रैपिड फायर
जारोसाइट
स्रोत: TH
एक नए अध्ययन से पता चला है कि जारोसाइट नामक प्राकृतिक प्रतिदीप्तिमान खनिज प्राचीन मंगल ग्रह की घटनाओं जैसे धूल भरी आँधियों, बाढ़ और ज्वालामुखीय गतिविधियों के समय को दर्ज करने में सक्षम है। यह खनिज गुजरात के कच्छ क्षेत्र में भी पाया जाता है। पृथ्वी और मंगल दोनों पर इसकी उपस्थिति के कारण, यह वैज्ञानिकों को महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करता है।
- यह पोटेशियम, आयरन और सल्फेट से समृद्ध एक पीले-भूरे रंग का खनिज है, जो मंगल ग्रह जैसे शुष्क, लवणीय वातावरण में पाया जाता है।
- यह विकिरण-प्रेरित चमक प्रदर्शित करता है, जो एक भूवैज्ञानिक घड़ी के रूप में कार्य करता है जो 25,000 वर्ष पूर्व तक की घटनाओं को रिकॉर्ड कर सकता है।
घटना:
- पृथ्वी: यह अम्लीय खान जल निकासी, सल्फर युक्त ज्वालामुखी क्षेत्रों और शुष्क, सल्फेट युक्त तलछटी चट्टानों में पाया जाता है।
- मंगल: इसकी खोज नासा के ऑपरच्यूनिटी और क्यूरियोसिटी रोवर्स द्वारा मेरिडियनी प्लैनम एवं गेल क्रेटर में की गई थी।
- इसका उपयोग अपक्षय प्रक्रियाओं की तिथि निर्धारित करने के लिये सफलतापूर्वक किया गया है, विशेष रूप से पोटेशियम-आर्गन (K-Ar) तिथि निर्धारण पद्धति के साथ।
- पोटेशियम-आर्गन (K-Ar) डेटिंग विधि एक रेडियोमेट्रिक तकनीक है जिसका उपयोग रेडियोधर्मी पोटेशियम-40 के आर्गन-40 में क्षय के आधार पर चट्टानों और खनिजों की आयु निर्धारित करने हेतु किया जाता है।
और पढ़ें: NASA का मार्स सैंपल रिटर्न प्रोग्राम
प्रारंभिक परीक्षा
ICMR द्वारा सिकल सेल रोग हेतु पहले स्टिग्मा स्केल का अनावरण
स्रोत: द हिंदू
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भारत के लिये ICMR-SCD स्टिग्मा स्केल (ISSSI) विकसित किया है, जो सिकल सेल रोग (SCD) से पीड़ित रोगियों और उनके देखभाल करने वालों द्वारा सामना किये जाने वाले स्टिग्मा का मापन करने और उसका निवारण करने के लिये देश का पहला साधन है। इस पैमाने में दो घटक शामिल हैं: रोगियों के लिये ISSSI-Pt और देखभाल करने वालों के लिये ISSSI-Cg।
भारत के लिये ICMR-SCD स्टिग्मा स्केल की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- बहुआयामी साधन: इसके अंतर्गत 5 क्षेत्रों में स्टिग्मा का आकलन किया जाता है- पारिवारिक/प्रजनन संबंधी स्टिग्मा, प्रकटीकरण संबंधी मुद्दे, अस्वस्थता का भार, भेदभाव और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी स्टिग्मा।
- सांस्कृतिक आधार: भारत की जनजातीय, क्षेत्रीय और भाषाई विविधता को प्रतिबिंबित करने के लिये 6 SCD-स्थानिक ज़िलों में विकसित किया गया।
- अफ्रीका और अमेरिका के मौजूदा 3 SCD स्टिग्मा पैमाने, फेनोटाइपिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और प्रासंगिक विषमताओं के कारण भारत के लिये अनुपयुक्त थे, जिसके लिये स्थानीय रूप से एक प्रासंगिक साधन की आवश्यकता थी।
- मान्य एवं विश्वसनीय: मनोवैज्ञानिक रूप से सुदृढ़, लाक्षणिक उपयोग, अनुसंधान और नीति मूल्यांकन के लिये उपयुक्त।
सिकल सेल रोग क्या होता है?
