दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

राष्ट्रीय संस्थान/संगठन


भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)

  • 03 Nov 2020
  • 22 min read

 Last Updated: July 2022 

परिचय:

नाबार्ड एक विकास बैंक है जो प्राथमिक तौर पर देश के ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त प्रदान करने के लिये शीर्ष बैंकिंग संस्थान है। इसका मुख्यालय देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में अवस्थित है। कृषि के अतिरिक्त यह छोटे उद्योगों, कुटीर उद्योगों एवं ग्रामीण परियोजनाओं के विकास के लिये उत्तरदायी है। यह एक सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत की गई थी।

कार्य 

  • नाबार्ड के कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण भारत में विशिष्ट लक्ष्य उन्मुख विभागों (Specific Goal Oriented Departments) के माध्यम से वित्तीय समावेशन को सशक्त करना है जिसे व्यापक रूप में तीन शीर्ष भागों वित्तीय, विकास एवं निरीक्षण में वर्गीकृत किया जा सकता है। 
  • यह ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • यह ज़िला स्तरीय ऋण योजनाएँ (district level credit plans) तैयार करता है ताकि उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने में बैंकिंग उद्योगों को निर्देशित एवं प्रेरित किया जा सके।
  • यह कोऑपरेटिव बैंकों एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निरीक्षण करता है और साथ ही उन्हें CBS प्लेटफॉर्म (Core Banking Solution) से जुड़ने में सहयोग करता है।
    • CBS प्लेटफॉर्म अर्थात् कोर बैंकिंग सॉल्यूशन ब्रांचों का नेटवर्क है जो ग्राहकों को उनके अकाउंट्स के संचालन में समर्थन करता है और CBS नेटवर्क पर मौजूदा बैंकों की किसी भी ब्रांच से बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करता है। 
  • इसका उद्देश्य केंद्र सरकार की विकास योजनाओं की डिज़ाइनिंग एवं उनके क्रियान्वयन में निहित है।
  • यह हस्तकला शिल्पकारों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है एवं इन वस्तुओं की प्रदर्शनी हेतु एक मार्केटिंग प्लेटफॉर्म विकसित करने में उनकी मदद करता है।
  • नाबार्ड में कई अंतर्राष्ट्रीय भागीदार हैं जिसमें प्रमुख वैश्विक संगठन एवं विश्व बैंक से संबद्ध संस्थान शामिल हैं जो कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में नवाचार कर रहे हैं।
    • ये अंतर्राष्ट्रीय भागीदार संगठन वित्तीय सहायता एवं सलाहकारी सेवाएँ प्रदान करने में एक प्रमुख सलाहकार की भूमिका निभाते हैं ताकि विभिन्न कृषि प्रक्रियाओं के अनुकूलन एवं ग्रामीण लोगों के उत्थान को सुनिश्चित किया जा सके।

