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भारत में विदेशी विश्वविद्यालय

  • 28 Jun 2025
  • 19 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, सकल नामांकन अनुपात (GER), भारत में अध्ययन कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन के साथ अवसर और चुनौतियाँ, भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में किये गए प्रमुख सुधार, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की प्रवेश प्रक्रिया देश के उच्च शिक्षा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाती है। यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की विदेशी उच्च शिक्षा संस्थान (FHEI) विनियम, 2023 द्वारा प्रोत्साहित किया गया है। यह भारत की शैक्षिक व्यवस्था के लिये एक ओर जहाँ नए अवसरों के द्वार खोलता है, वहीं कई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है।

  • जबकि यह पहल वैश्विक एकीकरण और शैक्षणिक उत्कृष्टता के अवसर प्रदान करती है, यह समानता, पहुँच, वहनीयता, समावेशन और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संतुलन स्थापित करने जैसे मुद्दों को लेकर चिंताएँ भी उत्पन्न करती है।

नोट:

  • भारत अपनी वैश्विक उपस्थिति का भी विस्तार कर रहा है, IIT मद्रास ने जंजीबार में तथा IIT दिल्ली ने अबू धाबी में अपना परिसर स्थापित किया है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)

  • UGC भारत में एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना वर्ष 1953 में उच्च शिक्षा के मानकों के समन्वय, निर्धारण और रखरखाव के लिये की गई थी। 
  • इसे भारत सरकार ने वर्ष 1956 के यूजीसी अधिनियम के तहत स्थापित किया था। UGC के मुख्य कार्यों में विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करना, धन का वितरण और उच्च शिक्षा से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देना शामिल है। 
  • UGC का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश के पीछे क्या कारण है?

  • भारत की जनसांख्यिकीय और आर्थिक क्षमता: 30 वर्ष से कम आयु वाली जनसंख्या 50% से अधिक होने और उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) लगभग 30% से कम होने के कारण, भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक विशाल अप्रयुक्त बाज़ार प्रदान करता है। 
    • बढ़ती आय, विस्तारशील मध्यम वर्ग, अंग्रेज़ी भाषा में दक्षता और अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के प्रति बढ़ती आकांक्षाएँ भारत को विदेशी विश्वविद्यालयों के लिये एक आकर्षक गंतव्य बनाती हैं।
  • विविधीकरण की वैश्विक प्रयास: ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों के विश्वविद्यालयों में, जहाँ कुल नामांकन में लगभग एक-तिहाई अंतर्राष्ट्रीय छात्र हैं, घरेलू नामांकन में ठहराव और सार्वजनिक वित्त पोषण में कमी का सामना कर रहे हैं।
    • हाल ही में वीज़ा प्रतिबंधों और नामांकन सीमाओं ने इन देशों के शैक्षणिक संस्थानों को भारत जैसे नए और उच्च संभावनाओं वाले बाज़ारों की ओर रुख करने के लिये प्रेरित किया है, ताकि वे अपनी विकास दर को बनाए रख सकें।
  • राजस्व विविधीकरण और वैश्विक उपस्थिति: भारत में परिसरों की स्थापना (जैसे कि GIFT सिटी, नवी मुंबई) विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने राजस्व स्रोतों में विविधता लाने, आउटबाउंड गतिशीलता पर निर्भरता कम करने और वैश्विक दृश्यता का विस्तार करते हुए सस्ती अंतर्राष्ट्रीय डिग्री प्रदान करने की अनुमति देती है।
  • भारतीय संस्थानों के साथ सहयोग: भारत पहले से ही वैश्विक स्तर पर रैंक प्राप्त संस्थानों (जैसे कि IIT बॉम्बे, IISc बेंगलुरु, दिल्ली विश्वविद्यालय) का केंद्र है।
    • विदेशी विश्वविद्यालय इन कॉलेजों के साथ साझेदारी कर संयुक्त परिसर स्थापित कर सकते हैं, जिससे उन्हें नई आधारभूत संरचना बनाने के बजाय मौजूदा संसाधनों का उपयोग करने का अवसर मिलेगा। यह मॉडल तेज़ी से प्रवेश, कम निवेश सुनिश्चित करता है और शैक्षणिक सहयोग को सशक्त बनाता है।
    • उदाहरण: डीकिन विश्वविद्यालय (ऑस्ट्रेलिया) ने GIFT सिटी में अपना परिसर शुरू करने से पहले IIM बेंगलुरु के साथ साझेदारी की है।

उच्च शिक्षा क्षेत्र में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से भारत को क्या लाभ होंगे?

