प्रारंभिक परीक्षा
विश्व डुगोंग दिवस
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
28 मई को विश्व डुगोंग दिवस पर भारत में डुगोंग की घटती संख्या पर प्रकाश डाला गया। जहाँ प्राकृतिक पर्यावास में केवल 200 डुगोंग बचे हैं, जिससे इनका संरक्षण राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
डुगोंग क्या हैं?
- परिचय: इन्हें “समुद्री गाय” भी कहा जाता है। समुद्री घास पर निर्भर समुद्री स्तनधारी होने के कारण इन्हें “फार्मर ऑफ द सी” उपनाम दिया गया है। ये भारत से संबद्ध जलीय क्षेत्र में पाए जाने वाले एकमात्र शाकाहारी समुद्री स्तनधारी हैं।
- वितरण: डुगोंग पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र तथा भारतीय तटरेखा में मिलते हैं। ये मुख्य रूप से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी और कच्छ की खाड़ी के आसपास के उष्ण जल में मिलते हैं।
- भारतीय जलक्षेत्र में पाक खाड़ी को इनका अंतिम स्थल माना जाता है।
- व्यवहार: डुगोंग एक लंबी आयु वाली प्रजाति है, जो 70 वर्ष तक जीवित रह सकती है। आमतौर पर इन्हें अकेले या जोड़े में देखा जा सकता है। बड़े झुंड ऑस्ट्रेलियाई जल में सामान्य, लेकिन भारत में दुर्लभ हैं।
- डुगोंग नौ से दस वर्ष की आयु में प्रजनन परिपक्वता तक पहुँच जाते हैं और प्रत्येक तीन से पाँच वर्ष में बच्चे को जन्म देते हैं।
- इस धीमे प्रजनन चक्र से इनकी संख्या की अधिकतम वृद्धि दर प्रतिवर्ष लगभग 5% तक सीमित हो जाती है।
- यह (डुगोंग) मैनेटी से निकटता से संबंधित है, लेकिन पूर्णतः समुद्री (मरीन) एवं स्वभाव से अंतर्मुखी होता है।
- मैनेटी: साइरेनिया (Sirenia) समूह के बड़े, शाकाहारी जलीय स्तनधारी (हर्बिवोरस एक्वाटिक मैमल्स) हैं, जो दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और कैरिबियन के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- आहार: डुगोंग समुद्री घास (सीग्रास) की प्रजातियाँ जैसे कि साइमोडोसिया (Cymodocea), हैलोफिला (Halophila), थैलेसिया (Thalassia) और हैलोड्यूल (Halodule) खाते हैं, प्रतिदिन 20-30 किलोग्राम तक उपभोग करते हैं। इनके आहार से समुद्री तल (सीबेड) को हिलाकर सीग्रास के स्वास्थ्य और जैवविविधता (बायोडायवर्सिटी) को बनाए रखने में सहायक होती है।
- संरक्षण स्थिति: डुगोंग को संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में संवेदनशील के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के परिशिष्ट I में डुगोंग या उनके अंगो के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा सख्त सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
- भारत में डुगोंग को वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के अंतर्गत संरक्षित किया गया है।
- भारत वर्ष 1983 से प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS) और वर्ष 2008 से CMS डुगोंग समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षरकर्ता है।
- डुगोंग संरक्षण और CMS कार्यान्वयन के लिये एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
- तमिलनाडु के पाक खाड़ी में वर्ष 2022 में स्थापित डुगोंग संरक्षण रिज़र्व, तंजावुर और पुदुकोट्टई ज़िलों के तटों के साथ लगभग 122 वर्ग किमी समुद्री घास की रक्षा करता है।
- खतरे: आवास स्थल की क्षति एक बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग, भूमि सुधार तथा कृषि अपवाह, सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण के कारण समुद्री घास के मैदान नष्ट हो रहे हैं।
