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सामाजिक न्याय

दुर्लभ रोग दिवस 2024

  • 05 Mar 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दुर्लभ रोग दिवस, दुर्लभ रोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन, दुर्लभ रोगों के लिये राष्ट्रीय नीति 2021

मेन्स के लिये:

भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, स्वास्थ्य, दुर्लभ बीमारियों से संबंधित पहल

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में फरवरी के आखिरी दिन दुर्लभ रोग दिवस मनाया गया। यह अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता दिवस दुर्लभ रोगों और रोगियों व उनके परिजनों पर उनके महत्त्वपूर्ण प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये समर्पित है।

दुर्लभ रोग दिवस क्या है?

  • दुर्लभ रोग दिवस एक विश्व स्तर पर समन्वित आंदोलन है जो दुर्लभ बीमारियों वाले व्यक्तियों के लिये सामाजिक अवसर, स्वास्थ्य देखभाल, निदान एवं उपचार तक पहुँच में समता सुनिश्चित करने की दिशा में समर्पित है।
  • दुर्लभ रोग दिवस- 2024 का विषय "Share Your Colours" है, जो सहयोग और समर्थन पर बल देता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 2008 में हुई थी और यह प्रतिवर्ष 28 फरवरी (या लीप वर्ष में 29 फरवरी) को मनाया जाता था। दुर्लभ रोग दिवस का समन्वय यूरोपीय दुर्लभ रोग संगठन (European Organisation for Rare Diseases- EURORDIS) और 65 से अधिक राष्ट्रीय गठबंधन रोगी संगठन भागीदारों द्वारा किया जाता है।
  • यह स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुर्लभ रोग के प्रबंधन कार्य के लिये एक केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है, जिसमें व्यक्तियों, परिवारों, देखभाल करने वालों, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों, शोधकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं, उद्योग प्रतिनिधियों तथा आम जनता को शामिल किया जाता है।

दुर्लभ रोग क्या है?

  • परिचय:
    • दुर्लभ रोगों को सामान्य तौर पर मनुष्य में कभी-कभार होने वाली बीमारियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनका प्रसार भिन्न-भिन्न देशों के बीच अलग-अलग होता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन दुर्लभ रोगों को प्रायः प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 या उससे कम की व्यापकता के साथ जीवन पर्यंत दुर्बल करने वाली स्थितियों के रूप में परिभाषित करता है।
    • विभिन्न देशों की अपनी-अपनी परिभाषाएँ हैं; उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका 200,000 से कम रोगियों को प्रभावित करने वाली बीमारियों को दुर्लभ मानता है, जबकि यूरोपीय संघ 10,000 लोगों में 5 से अधिक नहीं होने की सीमा निर्धारित करता है।
    • भारत में वर्तमान में कोई मानक परिभाषा नहीं है, लेकिन दुर्लभ रोगों के संगठन भारत (Organisation of Rare Diseases India- ORDI) ने सुझाव दिया है कि उस बीमारी को दुर्लभ रोग के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिये यदि यह 5,000 लोगों में से 1 या उससे कम को प्रभावित करता है।
  • वैश्विक दुर्लभ रोगों का बोझ:
    • विश्वभर में 30 करोड़ लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं।
    • दुर्लभ बीमारियाँ लगभग 3.5% से 5.9% आबादी को प्रभावित करती हैं।
    • 72% दुर्लभ बीमारियाँ आनुवंशिक होती हैं, जिनमें से 7000 से अधिक में विभिन्न विकार और लक्षण देखने को मिलते हैं।
    • 75% दुर्लभ बीमारियाँ बच्चों को प्रभावित करती हैं। जिसमें 70% दुर्लभ बीमारियों की शुरुआत उन्हें बचपन में होती है।
  • दुर्लभ रोगों के लक्षण और प्रभाव:
    • दुर्लभ बीमारियाँ विकारों और लक्षणों की व्यापक विविधता के साथ मौजूद होती हैं, जो न केवल बीमारियों के बीच, बल्कि एक ही बीमारी वाले रोगियों में भी भिन्न होती हैं।
    • दुर्लभ रोगों की दीर्घकालिक, प्रगतिशील, अपक्षयी और जीवन-घातक प्रकृति रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।
    • प्रभावी उपचार की कमी रोगियों और उनके परिवारों द्वारा सहे जाने वाले दर्द तथा पीड़ा को बढ़ा देती है।
  • दुर्लभ रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:
    • वैज्ञानिक ज्ञान और गुणवत्तापूर्ण जानकारी की कमी के कारण निदान में विलंब।
    • उपचार और देखभाल तक पहुँच में असमानताओं के कारण सामाजिक तथा वित्तीय बोझ पड़ता है।
    • सामान्य लक्षण अंतर्निहित दुर्लभ बीमारियों को छिपा सकते हैं, जिससे प्रारंभिक गलत निदान (misdiagnosis) हो सकता है।
    • EURORDIS के अनुसार, दुर्लभ बीमारी के रोगियों को निदान पाने में औसतन 5 वर्ष का समय लगता है।
      • दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित 70% लोग चिकित्सा होने के पश्चात् पुष्टिकारक निदान पाने के लिये 1 वर्ष से अधिक समय तक प्रतीक्षा करते हैं।
    • दुर्लभ बीमारी के संकेतों और लक्षणों की व्याख्या करने में चिकित्सकों की जागरूकता तथा प्रशिक्षण की कमी नैदानिक चुनौतियों में योगदान करती है।

