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श्री अरबिंदो की 153वीं जयंती
चर्चा में क्यों?
15 अगस्त, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दार्शनिक और स्वतंत्रता सेनानी श्री अरबिंदो को उनकी 153वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की तथा भारत की राष्ट्र निर्माण यात्रा में उनके योगदान को स्वीकार किया।
मुख्य बिंदु
श्री अरबिंदो के बारे में:
- परिचय:
- अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से संसार को ईश्वरीय अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किया अर्थात् नव्य वेदांत दर्शन को प्रतिपादित किया।
- 5 दिसंबर, 1950 को पुदुचेरी में उनका निधन हो गया।
- शिक्षा:
- उनकी शिक्षा दार्जिलिंग के एक क्रिश्चियन कॉन्वेंट स्कूल में शुरू हुई।
- उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ वे दो शास्त्रीय और कई आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में कुशल हो गए।
- वर्ष 1892 में उन्होंने बड़ौदा (वडोदरा) और कलकत्ता (कोलकाता) में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया।
- उन्होंने शास्त्रीय संस्कृत सहित योग और भारतीय भाषाओं का अध्ययन शुरू किया।
- भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन:
- वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने भारत को अंग्रेज़ो से मुक्त कराने के संघर्ष में भाग लिया।
- अपनी राजनीतिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप, उन्हें 1908 में अलीपुर बम कांड में जेल में डाल दिया गया।
- आध्यात्मिक यात्रा:
- पुदुचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के एक समुदाय की स्थापना की, जिसने वर्ष 1926 में श्री अरबिंदो आश्रम के रूप में आकार लिया।
- उनका मानना था कि पदार्थ, जीवन और मन के मूल सिद्धांतों को स्थलीय विकास के माध्यम से सुपरमाइंड के सिद्धांत द्वारा अनंत एवं परिमित दो क्षेत्रों के बीच एक मध्यवर्ती शक्ति के रूप में सफल किया जाएगा।
- साहित्यिक कृतियाँ:
- वर्ष 1906 में वे अंग्रेज़ी समाचार-पत्र बंदे मातरम (जिसकी स्थापना 1905 में बिपिन चंद्र पाल ने की थी) के संपादक बने।
- योग के आधार
- भगवद्गीता और उसका संदेश
- मनुष्य का भविष्य विकास
- पुनर्जन्म और कर्म
- सावित्री: एक किंवदंती और एक प्रतीक
- आवर ऑफ गॉड
- श्री अरबिंदो के पाँच स्वप्न:
- वर्ष 1947 में, भारत की स्वतंत्रता के बाद, अरबिंदो ने अपने पाँच स्वप्न व्यक्त किये, जिनमें स्वतंत्र और एकजुट भारत, एशिया का पुनरुत्थान, बेहतर जीवन के लिये एक वैश्विक संघ, विश्व को भारत का आध्यात्मिक उपहार तथा उच्चतर चेतना एवं सामाजिक पूर्णता की ओर मानव विकास में एक परिवर्तनकारी प्रयास शामिल थे।
- ऑरोविले (Auroville):
- इसकी स्थापना वर्ष 1968 में मिर्रा अल्फासा (The Mother) द्वारा पुदुचेरी में की गई।
- यह एक प्रायोगिक नगर है, जो अरबिंदो की उस दृष्टि को मूर्त रूप देता है जिसमें वैश्विक स्तर पर आध्यात्मिक रूप से एकीकृत समुदाय की परिकल्पना की गई है।
- वर्ष 1966 में यूनेस्को द्वारा अनुमोदित यह सतत् जीवनशैली पर ज़ोर देता है और मानवता की भावी सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, सामाजिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकताओं को संबोधित करता है।


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भारत की पहली ड्रोन फोरेंसिक प्रयोगशाला
चर्चा में क्यों?