- मशीनीकृत मत्स्यं से डुगोंग के आवास स्थल नष्ट हो गए हैं और इनकी जाल में आकस्मिक रूप से उलझने की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर इन जीवों की जलमग्न होकर मृत्यु हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन ने संवेदनशीलता का एक और स्तर जोड़ दिया है, समुद्र का बढ़ता तापमान, महासागरीय अम्लीकरण, तथा चरम मौसम की घटनाएँ खाद्य उपलब्धता एवं प्रजनन भूमि दोनों को प्रभावित कर रही हैं।
- इनका अवैध शिकार अभी जारी है, विशेषकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में।
- इसके अतिरिक्त, उनकी धीमी प्रजनन प्रक्रिया (9–10 वर्षों में परिपक्व होना और हर 3–5 वर्षों में केवल एक बार प्रजनन करना) उनकी पुनः आबादी बढ़ाने की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर देती है।
- डुगोंग संरक्षण: डुगोंग के संरक्षण के लिये समुद्री घास (Seagrass) के पर्यावासों की सुरक्षा और पुनर्स्थापन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत समुद्री घास के मैदानों का मानचित्रण और निगरानी, हानिकारक गतिविधियों पर नियंत्रण तथा विशेष रूप से स्थानीय मछुआरों के साथ मिलकर सामुदायिक नेतृत्व वाले संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना शामिल है।
- डुगोंग क्षेत्रों में गिल नेट और ट्रॉलिंग जैसी हानिकारक मत्स्यन विधियों को नियंत्रित करने से आकस्मिक क्षति कम हो जाती है।
- नागरिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान द्वारा समर्थित दीर्घकालिक डुगोंग अध्ययनों के लिये अधिक शोध निधि की आवश्यकता है। टैगिंग और ड्रोन जैसी तकनीकें ट्रैकिंग एवं आवास पहचान में सहायता करती हैं।
समुद्री घास/सीग्रास
- समुद्री घास एक जल के भीतर पाई जाने वाली पुष्पीय पौधा है, जिसे समुद्री शैवाल (सीवीड या मैक्रोएल्गी) से भ्रमित नहीं करना चाहिये। आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में वर्गीकृत, समुद्री घास के मैदान समुद्र तल को स्थिर करते हैं, मत्स्य पालन को समर्थन देते हैं, कार्बन का अवशोषण करते हैं और समुद्री जीवन को आश्रय प्रदान करते हैं।
- स्वस्थ समुद्री घास डुगोंग और कछुओं व मछलियों जैसे समुद्री जीवों के लिये अत्यंत आवश्यक होती है।
- नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट द्वारा वर्ष 2022 में किये गए अध्ययन में भारत में 516.59 वर्ग किलोमीटर समुद्री घास के पर्यावासों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक वर्ष प्रति वर्ग किलोमीटर तक 434.9 टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता है।
- भारत के सबसे विस्तृत समुद्री घास के मैदान तमिलनाडु के तट से दूर मन्नार की खाड़ी तथा पाक की खाड़ी में पाए जाते हैं और कुल मिलाकर इनमें समुद्री घास की 13 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं (हिंद महासागर में सबसे अधिक विविधता)।
- लक्षद्वीप और कच्छ में समुद्री घास बिखरी हुई है तथा बंदरगाह गतिविधियों एवं प्रदूषण के कारण खतरे में है। आंध्र प्रदेश और ओडिशा में समुद्री घास के सीमित पर्यावास हैं जो डुगोंग के लिये अनुपयुक्त हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में पाये जाने वाले स्तनधारी 'ड्यूगोंग' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?(2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।
उत्तर: c |
प्रारंभिक परीक्षा
कस्टमाइज़्ड बेस एडिटिंग का पहला सफल प्रयोग
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
अमेरिका में वैज्ञानिकों ने पहली बार एक शिशु में CPS1 की कमी नामक दुर्लभ आनुवंशिक विकार के उपचार के लिये CRISPR आधारित जीन-एडिटिंग चिकित्सा का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
- CPS1 की कमी एक दुर्लभ चयापचयी विकार है,जिसमें यकृत प्रोटीन चयापचय के उपोत्पादों को प्रभावी रूप से संसाधित नहीं कर पाता, जिससे शरीर में अमोनिया का विषाक्त स्तर जमा हो जाता है।
जीन एडिटिंग थेरेपी क्या है?