भारत में दुर्लभ रोगों का परिदृश्य:

  • प्रभाव:
    • भारत वैश्विक दुर्लभ रोग के मामलों में से एक तिहाई का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें 450 से अधिक पहचानी गई बीमारियाँ शामिल हैं।
    • इस महत्त्वपूर्ण प्रसार के बावजूद, जागरूकता, निदान और औषधि विकास सीमित होने के कारण भारत में दुर्लभ बीमारियों को वृहद स्तर पर अनदेखा किया जाता है।
    • अनुमानतः 8 से 10 करोड़ से अधिक भारतीय दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनमें 75% से अधिक बच्चे हैं।
  • नीति और कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में दुर्लभ बीमारियों के लिये एक राष्ट्रीय नीति निर्माण किया, हालाँकि कार्यान्वयन चुनौतियों के परिणामस्वरूप वर्ष 2018 में इसे वापस ले लिया।
    • दुर्लभ रोगों के लिये संशोधित प्रथम राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति की घोषणा वर्ष 2021 में की गई थी, लेकिन समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं, जिनमें दुर्लभ बीमारियों की अस्पष्ट परिभाषा भी शामिल है।
  • उपचार की पहुँच और वित्तपोषण:
    • भारत में पहचानी गई कुल दुर्लभ बीमारियों में से 50% से भी कम का उपचार संभव है तथा मात्र 20 बीमारियों के लिये अनुमोदित उपचार उपलब्ध हैं।
    • अनुमोदित उपचारों तक पहुँच नामित उत्कृष्टता केंद्रों तक ही सीमित है, जिनकी संख्या मात्र 12 है जो असमान रूप से वितरित हैं और इनमें अमूमन समन्वय की कमी होती है।
    • NPRD दिशा-निर्देश प्रति रोगी सीमित वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं जो संपूर्ण जीवन में बीमारियों के प्रबंधन और दीर्घावधि दुर्लभ बीमारियों के उपचार के लिये अपर्याप्त है।
  • वित्तीय सहायता के उपयोग से संबंधित चुनौतियाँ:
    • हालाँकि दुर्लभ बीमारियों के उपचार हेतु बजट आवंटन में वृद्धि हुई है, वर्ष 2023-2024 के लिये संबद्ध विषय हेतु 93 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है किंतु यह अभी भी अपर्याप्त है
    • उत्कृष्टता केंद्रों के बीच निधि के उपयोग के संबंध में स्पष्टता का आभाव और असमानताएँ मौजूद हैं जो संसाधन आवंटन में अक्षमताओं को उजागर करती हैं।
      • हालाँकि रोगियों को तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है किंतु उत्कृष्टता केंद्रों को आवंटित धनराशि का 51.3% हिस्सा अप्रयुक्त रहता है।
    • कुछ CoE आवंटित धन का अल्प उपयोग करते हैं जबकि अन्य केंद्र अपने आवंटित धन का शीघ्रता से उपभोग कर लेते हैं जिससे उपचार तक असमान पहुँच की स्थिति उत्पन्न होती है।
      • उदाहरणार्थ मुंबई ने 107 रोगियों में से केवल 20 का उपचार करते हुए अपने आवंटित धन का पूरा उपभोग कर लिया जबकि दिल्ली ने अपने कुल आवंटित धन का 20% से भी कम हिस्सा उपयोग किया
    • उपचार के वित्तपोषण का बोझ अमूमन मरीज़ों और उनके परिवारों पर पड़ता है तथा सरकारी सहायता अपर्याप्त रह जाती है।
    • मरीज़ और समर्थनकर्त्ता दुर्लभ बीमारी के उपचार में सहायता के लिये केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों से सतत् वित्त पोषण की मांग करते हैं।
      • मरीज़ों के लिये सतत् वित्त पोषण महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर उन लोगों के लिये जिन्होंने आवंटित धन का उपभोग कर लिया है और उपचार जारी रखने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।