- परिचय:
- सिकल सेल रोग (SCD) रक्त संबंधी वंशानुगत विकार है जो हीमोग्लोबिन जीन में आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होता है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) अपने सामान्य गोल आकार के बजाय सिकल या अर्द्धचंद्राकार आकार धारण कर लेती हैं।
- ये सिकल के आकार की लाल रक्त कोशिकाएँ अल्प नम्नशील होती हैं और लघु रक्त वाहिकाओं में सरलता से संचरण करने में अक्षम होती, जिससे अवरोधन की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
- इससे रक्त परिसंचरण बाधित होता है और एनीमिया, अंग क्षति, असह्य दर्द तथा जीवनप्रत्याशा कम हो जाती है।
- सिकल सेल रोग (SCD) रक्त संबंधी वंशानुगत विकार है जो हीमोग्लोबिन जीन में आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होता है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) अपने सामान्य गोल आकार के बजाय सिकल या अर्द्धचंद्राकार आकार धारण कर लेती हैं।
- कारण :
- सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक विकार है, जो माता-पिता में से प्रत्येक से दो उत्परिवर्तित β-ग्लोबिन जीन प्राप्त होने के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप असामान्य सिकल हीमोग्लोबिन का उत्पादन होता है।
- उपचार:
- जीन थेरेपी: SCD का इलाज अस्थि मज्जा या स्टेम सेल प्रत्यारोपण जैसे तरीकों से CRISPR द्वारा किया जा सकता है।
- रक्त आधान: ये एनीमिया से राहत दिलाने और दर्द संबंधी संकट के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- SCD के लिये दवाओं में वॉक्सेलोटर (सिकल और एनीमिया को रोकता है), क्रिज़ानलिज़ुमैब (वाहिकाओं की रुकावट और दर्द को कम करता है), हाइड्रोक्सीयूरिया (जटिलताओं को कम करता है), और एल-ग्लूटामाइन (दर्द की आवृत्ति को कम करता है), साथ ही दर्द से राहत के लिये नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAID) और ओपिएट्स शामिल हैं।
- व्यापकता:
- भारत में SCD एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है, तथा विश्व में SCD से प्रभावित व्यक्तियों की संख्या के साथ यह दूसरे स्थान पर है, तथा SCD से जन्म के मामले में नाइजीरिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
- जनजातीय समूहों में वाहक दर 1% से 40% तक है, तथा अधिकांश रोगी ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के जनजातीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं।
- सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन: इसके अंतर्गत CSIR SCD के लिये जीन-संपादन चिकित्सा विकसित कर रहा है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) 2013: SCD पर विशेष ध्यान।
- स्टेम सेल अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय दिशानिर्देश 2017: यह SCD के लिये अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (BMT) को छोड़कर स्टेम सेल उपचारों के व्यावसायीकरण को नैदानिक परीक्षणों तक सीमित करता है।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 उन 21 दिव्यांगताओं में शामिल है, जिनके लिये आरक्षण का लाभ दिया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के अंतर्गत की जा रही व्यवस्थाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं? (a) केवल एक उत्तर: (c) |
प्रारंभिक परीक्षा
तेल का रिसाव
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कैल्शियम कार्बाइड तथा डीजल सहित खतरनाक सामग्री ले जा रहा लाइबेरियाई ध्वज वाला एक मालवाहक जहाज़ केरल तट के पास डूब गया, जिससे तेल रिसाव एवं ज्वलनशील गैसों के निकलने को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- कैल्शियम कार्बाइड (CaC2) एक ऐसा रसायन है जो समुद्री जल के साथ अभिक्रिया करके एसिटिलीन गैस (जो अत्यधिक ज्वलनशील और खतरनाक है) का उत्सर्जन करता है।
तेल रिसाव क्या है?