इतिहास

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु संस्थागत ऋण का महत्त्व सरकार के नियोजन के प्रारंभिक दौर से ही स्पष्ट हो जाता है। इसी क्रम में वर्ष 1979 में तात्कालिक योजना आयोग के सदस्य श्री बी. सिवरामन की अध्यक्षता में भारत सरकार के आग्रह पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये संस्थागत ऋण की व्यवस्था की समीक्षा करने हेतु एक समिति का गठन किया।
    • समिति द्वारा ग्रामीण विकास से जुड़े ऋण संबंधी मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने हेतु  संगठनात्मक उपकरण की आवश्यकता रेखांकित किया गया।
    • इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में नाबार्ड की स्थापना की गई।
  • इसकी आरंभिक पैड अप कैपिटल (Paid Up Capital) 100 करोड़ रुपए थी जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक एवं भारत सरकार की हिस्सेदारी 50:50 थी।
  • नाबार्ड की स्थापना से पहले RBI भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ऋण सुविधा प्रदान करने हेतु शीर्ष निकाय था।
    • इसके परिणामस्वरूप भारत में कृषि और ग्रामीण विकास के संदर्भ में एक शीर्ष विकास वित्तीय संस्थान के रूप में नाबार्ड की स्थापना की गई।
    • नाबार्ड की भूमिका मुख्य रूप से कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की भूमिका का ही विस्तार है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक की तीन संस्थाओं के कार्यों को नाबार्ड को हस्तांतरित कर दिया गया है। ये तीन संस्थाएँ हैं:      
    (1) कृषि ऋण विभाग (Agricultural Credit Department- ACD): भारतीय रिज़र्व बैंक अपने कृषि ऋण विभाग (ACD) के माध्यम से सहयोगियों को लघु अवधि के लिये पुनर्वित्त की सुविधा प्रदान करता है।  
    (2) ग्रामीण योजना एवं क्रेडिट सेल (Rural Planning and Credit Cell - RPCC): यह वर्ष 1979 से ही क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional Rural Banks-RRBs) के साथ सहयोग कर रहा है।
    (3) कृषि पुनर्वित्त एवं विकास कॉरपोरेशन (Agricultural Refinance and Development Corporation - ARDC): भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 1963 में एक पुनर्वित्त एजेंसी के रूप में कार्य करने के लिये कृषि पुनर्वित्त कॉरपोरेशन (Agricultural Refinance Corporation-ARC) की स्थापना की। इस एजेंसी का कार्य कृषि विकास के लिये निवेश ऋण की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
    • वर्ष 1975 में कृषि क्षेत्र में  विकास एवं संवर्द्धन को बढ़ावा देने के लिये ARC का  नाम बदलकर कृषि पुनर्वित्त एवं विकास कॉरपोरेशन (ARDC) कर  दिया गया था।
  • नाबार्ड (संशोधन) विधेयक, 2017 (वर्ष 2018 में पारित) : 
    • उपरोक्त संशोधन अधिनियम द्वारा केंद्र सरकार को नाबार्ड की अधिकृत पूंजी को 5000 करोड़ रुपए से 30000 करोड़ रुपए तक बढ़ाने का अधिकार दिया गया है।
    • नाबार्ड की पूंजी में बढ़ोतरी: 1981 के अधिनियम के तहत नाबार्ड की पूंजी 100 करोड़ रुपए तक हो सकती है। इस पूंजी को केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ परामर्श करके आगे  5000 करोड़ तक बढ़ाया जा सकता हैं। यह अधिनियम केंद्र सरकार को नाबार्ड की पूंजी को 30000 करोड़ रुपए तक  बढ़ाने की अनुमति देता है।
    • केंद्र सरकार को भारतीय रिज़र्व बैंक के हिस्से का हस्तांतरण: 1981 केअधिनियम के तहत केंद्र सरकार एवं रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया दोनों के पास नाबार्ड की शेयर पूंजी का कम-से-कम 51% हिस्सा होना चाहिये। अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार के पास अकेले नाबार्ड की शेयर पूंजी का 51% हिस्सा होना चाहिये। अधिनियम भारतीय रिज़र्व बैंक की शेयर पूंजी को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करता है।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME): वर्ष 1981 अधिनियम के तहत नाबार्ड 20 लाख रुपए तक के निवेश वाले उद्यमों को मशीनरी और संयंत्रों के लिये ऋण एवं दूसरी सुविधाएँ देता है। संशोधित अधिनियम मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 10 करोड़ रुपए तक के और सेवा क्षेत्र में 5 करोड़ रुपए तक के निवेश वाले उद्योगों को इसमें शामिल करता है।
    • वर्ष 1981 अधिनियम के तहत लघु उद्यमों के विशेषज्ञों को नाबार्ड के निदेशक बोर्ड और  सलाहकार परिषद में शामिल किया जाता है। इसके अतिरिक्त लघु स्तरीय, छोटे एवं विकेंद्रित क्षेत्रों को ऋण देने वाले बैंक नाबार्ड से वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं। अधिनियम इन प्रावधानों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को शामिल करता है।

नाबार्ड और RBI

  • भारतीय रिज़र्व बैंक देश का केंद्रीय बैंक है जो बैंकिंग व्यवस्था को विनियमित करता है और यह नाबार्ड के अंतर्गत शामिल है एवं बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत परिभाषित विभिन्न संस्थाओं/बैंकों का पर्यवेक्षक है।
  • कई विकासात्मक एवं विनियामक कार्यों को RBI एवं नाबार्ड के समन्वय से किया जाता है। RBI, नाबार्ड के निदेशक बोर्ड के लिये तीन निदेशकों की नियुक्ति करता है।
  • नाबार्ड, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों एवं राज्य कोऑपरेटिव बैंक द्वारा नई शाखाओं को खोलने एवं निजी बैंको के लाइसेंस के मुद्दों पर भारतीय रिज़र्व बैंक को अनुशंसा करता है।

