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भारतीय अर्थव्यवस्था

सामाजिक उद्यमिता

  • 13 Jul 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक उद्यमिता, सामाजिक ट्रेलब्लेज़र कार्यक्रम, ESG, प्रभाव निवेशक परिषद

मेन्स के लिये:

भारत में सामाजिक उद्यमिता की आवश्यकता और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री ने एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड की साझेदारी में इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (IRMA) द्वारा आयोजित एक सामाजिक उद्यम सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए भारत में सामाजिक उद्यमिता पारितंत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से सामाजिक ट्रेलब्‍लेज़र कार्यक्रम के दूसरे संस्‍करण का शुभारंभ किया।

सोशल ट्रेलब्लेज़र कार्यक्रम:

  • परिचय: 
    • यह सामाजिक उद्यमों और उद्यमियों के विकास के लिये एक कार्यक्रम है, जो प्रारंभिक चरण के ग्रामीण, सामाजिक तथा सामूहिक उद्यमों का पोषण करता है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय सामाजिक उद्यमों के विकसित पारिस्थितिकी तंत्र का पोषण करना है।
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य सामाजिक उद्यम कार्यक्रम को बढ़ावा देना है ताकि सामाजिक उद्यम के विकास और सामाजिक निवेश को बढ़ाया जा सके तथा सामाजिक एवं पर्यावरणीय समस्याओं को दूर किया जा सके। 
  • केंद्र बिंदु के क्षेत्र:
    • कृषि
    • हरित प्रौद्योगिकी
    • वित्त प्रौद्योगिकी
    • शिक्षा
    • नवीकरणीय ऊर्जा 
    • स्वास्थ्य देखभाल और जीवन विज्ञान
    • मानव संसाधन
    • विपणन
    • सामाजिक प्रभाव
    • अपशिष्ट प्रबंधन
  • प्रमुख प्रोत्साहन: शीर्ष 10-12 चयनित स्टार्टअप को इक्विटी फंडिंग के रूप में 25,00,000 रुपए तक और ग्रांट फंडिंग के रूप में 5,00,000 रुपए तक का वित्तीय अनुदान दिया जाता है।
    • IRMA ISEED फाउंडेशन द्वारा 1 वर्ष का पर्सनालाइज्ड इन्क्युबेशन एंड एक्सेलरेशन सपोर्ट।
    • टॉप-अप प्रोत्साहन: IRMA ISEED's नेटवर्क से 50,00,000 रुपए तक का फॉलो-ऑन निवेश।
      • 1000 अमेरिकी डॉलर तक की AWS (अमेज़न वेब सर्विसेज़) क्रेडिट और प्रौद्योगिकी सहायता। 

सामाजिक उद्यमिता: 

  • परिचय: 
    • सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिये व्यावसायिक मॉडल का उपयोग करने की प्रथा को सामाजिक उद्यमिता कहा जाता है।
    • सामाजिक उद्यमियों को सामाजिक नवप्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है, ये नवीन विचारों के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। उनका लक्ष्य राजस्व और मुनाफा पैदा करने के साथ-साथ सामाजिक प्रभाव भी उत्पन्न करना है।
    • वे समस्याओं की पहचान करके बदलाव लाने के लिये आवश्यक समाधान की खोज करते हैं। सामाजिक उद्यमिता सामाजिक रूप से उत्तरदायित्वपूर्ण निवेश एवं पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) निवेश जैसे रुझानों के साथ संरेखित होती है।
      • उदाहरण: शैक्षिक कार्यक्रम अथवा वंचित क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना तथा महामारी रोग से अनाथ बच्चों की मदद करना।
  • प्रकार: 
    • सामुदायिक पहल:
      • सामुदायिक पहल एक लघु पैमाने की परियोजना है जिसका उद्देश्य किसी समुदाय के भीतर एक विशिष्ट मुद्दे का समाधान करना है। यह बड़ी अर्थव्यवस्था से असंबद्ध और हाशिये पर जी रहे लोगों तथा वंचित समुदायों के लिये विशेष रूप से फायदेमंद है।
    • गैर-लाभकारी संगठन:  
      • गैर-लाभकारी संगठन एक ऐसा समूह है जो लाभ न कमाने के इरादे से स्थापित किया जाता है और जिसमें संगठन के राजस्व का कोई भी हिस्सा उसके निदेशकों, अधिकारियों अथवा सदस्यों को नहीं जाता है।
    • सामाजिक उद्यम:  
      • ऐसा संगठन जो मौद्रिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण में प्रगति को अनुकूलित करने के लिये व्यावसायिक रणनीति का उपयोग करता है उसे सामाजिक उद्यम कहा जाता है। यह सह-मालिकों के सामाजिक प्रभाव और मुनाफा दोनों में वृद्धि कर सकता है।
    • सहकारी संस्था:  
      • सहकारी संस्था लोगों का एक स्वतंत्र समूह है जो लोकतांत्रिक रूप से संचालित और सामूहिक स्वामित्व वाले व्यवसाय के माध्यम से समान आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक लक्ष्यों के लिये काम करने हेतु स्वैच्छिक रूप से एकजुट होते हैं।
    • सामाजिक व्यावसायिक जागरूकता:  
      • सामाजिक चेतना को अन्याय के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता एवं ज़िम्मेदारी की भावना रखने वाला माना जाता है। समाज के भीतर व्यक्तियों की जागरूकता चेतना से संबंधित होती है। 
  • उपलब्धियाँ: 
    • इम्पैक्ट इन्वेस्टर्स काउंसिल (ICC) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 600 से अधिक प्रभावशाली फर्मों में 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है, जिनका 500 मिलियन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • 226 मिलियन से अधिक बच्चों और किशोरों के लिये शिक्षा में सुधार के अतिरिक्त इन सामाजिक उद्यमियों ने 192 मिलियन टन से अधिक CO2 को कम करने में सहायता प्रदान की है।  
    • उन्होंने 25 मिलियन से अधिक व्यक्तियों के लिये सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने के साथ 100 मिलियन से अधिक लोगों की विद्युत तक पहुँच प्राप्त करने में सहायता की है। 