- परिचय: तेल रिसाव से तात्पर्य मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप परिवेश में (विशेष रूप से महासागरों, नदियों या तटीय जल में) तरल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन के रिसाव से है।
- प्रभाव: टैंकरों, अपतटीय प्लेटफाॅर्मों, ड्रिलिंग या कुओं जैसे स्रोतों से डीज़ल, पेट्रोलियम, कच्चे तेल एवं अन्य हाइड्रोकार्बन का रिसाव हो सकता है जिनका समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय आजीविका एवं मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र: तेल समुद्री पक्षियों के पंखों और समुद्री स्तनधारियों के फर पर जम जाता है, जिससे हाइपोथर्मिया और मृत्यु हो जाती है। यह मछलियों के गलफड़ों को बंद कर देता है, प्रजनन क्षमता को बाधित करता है और समुद्री जीवन द्वारा निगलने पर विषाक्त हो जाता है।
- तेल की परतें सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध कर देती हैं, जिससे फाइटोप्लांक्टन पर प्रभाव पड़ता है और ऑक्सीजन का स्तर घटता है। प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव, ज्वारनदमुख (जैसे सुंदरबन) नष्ट हो जाते हैं, जिससे पारिस्थितिक तंत्र बाधित होता है।
- तटीय आजीविका: तेल रिसाव मत्स्य पालन, जलकृषि और तटीय उद्योगों को बाधित करता है, जिससे स्थानीय समुदायों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- दूषित समुद्र तट और मृत समुद्री जीवन पर्यटन को कम करते हैं, जिससे आजीविका और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- सफाई और पुनर्स्थापन के प्रयास सरकारों और उद्योगों पर भारी वित्तीय बोझ डालते हैं।
- मानव स्वास्थ्य: समुद्री खाद्य संदूषण और मत्स्यन में कमी के कारण स्वदेशी समुदायों के स्वास्थ्य और आजीविका पर जोखिम।
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र: तेल समुद्री पक्षियों के पंखों और समुद्री स्तनधारियों के फर पर जम जाता है, जिससे हाइपोथर्मिया और मृत्यु हो जाती है। यह मछलियों के गलफड़ों को बंद कर देता है, प्रजनन क्षमता को बाधित करता है और समुद्री जीवन द्वारा निगलने पर विषाक्त हो जाता है।
रिसाव हुए तेल को हटाने के क्या उपाय हैं?
विधि |
विवरण |
बायोरेमेडिएशन |
तेल विघटित करने वाले बैक्टीरिया (जैसे, साइक्लोक्लास्टिकस, ओलिस्पिरा) का उपयोग हाइड्रोकार्बन को विभक्त के लिये किया जाता है; यह पर्यावरण अनुकूल है और प्राकृतिक विषाक्तता निष्कासन को तेज़ करता है। |
कंटेनमेंट बूम्स |
तैरने वाले अवरोध जो तेल के फैलाव को रोकते हैं, नियंत्रण और पुनर्प्राप्ति में सहायता करते हैं तथा पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं। |
स्किमर्स |
यह यांत्रिक उपकरण हैं, जिनसे सुरक्षित निपटान या पुनर्चक्रण के क्रम में जल की सतह से तेल एकत्र किया जाता है। |
साॅर्बेंट्स |
ये जल से तेल को अवशोषित कर लेते हैं और प्राथमिक सफाई के बाद छोटे तेल रिसाव या अवशिष्ट तेल के लिये विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। प्राकृतिक सॉर्बेंट्स (खरपतवार, ज्वालामुखीय राख), कृत्रिम (पॉलिएस्टर से बने प्लास्टिक के टुकड़े)। |
डिसपर्ज़िंग एजेंट |
यह सर्फेक्टेंट-आधारित रसायन है, जो तीव्र जैव-निम्नीकरण के क्रम में तेल को छोटी बूँदों में विभक्त करते हैं। यह प्रभावी है लेकिन इसकी संभावित विषाक्तता के कारण समुद्री जीवों को नुकसान पहुँच सकता है। |
तेल प्रदूषण नियंत्रण पर कानूनी और संस्थागत ढाँचे क्या हैं?