- परिचय: जीन-एडिटिंग थेरेपी एक चिकित्सीय पद्धति है,जिसमें DNA को सटीक रूप से संशोधित कर आनुवंशिक दोषों को ठीक करने, रोगों का उपचार करने या जैविक कार्यों को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है।
- सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण CRISPR-Cas9 है, जो विशिष्ट जीन को काटने और संपादित करने के लिये आणविक कैंची (molecular scissors ) की तरह कार्य करता है।
- अनुप्रयोग: आनुवंशिक विकारों का उपचार जैसे, सिकल सेल एनीमिया, कैंसर इम्यूनोथेरेपी जैसे, CAR T-सेल थेरेपी और कृषि उपयोग जैसे, सूखा प्रतिरोधी फसलें।
- जीन संपादन के लिये प्रयुक्त उपकरण: CRISPR-Cas9 प्रौद्योगिकी जीन संपादन के लिये एक शक्तिशाली और सटीक उपकरण है, जो वैज्ञानिकों को जीवों के अंदर विशिष्ट स्थानों पर DNA को काटने और संशोधित करने की अनुमति देता है।
- यह दोषपूर्ण DNA का पता लगाने और उसे काटने के लिये गाइड RNA का उपयोग करता है , जिससे वैज्ञानिकों को कोशिकीय मरम्मत के लिये इसे सही अनुक्रम के साथ बदलने में मदद मिलती है।
- TALENs और ZFNs: ट्रांसक्रिप्शन एक्टिवेटर-लाइक इफेक्टर न्यूक्लिऐसिस (TALENs) और ज़िंक फिंगर न्यूक्लिऐसिस (ZFNs) पुरानी प्रौद्योगिकियाँ हैं, जो लक्षित DNA संशोधन की भी अनुमति देती हैं।
बेस एडिटिंग पारंपरिक जीन एडिटिंग से किस प्रकार भिन्न है?
- बेस एडिटिंग: CRISPR-Cas9 के विपरीत, जो DNA में डबल-स्ट्रैंड ब्रेक बनाता है, बेस एडिटिंग दोनों DNA स्ट्रैंड को काटे बिना एक DNA बेस को दूसरे में सीधे, सटीक रूप से परिवर्तित करने की अनुमति देती देता है।
- इससे अनपेक्षित उत्परिवर्तन का जोखिम कम हो जाता है और सटीकता में सुधार होता है।
- क्रियाविधि: बेस एडिटिंग तकनीक एक बेस परिवर्तक एंज़ाइम को Cas9 प्रोटीन के साथ जोड़कर कार्य करती है, जो विशिष्ट आधारों (जैसे दोषपूर्ण साइटोसिन को थाइमिन में बदलना) को परिवर्तित करती है और इस प्रकार आनुवंशिक रोगों के कारण बनने वाले दोषों को ठीक करती है।
- सटीकता: बेस एडिटिंग की तुलना टाइपिंग की गलती को ठीक करने के लिये कैंची और गोंद के स्थान पर पेंसिल इरेज़र का उपयोग करने से की जा सकती है, जिससे अधिक सुरक्षित एवं लक्षित आनुवंशिक सुधार संभव हो जाता है।
- वैज्ञानिकों ने CPS1 की कमी का कारण बनने वाले गलत युग्मित बेस की पहचान की तथा DNA में उसका सटीक पता लगाने और उसे ठीक करने के लिये बेस एडिटर का उपयोग किया।
- इस व्यक्तिगत उपचार ने विषाक्त अमोनिया के संचयन को समाप्त कर दिया, जो बेस एडिटिंग का पहला ज्ञात सफल मानव मामला था।
- वैज्ञानिकों ने CPS1 की कमी का कारण बनने वाले गलत युग्मित बेस की पहचान की तथा DNA में उसका सटीक पता लगाने और उसे ठीक करने के लिये बेस एडिटर का उपयोग किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. प्रायः समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019) (a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आणविक कैंची उत्तर: (a) |
रैपिड फायर
NASA का GRAIL मिशन
स्रोत: द हिंदू
NASA के ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लेबोरेटरी (GRAIL) मिशन ने यह स्पष्ट किया है कि चंद्रमा के समीपवर्ती और दूरवर्ती भागों के बीच उल्लेखनीय अंतर तापमान में भिन्नता, भूपर्पटी की मोटाई और प्राचीन ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण पाए जाते हैं।
- GRAIL मिशन ने चंद्रमा की आंतरिक संरचना का विस्तृत अध्ययन करने और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण में होने वाले परिवर्तनों को मापकर उसकी अब तक की उच्चतम-रिज़ॉल्यूशन वाली गुरुत्वीय मानचित्रण तैयार करने के लिये ‘भाटा और बहाव (Ebb and Flow’ नामक द्वि-अंतरिक्ष यानों का उपयोग किया।
GRAIL मिशन के मुख्य निष्कर्ष:
- ज्वारबंधन (Tidal Locking): चंद्रमा की घूर्णन अवधि और उसकी परिक्रमण अवधि समान होने के कारण उसका एक ही भाग सदैव पृथ्वी की ओर रहता है, जबकि दूसरा भाग स्थायी रूप से पृथ्वी से छिपा रहता है।
- तापमान में भिन्नता: चंद्रमा का समीपवर्ती भाग (जो पृथ्वी की ओर है) अधिक उष्ण, अपेक्षाकृत नरम तथा कभी आंशिक रूप से पिघला हुआ था, जबकि दूरवर्ती भाग (जो पृथ्वी से छिपा है) अधिक शीत है और इसकी भूपर्पटी मोटी होने के कारण मैग्मा के विस्फोट को रोक देती है।
- ज्वालामुखीय इतिहास: चंद्रमा के समीपवर्ती भाग में अंधकारमय लावा मैदान (मारिया) पाए जाते हैं, जबकि दूरवर्ती भाग में भूपर्पटी अधिक मोटी है और वहाँ लावा प्रवाह बहुत कम हुआ है।
- तापीय विषमता (Thermal Asymmetry): अध्ययन में दोनों गोलार्द्धों के बीच 100–200 डिग्री सेल्सियस का तापमान अंतर अनुमानित किया गया। यह भी पाया गया कि चंद्रमा की भूपर्पटी पहले की अपेक्षा अधिक छिद्रयुक्त और पतली है।
- यह प्रक्रिया चंद्रमा के द्विमुखी स्वरूप को समझाने में सहायक है, जिसमें एक भाग उज्ज्वल और अत्यधिक गड्ढेदार है, जबकि दूसरा भाग अंधकारमय तथा समतल दिखाई देता है।"
और पढ़ें: NASA का आर्टेमिस कार्यक्रम
रैपिड फायर
शुगर बोर्ड
स्रोत: द हिंदू
विद्यालयी बच्चों में अत्यधिक चीनी सेवन से उत्पन्न स्वास्थ्य जोखिमों से निपटने के लिये, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने पूरे भारत में 24,000 से अधिक संबद्ध विद्यालयों में 'शुगर बोर्ड' की स्थापना को अनिवार्य कर दिया है।
- 'शुगर बोर्ड' सामान्य पेय पदार्थों और स्नैक्स में चीनी की मात्रा को प्रदर्शित करते हैं, तथा बच्चों को चीनी के चम्मच जैसी सरल, प्रासंगिक तुलनाओं का उपयोग करके उच्च चीनी सेवन के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में शिक्षित करते हैं।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने टाइप-2 मधुमेह में उल्लेखनीय वृद्धि को उजागर करते हुए राज्य बोर्डों सहित सभी स्कूलों से शुगर बोर्ड लागू करने का आग्रह किया है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि भारतीय बच्चे प्रतिदिन की कैलोरी का 13-15% हिस्सा चीनी से प्राप्त करते हैं, जो अनुशंसित 5% सीमा से कहीं अधिक है, जिससे उनके जीवनशैली संबंधी रोगों का जोखिम बढ़ जाता है।
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने अभी तक विद्यालय भोजन और पैकिंग के अगले हिस्से पर लेबलिंग के लिये उच्च वसा, नमक और चीनी (HFSS) मानकों को अंतिम रूप नहीं दिया है।
- भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देशों का पालन करता है, जिसमें वयस्कों और बच्चों को दैनिक ऊर्जा के 10% से कम मुक्त चीनी का सेवन करने की सलाह दी गई है।
- विशेषज्ञ स्थानीय स्तर पर हृदय रोग के उच्च जोखिम को देखते हुए अधिक कड़े मानकों की अनुशंसा करते हैं। उपयुक्त मानक तय करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन आवश्यक है।
रैपिड फायर
एशियाई उत्पादकता संगठन
स्रोत: पी.आई.बी
भारत ने 67वीं गवर्निंग बॉडी मीटिंग (GBM) के दौरान एशियाई उत्पादकता संगठन (APO) की वर्ष 2025–26 अवधि के लिये आधिकारिक रूप से अध्यक्षता संभाली है।
एशियाई उत्पादकता संगठन (APO)
- परिचय: APO एक अंतर-सरकारी निकाय है, जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और इसका मुख्यालय टोक्यो में है।
- इसका उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग और क्षमता निर्माण के माध्यम से उत्पादकता में सुधार करना है।
- यह नीति परामर्श सेवाओं और उद्योग, कृषि, सेवा तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में स्मार्ट पहलों को अपनाकर क्षेत्र के सतत् सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देता है।
- सदस्य एवं संगठनात्मक संरचना: APOकी सदस्यता एशिया-प्रशांत के उन देशों के लिये खुली है, जो एशिया-प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (UN ESCAP) के भी सदस्य हैं।
- UNESCAP एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय विकास शाखा है।
- वर्तमान में इसके 21 सदस्य देश/अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जिनमें भारत (एक संस्थापक सदस्य) भी शामिल है।
- सदस्य देश अपने-अपने राष्ट्रीय उत्पादकता संगठनों (NPO) के माध्यम से सहयोग करते हैं।
- राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (NPC), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है, जिसे भारत के लिये NPO नामित किया गया है।
- APO में शासी निकाय शामिल है, जो सर्वोच्च निर्णय लेने वाला प्राधिकारी है और रणनीतिक दिशा निर्धारित करने तथा निष्पादन की समीक्षा करने के लिये प्रतिवर्ष बैठक करता है।
और पढ़ें: राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद, हिंद-प्रशांत का महत्त्व
रैपिड फायर
विकसित कृषि संकल्प अभियान
स्रोत: डी.डी.
