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कृषि

प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन पर अंकुश लगाना

  • 25 Apr 2024
  • 30 min read

यह एडिटोरियल 24/04/2024 को ‘द हिंदू” में प्रकाशित “Toss out the junk food, bring back the healthy food plate” लेख पर आधारित है। इसमें ‘जंक फूड’ के उपभोग से उत्पन्न चिंताओं को संबोधित किया गया है और स्वस्थ एवं पोषण की दृष्टि से विविध आहार को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ सूचना-संपन्न खाद्य निर्णयों को सुनिश्चित करने के लिये वास्तविक नीतिगत उपायों द्वारा समर्थित ज़मीनी स्तर के आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), उच्च वसा चीनी नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थ, 'ईट राइट स्टेशन' प्रमाणन, खाद्य सुरक्षा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत

मेन्स के लिये:

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और उच्च वसा वाले चीनी नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों के उपभोग के संबंध में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को लेकर चिंताएँ हैं।

कई अन्य देशों की तरह भारत भी एक बड़े ‘पोषण संक्रमण’ (nutrition transition) के दौर से गुज़र रहा है। तेज़ी से बदलते आहार पैटर्न की विशेषता वाले इस संक्रमण में पारंपरिक आहार (जो उच्च फाइबर स्तर रखते थे और जिनमें प्रायः गैर-प्रसंस्करित या ‘होल फूड’ शामिल थे) से हटकर पश्चिमी शैली के आहार (जो प्रसंस्करित होते हैं और उच्च कैलोरी रखते हैं) को अधिक अपनाने के रूप में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। यह परिवर्तन तीव्र आर्थिक प्रगति और शहरीकरण के साथ-साथ पैकेज्ड एवं प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों—जिसे लोकप्रिय रूप से ‘जंक फूड’ (junk foods) कहा जाता है, के उपभोग में वृद्धि के साथ मेल खाता है।

जंक फ़ूड ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें कैलोरी, शर्करा, अस्वास्थ्यकर वसा और नमक की तो उच्च मात्रा पाई जाती है, लेकिन पोषक तत्व कम होते हैं। ये खाद्य पदार्थ प्रायः अत्यधिक प्रसंस्करित होते हैं और इनमें आमतौर पर फाइबर, विटामिन एवं खनिज की मात्रा कम होती है। जंक फूड के उदाहरणों में बर्गर, फ्राइज़ एवं पित्ज़ा जैसे फास्ट फूड आइटम, कुकीज़, कैंडी एवं सोडा जैसे मीठे स्नैक्स और चिप्स एवं प्रेट्ज़ेल जैसे नमकीन स्नैक्स शामिल हैं। नियमित रूप से जंक फूड का सेवन करने से मोटापा, हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह और दंत समस्याओं सहित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। ये खाद्य पदार्थ प्रायः सुगम और स्वादिष्ट होते हैं लेकिन निम्न पोषण मूल्य प्रदान करते हैं।

fact of the FAD

भारत में जंक फूड/फास्ट फूड से संबद्ध विभिन्न चिंताएँ:

  • HFSS खाद्य के रूप में वर्गीकृत:
    • जंक फूड को वसा, नमक एवं शर्करा में उच्च (High in Fats, Salts and Sugars- HFSS) खाद्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वैज्ञानिक प्रमाण पुष्टि करते हैं कि जंक फूड चिकित्सकीय रूप से संक्रमण के विरुद्ध शरीर की प्रतिरक्षा को कमज़ोर करने, रक्तचाप बढ़ाने, रक्त शर्करा में वृद्धि करने, वजन बढ़ने और कैंसर के खतरे को बढ़ाने में योगदान करते हैं। 
    • भारत में इन्हें प्रायः कम्फर्ट फूड (comfort foods) के रूप में पैक किया जाता है और इसके उदाहरणों में कुकीज़, केक, चिप्स, नमकीन, इंस्टेंट नूडल्स, शर्करा पेय, फ्रोज़ेन खाद्य, डिब्बाबंद फल, भारतीय मिठाई एवं बेकरी उत्पाद शामिल हैं। कम्फर्ट फूड उन खाद्य पदार्थों को कहा जाता है जो तृप्ति प्रदान करते हैं, जिन्हें खाकर ख़ुशी मिलती है, जो प्रायः हल्के-फुल्के आहार के रूप में ग्रहण किये जाते हैं, लेकिन प्रायः जिनका पोषक मूल्य कम होता है। 
  • जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों में उल्लेखनीय वृद्धि:
    • इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि भारत जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के विस्फोट का सामना कर रहा है, जहाँ अस्वास्थ्यकर आहार इसके सबसे बड़े योगदानकर्ता कारकों में से एक है।
    • स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बोझ की भयावहता के परिप्रेक्ष्य में देखें तो वर्ष 2023 में प्रकाशित भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के एक अध्ययन का अनुमान है कि भारत में चयापचय संबंधी विकारों का प्रसार बहुत अधिक है, जहाँ 11% लोगों को मधुमेह है, 35% को उच्च रक्तचाप है और लगभग 40% पेट के मोटापे से पीड़ित हैं।