शासन

निदेशक बोर्ड

  • बोर्ड निदेशक द्वारा नाबार्ड के मामलों को नियंत्रित किया जाता है। बोर्ड निदेशक की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा नाबार्ड अधिनियम के तहत की जाती है। निदेशकों का चुनाव रिज़र्व बैंक के अलावा अन्य शेयरधारकों, केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित अन्य संस्थाओं एवं केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
  • निदेशक बोर्ड में निम्नलिखित लोग शामिल होते हैं:
  • एक अध्यक्ष
  • तीन निदेशक जो निम्नलिखित विषयों के विशेषज्ञ हों:
    • ग्रामीण अर्थ्यवस्था
    • ग्रामीण विकास
    • ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग 
    • लघु उद्योग
    • या ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोऑपरेटिव बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों या व्यावसायिक बैंकों में कार्य करने का अनुभव हो।
    • या किसी भी अन्य विशेष ज्ञान या पेशेवर अनुभव हो जिसे केंद्र सरकार राष्ट्रीय बैंकों के लिये उपयोगी मानती हो।
    • रिज़र्व बैंक के निदेशकों में से 3 निदेशक;
    • केंद्र सरकार के अधिकारियों के बीच से 3 निदेशक;
    • राज्य सरकार के अधिकारियों के बीच से 4 निदेशक;              
  • अध्यक्ष एवं अन्य निदेशकों (शेयरधारकों एवं केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा चुने हुए लोगों को छोड़कर) की नियुक्ति  केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से करती है।

कार्यकारी समिति 

  • बोर्ड निदेशक एक कार्यकारी समिति का गठन कर सकता है जिसमें निदेशकों (कार्यकारी निदेशक) की संख्या निर्धारित की जा सकती है।
  • कार्यकारी समिति को ऐसे कार्यों जिन्हें बोर्ड द्वारा इसे सौंपा जा सकता है या जिसका निर्धारण किया जा सकता है, को प्रबंधित करना होता है।

योगदान

नाबार्ड ने वित्तीय, विकासात्मक एवं पर्यवेक्षण कार्य के संदर्भ में ग्रामीण अर्थव्यस्था के लगभग सभी परिप्रेक्ष्य को स्पर्श किया है।

वित्तीय योगदान

  • पुनर्वित्त-लघु अवधि ऋण: वित्तीय संस्थाओं द्वारा फसल ऋण का विस्तार किसानों के फसल उत्पादन के लिये किया गया है, जो देश में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सहयोग करता है।
  • दीर्घ अवधि ऋण: नाबार्ड दीर्घकालीन वित्त को कृषि क्षेत्र या गैर-कृषि क्षेत्र गतिविधियों में शामिल कार्यों की एक विस्तृत पहुँच के लिये ऋण प्रदान करता है जिसकी अवधि 18 महीने से लेकर 5 वर्ष तक होती है।
  • ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (RIDF): वर्ष 1995-96 में ग्रामीण अवसंरचना परियोजनाओं की मदद के लिये ऋण प्रदान करने का उत्तरदायित्व भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों से (प्राथमिक क्षेत्र की उधारी में कमी के कारण) नाबार्ड को स्थानांतरित कर दि या गया।
  • नाबार्ड अवसंरचना विकास सहायता (NIDA): NIDA का गठन RIDF को पूरा करने के लिये किया गया है।

    दीर्घकालीन सिंचाई कोष (LTIF): नाबार्ड के तहत दीर्घकालीन सिंचाई कोष की स्थापना वर्ष 2016-17 के केंद्रीय बजट में की गई थी। इस बजट में 99 सिंचाई परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये प्रारंभिक राशि 20,000 करोड़ रुपए की घोषणा की गई थी।

  • गोदाम अवसंरचना कोष (Warehouse Infrastructure Fund-WIF): केंद्र सरकार ने वर्ष 2013-14 में नाबार्ड के साथ 5,000 करोड़ रुपए की राशि के साथ WIF की स्थापना की, जो देश में कृषि वस्तुओं के लिये साइंटिफिक वेयरहाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को आवश्यक ऋण उपलब्ध कराता है।
  • खाद्य प्रसंस्करण निधि 
  • कोऑपरेटिव बैंकों के लिये प्रत्यक्ष ऋण
  • मार्केटिंग संघों के लिये ऋण सुविधा

  • उत्पादक संगठनों एवं प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिये उत्पादक संगठन विकास कोष:  
    • नाबार्ड ने बहु-सेवा केंद्र संचालित करने के लिये उत्पादक संगठनों (Producer Organizations-POs) एवं प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agriculture Credit Societies- PACS) को वित्तीय सहयोग प्रदान करने के लिये 50 करोड़ रुपए की प्रारंभिक राशि के साथ उत्पादक संगठन विकास कोष ( PODF) की स्थापना की।
    • उत्पादक संगठन (PO) एक विधिक संस्था है जिसका गठन प्राथमिक उत्पादकों अर्थात् किसान, दुग्ध उत्पादक, मछली उत्पादक, बुनकर ,ग्रामीण शिल्पकार, शिल्पी आदि द्वारा किया जाता है। उत्पादक संगठन एक उत्पादक कंपनी, कोऑपरेटिव सोसायटी या कोई अन्य वैधानिक संरचना हो सकती है जो सदस्यों के बीच लाभ का बँटवारा करती है।
    • प्राथमिक कृषि ऋण समिति एक आधार इकाई है एवं भारत में ऋण देने वाला सबसे छोटा कोऑपरेटिव संस्थान हैं। यह ज़मीनी स्तर (ग्राम पंचायत और ग्रामीण स्तर) पर कार्य करता है। यह किसानों को टर्म लोन के रूप में ऋण प्रदान करता है और कृषकों से राशि की वसूली फसल कटाई के बाद करता है।

