प्रारंभिक परीक्षा
विश्व डुगोंग दिवस
- 28 May 2025
- 10 min read
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
28 मई को विश्व डुगोंग दिवस पर भारत में डुगोंग की घटती संख्या पर प्रकाश डाला गया। जहाँ प्राकृतिक पर्यावास में केवल 200 डुगोंग बचे हैं, जिससे इनका संरक्षण राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
डुगोंग क्या हैं?
- परिचय: इन्हें “समुद्री गाय” भी कहा जाता है। समुद्री घास पर निर्भर समुद्री स्तनधारी होने के कारण इन्हें “फार्मर ऑफ द सी” उपनाम दिया गया है। ये भारत से संबद्ध जलीय क्षेत्र में पाए जाने वाले एकमात्र शाकाहारी समुद्री स्तनधारी हैं।
- वितरण: डुगोंग पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र तथा भारतीय तटरेखा में मिलते हैं। ये मुख्य रूप से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी और कच्छ की खाड़ी के आसपास के उष्ण जल में मिलते हैं।
- भारतीय जलक्षेत्र में पाक खाड़ी को इनका अंतिम स्थल माना जाता है।
- व्यवहार: डुगोंग एक लंबी आयु वाली प्रजाति है, जो 70 वर्ष तक जीवित रह सकती है। आमतौर पर इन्हें अकेले या जोड़े में देखा जा सकता है। बड़े झुंड ऑस्ट्रेलियाई जल में सामान्य, लेकिन भारत में दुर्लभ हैं।
- डुगोंग नौ से दस वर्ष की आयु में प्रजनन परिपक्वता तक पहुँच जाते हैं और प्रत्येक तीन से पाँच वर्ष में बच्चे को जन्म देते हैं।
- इस धीमे प्रजनन चक्र से इनकी संख्या की अधिकतम वृद्धि दर प्रतिवर्ष लगभग 5% तक सीमित हो जाती है।
- यह (डुगोंग) मैनेटी से निकटता से संबंधित है, लेकिन पूर्णतः समुद्री (मरीन) एवं स्वभाव से अंतर्मुखी होता है।
- मैनेटी: साइरेनिया (Sirenia) समूह के बड़े, शाकाहारी जलीय स्तनधारी (हर्बिवोरस एक्वाटिक मैमल्स) हैं, जो दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और कैरिबियन के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- आहार: डुगोंग समुद्री घास (सीग्रास) की प्रजातियाँ जैसे कि साइमोडोसिया (Cymodocea), हैलोफिला (Halophila), थैलेसिया (Thalassia) और हैलोड्यूल (Halodule) खाते हैं, प्रतिदिन 20-30 किलोग्राम तक उपभोग करते हैं। इनके आहार से समुद्री तल (सीबेड) को हिलाकर सीग्रास के स्वास्थ्य और जैवविविधता (बायोडायवर्सिटी) को बनाए रखने में सहायक होती है।
- संरक्षण स्थिति: डुगोंग को संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में संवेदनशील के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के परिशिष्ट I में डुगोंग या उनके अंगो के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा सख्त सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
- भारत में डुगोंग को वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के अंतर्गत संरक्षित किया गया है।
- भारत वर्ष 1983 से प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS) और वर्ष 2008 से CMS डुगोंग समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षरकर्ता है।
- डुगोंग संरक्षण और CMS कार्यान्वयन के लिये एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
- तमिलनाडु के पाक खाड़ी में वर्ष 2022 में स्थापित डुगोंग संरक्षण रिज़र्व, तंजावुर और पुदुकोट्टई ज़िलों के तटों के साथ लगभग 122 वर्ग किमी समुद्री घास की रक्षा करता है।
- खतरे: आवास स्थल की क्षति एक बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग, भूमि सुधार तथा कृषि अपवाह, सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण के कारण समुद्री घास के मैदान नष्ट हो रहे हैं।
- मशीनीकृत मत्स्यं से डुगोंग के आवास स्थल नष्ट हो गए हैं और इनकी जाल में आकस्मिक रूप से उलझने की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर इन जीवों की जलमग्न होकर मृत्यु हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन ने संवेदनशीलता का एक और स्तर जोड़ दिया है, समुद्र का बढ़ता तापमान, महासागरीय अम्लीकरण, तथा चरम मौसम की घटनाएँ खाद्य उपलब्धता एवं प्रजनन भूमि दोनों को प्रभावित कर रही हैं।
- इनका अवैध शिकार अभी जारी है, विशेषकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में।
- इसके अतिरिक्त, उनकी धीमी प्रजनन प्रक्रिया (9–10 वर्षों में परिपक्व होना और हर 3–5 वर्षों में केवल एक बार प्रजनन करना) उनकी पुनः आबादी बढ़ाने की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर देती है।
- डुगोंग संरक्षण: डुगोंग के संरक्षण के लिये समुद्री घास (Seagrass) के पर्यावासों की सुरक्षा और पुनर्स्थापन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत समुद्री घास के मैदानों का मानचित्रण और निगरानी, हानिकारक गतिविधियों पर नियंत्रण तथा विशेष रूप से स्थानीय मछुआरों के साथ मिलकर सामुदायिक नेतृत्व वाले संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना शामिल है।
- डुगोंग क्षेत्रों में गिल नेट और ट्रॉलिंग जैसी हानिकारक मत्स्यन विधियों को नियंत्रित करने से आकस्मिक क्षति कम हो जाती है।
- नागरिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान द्वारा समर्थित दीर्घकालिक डुगोंग अध्ययनों के लिये अधिक शोध निधि की आवश्यकता है। टैगिंग और ड्रोन जैसी तकनीकें ट्रैकिंग एवं आवास पहचान में सहायता करती हैं।
समुद्री घास/सीग्रास
- समुद्री घास एक जल के भीतर पाई जाने वाली पुष्पीय पौधा है, जिसे समुद्री शैवाल (सीवीड या मैक्रोएल्गी) से भ्रमित नहीं करना चाहिये। आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में वर्गीकृत, समुद्री घास के मैदान समुद्र तल को स्थिर करते हैं, मत्स्य पालन को समर्थन देते हैं, कार्बन का अवशोषण करते हैं और समुद्री जीवन को आश्रय प्रदान करते हैं।
- स्वस्थ समुद्री घास डुगोंग और कछुओं व मछलियों जैसे समुद्री जीवों के लिये अत्यंत आवश्यक होती है।
- नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट द्वारा वर्ष 2022 में किये गए अध्ययन में भारत में 516.59 वर्ग किलोमीटर समुद्री घास के पर्यावासों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक वर्ष प्रति वर्ग किलोमीटर तक 434.9 टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता है।
- भारत के सबसे विस्तृत समुद्री घास के मैदान तमिलनाडु के तट से दूर मन्नार की खाड़ी तथा पाक की खाड़ी में पाए जाते हैं और कुल मिलाकर इनमें समुद्री घास की 13 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं (हिंद महासागर में सबसे अधिक विविधता)।
- लक्षद्वीप और कच्छ में समुद्री घास बिखरी हुई है तथा बंदरगाह गतिविधियों एवं प्रदूषण के कारण खतरे में है। आंध्र प्रदेश और ओडिशा में समुद्री घास के सीमित पर्यावास हैं जो डुगोंग के लिये अनुपयुक्त हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में पाये जाने वाले स्तनधारी 'ड्यूगोंग' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?(2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।
उत्तर: c |