Consequences_of_Eating_Junk_Food

  • आक्रामक विज्ञापन के प्रभाव:
    • भारतीयों की बढ़ती आहार संबंधी आदतों का विश्लेषण करते समय एक महत्त्वपूर्ण विचारणीय कारक आक्रामक विज्ञापन का प्रभाव है जो ‘स्वादिष्ट’ एवं ‘सस्ते’ कम्फर्ट फूड को बढ़ावा देता है जहाँ विशेष रूप से युवा उपभोक्ताओं को लक्षित किया जाता है।
      • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा किये गए एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार 93% बच्चों ने डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ और 68% ने डिब्बाबंद मीठे पेय पदार्थ का सेवन सप्ताह में एक से अधिक बार किया था, जबकि 53% ने इन उत्पादों का सेवन दिन में कम से कम एक बार अवश्य किया था। 
    • भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य उद्योग वर्ष 2011 और 2021 के बीच 13.37% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से विस्तारित हुआ है। इसके अलावा, भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के वर्ष 2025-26 तक 535 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो जाने का अनुमान है।
  • ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Glycemic Index- GI) और ग्लाइसेमिक लोड (Glycemic Load- GL) का उच्च स्तर:
    • आहार के GI एवं GL के बढ़ते महत्त्व का समर्थन करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। हाल ही में उच्च स्तर वाले GI एवं GL आहार और टाइप 2 मधुमेह के खतरे के बीच के संबंध को स्थापित किया गया है। हालाँकि, जो अभी कम ज्ञात है वह हृदय रोग और मृत्यु दर के साथ उच्च GI आहार का संबंध है।
      • उच्च GI वाले आहार में चीनी एवं मिठाइयाँ, सफ़ेद चावल, मैदा, आलू, सफ़ेद ब्रेड, मीठे पेय, गुड़ और कुकीज़ शामिल हैं। यह विशेष रूप से भारत और दक्षिण एशिया के लिये प्रासंगिक है जहाँ उच्च GI वाले सफ़ेद चावल या गेहूँ के रूप में कार्बोहाइड्रेट का सेवन कैलोरी के एक बड़े भाग का निर्माण करता है, जिससे हमारे आहार का GL अत्यधिक उच्च हो जाता है।

ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) और ग्लाइसेमिक लोड (GL):

  • ‘ग्लाइसेमिक इंडेक्स’ की अवधारणा पहली बार वर्ष 1981 में टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड जेनकिंस (David Jenkins) द्वारा प्रस्तावित की गई थी। किसी खाद्य का ग्लाइसेमिक इंडेक्स रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकने के किसी खाद्य के गुण को संदर्भित करता है और यह कार्बोहाइड्रेट की ‘गुणवत्ता’ की एक माप है।
  • तुलनित्र (comparator) के रूप में ग्लूकोज या सफ़ेद ब्रेड का उपयोग किया जाता है। ग्लूकोज के GI को 100 के रूप में लिया जाता है और अन्य खाद्य पदार्थों का GI इसके प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • इस प्रकार, खाद्य पदार्थों के GI को निम्न GI (55 से कम), मध्यम GI (56- 69) और उच्च GI (70 से अधिक) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। GI को उपभोग किये गए कार्बोहाइड्रेट की मात्रा से गुणा करने पर ग्लाइसेमिक लोड (GL) निर्धारित होता है ।

शर्करा कंटेंट का विनियमन:

