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डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

  • 13 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, किशोर न्याय अधिनियम, 2015,

मेन्स के लिये:

भारत में बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु संवैधानिक प्रावधान, बाल देखभाल गृहों के संदर्भ में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय’ (Supreme Court) द्वारा आठ राज्यों के बाल देखभाल गृहों/केयर होम्स (Care Homes) में रहने वाले बच्चों को तत्काल उनके परिवारों को प्रत्यावर्तन/सौंपने से संबंधित  अपने अनुरोध पर ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (National Commission for Protection of Child Rights-NCPCR) से प्रतिक्रिया मांगी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रत्यावर्तन अनुरोध (Repatriation Request): बाल प्रत्यावर्तन के संबंध में NCPCR द्वारा तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मिज़ोरम, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र एवं मेघालय राज्य से सिफारिश की गई थी।
    • इन राज्यों में संयुक्त रूप से 1.84 लाख बच्चे बाल देखभाल गृहों में हैं।
    • इन  देखभाल गृहों में 70% से अधिक बच्चों को रखने की क्षमता है।
  • न्यायिक सक्रियता:  देश भर में महामारी के दौरान देखभाल गृहों में रखे गए बच्चों की स्थिति और कल्याण के निरीक्षण के लिये अदालत द्वारा सुओ-मोटो (Suo Motu) के तहत निगरानी की जा रही है।
    • नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने एवं संविधान के संरक्षण के लिये न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका, जो कि कार्यकारी या विधायी क्षेत्र में भी न्यायिक सक्रियता के रूप में जानी जाती है।
    • न्यायालय द्वारा सवाल तलब किया गया है कि क्या NCPCR बच्चों के माता-पिता की सहमति एवं उनकी वित्तीय स्थिति पर विचार किये बिना बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा के संबंध में राज्यों को इस प्रकार के सामान्य निर्देश जारी कर सकता है?
  • व्यक्तिगत आधार पर:  बच्चे की सुरक्षा के लिये प्रत्यावर्तन को व्यक्तिगत आधार  माना जाना चाहिये।
    • एमिकस क्यूरिया (Amicus Curiae) जिसे ‘न्यायालय के सहयोगी’ के रूप में देखा जाता है  तथा जो कानून या तथ्यों के बारे में एक सहायक के तौर पर अदालत को सलाह देता है, के अनुसार चूँकि महामारी एक बच्चे को घरेलू दुर्व्यवहार या हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है, अत: NCPCR द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के ज़रिये किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act of 2015) का उल्लंघन किया गया है।
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम [The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act] व्यापक रूप से बच्चों को कानूनी विवादों से संरक्षण प्रदान करता है, यह बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा के लिये आवश्यक है।
    • शक्तियों के प्रयोग एवं किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा के संबंध में समितियों को कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिये अधिनियम की धारा 27 (1) के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले के लिये आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ‘बाल कल्याण समितियों’ (Child Welfare Committees-CWCs) का गठन किये जाने का प्रावधान किया गया है।
  • NCPCR का रुख: NCPCR द्वारा बच्चों के विकास के लिये उन्हें पारिवारिक वातावरण प्रदान किये जाने की आवश्यकता का सुझाव दिया गया है ।
    • इसके अलावा अदालत द्वारा अप्रैल 2020 के आदेश में जुवेनाईल ऑथोरिटी (Juvenile Authorities) को निर्देशित करते हुए कहा गया कि वे इस बात पर अच्छी तरह से विचार करें कि क्या बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य एवं सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें बाल देखभाल संस्थानों में रखा जाना चाहिये।
  • बाल देखभाल गृह: जिन बच्चों को बाल देखभाल गृह/चाइल्ड केयर होम में रखा जा रहा है, उनमें न केवल अनाथ/परित्यक्त बच्चे बल्कि दलित/आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से आने वाले बच्चे भी शामिल होते हैं।
    • इस प्रकार अगर कोई बच्चा जो या तो एकल माता-पिता द्वारा लाया गया है या ऐसे परिवार से है जो बच्चे की ठीक से परवरिश करने में सक्षम नहीं है,  वह देखभाल गृह की सभी सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर सकता है।
    • बच्चों के लिये व्यक्तिगत बिस्तर, उचित पोषण और आहार, खिलौने, स्वच्छता तथा सीसीआई /होम्स के रखरखाव, पर्याप्त पानी, स्वास्थ्य जाँच, उम्र के आधार पर शैक्षिक सुविधाएँ और बच्चे की विशेष आवश्यकताओं के लिये सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
    • इन देखभाल गृहों में सभी बच्चों को पास के सरकारी स्कूलों में पढ़ना आवश्यक है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग:

  • NCPCR का गठन मार्च 2007 में ‘कमीशंस फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (Commissions for Protection of Child Rights- CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया है।
  • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।
  • आयोग का अधिदेश (mandate) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान में निहित बाल अधिकार के प्रावधानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकारों के अनुरूप भी हों।
  • यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009(Right to Education Act, 2009) के तहत एक बच्चे के लिये मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
  • यह लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 [ Protection of Children from Sexual Offences(POCSO) Act, 2012] के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

आगे की राह:

  • व्यक्तिगत मामलों को प्रत्यावर्तन  के आधार पर शुरू करना इस संदर्भ में एक उचित कदम/पहल है, इसके साथ ही उचित सुविधाओं के संबंध में बाल देखभाल संस्थानों की आवश्यक निगरानी की जानी चाहिये ।
  • बाल देखभाल गृहों के कर्मचारियों के प्रशिक्षण में संवेदनशीलता के मुद्दों को भी शामिल किया जा सकता है ताकि वे बच्चों की ज़रूरतों को समझ सकें।

स्रोत: द हिंदू

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