देश में पहली बार एक ड्रोन फॉरेंसिक प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश राज्य फॉरेंसिक विज्ञान संस्थान (UPSIFS), लखनऊ में स्थापित की गई है।
मुख्य बिंदु
- प्रयोगशाला के बारे में:
- इस प्रयोगशाला का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था और इसकी संकल्पना तथा स्थापना रोबोटिक्स और ड्रोन प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ मिलिंद राज द्वारा की गई है, जिन्हें 'भारत के ड्रोन मैन' के रूप में भी जाना जाता है।
- कार्य:
- यह प्रयोगशाला पुलिस को वास्तविक समय में ड्रोन को ट्रैक करने, डिकोड करने और जाँच करने में सक्षम बनाएगी, जिससे फोरेंसिक विशेषज्ञों को ड्रोन के उड़ान पथ, टेक-ऑफ स्थान, पेलोड क्षमता एवं विस्फोटक जैसे संभावित खतरों का पता लगाने में मदद मिलेगी।
- इससे ड्रोनों के फोरेंसिक पोस्टमॉर्टम में सहायता मिलेगी, जिससे उनके उद्देश्य और खतरे की संभावना का आकलन किया जा सकेगा तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों को गैर कानूनी गतिविधियों में प्रयुक्त ड्रोनों को समझने में मदद मिलेगी।
- प्रशिक्षण:
- यह प्रयोगशाला पुलिस कर्मियों और फोरेंसिक विशेषज्ञों के लिये एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में काम करेगी, जहाँ उन्हें मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) का व्यावहारिक अनुभव प्रदान किया जाएगा।
- इसके माध्यम से UP पुलिस में एक समर्पित ड्रोन बल तैयार किया जाएगा, जो सुरक्षा निगरानी, भीड़ नियंत्रण और आपराधिक घटनाओं में ड्रोन से जुड़े मामलों पर शीघ्र प्रतिक्रिया दे सकेगा।
- तकनीकी नवाचार और भावी प्रभाव:
- प्रयोगशाला में उन्नत डाटा अधिग्रहण उपकरण, रिवर्स-इंजीनियरिंग सिस्टम, कस्टमाइज्ड किट्स और हाई-टेक कंप्यूटिंग सिस्टम उपलब्ध कराए गए हैं।
- इनकी सहायता से अवैध गतिविधियों में प्रयुक्त ड्रोन को ट्रेस और विश्लेषित करना संभव होगा।
- अनुप्रयोग:
- यह प्रयोगशाला सीमा क्षेत्रों, कारागारों और हवाई अड्डों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा में सहायक होगी।
साथ ही, यह आपदा प्रबंधन और खोज एवं बचाव अभियानों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- यह प्रयोगशाला सीमा क्षेत्रों, कारागारों और हवाई अड्डों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा में सहायक होगी।


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वाराणसी: रेलवे ट्रेक के बीच सौर पैनल लगाने वाला भारत का पहला शहर
चर्चा में क्यों?
वाराणसी भारत का पहला शहर बन गया है, जहाँ रेलवे ट्रैक के बीच पोर्टेबल सोलर पैनल स्थापित किये गये हैं, जो सतत् ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं।
- बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW) में संचालित यह पायलट परियोजना भारतीय रेलवे के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और नेट-जीरो उत्सर्जन हासिल करने के लक्ष्य का समर्थन करती है।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- इस स्थापना में 70 मीटर लंबाई के रेलवे ट्रैक पर फैली सौर पैनल प्रणाली शामिल है, जिसमें 15 kWp क्षमता के 28 पैनल लगे हैं, जो प्रतिदिन प्रति किमी 880 यूनिट बिजली उत्पन्न करते हैं और प्रति किमी 220 kWp का ऊर्जा घनत्व प्रदान करते हैं।
- पैनल डिज़ाइन:
- सौर पैनल हटाने योग्य हैं, जिससे रखरखाव और मौसमी अनुकूलन आसान होता है।
- इन्हें स्वदेशी रूप से डिज़ाइन की गई स्थापना प्रक्रिया के साथ स्लीपरों पर लगाया गया है, ताकि रेल यातायात को बाधित किये बिना सुरक्षित और मज़बूत स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
- रबर माउंटिंग पैड गुजरती ट्रेनों से होने वाले कंपन को कम करते हैं, इपॉक्सी चिपकाने वाला पदार्थ पैनलों को सुरक्षित रखता है तथा पटरियों के बीच की जगह अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता को समाप्त कर देती है।
- पर्यावरणीय एवं परिचालन प्रभाव:
- ऊर्जा उत्पादन क्षमता: इस योजना से प्रति किमी प्रतिवर्ष लगभग 3.21 लाख यूनिट बिजली उत्पादन की संभावना है।