  • FSSAI ने अपने खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन एवं दावे) विनियम 2018 में कहा है कि यदि किसी उत्पाद में कुल शर्करा 5 ग्राम प्रति 100 ग्राम से कम है, तभी वह ‘निम्न शर्करायुक्त’ होने का दावा कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने प्रतिदिन 25 ग्राम या छह चम्मच शर्करा उपभोग की सीमा तय की है।
  • प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ के निर्माण में ‘माल्टिंग’ की प्रक्रिया:
    • एडेड शुगर के अलावा, माल्टिंग (malting) की प्रक्रिया (जिसमें अनाज को अंकुरित करना, सुखाना, भूनना और उसका पाउडर बनाना शामिल है) से भी शर्करा उत्पन्न होती है। माल्टिंग की प्रक्रिया का उपयोग मूल रूप से सिंगल माल्ट व्हिस्की का उत्पादन करने के लिये किया जाता था और इसका उपयोग माल्ट-बेस्ड मिल्क बेवरीज बनाने में भी किया जाता है। विभिन्न चॉकलेट पाउडर में एडेड शुगर के अलावा माल्टोडेक्सट्रिन, लिक्विड ग्लूकोज, अनाज की माल्टिंग प्रक्रिया से उत्पन्न माल्टोज़ आदि भी शामिल होते हैं।
  • ‘प्रसंस्करित शिशु आहार’ के कारण चिंताएँ:
    • एक से दो वर्ष के शिशु को नेस्ले (Nestle) जैसी कंपनियाँ हर दिन बारह स्कूप या 100 ग्राम शिशु आहार (जैसे सेरेलैक) खिलाने की सलाह देती हैं। इसका अर्थ है कि शिशु प्रतिदिन 24 ग्राम शर्करा ग्रहण करता है। शिशु के आहार में अतिरिक्त शर्करा बच्चे के अग्न्याशय (pancreas) पर अनावश्यक दबाव बनाती है, जिससे अतिरिक्त इंसुलिन का उत्पादन होता है जिससे भविष्य में उनमें मधुमेह एवं मोटापा उत्पन्न हो सकता है।
      • खाद्य के स्वाद और रूप में सुधार के लिये माल्टोडेक्सट्रिन जैसी सामग्री मिलाना हानिकारक है क्योंकि माल्टोडेक्सट्रिन के सफ़ेद स्टार्च पाउडर में सामान्य चीनी की तुलना में अधिक ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) होता है। अतिरिक्त शर्करा ट्राइग्लिसराइड्स में रूपांतरित हो जाती है, जो वसा का एक रूप है जो लीवर में जमा हो जाता है। इससे फैटी लीवर और इंसुलिन प्रतिरोध की स्थिति उत्पन्न होती है जो मधुमेह का कारण बनती है।
  • HFSS खाद्य पदार्थों के लिये सटीक परिभाषा का अभाव:
    • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने HFSS खाद्य पदार्थों के उपभोग को सीमित करने के लिये विनियमन जारी किये हैं। हालाँकि, वर्तमान में यह परिभाषित करने या पहचान करने की कोई स्पष्ट विधि मौजूद नहीं है कि कौन-से खाद्य पदार्थ विशेष रूप से HFSS खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आते हैं। सटीक परिभाषा या पहचान प्रक्रिया की कमी इन अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के उपभोग को प्रभावी ढंग से विनियमित करने में एक चुनौती पैदा करती है।
  • FSSAI द्वारा रेटिंग स्टार्स का उपयोग, वार्निंग लेबल का नहीं:
    • सितंबर 2022 में FSSAI ने एक मसौदा अधिसूचना जारी की, जिसमें यह बताया गया कि HFSS खाद्य में क्या शामिल होगा और खाद्य पैकेट या पेय की बोतल की सामने की लेबलिंग पर उपभोक्ताओं को इसके बारे में किस प्रकार चेतावनी दी जाए।
    • इसमें कहा गया कि यदि कोई उत्पाद शर्करा और/या संतृप्त वसा से कुल ऊर्जा (किलो कैलोरी) का 10% से अधिक प्राप्त करता है तो उत्पाद में वसा और/या शर्करा की मात्रा उच्च मानी जाएगी। हालाँकि, FSSAI ने इस विनियमन में स्पष्ट नहीं किया है कि कंपनियों द्वारा पैक के सामने की लेबलिंग में वसा, शर्करा एवं नमक की मात्रा घोषित करने की आवश्यकता है या नहीं।
      • इसके अलावा, इसने ‘रेटिंग स्टार्स’ का उपयोग किया है, न कि वार्निंग लेबल का। उल्लेखनीय है कि वार्निंग लेबल सामने मौजूद होते हैं और उपभोक्ताओं को सूचित करते हैं यदि किसी उत्पाद में वसा, नमक या शर्करा की मात्रा अधिक है। इस दृष्टिकोण से रेटिंग स्टार्स भ्रामक सिद्ध हो सकते हैं।
  • स्टार रेटिंग सिस्टम से बचना:
    • भारतीय पोषण रेटिंग (Indian Nutrition Rating- INR), जहाँ पैकेज्ड खाद्य उत्पादों को उत्पाद की समग्र पोषण प्रोफ़ाइल के आधार पर स्टार रेटिंग दी जाएगी, को वास्तव में खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग एवं डिस्प्ले) संशोधन विनियमन 2022 के नवीनतम मसौदे में शामिल किया गया है। 
    • इससे कई चिंताएँ संबद्ध हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि स्टार रेटिंग से निर्माताओं को बचने का एक स्पष्ट रास्ता मिल जाएगा।
      • वे समग्र स्टार रेटिंग बढ़ाने के लिये एक या दो स्वस्थ घटकों का योग कर सकते हैं, जबकि उनका उत्पाद अस्वास्थ्यकर ही होगा जिनमें वसा, शर्करा एवं नमक की खतरनाक रूप से उच्च मात्रा मौजूद होगी।
      • इसके अलावा, विनियमनों की अंतिम अधिसूचना की तिथि से चार वर्ष की अवधि तक के लिये ये विनियमन स्वैच्छिक रखे गए हैं।