  • वैश्विक शिक्षा तक पहुँच: विदेशी विश्वविद्यालय भारत में अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर आधारित पाठ्यक्रम, वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त डिग्रियाँ और अनुभवी संकाय प्रदान करते हैं।
    • यह छात्रों को उच्च लागत, वीज़ा संबंधी कठिनाइयों और जीवन-यापन व्यय के बोझ के बिना उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है, जिससे शिक्षा की वहनीयता और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
  • ब्रेन ड्रेन और विदेशी मुद्रा प्रतिधारण: भारत में विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या वर्ष 2019 में 5.8 लाख से बढ़कर वर्ष 2023 में 9 लाख हो गई, जिनमें से 75% से अधिक विदेश में ही रहने की इच्छा रखते हैं।
    • घरेलू विदेशी परिसरों (Domestic foreign campuses) के माध्यम से देश में ही समान शैक्षणिक गुणवत्ता उपलब्ध कराई जा सकती है, जिससे प्रतिभा देश में बनी रहती है और बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा के बहिर्गमन को रोका जा सकता है।
  • अनुसंधान और शैक्षणिक सुधार: विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग से संयुक्त अनुसंधान केंद्र, संकाय आदान-प्रदान और शासन सुधारों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों (HEI) में शैक्षणिक स्तर सुधरता है, अनुसंधान उत्पादन बढ़ता है तथा नवाचार व उत्कृष्टता को मज़बूती मिलती है।
  • उद्योग कौशल और रोज़गार योग्यता: विदेशी विश्वविद्यालय उद्योगोन्मुखी पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जिनमें व्यावहारिक शिक्षण, इंटर्नशिप और उद्यमिता पर विशेष ज़ोर होता है। यह कौशल अंतर को कम करने में सहायता करता है और भारतीय स्नातकों की घरेलू एवं वैश्विक बाज़ारों में रोज़गार योग्यता को बढ़ाता है।
  • पारस्परिक सुविधा और रणनीतिक कूटनीति: भारत पारस्परिक सुविधा के तहत समझौता कर सकता है, जिसके अंतर्गत वह भूमि, नियामकीय समर्थन और बुनियादी ढाँचा सहायता प्रदान कर सकता है, बदले में विदेशी विश्वविद्यालयों से यह अपेक्षा रखी जा सकती है कि वे भारतीय संस्थानों को खाड़ी देशों और यूरोप में अपने परिसर स्थापित करने में सहयोग दें।
    • यह शैक्षणिक कूटनीति को बढ़ावा देगा, भारतीय उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को प्रोत्साहित करेगा और भारत की सॉफ्ट पावर को मज़बूत करेगा।
  • भारत को वैश्विक शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करना: 30 वर्ष से कम आयु की 52% जनसंख्या, तकनीकी रूप से दक्ष और अंग्रेज़ी बोलने वाले युवा वर्ग तथा सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति के साथ, भारत एक अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र बनने की दिशा में सशक्त रूप से सक्षम है।
    • विदेशी परिसरों की मेज़बानी करना सीमापार शिक्षा को बढ़ावा देता है, दक्षिण एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व से छात्रों को आकर्षित करता है, भारत की वैश्विक शैक्षणिक उपस्थिति को मज़बूत करता है और AIIMS, IIM व IIT जैसे शीर्ष उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करता है, जिससे भारत के अपने ‘आइवी लीग (Ivy League)’ का मार्ग प्रशस्त होता है।

भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसरों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वहनीयता और समानता: विदेशी शाखा परिसरों में शिक्षा शुल्क अत्यधिक हो सकता है, जिससे ये मुख्य रूप से केवल समृद्ध वर्ग के लिये ही सुलभ रह जाते हैं।
    • इससे उच्च शिक्षा में सामाजिक-आर्थिक असमानता बढ़ने का खतरा है, जिससे आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के प्रतिभाशाली छात्र वंचित हो सकते हैं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समावेशी पहुँच के NEP 2020 के लक्ष्य को नुकसान पहुँचेगा।
  • सीमित अल्पकालिक प्रणालीगत प्रभाव: यद्यपि विदेशी विश्वविद्यालय सुधार हेतु एक बड़ा कदम है, लेकिन निकट भविष्य में सीमित छात्रों वाले केवल कुछ ही परिसर खुलेंगे। 
    • इसलिये सकल नामांकन अनुपात (GER) और समग्र शिक्षा प्रणाली में सुधार पर उनका प्रभाव छोटा और क्रमिक होगा ।
  • व्यावसायीकरण एवं स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ: विदेशी संस्थान अकादमिक अखंडता की तुलना में लाभ को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा का बाज़ारीकरण हो सकता है तथा मज़बूत विनियमन के बिना गुणवत्ता में कमी आ सकती है।
    • चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और खाड़ी देशों के अनुभव बताते हैं कि कम नामांकन, उच्च लागत और स्थानीय असंतुलन के कारण अक्सर परिसर बंद हो जाते हैं।
  • विनियामक और बुनियादी ढाँचे संबंधी बाधाएँ:  UGC (भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम, 2023 जैसे सक्षम ढाँचे के बावजूद, विदेशी विश्वविद्यालयों को अभी भी भूमि अधिग्रहण, कराधान, श्रम कानूनों और सामान्य क्षेत्रों में  बुनियादी ढाँचे की तैयारी से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • हालाँकि GIFT सिटी जैसे निर्दिष्ट क्षेत्रों में, जो विनियामक छूट और अधिक अनुकूल कारोबारी माहौल प्रदान करते हैं, ये बाधाएँ काफी कम हो जाती हैं
  • सांस्कृतिक और शैक्षणिक वियोग: विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत के सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक संदर्भ के अनुकूल ढलने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 
    • प्रासंगिक पाठ्यक्रम, भारतीय संकाय और स्थानीय संस्थाओं के साथ सहयोग के माध्यम से प्रभावी स्थानीय एकीकरण के बिना, उनके अभिजात्य, पृथक परिसर बनने का खतरा है, जो भारत के शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र और सामाजिक आवश्यकताओं से अलग हो जाएंगे

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में प्रमुख मुद्दे

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करना

भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ सतत् सहयोग के लिये क्या रणनीति होनी चाहिये?

  • समावेशी पहुँच सुनिश्चित करना: NEP 2020 के साथ संरेखित करने के लिये विनियमों में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों हेतु छात्रवृत्ति और सकारात्मक समावेशन उपायों को अनिवार्य करना चाहिये। 
    • विदेशी परिसरों में व्यापक पहुँच को बढ़ावा देने और सामाजिक न्याय को बनाए रखने के लिये सरकार या संस्थानों से वित्तीय सहायता आवश्यक है।
  • लचीला लेकिन जवाबदेह शासन: एक स्तरीकृत और विभेदित नियामक मॉडल को शीर्ष रैंक वाले वैश्विक संस्थानों को परिचालन में आसानी प्रदान करनी चाहिये, साथ ही शैक्षणिक गुणवत्ता, वित्तीय पारदर्शिता और नैतिक आचरण पर सख्त निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिये। 
    • विदेशी विश्वविद्यालयों को भारतीय कानूनों, छात्र अधिकारों और शोषण-विरोधी मानदंडों के प्रति जवाबदेह रहना चाहिये।
  • सहयोगात्मक अनुसंधान एवं क्षमता निर्माण: विदेशी विश्वविद्यालयों को भारतीय संस्थानों के साथ साझा परिसर, समझौता ज्ञापन (MoU), संयुक्त अनुसंधान केंद्र और संकाय विकास कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिये। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को नवाचार, क्षमता निर्माण और पारस्परिक अधिगम को बढ़ावा देने के लिये ऐसे सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • सरकार को भारतीय-विदेशी शैक्षणिक सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये, जिसमें भारतीय संस्थान अवसंरचनात्मक सहयोग प्रदान करें और वैश्विक पहचान प्राप्त करें, साथ ही विदेशी पाठ्यक्रमों का भारतीयकरण (Indianisation) सुनिश्चित किया जाए।
    • दीर्घकालिक दृष्टि से, भारत को आईवी लीग जैसी अपनी वैश्विक संस्थाएँ विकसित करनी चाहिये, जैसा कि खाड़ी देशों और अफ्रीका में IIT परिसरों के विस्तार में देखा जा रहा है।
  • स्थानीय प्रासंगिकता और सांस्कृतिक समावेशन: विदेशी विश्वविद्यालयों को भारतीय शैक्षिक मूल्यों, भाषाई विविधता और छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य करना चाहिये। इसके लिये उन्हें पाठ्यक्रमों को अनुकूलित करने की आवश्यकता है, घरेलू मॉडलों की नकल से बचने और कौशल विकास तथा ज्ञान अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाले संदर्भ-विशिष्ट कार्यक्रमों की पेशकश करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में प्रवेश की पहल, उच्च शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तनकारी संभावनाएँ लेकर आती है। हालाँकि इनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को कैसे ढालते हैं, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे प्रदान करते हैं और घरेलू संस्थानों के साथ किस हद तक सहयोग करते हैं। उचित नियामक संरक्षण और दूरदर्शी नीतियों के साथ यह पहल भारत को वैश्विक ज्ञान केंद्र के रूप में सशक्त बना सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर स्थापित करने से संबंधित अवसरों एवं चुनौतियों का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

Q. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पंचम अनुसूची
  4. षष्ठ अनुसूची
  5. सप्तम अनुसूची

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर- (d)


मेन्स 

प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान दिया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) 

प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

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