- भारतीय रेलवे नेटवर्क: 1.2 लाख किमी लंबाई वाले रेलवे ट्रैक पर इस तकनीक को व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है, विशेषकर यार्ड लाइन्स पर।
- BLW परिसरों में पहले से स्थापित रूफटॉप सौर विद्युत संयंत्रों के साथ ये पैनल भारतीय रेलवे की नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिबद्धता को और मज़बूत करते हैं।


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कारीकोट गाँव को ICRT पुरस्कार 2025 मिला
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में स्थित कारीकोट गाँव को प्रतिष्ठित भारतीय उपमहाद्वीपीय उत्तरदायी पर्यटन (ICRT) पुरस्कार 2025 के लिये चुना गया है।
- यह पुरस्कार ICRT इंडिया फाउंडेशन द्वारा प्रदान किया जाता है और पर्यटन मंत्रालय द्वारा समर्थित है।
मुख्य बिंदु
- ICRT पुरस्कार 2025:
- यह पुरस्कार सतत् पर्यटन में अग्रणी लोगों को सम्मानित करता है। इसका उद्देश्य नकारात्मक प्रभावों को घटाना और सकारात्मक प्रभावों को बढ़ाना है।
- यह पुरस्कार 13 सितंबर वर्ष 2025 को नई दिल्ली में प्रदान किया जाएगा।
- श्रेणियाँ:
- पुरस्कार समारोह में विभिन्न श्रेणियों जैसे वन टू वॉच, सिल्वर और गोल्ड के अंतर्गत संस्थानों को सम्मानित किया जाएगा।
- मानदंड:
- पैनल ने प्रामाणिकता, प्रतिकृति, सामुदायिक भागीदारी और दीर्घकालिक प्रभाव के आधार पर प्रविष्टियों का मूल्यांकन किया है।
- इस प्रक्रिया में कारीकोट अपनी नवोन्मेषी और समुदाय-आधारित ग्रामीण पर्यटन दृष्टि के कारण विशेष रूप से उभरकर सामने आया, जो स्थायित्व तथा प्रभाव का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- कारीकोट गाँव मॉडल:
- भारत-नेपाल सीमा और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के निकट स्थित कारीकोट में पर्यटन पहल मुख्य रूप से थारू जनजातीय समुदाय द्वारा संचालित है। इसमें होमस्टे, इको-टूरिज्म और सांस्कृतिक अनुभवों पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।
- इन पहलों ने पारंपरिक थारू शिल्प, व्यंजन और लोककलाओं को पुनर्जीवित करने में मदद की है, जिससे कारीकोट थारू विरासत का एक जीवंत संग्रहालय के रूप में उभरा है।
- कारीकोट का समुदाय-आधारित और सतत् पर्यटन मॉडल विशेषकर महिलाओं तथा युवाओं के लिये नए रोज़गार के अवसर एवं दीर्घकालिक लाभ प्रदान करता है।
- उत्तर प्रदेश की ग्रामीण पर्यटन रणनीति:
- कारीकोट को मिली यह मान्यता राज्य के ग्रामीण पर्यटन को विकास का प्रमुख केंद्र बनाने के प्रयास को रेखांकित करती है, जिसे उत्तर प्रदेश बेड एंड ब्रेकफास्ट एवं होमस्टे नीति 2025 और इको-पर्यटन प्रोत्साहन जैसी पहलों का समर्थन प्राप्त है।
थारू जनजाति
- थारू का शाब्दिक अर्थ: ऐसा माना जाता है कि ‘थारू’ शब्द की उत्पत्ति ‘स्थविर’ (Sthavir) से हुई है जिसका अर्थ होता है बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा/परंपरा को मानने वाला।
- निवास स्थान: थारू समुदाय शिवालिक या निम्न हिमालय की पर्वत शृंखला के बीच तराई क्षेत्र से संबंधित है।
- तराई उत्तरी भारत और नेपाल के बीच हिमालय की निचली श्रेणियों के सामानांतर स्थित क्षेत्र है।
- थारू समुदाय के लोग भारत और नेपाल दोनों देशों में पाए जाते हैं, भारतीय तराई क्षेत्र में ये अधिकांशतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार में रहते हैं।
- अनुसूचित जनजाति: थारू समुदाय को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में एक अनुसूचित जनजाति के रूप में चिह्नित किया गया है।
- आजीविका: इस समुदाय के अधिकांश लोग अपनी आजीविका के लिये वनों पर आश्रित रहते हैं, हालाँकि समुदाय के कुछ लोग कृषि भी करते हैं।
- भाषा: इस समुदाय के लोग थारू भाषा (हिंद-आर्य उपसमूह की एक भाषा) की अलग-अलग बोलियाँ और हिंदी, उर्दू तथा अवधी भाषा के विभिन्न रूपों का प्रयोग बोलचाल के लिये करते हैं।
ICRT इंडिया फाउंडेशन
- ICRT इंडिया फाउंडेशन की स्थापना वर्ष 2017 में भारत में उत्तरदायी पर्यटन को समर्थन और विस्तार देने के लिये की गई थी।
- यह केप टाउन उत्तरदायी पर्यटन घोषणा-पत्र 2002 का समर्थन करता है और इसके सिद्धांतों को बढ़ावा देता है।
- फाउंडेशन ने मैग्नाकार्टा द्वीप पर हस्ताक्षरित उत्तरदायी पर्यटन चार्टर 2022 पर हस्ताक्षर किये और उसका समर्थन करता है।