- भारतीय कानूनी ढाँचा:
- वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1958: यह प्राथमिक समुद्री कानून के रूप में कार्य करता है। इसमें जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण, जिसमें तेल उत्सर्जन भी शामिल है, को विनियमित करने के लिये जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (International Convention for the Prevention of Pollution from Ships- MARPOL) के प्रावधानों को शामिल किया गया है।
- राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिकता योजना (NOS-DCP), 1993: समन्वित तेल रिसाव प्रतिक्रिया के लिये एक प्रमुख रूपरेखा के रूप में, भारतीय तट रक्षक द्वारा कार्यान्वित।
- यद्यपि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, फिर भी यह हितधारकों के बीच समय पर और एकीकृत कार्रवाई सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) अधिनियम, 2010: NGT समुद्री प्रदूषण सहित पर्यावरण विवादों के त्वरित निर्णय के लिये एक न्यायिक तंत्र प्रदान करता है और क्षति के लिये मुआवज़ा प्रदान करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय रूपरेखाएँ:
- बंकर ऑयल अभिसमय (वर्ष 2001): IMO के तहत वर्ष 2015 में भारत द्वारा अनुसमर्थित, यह अभिसमय जहाज़ों के बंकरों से ईंधन तेल रिसाव के कारण होने वाले नुकसान के लिये शीघ्र और पर्याप्त मुआवज़ा सुनिश्चित करता है तथा ऐसी प्रदूषण घटनाओं से प्रभावित लोगों की रक्षा करता है।
- मार्पोल 73/78 (अनुलग्नक I): भारत इस प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का एक पक्षकार है जिसका उद्देश्य जहाज़ों से होने वाले समुद्री प्रदूषण को रोकना है, जिसमें परिचालन उत्सर्जन और आकस्मिक तेल रिसाव दोनों शामिल हैं।
- नागरिक दायित्व अभिसमय (CLC), 1969 और अंतर्राष्ट्रीय तेल प्रदूषण क्षतिपूर्ति निधि (IOPC), 1992: तेल रिसाव से होने वाले नुकसान के लिये दायित्व एवं क्षतिपूर्ति तंत्र स्थापित करना। टैंकर रिसाव की स्थिति में पीड़ितों और सरकारों के लिये वित्तीय वसूली और कानूनी सहारा की सुविधा प्रदान करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भौंगोलिक क्षेत्र में जैवविविधता के लिये संकट हो सकते हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. जीव-विविधता निम्नलिखित माध्यम/माध्यमों द्वारा मानव अस्तित्व का आधार बनी हुई है: (2011)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1,2 और 3 उत्तर: D |
रैपिड फायर
भारत पूर्वानुमान प्रणाली
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) स्वदेशी रूप से विकसित भारत पूर्वानुमान प्रणाली (BFS) को अपनाने जा रहा है, जो 6 कि.मी. x 6 कि.मी. स्थानिक रिज़ॉल्यूशन पर पूर्वानुमान लगाने में सक्षम भारत का पहला उच्च-रिज़ॉल्यूशन मौसम मॉडल है।
- भारत पूर्वानुमान प्रणाली (BFS) पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) द्वारा विकसित की गई है और इसे भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा लागू किया जाएगा।
- BFS भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की वर्तमान 12 कि.मी. x 12 कि.मी. रिज़ॉल्यूशन क्षमता में उल्लेखनीय सुधार करता है, जिससे स्थानीयकृत चरम मौसम घटनाओं, जैसे कि मेघ प्रस्फोट और फ्लैश फ्लड, का अधिक सटीक पता लगाया जा सकेगा।
- वर्तमान की 144 वर्ग किलोमीटर की विश्लेषण इकाई की सीमा को घटाकर 36 वर्ग किलोमीटर किया जाएगा, जिससे सूक्ष्म स्तर पर बेहतर मौसम पूर्वानुमान संभव हो सकेगा।
- BFS मॉडल से, विशेषकर ज़िला और उप-ज़िला स्तर पर चक्रवात, अधिक वर्षा और मानसून की विविधता के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार की अपेक्षा है।
- BFS का परीक्षण वर्ष 2022 से प्रयोगात्मक मोड में किया जा रहा है और अब इसे उच्च प्रदर्शन संगणना सहायता के साथ राष्ट्रीय स्तर पर संचालन के लिये विस्तारित किया जा रहा है।
- वर्तमान में, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) मानसून मिशन के तहत विकसित और भारतीय मानसून पूर्वानुमान के लिये अमेरिकी मॉडल से अनुकूलित कूपल्ड फोरकास्टिंग सिस्टम (CFS) का उपयोग करता है।
- यह वैश्विक पूर्वानुमान प्रणाली (GFS) भी संचालित करता है, जो एक संयुक्त महासागर-वायुमंडल मॉडल है और घंटे से लेकर मौसमी स्तर तक के पूर्वानुमान प्रदान करता है।
और पढ़ें: भारत अपने साझेदार देशों में प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ विकसित कर रहा है
रैपिड फायर
चरक और सुश्रुत की विरासत
स्रोत: पी.आई.बी.