HFSS खाद्य पदार्थों से संबद्ध चिंताओं को दूर करने के विभिन्न उपाय:

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • वर्ष 2013 का सर्वोच्च न्यायालय का एक निर्णय संवैधानिक रूप से सुदृढ़ शुरुआत की पेशकश करता है। निर्णय में न्यायालय ने इस बात पर बल दिया था कि कोई भी खाद्य पदार्थ जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरनाक या हानिकारक है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के मूल अधिकार के लिये संभावित खतरा है।

ईट राइट इंडिया (Eat Right India):

  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की प्रस्तावना में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) से भारत में लोगों के लिये सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित करने की अपेक्षा की गई है।
  • इसलिये, FSSAI ने ईट राइट इंडिया आंदोलन के माध्यम से सभी भारतीयों के लिये सुरक्षित, स्वस्थ एवं संवहनीय खाद्य सुनिश्चित करने के लिये देश की खाद्य प्रणाली को रूपांतरित करने के लिये बड़े पैमाने पर प्रयास शुरू किया है। ‘सही भोजन, बेहतर जीवन’ का टैगलाइन इस आंदोलन की नींव का निर्माण करता है।
    • ईट राइट इंडिया यह सुनिश्चित करने के लिये नियामक उपाय, क्षमता निर्माण और सहयोगात्मक एवं सशक्तिकरण दृष्टिकोण का एक विवेकपूर्ण मिश्रण अपनाता है कि हमारा खाद्य लोगों और पृथ्वी दोनों के लिये अच्छा हो।
    • इसके अलावा, यह सभी हितधारकों—सरकार, खाद्य व्यवसायों, नागरिक समाज संगठनों, विशेषज्ञ एवं पेशेवरों, विकास एजेंसियों और बड़े पैमाने पर नागरिकों की सामूहिक कार्रवाई पर आधारित है।

Eat_Right_India

  • FSSAI विनियमनों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना:
    • चूँकि बच्चे अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के विज्ञापन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिये FSSAI ने खाद्य सुरक्षा और मानक (स्कूली बच्चों के लिये सुरक्षित खाद्य और संतुलित आहार) विनियमन, 2020 जारी किया, जहाँ स्कूल कैंटीन/मेस परिसर/छात्रावास रसोई में या स्कूल परिसर के 50 मीटर के दायरे में HFSS खाद्य पदार्थों की बिक्री को प्रतिबंधित किया गया है। 
      • हाल ही में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) ने एक स्वास्थ्य पेय कंपनी को उन सभी भ्रामक विज्ञापनों, पैकेजिंग एवं लेबलों का मूल्यांकन करने और उन्हें वापस लेने के लिये नोटिस जारी किया, जो उत्पाद को ‘हेल्थ ड्रिंक’ के रूप में ब्रांड करते हैं। इसके लिये उत्पाद की उच्च शर्करा सामग्री का हवाला दिया गया जो बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। सभी कंपनियों द्वारा इस विनियमन का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

