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Sambhav-2023

  • 03 Feb 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 75

    प्रश्न.1 विकसित और विकासशील देशों के बीच असंतुलित जनसंख्या संरचना पर चर्चा करते हुए वैश्विक जनसंख्या वृद्धि के कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) और इसकी विशिष्टता पर चर्चा कीजिये। क्या आपको लगता है कि इससे भारत में मानव विकास के संबंध में सटीक आँकड़े प्राप्त होने के साथ इस संदर्भ में व्यावहारिक दृष्टिकोण प्राप्त हो सकता है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • असंतुलित जनसंख्या संरचना का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि के कारणों और इसके प्रभावों के साथ विकसित एवं विकासशील देशों में असंतुलित जनसंख्या संरचना के बारे में चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • असंतुलित जनसंख्या संरचना का तात्पर्य जनसंख्या में विभिन्न आयु समूहों का असमान वितरण होना है।
    • विकसित देशों में आमतौर पर अधिक संतुलित आयु संरचना होती है, जिसमें युवा लोगों का अनुपात कम होता है और वृद्ध लोगों का अनुपात अधिक होता है।
    • ऐसा कम प्रजनन दर और बढ़ती जीवन प्रत्याशा के कारण होता है।
    • इसके विपरीत विकासशील देशों में युवा लोगों का अनुपात अधिक होता है और वृद्ध लोगों का अनुपात कम होता है, जो उच्च प्रजनन दर और कम जीवन प्रत्याशा को दर्शाता है।

    मुख्य भाग:

    • विकसित देश:
      • इनमें असंतुलित जनसंख्या संरचना के तहत बढ़ती वृद्ध जनसंख्या और घटती जन्म दर देखने को मिलती है। जिससे वृद्ध लोगों का अनुपात अधिक और युवा लोगों का कम होता है। आयु संरचना में यह बदलाव आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का कारण बन सकता है।
      • उदाहरण के लिये, इससे पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव पड़ सकता है, क्योंकि कर्मचारियों की संख्या के सापेक्ष सेवानिवृत्त लोगों की संख्या बढ़ जाती है।
      • इससे श्रम शक्ति के साथ आर्थिक विकास भी प्रभावित हो सकता है, क्योंकि कार्यबल का कम होता आकार इन देशों की उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता के स्तर को बनाए रखने की क्षमता को सीमित कर सकता है।
    • विकासशील देश:
      • इनमें असंतुलित जनसंख्या संरचना के तहत अधिक युवा आबादी और उच्च जन्म दर शामिल होती है।
      • जिससे युवा लोगों का अनुपात अधिक और वृद्ध लोगों का कम होता है।
      • यह युवा आबादी इन देशों के लिये अवसर और चुनौती दोनों हो सकती है।
      • एक ओर जहाँ युवा आबादी से कार्यबल और नवाचार के साथ आर्थिक विकास का एक संभावित स्रोत प्राप्त हो सकता है।
      • वहीं दूसरी ओर उच्च जन्म दर और सीमित संसाधन इन देशों के लिये अपनी बढ़ती युवा आबादी के लिये पर्याप्त शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोज़गार के अवसर प्रदान करना कठिन बना सकते हैं।
      • इससे गरीबी, असमानता और सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है।
    • वैश्विक जनसंख्या वृद्धि के कारण:
      • बेहतर स्वास्थ्य सेवा: चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य में प्रगति से मृत्यु दर में कमी और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है, जिससे लोग लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
      • शिशु मृत्यु दर में कमी: बेहतर चिकित्सा देखभाल और भोजन तथा स्वच्छ जल तक पहुँच के कारण छोटे बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है।
      • खाद्य उत्पादन में वृद्धि: कृषि और खाद्य उत्पादन में प्रगति से बड़ी आबादी को खादान्न प्रदान करना संभव हुआ है।
      • प्रवासन: लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाना जनसंख्या वृद्धि में योगदान कर सकता है, क्योंकि प्रवासी अपने परिवारों और समुदायों को अपने साथ लाते हैं।
      • परिवार नियोजन तक पहुँच का अभाव: विश्व के कुछ हिस्सों में परिवार नियोजन तथा शिक्षा तक पहुँच की कमी के कारण उच्च जन्म दर के साथ जनसंख्या वृद्धि हो सकती है।
    • वैश्विक जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव:
      • संसाधनों पर दबाव: बढ़ती जनसंख्या से भोजन, जल, ऊर्जा और भूमि जैसे सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ता है। इससे मूल्य वृद्धि होने एवं संसाधनों की कमी के साथ संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्धा हो सकती है।
      • पर्यावरण क्षरण: जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे संसाधन और भूमि की मांग भी बढ़ती है, जिसके परिणामस्वरूप वनों की कटाई, मृदा क्षरण और जैव विविधता का नुकसान हो सकता है।
      • शहरीकरण: जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है शहरों का विस्तार होता है, जिससे भीड़भाड़ के साथ वायु और जल प्रदूषण होने से परिवहन और आवास की मांग बढ़ सकती है।
      • आर्थिक दबाव: बढ़ती जनसंख्या से श्रम बाज़ार और सामाजिक सेवाओं पर दबाव पड़ सकता है। इसके साथ ही इससे नौकरियों और आवास के लिये प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
      • राजनीतिक अस्थिरता: तीव्र विकास के आलोक में संसाधनों और अवसरों तक सीमित पहुँच वाली आबादी, संघर्ष और सामाजिक अशांति के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती है।
      • स्वास्थ्य चुनौतियाँ: भीड़भाड़, प्रदूषण और स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती मांग से बीमारी फैल सकती है तथा स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बोझ बढ़ सकता है।

    निष्कर्ष:

    वैश्विक जनसंख्या वृद्धि से अवसर और चुनौतियाँ दोनों उत्पन्न होते हैं। विकसित और विकासशील देशों की असंतुलित जनसंख्या संरचना का अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। सतत विकास सुनिश्चित करने, संसाधनों के संरक्षण तथा आर्थिक एवं सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को हल करना महत्त्वपूर्ण है। जनसंख्या वृद्धि के नकारात्मक प्रभावों को संसाधनों, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान देने के साथ-साथ तार्किक योजना एवं प्रबंधन के माध्यम से हल किया जा सकता है। जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को हल करना एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है लेकिन समन्वय के साथ कार्य करके, हम स्वस्थ, सतत और न्यायसंगत विश्व की ओर बढ़ सकते हैं।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • इसकी कार्यप्रणाली, उद्देश्य और मानव विकास में इसके योगदान की चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर गरीबी को मापा जाता है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे गरीबी के कई आयामों को ध्यान में रखा जाता है।
      • स्वास्थ्य: पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर तथा प्रसव पूर्व देखभाल।
      • शिक्षा: स्कूली शिक्षा और स्कूल में उपस्थिति के वर्ष
      • जीवन स्तर: खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाता।
    • प्रसवपूर्व देखभाल और बैंक खाता, भारत के एमपीआई के दो अद्वितीय मानदंड हैं जो वैश्विक एमपीआई में शामिल नहीं हैं।
    • राष्ट्रीय एमपीआई का उद्देश्य वैश्विक एमपीआई रैंकिंग में भारत की स्थिति में सुधार के बड़े लक्ष्य के साथ व्यापक सुधार कार्ययोजनाओं को तैयार करने के लिये वैश्विक मानदंड के आधार पर अनुकूलित, भारत के एमपीआई का विकास करना है।
    • वैश्विक एमपीआई को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल (OPHI) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

    मुख्य भाग:

    • कार्यप्रणाली:
      • राष्ट्रीय एमपीआई के मापन हेतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल (OPHI) द्वारा विकसित एवं विश्व स्तर पर स्वीकृत कार्यप्रणाली का उपयोग किया जाता है।
      • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक की बेसलाइन रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) पर आधारित है, जिसे वर्ष 2015-16 में लागू किया गया था।
    • राष्ट्रीय एमपीआई का उद्देश्य:
      • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) का उद्देश्य भारत में गरीबी की अधिक व्यापक और स्पष्ट समझ प्रदान करना है।
      • गरीबी के पारंपरिक मापनों के विपरीत (जिसमें केवल आय या उपभोग पर विचार किया जाता है), MPI में गरीबी के कई आयामों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को ध्यान में रखा जाता है।
      • यह गरीबी और उसके मूल कारणों की अधिक सूक्ष्म समझ प्रदान करता है और नीति निर्माताओं को गरीबी कम करने के लिये लक्षित और प्रभावी हस्तक्षेपों को करने में सहायता देता है।
      • MPI उन लोगों की पहचान करने में मदद करता है जो कई आयामों में गरीबी का सामना कर रहे हैं तथा जिन्हें सहायता की सबसे अधिक आवश्यकता है।
      • इससे गरीबी कम होने और जीवन स्तर में सुधार होने के संदर्भ में समय के साथ प्रगति पर नज़र रखी जाती है। इसके साथ ही इससे राज्यों और विभिन्न जनसंख्या समूहों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण का आधार मिलता है।
      • एमपीआई, सतत विकास लक्ष्यों और अन्य गरीबी उन्मूलन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति की निगरानी का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।

    मानव विकास पर बल देने के रूप में राष्ट्रीय एमपीआई:

    • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) भारत में मानव विकास की स्थिति के संदर्भ में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
    • इस जानकारी का उपयोग नीति निर्माताओं द्वारा गरीबी को कम करने और सभी भारतीयों के जीवन स्तर में सुधार के लिये लक्षित और प्रभावी नीतियों को डिज़ाइन करने के लिये किया जा सकता है।
    • इसके अलावा समय के साथ इस संदर्भ में होने वाली प्रगति पर नज़र रखने के माध्यम से, MPI द्वारा इन नीतियों की प्रभावशीलता की निगरानी करने में मदद मिलने के साथ यह सुनिश्चित होता है कि उनसे वांछित लाभ प्राप्त हो रहा है।
    • एमपीआई से राज्यों और जनसंख्या समूहों के बीच विश्लेषण हेतु तुलनात्मक आधार भी मिलता है, जिससे साक्ष्य-आधारित नीतियों और कार्यक्रमों के विकास में सहायता मिल सकती है।

    आगे की राह:

    • लक्षित हस्तक्षेप: एमपीआई के निष्कर्षों के आधार पर भारत में विभिन्न जनसंख्या समूहों और क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लक्षित नीतियों को तैयार किया जा सकता है। इन नीतियों में स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार, रोजगार तथा आर्थिक विकास के अवसर पैदा करने एवं जल तथा स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
    • सहयोग और साझेदारी: गरीबी का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये सरकार, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज संगठनों और समुदायों के विभिन्न स्तरों के बीच सहयोग और साझेदारी की आवश्यकता होती है। सरकार प्रभावी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को विकसित और कार्यान्वित करने के लिये इन हितधारकों के साथ काम कर सकती है।
    • निगरानी और मूल्यांकन: गरीबी निवारण कार्यक्रमों की नियमित निगरानी और मूल्यांकन करने के साथ उनके प्रभाव का आकलन करने और इनमें आवश्यकतानुसार समायोजन करने की आवश्यकता है। एमपीआई का उपयोग गरीबी को कम करने और समय के साथ मानव विकास में सुधार की प्रगति को मापने के लिये किया जा सकता है।
    • डेटा और साक्ष्य-आधारित नीतियाँ: गरीबी को कम करने के उद्देश्य से बनने वाली नीतियाँ, सटीक डेटा और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिये। MPI, भारत में मानव विकास की स्थिति में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने के साथ साक्ष्य-आधारित नीतियों और कार्यक्रमों के विकास में सहायक हो सकता है।
    • समावेशन और अधिकारिता: गरीबी को कम करने और मानव विकास में सुधार के लिये समावेशन और सशक्तिकरण महत्त्वपूर्ण हैं। नीतियों और कार्यक्रमों को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये कि सीमांत और वंचित समूह पीछे न छूटे और देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में सभी को समान अवसर प्राप्त हों।

    निष्कर्ष:

    राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI), भारत में गरीबी को मापने का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। यह गरीबी की व्यापक और स्पष्ट समझ प्रदान करता है। MPI उन लोगों की पहचान करने में सहायक है जो कई आयामों में गरीबी का सामना कर रहे हैं तथा उन्हें सहायता की सबसे अधिक आवश्यकता है। MPI गरीबी को कम करने और सभी भारतीयों के जीवन स्तर में सुधार हेतु लक्षित और प्रभावी नीतियों को विकसित करने के क्रम में नीति निर्माताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मानव विकास से निकटता से संबंधित है जो देश के लोगों के कल्याण के क्रम में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

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