विकसित कृषि संकल्प अभियान एक राष्ट्रव्यापी अभियान है, जिसे भारतीय कृषि के आधुनिकीकरण के लिये वैज्ञानिक प्रसार, स्थायी प्रथाओं और किसान सशक्तीकरण के माध्यम से प्रारंभ किया गया है।
- परिचय: विकसित कृषि संकल्प अभियान वर्ष में दो बार (खरीफ और रबी की बुवाई के पूर्व) आयोजित किया जाता है, ताकि फसल उत्पादन, मृदा स्वास्थ्य और संसाधन प्रबंधन को सुधारने के लिये समय से क्षेत्रीय स्तर पर मार्गदर्शन प्रदान किया जा सके।
- यह अभियान 723 ज़िलों में 65,000 से अधिक गाँवों को शामिल करने का लक्ष्य रखता है और इससे 1.3 करोड़ से अधिक किसानों को सीधेतौर पर जोड़ने की उम्मीद है, ताकि वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों को अपनाने और स्थायी कृषि विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
- यह अभियान विज्ञान-समर्थित, जलवायु सहिष्णु और किसान-केंद्रित कृषि के माध्यम से भारत को बास्केट ऑफ द वर्ल्ड बनाने की दृष्टि से मेल खाता है।
- आयोजक: इस अभियान का आयोजन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), राज्य कृषि विभागों, कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) द्वारा किया जाता है।
- भारत डिजिटल कृषि मिशन, एग्रीस्टैक (किसान ID) और नमो ड्रोन दीदी के माध्यम से प्रौद्योगिकी आधारित कृषि को बढ़ावा देता है।
- किसान सुविधा जैसे ऐप्स और पर ड्रॉप मोर क्रॉप के तहत AI-आधारित सिंचाई कृषि सलाह से जल दक्षता को बढ़ाया जा सकता है।
रैपिड फायर
भारत की पहली जीन-संपादित भेड़
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कश्मीर के शोधकर्ताओं ने ICAR द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना के तहत CRISPR-Cas9 तकनीक का उपयोग करके भारत की पहली जीन-संपादित भेड़ को सफलतापूर्वक विकसित किया है।
- उन्होंने स्थानीय मेरिनो भेड़ में मायोस्टैटिन जीन को संपादित किया, जिससे यूरोपीय टेक्सेल भेड़ की तरह ही मांसपेशियों का द्रव्यमान 30% बढ़ गया। इसमें कोई विदेशी DNA नहीं है, जिससे यह गैर-ट्रांसजेनिक बन गया है।
जीन एडिटिंग
- जीन एडिटिंग (या जीनोम एडिटिंग) एक जैव प्रौद्योगिकी है जो किसी जीव के आनुवंशिक पदार्थ (DNA या RNA) के सटीक संशोधन को सक्षम बनाती है।
- यह वैज्ञानिकों को विशेष उपकरणों का उपयोग करके जीनोम के भीतर विशिष्ट जीन अनुक्रमों को जोड़ने, हटाने या बदलने की अनुमति देता है।
प्रमुख जीन एडिटिंग विधियाँ:
- CRISPR-Cas9: CRISPR-Cas9 (क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स) एक व्यापक रूप से प्रयुक्त जीन एडिटिंग उपकरण है, जिसमें Cas9 एंज़ाइम को एक विशिष्ट DNA अनुक्रम की ओर निर्देशित करने के क्रम में गाइड RNA (gRNA) का उपयोग किया जाता है, जहाँ डबल-स्ट्रैंड कट बनने के बाद कोशिका द्वारा DNA को रिपेयर किये जाने से जीन विलगन या सम्मिलन (Disruption or Insertion) संभव हो पाता है।
- रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार 2020 को जीनोम एडिटिंग की विधि के विकास के लिये इमैनुएल चार्पेंटियर (Emmanuelle Charpentier) और जेनिफर ए डौडना (Jennifer A Doudna) को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था।
- जिंक फिंगर न्यूक्लिऐसिस (ZFN): ZFN कृत्रिम जीन एडिटिंग उपकरण हैं, जो DNA-बाइंडिंग डोमेन (जिंक फिंगर प्रोटीन) और DNA-क्लीविंग डोमेन (FokI एंडोन्यूक्लिऐसिस) से बने होते हैं।
- जिंक फिंगर प्रोटीन को विशिष्ट DNA अनुक्रमों को पहचानने और आबंध के लिये तैयार किया गया है, जबकि फोकी एंज़ाइम लक्ष्य स्थल पर DNA को काटता है।
- जीन नॉकआउट एक आनुवंशिक तकनीक है जिसमें किसी विशिष्ट जीन को जानबूझकर निष्क्रिय करना या हटाना शामिल है ताकि उसका प्रोटीन एक्सप्रेशन बंद हो जाए। यह जीन और बिना जीन वाले जीवों में लक्षणों की तुलना करके जीन फंक्शन का अध्ययन करने में सहायता करता है।
और पढ़ें: जीनोम अनुक्रमण