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  • FSSAI विनियमन पर पुनर्विचार:
    • खाद्य सुरक्षा और मानक (नवजात पोषण के लिये खाद्य पदार्थ) विनियमन, 2019 के अनुसार, दुग्ध अनाज आधारित पूरक आहार में शर्करा की अनुमति दी गई है। विनियमन कहता है कि लैक्टोज और ग्लूकोज पॉलिमर को खाद्य एवं नवजात पोषण के लिये अधिमान्य कार्बोहाइड्रेट माना जाएगा।
      • यह भी कहा गया है कि नवजात खाद्य में सुक्रोज और/या फ्रुक्टोज नहीं मिलाया जाएगा, जब तक कि कार्बोहाइड्रेट स्रोत के रूप में यह आवश्यक न हो और शर्त यह है कि इनका योग कुल कार्बोहाइड्रेट के 20% से अधिक न हो। चूँकि विनियमन में शर्करा की अनुमति दी गई है, इसलिये इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • एक व्यापक कानून की आवश्यकता:
    • पहला कदम यह होगा कि ‘स्वास्थ्यकर’ और ‘अस्वास्थ्यकर’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के लिये एक व्यापक विनियमन लाया जाए, जिसके दायरे में सभी पेय पदार्थ और खाद्य उत्पाद शामिल हों। सामने की पैक लेबलिंग और HFSS खाद्य पदार्थों के बारे में पहले से ही मसौदा अधिसूचना मौजूद है जिस पर सभी हितधारकों से टिप्पणियाँ प्राप्त हुई हैं, लेकिन इसे अभी भी लागू नहीं किया गया है। इसे विधायी समर्थन दिए जाने की आवश्यकता है।
  • अस्वास्थ्यकर उत्पादों के निर्बाध विपणन को रोकना:
    • अंतर्निहित समस्या विपणन और इसे संदेह नहीं रखने वाले उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की है। इसके अलावा, शिशु दुग्ध अनुकल्प अधिनियम के तहत शिशु आहार को विज्ञापनों के माध्यम से प्रचारित नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, इन नियमों का उल्लंघन किया जाता है और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स प्रायः शिशु आहार का प्रचार करते दीखते हैं। ऐसे अवैध विज्ञापनों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की ज़रूरत है।
  • स्थानीय और मौसमी फलों एवं सब्जियों को बढ़ावा देना:
    • इसके तहत जंक फूड के स्वास्थ्य प्रभावों पर मल्टीमीडिया संदेश प्रसारित करना, ‘वोकल फॉर लोकल’ पर आधारित अभियानों को बढ़ावा देना (जो स्थानीय और मौसमी फलों एवं सब्जियों तथा मोटे अनाज (millets) जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देते हैं) और संतुलित आहार पर इंटरैक्टिव चर्चाओं तथा जंक फूड के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में मुख्यधारा के संवाद के लिये सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को शामिल हो सकता है।
  • नीतिगत मंशा को सार्थक परिवर्तन में बदलने की कुंजी के रूप में चार रणनीतियाँ:
    • सर्वप्रथम, सरकार के लिये एक अच्छा आरंभिक बिंदु यह होगा कि बच्चों को जंक फूड के हानिकारक प्रभाव से बचाए।
      • इस प्रकार, यह आवश्यक है कि FSSAI आगे बढ़ते हुए भारतीय संदर्भ में वास्तविक HFSS खाद्य पदार्थों को ‘परिभाषित’ करे, जो फिर खाद्य सुरक्षा विनियमनों के बेहतर कार्यान्वयन को सक्षम बना सकता है।
    • दूसरा, फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) एक आसानी से प्राप्त हो सकने वाला परिणाम है जो उपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों के बारे में सूचित विकल्प चुनने में सक्षम बना सकता है।
      • वर्तमान में खाद्य पैकेट के पीछे छोटे प्रिंट में पोषण तालिका प्रदर्शित की जाती है, जिसे बहुत से लोग न तो ध्यान से देखते हैं और न ही समझ पाते हैं।
        • एक विकल्प के रूप में ‘हाई इन सॉल्ट’ जैसे ‘वार्निंग लेबल’ को सामने के हिस्से में प्रदर्शित करना अधिक सार्थक होगा जो उच्च रक्तचाप रखने वाले लोगों को त्वरित रूप से सतर्क कर सकता है।
    • तीसरा, गैर-प्रसंस्करित या संपूर्ण खाद्य पदार्थ (whole foods), मोटे अनाज, फल एवं सब्जियों जैसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिये सकारात्मक सब्सिडी प्रदान करने हेतु नीतियाँ विकसित की जा सकती हैं, जिससे उनकी उपलब्धता एवं वहनीयता में सुधार होगा और इस प्रकार ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में उनका उपभोग बढ़ेगा।
      • नीति निर्माताओं के लिये चुनौती यह है कि किसी फल को 5 रुपए वाले उच्च नमक-युक्त चिप्स के पैकेट या 2 रुपए के उच्च शर्करा-युक्त बिस्किट से सस्ता कैसे बनाया जाए।
    • चौथा, नीतियों के अलावा, बच्चों और युवा वयस्कों को समान रूप से लक्षित करने वाला एक व्यवहार परिवर्तन अभियान चलाया जाना चाहिये को युवा आबादी को स्वस्थ आहार आदतों और विवेकपूर्ण खाद्य ग्रहण अभ्यासों को अपनाने में मदद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