अधिक सामाजिक उद्यमियों की आवश्यकता: 

  • सामाजिक समस्याओं से निपटना: 
    • सामाजिक प्रभाव वाले उद्यमियों में बड़े पैमाने पर महत्त्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन लाने की क्षमता होती है। पारंपरिक दृष्टिकोण के विपरीत वे जोखिम लेने के लिये तैयार होते हैं।
    • वे समाज को लाभ पहुँचाने वाले स्थायी समाधान विकसित करने के लिये अपनी व्यावसायिक विशेषज्ञता और नवोन्वेषी सोच का उपयोग करते हैं।
  • समावेशी विकास को प्रोत्साहन: 
    • हाल के वर्षों में भारत की आर्थिक वृद्धि प्रभावशाली रही है, इसके साथ ही यह समावेशी नहीं रही है। अमीर और गरीब के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप हाशिये पर रहने वाले कई समुदाय पीछे रह गए हैं।
    • सामाजिक उद्यमी हाशिये पर मौजूद समुदायों के लिये अवसरों का सृजन करके समावेशी विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से निपटना: 
    • भारत वायु तथा जल प्रदूषण, वनों की कटाई एवं जलवायु परिवर्तन सहित महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है। सामाजिक उद्यमी इन चुनौतियों का  स्थायी समाधान खोज सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिये वे ऐसे उद्यम निर्मित कर सकते हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं, अपशिष्ट को कम करने के साथ टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देते हैं। ऐसा करके वे पर्यावरण की रक्षा एवं सतत् विकास को बढ़ावा देने में सहायता कर सकते हैं।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच अंतर को समाप्त करना: 
    • सामाजिक उद्यमी, सामाजिक एवं पर्यावरणीय समस्याओं के स्थायी समाधान के लिये सरकार के साथ कार्य कर सकते हैं।
      • ऐसा करके वे अधिक महत्त्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करने के लिये सार्वजनिक संसाधनों और नीतियों का लाभ उठा सकते हैं।
    • वे पूंजी, प्रौद्योगिकी तथा विशेषज्ञता तक पहुँच के लिये निजी क्षेत्र के साथ भी कार्य कर सकते हैं, जिससे अधिक नवीन और प्रभावी समाधान प्राप्त हो सकेंगे।

भारत में सामाजिक उद्यमिता के समक्ष चुनौतियाँ:

  • भावी मुद्दे एवं चिंताएँ:
    • सामाजिक उद्यमियों को अधिक जनसंख्या और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों जैसे भविष्य के संभावित मुद्दों से निपटना पड़ता हैं, जिससे उन निवेशकों को आकर्षित करना कठिन हो जाता है जो सुरक्षित, लाभ-संचालित परियोजनाओं की ओर अधिक इच्छुक होते हैं।
  • व्यवसाय रणनीति: 
    • सामाजिक उद्यमियों को एक मज़बूत व्यावसायिक रणनीति विकसित करने की चुनौती का भी सामना करना पड़ता है। बाज़ार की वास्तविकताओं के साथ ग्राहकों की ज़रूरतों के अनुरूप एक ठोस व्यवसाय योजना बनाने के लिये उन्हें वकीलों, एकाउंटेंट तथा अनुभवी उद्यमियों जैसे पेशेवरों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • वित्तीय सहायता की कमी:  
    • पारंपरिक व्यवसायों के विपरीत सामाजिक उद्यमिता को अधिकतर सामाजिक परिणामों के साथ वित्तीय प्रतिफल (Financial Returns) को संतुलित करना पड़ता है, जो उन्हें निवेशकों या दानदाताओं के लिये कम आकर्षक बना सकता है। इसके अलावा वे जिन सामाजिक समस्याओं का समाधान करते हैं उनकी जटिल और गतिशील प्रकृति के कारण उन्हें उच्च लागत, जोखिम तथा अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • संतुलन का अभाव:
    • सामाजिक उद्यमिता बहुत अधिक मांग वाली और तनावपूर्ण हो सकती है, क्योंकि इसमें जटिल और जरूरी मुद्दों से निपटना, कई दबावों और अपेक्षाओं का सामना करना और बलिदान देना और समझौता करना शामिल है।
    • इससे बर्नआउट (Burnout), थकावट या प्रेरणा की कमी हो सकती है, जो उनकी कुशलता और प्रभावकारिता को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह  

  • पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक उद्यमिता की भावना विकसित हुई है और इसने नवीन एवं लाभदायक विचार प्रस्तुत किये हैं जो सामाजिक समस्याओं का समाधान करती है।
    • भारत का सामाजिक उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र दुनिया में सबसे विकसित है। यह स्थानीय साझेदारों के साथ सहयोग करने, उनके अनुभवों से सीखने और शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, नवीकरणीय ऊर्जा, विनिर्माण तथा कौशल विकास के क्षेत्रों में देश की कई सामाजिक समस्याओं के रचनात्मक समाधान खोजने के अनेक अवसर प्रदान करती है।
  • समय की मांग है कि सामाजिक उद्यमियों के लिये कार्यक्रमों को अपनाने, महामारी से प्रेरित अंतराल को पाटने, मौजूदा पहलों को बढ़ावा देने और मुख्यधारा की प्रतिक्रिया प्रणाली का हिस्सा बनने के लिये एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र होना चाहिये।

स्रोत : पी.आई.बी

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