका उपयोग व्यवसायों, चिकित्सा आपात स्थितियों या शिक्षा जैसी आवश्यकताओं के समर्थन के लिये आंतरिक ऋण देने के लिये किया जाता है।
    • परिचालन योजना: बचत, ऋण और गतिविधियों पर निर्णय सामूहिक रूप से लिये जाते हैं, जिसमें एक सदस्य वित्त और बैठकों का रिकॉर्ड रखने का काम संभालता है।
    • बैंक संपर्क: स्वयं सहायता समूह सरकारी योजनाओं द्वारा समर्थित बड़े ऋणों और सेवाओं तक पहुँच के लिये बैंक संपर्क बनाते हैं, जबकि उनकी बचत और ऋण भुगतान का रिकॉर्ड ऋण-योग्यता को बढ़ाता है ।
    • प्रशिक्षण और सहायता: स्वयं सहायता समूहों को गैर सरकारी संगठनों, सरकारी एजेंसियों या बैंकों से वित्तीय साक्षरता, उद्यमिता और अन्य कौशलों में प्रशिक्षण प्राप्त होता है।
  • भारत में SHG: जून 2025 तक 10 करोड़ महिलाएँ 91 लाख SHG का हिस्सा हैं। फरवरी, 2023 तक 8.9 मिलियन SHG ने 2.54 लाख करोड़ रुपये का ऋण लिया था तथा वर्ष 2023-24 (फरवरी 2024 तक) में 1.7 लाख करोड़ रुपए के ऋण वितरित किये गए।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2022–23 के अनुसार, SHGs की ऋण वसूली दर 96% से अधिक है, जो उनकी वित्तीय अनुशासन और विश्वसनीयता को दर्शाता है।

सामुदायिक विकास और महिला सशक्तीकरण के लिये स्वयं सहायता समूह क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?

  • महिला सशक्तीकरण: मुख्य रूप से महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूह महिलाओं में  वित्तीय स्वतंत्रता, निर्णय लेने और नेतृत्व कौशल को बढ़ावा देते हैं।
    • स्वयं सहायता समूह सामाजिक स्थिति, आत्मविश्वास और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देते हैं, जिसके कई सदस्य सरपंच/प्रधान बन जाते हैं, साथ ही ग्राम पंचायत की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये दबाव समूह के रूप में भी कार्य करते हैं। 
    • स्वयं सहायता समूह (SHGs) रोज़गार सुनिश्चित करते हैं, आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हैं और बैंकों तक पहुँच को बेहतर बनाते हैं, जिससे महिलाएँ निर्णय लेने की प्रक्रिया में सशक्त होती हैं। साथ ही, ये समूह दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, तथा नशाखोरी जैसी सामाजिक बुराइयों से लड़ने में भी महिलाओं को सक्षम बनाते हैं।
  • वित्तीय समावेशन: स्वयं सहायता समूह हाशिये पर पड़े समुदायों, विशेषकर महिलाओं को औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने, बचत को बढ़ावा देने और उचित ब्याज दरों पर छोटे ऋण प्रदान करने में मदद करते हैं, जिससे साहूकारों पर निर्भरता कम होती है।
  • सामाजिक उत्थान और गरीबी उन्मूलन: स्वयं सहायता समूह स्वास्थ्य, शिक्षा और सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं तथा बाल विवाह, घरेलू हिंसा और स्वच्छता जैसे सामाजिक मुद्दों का समाधान करते हैं। 
    • सूक्ष्म ऋणों के माध्यम से वे छोटे व्यवसायों और खेती जैसी आय-उत्पादक गतिविधियों का समर्थन करते हैं तथा स्वरोजगार को बढ़ावा देकर गरीबी के चक्र को तोड़ने में मदद करते हैं।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना: स्वयं सहायता समूह स्थानीय उद्यमशीलता और कृषि आधारित आजीविका को बढ़ावा देते हैं, बाज़ार संपर्क और सौदेबाजी की शक्ति को मज़बूत करते हैं, साथ ही सामूहिक प्रयास और सामुदायिक कल्याण (जैसे सड़कें, स्कूल) के लिये एकता को प्रोत्साहित करते हैं।
    • SHGs कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिये भी एक मंच का कार्य करते हैं।
  • सतत् विकास और शासन: स्वयं सहायता समूह जैविक खेती और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं, तथा गरीबी उन्मूलन ( SDG 1), लैंगिक समानता (SDG 5) और सभ्य कार्य एवं आर्थिक विकास (SDG 8) जैसे सतत् विकास लक्ष्यों का समर्थन करते हैं। 
    • सरकारी कार्यक्रमों जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के माध्यम से SHGs को सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये उपयोग किया जाता है। साथ ही, बैंकों द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के तहत SHGs को ऋण भी प्रदान किया जाता है।