दुर्लभ बीमारियों के लिये राष्ट्रीय नीति (NPRD), 2021

  • NPRD, 2021 का लक्ष्य दुर्लभ बीमारियों की व्यापकता और घटनाओं को कम करना है।
  • इनके उपचार आवश्यकताओं के आधार पर दुर्लभ बीमारियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है: समूह 1, समूह 2 और समूह 3
    • समूह 1: एक बार उपचार योग्य विकार।
    • समूह 2: अपेक्षाकृत अल्प उपचार लागत के साथ दीर्घकालिक/आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले रोग।
    • समूह 3: इसके अंतर्गत वे बीमारियाँ शामिल हैं जिनका निश्चित उपचार उपलब्ध है किंतु रोगी चयन और उच्च उपचार लागत के संबंध में चुनौतियाँ मौजूद हैं।
  • NPRD, 2021 राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत अंब्रेला योजना के अतिरिक्त NPRD-2021 में उल्लिखित किसी भी दुर्लभ रोग के किसी भी समूह से पीड़ित रोगियों और किसी भी उत्कृष्टता केंद्र (COE) में उपचार के लिये 50 लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता का प्रावधान करता है। 
    • RAN निर्दिष्ट दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिये अधिकतम 20 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

आगे की राह

  • नीति कार्यान्वयन में स्पष्टता एवं स्थिरता प्रदान करने के लिये दुर्लभ बीमारियों की एक मानक परिभाषा तैयार करना।
  • दवा विकास, चिकित्सा एवं अनुसंधान का समर्थन करने हेतु दुर्लभ बीमारियों के लिये समर्पित बजटीय परिव्यय बढ़ाना
    • दुर्लभ बीमारियों के लिये CoE की संख्या का विस्तार करने साथ-साथ उनके बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।
    • वंचित क्षेत्रों में पहुँच और आउटरीच में सुधार के लिये CoE के तहत उपग्रह केंद्र विकसित करना।
    • प्रभाव को अधिकतम करने एवं निधि उपयोग में असमानताओं को दूर करने के लिये निधियों का ज़िम्मेदारपूर्ण उपयोग बढ़ाना।
  • दुर्लभ बीमारियों की सूची निर्मित करने के साथ-साथ एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री एवं दुर्लभ बीमारियों का पता लगाने के लिये एक केंद्रीकृत प्रयोगशाला की भी आवश्यकता है।
  • किफायती दवाओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के तहत घरेलू दवा निर्माताओं को प्रोत्साहित करना।
  • व्यापक दुर्लभ रोग देखभाल (CRDC) मॉडल को लागू करना, इसका उद्देश्य आनुवंशिक एटियोलॉजी (जीन असामान्यता) से संदिग्ध या प्रभावित रोगियों एवं परिवारों के बीच अंतर को कम करना है।
    • CRDC मॉडल अस्पतालों के लिये एक तकनीकी एवं प्रशासनिक रोडमैप स्थापित करता है।
  • दुर्लभ रोग दवाओं तक किफायती पहुँच सुनिश्चित करना, व्यावसायिक रूप से उपलब्ध दवाओं पर कर कम करना, रोगियों के लिये पहुँच बनाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' लक्ष्य प्राप्त करने हेतु उचित स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप एक पूर्व शर्त है। व्याख्या कीजिये। (2018)

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