विकासात्मक योगदान 

  • किसानों के लिये किसान क्रेडिट कार्ड: अगस्त 1988 में फसल ऋण प्रदान करने के लिये नाबार्ड ने भारतीय रिज़र्व बैंक के सहयोग से किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की थी।
  • रूपे  किसान कार्ड (RKCs): नाबार्ड अपने सभी किसान ग्राहकों को ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के सहयोग से रूपे किसान कार्ड प्रदान करके प्रौद्योगिकी क्रांति में सबसे आगे है।
  • आदिवासी विकास: आदिवासी विकास कार्यक्रम
  • जलवायु तन्य (Resilient) कृषि

  • प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर अंब्रेला कार्यक्रम (UPNRM)

    • UPNRM की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई। यह ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने, व्यवसाय के अवसर पैदा करने के साथ-साथ अपने प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग हेतु ग्रामीण समुदाय को प्रोत्साहित करने का कार्य करता है

माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र: 

  • वर्ष 1992 में नाबार्ड ने स्वयं सहायता समूह बैंक-लिंकेज कार्यक्रम (Self Help Group-Bank Linkage Programme-SHG-BLP) की शुरुआत की थी। इसमें वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान 23 लाख स्वयं सहायता समूहों ने बैंक क्रेडिट-लिंक्ड रजिस्टर किये हैं।
  • ईशक्ति कार्यक्रम: 15 मार्च 2015 को स्वयं सहायता समूह (SHGs) के डिजिटलीकरण के उद्देश्य से ईशक्ति कार्यक्रम को लॉन्च किया गया था।
  • कौशल विकास: युवाओं में उद्यमी संस्कृति को बढ़ावा देना एवं उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि क्षेत्रों से संबंधित उद्योग शुरू करने के लिये प्रोत्साहित करना। इस प्रकार के कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिये नाबार्ड तीन दशक से रणनीतिक रूप से कार्य कर रहा है।
  • मार्केटिंग पहल: नाबार्ड ग्रामीण शिल्पकारों एवं उत्पादकों को मार्केटिंग अवसर उपलब्ध कराने के लिये देश भर में आयोजित प्रदर्शनियों में उन्हें भागीदारी के लिये प्रोत्साहित कर रहा है।
  • इनक्यूबेशन सेंटर: देश में नवाचारों को व्यावसायिक बनाने, कृषि उद्यमिता को आकार देने और एग्री इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित करने के लिये नाबार्ड ने चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार एवं तमिलनाडु कृषि विश्वविद्याल , मदुरै को 23.99 करोड़ रुपए की कुल वित्तीय सहायता प्रदान की।

चुनौतियाँ

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के उत्तराधिकारी के रूप में नाबार्ड अपने मूल जनक संस्थानों की कार्य संस्कृति, प्रकृति एवं विकास ओरियंटेशन को साझा करता है।
  • नाबार्ड की बाज़ार उधारी इसके संसाधनों के 80% तक होने से इसकी वित्तपोषण की लागत बढ़ गई है। 
  • उत्तरी-पूर्वी राज्यों को नाबार्ड के क्रेडिट फंड का बहुत कम हिस्सा मिल रहा है। उत्तर-पूर्वी राज्यों को क्रेडिट का 1 प्रतिशत ही मिलता है। ये राज्य मनी-लेंडर्स के जाल में फँँसने वाले किसानों के परिदृश्य के संदर्भ में अग्रणी  हैं।
  • उग्रवाद प्रभावित राज्यों में बैंकों की पहुँच कम है एवं बैंकों को इन राज्यों की ओर अपना कदम बढ़ाना चाहिये। 

निष्कर्ष:

भारत में 75 प्रतिशत से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं। ग्रामीण अवसंरचना निवेश से ग्रामीण लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायता मिलती है जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता एवं आय में वृद्धि होती हैं। नाबार्ड भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के क्षमता निर्माण एवं ऋण सुविधा प्रदान करने हेतु एक सर्वोच्च संस्थान है। यह ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण एवं गरीबी कम करने हेतु समर्पित है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow