मध्य प्रदेश Switch to English
विश्व फोटोग्राफी दिवस
चर्चा में क्यों?
विश्व फोटोग्राफी दिवस (19 अगस्त) के अवसर पर इंदौर के फोटोग्राफी कला में किये गए उल्लेखनीय योगदान का उत्सव मनाया जा रहा है। शहर की समृद्ध फोटोग्राफी विरासत 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से जुड़ी है, जब लाला दीनदयाल जैसे अग्रदूतों ने इसे नई पहचान दिलाई।
मुख्य बिंदु
फोटोग्राफी में इंदौर का योगदान
- भारत में 19वीं शताब्दी की जड़ें:
- विलियम आर्मस्ट्रांग (1847): पहले ब्रिटिश फोटोग्राफर थे जिन्होंने अजंता-एलोरा गुफाओं की तस्वीरें खींचीं।
- इंदौर की फोटोग्राफी यात्रा:
- लाला दीनदयाल ने वर्ष 1888 में इंदौर का पहला फोटो स्टूडियो खोला। उनके कार्य को स्थानीय राजघरानों से सराहना मिली। इसी कारण निज़ाम ने उन्हें ज़मीन भेंट की और ‘राजा दीनदयाल’ की उपाधि प्रदान की।
- दीनदयाल के जाने के बाद भी कई फोटोग्राफरों ने उनके कार्य को आगे बढ़ाया।
- प्रसिद्ध फोटोग्राफर:
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भालू मोंधे (पद्मश्री सम्मानित): वर्ष 1975 में इंदौर में रंगीन फोटोग्राफी की शुरुआत की और पहला कलर लैब स्थापित किया, जिससे शहर में फोटोग्राफी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया।
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विश्व फोटोग्राफी दिवस
- परिचय:
- यह दिवस 19 अगस्त को डाग्युरोटाइप प्रक्रिया’ (Daguerreotype Camera) के आविष्कार के सम्मान में मनाया जाता है।
- वर्ष 1839 में इसी दिन फ्राँसीसी सरकार ने आधिकारिक रूप से डाग्युरोटाइप की घोषणा की थी, जिसे लुईस डाग्युरे ने वर्ष 1837 में विकसित किया था।
- डाग्युरोटाइप एक प्रारंभिक फोटोग्राफी प्रक्रिया थी, जिसमें चाँदी-लेपित ताँबे की प्लेट पर अत्यधिक सूक्ष्म और अद्वितीय सकारात्मक छवि तैयार होती थी।
- इसी ने आधुनिक फोटोग्राफी की नींव रखी।
- थीम 2025: "माय फेवरिट फोटो"।
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इतिहास:
- इसका प्रस्ताव वर्ष 1988 में भारतीय फोटोग्राफर और शिक्षक ओ.पी. शर्मा ने रखा था।
- वर्ष 2005 में यह एक वैश्विक ऑनलाइन पहल के रूप में उभरा।
- वर्ष 2010 से इसे ऑस्ट्रेलियाई उद्यमी कॉर्स्के आरा द्वारा ऑनलाइन “विश्व फोटोग्राफी दिवस” के रूप में बढ़ावा दिया गया।
- उत्तर अमेरिका के निर्माता जॉन मोर्ज़ेन ने इसकी वैश्विक पहचान को आकार देने और विस्तार करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

