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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हिंद प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व

  • 29 Sep 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर, व्यापक रणनीतिक साझेदारी, पेरिस शांति समझौता

मेन्स के लिये:

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के आगमन का चीन की तुलना में प्रमुख एशियाई देशों और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति की वियतनाम यात्रा के दौरान वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में एक नए चरण का प्रतीक है।

  • दोनों देशों ने वर्ष 2013 में बनी व्यापक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया।

अमेरिका और वियतनाम के संबंधों का इतिहास:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम के बीच संबंधों का इतिहास जटिल है, इसे समझने के लिये सबसे अच्छा दृष्टांत वर्ष 1955 से 1975 तक चला वियतनाम युद्ध है। यह संघर्ष शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न हुआ जब सोवियत संघ तथा चीन द्वारा समर्थित उत्तरी वियतनाम ने दक्षिण वियतनाम के साथ पुनः एकजुट होने की मांग की, इस मांग का संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी सहयोगी देशों द्वारा समर्थन किया गया था। 
    • युद्ध के परिणामस्वरूप वियतनाम में जानमाल की भारी क्षति हुई और व्यापक विनाश हुआ तथा अमेरिकी समाज पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
  • वर्ष 1975 में उत्तरी वियतनामी सेना के हाथों साइगॉन के पतन के साथ युद्ध समाप्त हो गया, जिससे कम्युनिस्ट नियंत्रण के तहत वियतनाम का विलय हुआ। यह अमेरिका-वियतनाम संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
  • वर्ष 1995 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने वियतनाम के साथ राजनयिक संबंधों को सामान्यीकृत किया और तब से दोनों देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग तथा आदान-प्रदान में काफी वृद्धि हुई है।
  • वियतनाम युद्ध उनके इतिहास का एक प्रमुख हिस्सा बना हुआ है, साथ ही वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम के बीच व्यापार, सुरक्षा सहयोग तथा समान क्षेत्रीय चुनौतियों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हुए अधिक सकारात्मक व रचनात्मक संबंध स्थापित हुए हैं

हिंद-प्रशांत क्षेत्र:

  • परिचय:
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र एक हाल में विकसित हुई अवधारणा है। लगभग एक दशक पहले की बात है जब विश्व ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बारे में जानना-समझना शुरू किया था, इसकी लोकप्रियता और महत्त्व की वृद्धि प्रमुख रही है।
    • इस शब्द की लोकप्रियता के पीछे एक कारण एक सार्वभौमिक समझ है जो बताता है कि भारतीय और प्रशांत महासागर एक संबद्ध रणनीतिक मंच हैं।
    • प्रत्येक राष्ट्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अवधारणा के विषय में अपने लाभ एवं चिंताओं के अनुरूप समझ रखता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कोई पूर्ण अवधारणाभौगोलिक सीमाएँ नहीं हैं।
  • वर्तमान संदर्भ:
    • हिंद प्रशांत क्षेत्र विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका।
    • इस क्षेत्र की गतिशीलता और जीवन शक्ति से पूरा विश्व अवगत है, विश्व की 60% आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 2/3 हिस्सा इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक केंद्र बनाता है।
  • हिंद-प्रशांत पर भारत का परिप्रेक्ष्य:
    • सुरक्षा संरचना के लिये दूसरों के साथ सहयोग करना: भारत के कई विशेष साझेदार, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया मूल रूप से चीन का मुकाबला करने के लिये दक्षिण-चीन सागर तथा पूर्वी-चीन सागर में भारत की उपस्थिति चाहते हैं।
      • हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा तंत्र के लिये सहयोग करना चाहता है। समान समृद्धि और सुरक्षा के लिये देशों को वार्त्ता के माध्यम से क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है।
    • व्यापार और निवेश में समान हिस्सेदारी: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित, खुले, संतुलित और स्थिर व्यापरिक माहौल का समर्थन करता है, जो व्यापार तथा निवेश के मामले में सभी देशों को ऊपर उठाता है।
  • वियतनाम जैसे आसियान (ASEAN) देशों के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व:
    • एकीकृत आसियान: चीन के विपरीत भारत एक एकीकृत आसियान चाहता है, विभाजित नहीं। चीन कुछ आसियान सदस्यों को दूसरों के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास करता है, जिससे 'फूट डालो और राज करो' की रणनीति को लागू किया जा सके।
    • चीन के साथ सहयोगपूर्ण कार्य: आसियान हिंद-प्रशांत के अमेरिकी संस्करण का अनुपालन नहीं करता है, जो चीनी प्रभुत्व को नियंत्रित करना चाहता है। आसियान उन तरीकों की तलाश कर रहा है जिनके माध्यम से वह चीन के साथ मिलकर कार्य कर सके।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व:

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र अफ्रीका से अमेरिका तक फैला हुआ है: 
    • अमेरिका के लिये हिंद-प्रशांत एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी क्षेत्र का प्रतीक है। इसमें विश्व के सभी राष्ट्र और इसमें हिस्सेदारी रखने वाले अन्य देश शामिल हैं।
    • अपने भौगोलिक आयाम में अमेरिका अफ्रीका के तटों से लेकर अमेरिका के तटों तक के क्षेत्र को मानता है।
  • एकल प्रतिभागी के प्रभुत्व के विरुद्ध: 
    • भारत इस क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना चाहता है। पहले इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभुत्त्व हुआ करता था। हालाँकि यह भय अभी भी मौज़ूद है कि इस क्षेत्र में अब चीन का प्रभुत्त्व हो जाएगा। भारत की तरह अमेरिका भी इस क्षेत्र में किसी भी प्रतिभागी का आधिपत्य नहीं चाहता।
  • भू-राजनीतिक महत्त्व:
    • हिंद प्रशांत क्षेत्र भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया सहित विश्व के कुछ सबसे अधिक आबादी वाले तथा आर्थिक रूप से गतिशील देशों का आवास स्थान है।
      • आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का यह संकेंद्रण इसे वैश्विक भू-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनाता है।
  • आर्थिक महत्त्व:
    • यह क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है। इसमें प्रमुख समुद्री व्यापार मार्ग शामिल हैं, जैसे कि मलक्का जलडमरूमध्य, जिसके माध्यम से विश्व के व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्रवाहित होता है।
      • विश्व के कई सबसे व्यस्त और सबसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाह हिंद प्रशांत में स्थित हैं, जो एशिया, यूरोप एवं अफ्रीका के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाते हैं।
  • सुरक्षा और सामरिक चिंताएँ:
    • हिंद प्रशांत प्रमुख शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और रूस के बीच बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र है। परमाणु-सशस्त्र राज्यों की उपस्थिति और दक्षिण चीन सागर विवाद जैसे अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद, इसकी रणनीतिक जटिलता को बढ़ाते हैं।
  • चीन के उत्थान को संतुलित करना:
    • वैश्विक आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में चीन का उदय हिंद प्रशांत के महत्त्व का एक केंद्रीय कारक है।
    • क्षेत्र के कई देश समान विचारधारा वाले देशों के साथ गठबंधन और साझेदारी को मज़बूत करके चीन के प्रभाव को संतुलित करने तथा अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • समुद्री सुरक्षा:
    • समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिये एक बड़ी चिंता का विषय है।
    • समुद्री डकैती, क्षेत्रीय विवाद और समुद्री मार्गों की सुरक्षा की आवश्यकता जैसे मुद्दे समुद्री सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।
  • क्षेत्रीय संगठन और मंच:
    • आसियान (ASEAN), क्वाड (QUAD) तथा हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय संगठन और मंच सक्रिय रूप से क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने एवं सुरक्षा बढ़ाने में लगे हुए हैं।
  • कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचा विकास:
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के विकास, कनेक्टिविटी परियोजनाओं और आर्थिक एकीकरण पर ध्यान बढ़ रहा है।
    • चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अमेरिका की "फ्री एंड ओपन हिंद-प्रशांत" रणनीति जैसी पहल का उद्देश्य क्षेत्र के आर्थिक एवं राजनीतिक परिदृश्य को आयाम देना है। 
  • पर्यावरणीय और पारिस्थितिक महत्त्व:
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र, प्रवाल भित्तियों और समुद्री जैव विविधता सहित विविध पारिस्थितिक तंत्रों का गढ़ है।
    • जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय मुद्दे, जैसे प्लास्टिक प्रदूषण और अत्यधिक मत्स्यन, वैश्विक चिंता का विषय बने हुए हैं, क्योंकि ये मुद्दे न केवल क्षेत्र के देशों को बल्कि पूरे ग्रह को प्रभावित करते हैं।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत की "पूर्व की ओर देखो नीति" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (2011)

  1. भारत पूर्वी एशियाई मामलों में खुद को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है।
  2. भारत शीत युद्ध की समाप्ति से उत्पन्न शून्यता को दूर करना चाहता है। 
  3. भारत दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बहाल करना चाहता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D


मेन्स:

प्रश्न. (2021) नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारियों को खत्म करने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2021)

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