उपराष्ट्रपति ने गोवा के राजभवन में चरक और सुश्रुत की प्रतिमाओं का लोकार्पण किया तथा उनके योगदान को याद किया।
- चरक: चरक (लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ईसवी), जिन्हें चिकित्सा के पिता के रूप में जाना जाता है, कनिष्क (कुषाण साम्राज्य) के शाही चिकित्सक के रूप में कार्यरत थे।
- उन्होंने चरक संहिता की रचना की जो आयुर्वेद का आधारभूत ग्रंथ है।
- अग्निवेश संहिता, जिसे 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में अत्रेय के मार्गदर्शन में अग्निवेश ने लिखा था, को चरक ने संशोधित कर इसका नाम बदलकर चरक संहिता कर दिया तथा इसे आठ भागों में विभाजित किया, जिन्हें अष्टांग स्थान के रूप में जाना जाता है।
- बाद में धबाला (आयुर्वेद के विद्वान) ने चरक संहिता में 17 अध्याय शामिल किये।
- सुश्रुत: सुश्रुत (7वीं-6ठी शताब्दी ईसा पूर्व), एक प्राचीन भारतीय चिकित्सक, को "शल्य चिकित्सा" एवं "प्लास्टिक सर्जरी का जनक" माना जाता है।
- सुश्रुत, राजा विक्रमादित्य (चंद्रगुप्त द्वितीय) के नवरत्नों में से एक धन्वंतरि के शिष्य थे।
- उन्होंने सुश्रुत संहिता की रचना की, जो प्लास्टिक सर्जरी पर सबसे आरंभिक ग्रंथों में से एक है।
- सुश्रुत संहिता, चरक संहिता और अष्टांग हृदय के साथ आयुर्वेद की महान त्रयी का एक हिस्सा है।
- उन्होंने 300 से अधिक शल्यचिकित्सा प्रक्रियाओं का प्रदर्शन और दस्तावेज़ीकरण किया, जिसमें प्लास्टिक सर्जरी (जैसे, राइनोप्लास्टी), फ्रैक्चर प्रबंधन और यहाँ तक कि सिजेरियन डिलीवरी भी शामिल है।
- उन्होंने ओष्ठ संधान (लोबुलोप्लास्टी) और कर्ण संधान (ओटोप्लास्टी) से संबंधित कई मामलों का भी निदान किया।
और पढ़ें: सर्जरी और आयुर्वेद
रैपिड फायर
भारत: विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
स्रोत: लाइवमिंट
नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) शासी परिषद की 10वीं बैठक में नीति आयोग के CEO ने घोषणा की कि भारत जापान से आगे निकलते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है।
- भारत, विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है और यह एकमात्र ऐसा देश है जिसकी अगले दो वर्षों तक वार्षिक संवृद्धि दर 6% से अधिक रहने का अनुमान है।
- इस क्रमिक संवृद्धि से भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वर्ष 2028 तक 5.58 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे यह जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए विश्व स्तर पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- इससे पहले, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपनी विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट, 2025 में अनुमान लगाया था कि भारत वर्ष 2025 में 4.187 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की नॉमिनल GDP के साथ जापान के 4.186 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से आगे निकलकर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- नीति आयोग: नीति आयोग की स्थापना 1 जनवरी 2015 को भारत के योजना आयोग के स्थान पर की गई थी।
- इसका गठन भारत सरकार के प्रमुख नीतिगत थिंक टैंक के रूप में कार्य करने हेतु किया गया था, जिसका उद्देश्य सहकारी संघवाद के माध्यम से समावेशी एवं सतत् विकास सुनिश्चित करना है।
- भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, जबकि उपाध्यक्ष की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
- इसकी शासी परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होते हैं, जिससे इसमें पूरे देश का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
और पढ़ें: विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट, 2025