स्वयं सहायता समूहों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वित्तीय चुनौतियाँ: संपार्श्विक या उचित दस्तावेज़ के अभाव और ऋण तक सीमित पहुँच के कारण कई स्वयं सहायता समूहों को बैंक से ऋण प्राप्त करने में बाधा आती है। 
    • कुछ को सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता, अनियमित बचत और पुनर्भुगतान संबंधी समस्याओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण धन की कमी तथा लोन डिफॉल्ट की स्थिति उत्पन्न होती है। 
  • प्रबंधकीय और परिचालन संबंधी मुद्दे: कई स्वयं सहायता समूहों को पेशेवर प्रबंधन की कमी (खराब लेखा, रिकॉर्ड-कीपिंग तथा प्रशासन), अकुशल नेतृत्व के कारण संघर्ष एवं निधि कुप्रबंधन कुछ सदस्यों पर अत्यधिक निर्भरता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे समग्र प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक बाधाएँ: कुछ क्षेत्रों में लैंगिक असमानता पुरुष वर्चस्व के कारण स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं की भागीदारी को सीमित करती है, जबकि जाति और वर्ग विभाजन आंतरिक संघर्ष पैदा करते हैं, जिससे समूह सामंजस्य कम होता है
  • अधिकारों, सरकारी योजनाओं और वित्तीय साक्षरता के संबंध में जागरूकता की कमी सदस्य सशक्तीकरण में बाधा डालती है। 
  • नीति-संबंधी मुद्दे: नौकरशाही बाधाओं के कारण बैंक संपर्क में देरी, स्थानीय नेताओं का राजनीतिक हस्तक्षेप तथा NRLM जैसी योजनाओं में कार्यान्वयन अंतराल के साथ अपर्याप्त सरकारी समर्थन SHG संचालन और स्वायत्तता में बाधा डालते हैं।
  • स्थिरता संबंधी चिंताएँ: स्वयं सहायता समूहों को सीमित बाज़ार संपर्क, व्यावसायिक कौशल की कमी और बड़े व्यवसायों से प्रतिस्पर्द्धा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे लाभप्रदता कम हो जाती है तथा आय-उत्पादक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होती है । 
    • अतिरिक्त मुद्दों में प्रवासन या वित्तीय तनाव के कारण स्कूल छोड़ने की उच्च दर तथा पारंपरिक गतिविधियों से परे अनुकूलन में नवाचार की कमी शामिल है।

स्वयं सहायता समूहों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • वित्तीय सहायता को मज़बूत करना: SHG-बैंक लिंकेज प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और संपार्श्विक-मुक्त, कम ब्याज वाले ऋणों को प्रोत्साहित करके आसान ऋण पहुँच सुनिश्चित करना। 
    • SHG को NRLM और मुद्रा जैसी योजनाओं से जोड़ना तथा रिवॉल्विंग फंड को बढ़ावा देना। जोखिमों को कम करने के लिये स्वास्थ्य, फसलों और जीवन के लिये सूक्ष्म बीमा शुरू करना।
  • आय के अवसरों में वृद्धि: सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM), अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर SHG उत्पादों को बढ़ावा देना, ब्रांडिंग तथा पैकेजिंग का समर्थन करना एवं SHG द्वारा संचालित स्टोर, प्रदर्शनियों सुपरमार्केट टाई-अप के माध्यम से उचित मूल्य सुनिश्चित करना।
  • कॉर्पोरेट-SHG संबंध: मेंटरशिप, प्रौद्योगिकी और बाज़ार पहुँच प्रदान करने हेतु कॉर्पोरेट-SHG  गठबंधन (जैसे गूगल की वूमेन विल) गठन करना तथा क्षमता निर्माण और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR) निधि जुटाना। 
  • नीति एवं सरकारी हस्तक्षेप: समय पर सब्सिडी वितरण सुनिश्चित करना, अधिक सौदेबाजी की क्षमता हेतु SHG संघ को समूहों में बढ़ावा देना तथा SHG उत्पादों के लिये GST छूट या सब्सिडी प्रदान करना। 
  • सामाजिक सशक्तीकरण और समावेशिता: कार्यशालाओं के माध्यम से लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना, हाशिए पर पड़े समूहों (SC/ST, भूमिहीन, विकलांग) का समावेश सुनिश्चित करना तथा स्वच्छता , मातृ स्वास्थ्य और बाल शिक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करना। 
  • क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना: वंचित क्षेत्रों (विशेष रूप से उत्तरी और पूर्वी भारत) में स्वयं सहायता समूहों का विस्तार करने के लिये लक्षित कार्यक्रम शुरू करना तथा वित्तीय संस्थानों तथा विकास संगठनों की सहभागिता बढ़ाने हेतु नीतिगत प्रोत्साहन प्रदान करना।

SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम

  • परिचय: SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (HG-BLP) 1992 में SHG को औपचारिक बैंकिंग प्रणालियों से जोड़ने के लिये राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख पहल है।  
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य बचत, ऋण और अन्य वित्तीय सेवाओं हेतु स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से जोड़कर ग्रामीण गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं के लिये वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है, जिससे उच्च ब्याज वाले अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम हो सके।
  • कार्यप्रणाली: स्वयं सहायता समूह बैंक में बचत खाते खोलते हैं और 6 महीने की नियमित बचत के बाद, उचित ब्याज दरों पर बिना किसी जमानत के ऋण के लिये पात्र हो जाते हैं।
  • लिंकेज के मॉडल:  
    • मॉडल I : बैंक सीधे तौर पर स्वयं सहायता समूहों का गठन, प्रबंधन और वित्तपोषण करते हैं तथा बचत और ऋण वितरण का काम संभालते हैं।
    • मॉडल II: स्वयं सहायता समूहों का गठन गैर सरकारी संगठनों या एजेंसियों द्वारा किया जाता है, लेकिन इनका वित्तपोषण सीधे बैंकों द्वारा किया जाता है ये एजेंसियाँ प्रशिक्षण और सहायता भी प्रदान करती हैं।
    • मॉडल III: गैर सरकारी संगठन वित्तीय मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, स्वयं सहायता समूह बनाते हैं और उन्हें बैंकों से जोड़ते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ बैंकिंग पहुँच सीमित है।
  • ऋण के प्रकार: ऋण के प्रकारों में आय सृजन के लिये माइक्रोक्रेडिट, बीज धन के रूप में परिक्रामी निधि (जैसे, NRLM के तहत) और SHG उद्यमों को बढ़ाने हेतु सावधि ऋण शामिल हैं।

निष्कर्ष

लखपति दीदी पहल और SHG आंदोलन महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाकर ग्रामीण भारत को बदल रहे हैं। जबकि वित्तीय पहुँच और बाज़ार संपर्क जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, कौशल, ऋण पहुँच और नीति समर्थन में रणनीतिक हस्तक्षेप उनके प्रभाव को बढ़ा सकते हैं, जिससे SHG वर्ष 2047 तक समावेशी विकास और विकसित भारत को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में स्वयं सहायता समूहों के सामने मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं? उनकी स्थिरता और मापनीयता बढ़ाने के लिये नीतिगत उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

Q. ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ ग्रामीण क्षेत्रीय निर्धनों के आजीविका विकल्पों को सुधारने का किस प्रकार प्रयास करता है? (2012)

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नए विनिर्माण उद्योग तथा कृषि व्यापार केंद्र स्थापित करके
  2. 'स्वयं सहायता समूहों' को सशक्त बनाकर और कौशल विकास की सुविधाएँ प्रदान करके
  3. कृषकों को निःशुल्क बीज, उर्वरक, डीजल पंप-सेट तथा सूक्ष्म सिंचाई सयंत्र देकर

 नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: भारत में राज्य विधायिकाओं में महिलाओं की प्रभावी एवं सार्थक भागीदारी और प्रतिनिधित्व के लिये नागरिक समाज समूहों के योगदान पर विचार कीजिये। (2023)

प्रश्न: क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। (2021) 

प्रश्न: “सूक्ष्म वित्त  एक गरीबी-रोधी टीका है जो भारत में ग्रामीण दरिद्र की परिसंपत्ति निर्माण और आयसुरक्षा के लिये लक्षित है।"  स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण के साथ-साथ उपरोक्त दोहरे उद्देश्यों के लिये कीजिये। (2020)

प्रश्न: “वर्तमान समय में स्वयं सहायता समूहों का उद्भव राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे परंतु निरंतर पीछे हटने का संकेत है।” विकासात्मक गतिविधियों में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका एवं भारत सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहितकरने के लिये किये गए उपायों का परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न: स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी.) बैंक अनुबंध कार्यक्रम (एस.बी.एल.पी.), जो भारत का स्वयं का नवाचार है, निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रमों में एक सर्वाधिक प्रभावी कार्यक्रम साबित हुआ है। सविस्तार स्पष्ट कीजिये। (2015)

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