निष्कर्ष:

स्वस्थ आहार की ओर आगे बढ़ने और इसकी सार्वजनिक मांग पैदा करने की तात्कालिकता को चिह्नित करना या जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि स्वस्थ एवं पोषण की दृष्टि से विविध आहार के लिये ‘जन आंदोलन’ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन प्रयासों के साथ गंभीर नीतिगत हस्तक्षेप भी किया जाना चाहिये जो भारतीयों को सूचना-संपन्न खाद्य विकल्प चुनने के अपने अधिकार का उपयोग करने में मदद करे।

पोषक तत्वों, फाइबर और आवश्यक विटामिन से भरपूर संपूर्ण, न्यूनतम प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों का चयन कर लोग आमतौर पर प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले अस्वास्थ्यकर योजक, अत्यधिक शर्करा एवं परिष्कृत अनाज का सेवन कम कर सकते हैं। यह अग्रसक्रिय दृष्टिकोण न केवल बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य का समर्थन करेगा, बल्कि मानसिक स्पष्टता और संवहनीय ऊर्जा स्तर को भी बढ़ावा देगा।

अभ्यास प्रश्न: स्वास्थ्य पर प्रसंस्करित और वसा, नमक एवं शर्करा में उच्च (HFSS) खाद्य पदार्थों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये तथा उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये नीतिगत उपायों का प्रस्ताव कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. बाज़ार में बिकने वाला ऐस्परटेम कृत्रिम मधुरक है। यह ऐमीनो अम्लों से बना होता है और अन्य ऐमीनो अम्लों के समान ही कैलोरी प्रदान करता है। फिर भी यह भोज्य पदार्थों में कम कैलोरी मधुरक के रूप में इस्तेमाल होता है। उसके इस्तेमाल का क्या आधार है? (2011) 

(a) ऐस्परटेम सामान्य चीनी जितना ही मीठा होता है, किंतु चीनी के विपरीत यह मानव शरीर में आवश्यक एन्जाइमों के अभाव के कारण शीघ्र ऑक्सीकृत नहीं हो पाता है।
(b) जब ऐस्परटेम आहार प्रसंस्करण में प्रयुक्त होता है, तब उसका मीठा स्वाद तो बना रहता है किंतु यह ऑक्सीकरण-प्रतिरोधी हो जाता है।
(c) ऐस्परटेम चीनी जितना ही मीठा होता है, किंतु शरीर में अंतर्गहण होने के बाद यह कुछ ऐसे मेटाबोलाइट्स में परिवर्तित हो जाता है जो कोई कैलोरी नहीं देते हैं।
(d) ऐस्परटेम सामान्य चीनी से कई गुना अधिक मीठा होता है, अतः थोड़े से ऐस्परटेम में बने भोज्य पदार्थ ऑक्सीकृत होने पर कम कैलोरी प्रदान करते हैं।

उत्तर: (d)

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