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भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण

  • 19 May 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 17/05/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘Digitisation of land records is hugely beneficial’’ लेख पर आधारित है। इसमें भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण के महत्त्व और उनके संभावित लाभों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP), डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP)

मेन्स के लिये:

भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण, DILRMP योजना: लाभ, चुनौतियाँ और आगे की राह

भूमि (Land) किसी भी देश के लिये एक मूल्यवान परिसंपत्ति होती है और भारत जैसे देश के लिये तो यह और भी मूल्यवान है जहाँ 50% से अधिक कार्यशील आबादी कृषि कार्यों में संलग्न है। इस परिदृश्य में एक आधुनिक, व्यापक और पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली विकसित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

  • इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2016 में ‘डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Digital India Land Records Modernization Programme- DILRMP) के प्रवर्तन के माध्यम से पूर्ववर्ती राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (National Land Record Modernization Programme- NLRMP) को नया रूप प्रदान किया।

भूमि का महत्त्व 

  • आजीविका का स्रोत: भूमि मनुष्यों सहित विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों को पर्यावास और भरण-पोषण प्रदान करती है। भारत में 50% से अधिक कार्यशील आबादी कृषि कार्य से संलग्न है, जो प्राथमिक संसाधन के रूप में भूमि पर निर्भर करती है।
    • भूमि का उपयोग वानिकी, खनन और अन्य गतिविधियों के लिये भी किया जाता है जो आय एवं रोज़गार का सृजन करते हैं।
  • अर्थव्यवस्था: भूमि एक मूल्यवान परिसंपत्ति है जो निवेश को आकर्षित कर सकती है, औद्योगीकरण को बढ़ावा दे सकती है और विकास को प्रेरित कर सकती है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones- SEZs) भूमि-आधारित पहलों के उदाहरण हैं जिनका उद्देश्य निर्यातोन्मुखी उत्पादन के लिये अति-उदारीकृत परिक्षेत्रों (hyper-liberalized enclaves) का निर्माण करना है।
    • भूमि जब हस्तांतरित की जाती है तो कुछ शर्तों और छूटों के अधीन दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ भी उत्पन्न कर सकती है।
  • प्राकृतिक संसाधन:भूमि में खनिज, जल और वन जैसे विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधन भी शामिल होते हैं। ये संसाधन मानव उद्योग और वाणिज्य के लिये अत्यंत उपयोगी हैं।
  • संस्कृति और पहचान:भूमि लोगों के लिये पहचान और संबद्धता (belongingness) का भी एक स्रोत हो सकती है। यह एक विशेष संस्कृति या समुदाय से जुड़ी हो सकती है और यह धार्मिक एवं आध्यात्मिक अभ्यासों में एक भूमिका निभा सकती है।

भारत में भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली के डिजिटलीकरण की आवश्यकता क्यों है?

  • वाद-विवाद में कमी लाना: भारत में न्यायालय में लंबित मामलों में भूमि संबंधी विवादों का एक बड़ा भाग है, जिनके निपटान में दीर्घ समय और लागत का निवेश होता है। एक व्यापक एवं पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली सरकार द्वारा समर्थित स्पष्ट एवं सुरक्षित स्वामित्व अधिकार प्रदान करने के माध्यम से ऐसे विवादों के दायरे एवं आवृत्ति को कम कर सकती है।
  • पारदर्शिता में सुधार: भारत में भूमि अभिलेख प्रायः त्रुटिपूर्ण, पुराने और सरकार के विभिन्न विभागों एवं स्तरों पर खंडित होने की स्थिति रखते हैं। एक व्यापक एवं पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली भूमि अभिलेख के डिजिटलीकरण और उन्हें स्थानिक डेटा एवं अन्य डेटाबेस (जैसे आधार, कर अभिलेख आदि) से जोड़ने के माध्यम से उनकी गुणवत्ता एवं अभिगम्यता में  सुधार कर सकती है।
  • विकास को बढ़ावा: भूमि एक मूल्यवान संपत्ति है जो निवेश को आकर्षित कर सकती है, औद्योगीकरण को बढ़ावा दे सकती है और विकास को प्रेरित कर सकती है। एक व्यापक एवं पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली लेन-देन लागत, जोखिम और अनिश्चितताओं को कम करके भूमि बाज़ारों एवं लेन-देन के लिये अनुकूल वातावरण का निर्माण कर सकती है। यह भूस्वामियों को संपार्श्विक के रूप में अपने भूमि स्वामित्व का उपयोग कर क्रेडिट, बीमा एवं बाज़ार पहुँच पाने में सक्षम बना सकती है।
  • समानता सुनिश्चित करना: एक व्यापक एवं पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली भूमि सुधारों के कार्यान्वयन का समर्थन कर सकती है जिसका उद्देश्य समाज के भूमिहीन और हाशिये पर स्थित वर्गों के बीच भूमि का पुनर्वितरण करना है। यह महिलाओं और अन्य कमज़ोर समूहों को उनके भूमि अधिकारों को मान्यता देने और भूमि संबंधी सेवाओं तक उनकी पहुँच बढ़ाने के रूप में सशक्त बना सकता है।

राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP) 

राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP) एक केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसे वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा देश में भूमि अभिलेख प्रणाली को आधुनिक बनाने और स्वामित्व की गारंटी के साथ निर्णायक भूमि-स्वामित्व प्रणाली को लागू करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। NLRMP को वर्ष 2016 में केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषण के साथ केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में संशोधित किया गया और डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) के रूप में नया नामकरण किया गया।

DILRMP की मुख्य बातें:

  • भूखंडों के लिये एक विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या (Unique Land Parcel Identification Number- ULPIN) या भू-आधार (Bhu-Aadhaar) संख्या निर्दिष्ट की गई है। यह भू-निर्देशांक पर आधारित 14 अंकों की अल्फ़ान्यूमेरिक यूनिक आईडी है, जो किसी भूखंड के स्वामित्व विवरण (आकार और भू-अवस्थिति सहित) को प्राप्त करने के लिये अखिल भारतीय संख्या के रूप में कार्य करेगी। 
  • विलेखों/दस्तावेजों (deeds/documents) के पंजीकरण के संबंध में विभिन्न राज्यों में प्रचलित भिन्न-भिन्न प्रणालियों को संबोधित करने के लिये राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली (National Generic Document Registration System- NGDRS) नामक एक सार्वभौमिक प्रणाली विकसित की गई है।
  • देश में भूमि शासन में विद्यमान भाषाई बाधाओं की समस्या को दूर करने के लिये संविधान में उल्लिखित सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में अधिकार-अभिलेख (Records of Rights) का लिप्यंतरण किया गया है ।
  • DILRMP योजना जाति, आय एवं अधिवास प्रमाणपत्र प्रदान करने जैसी सेवाएँ प्रदान करने और फसल प्रोफ़ाइल, फसल बीमा एवं क्रेडिट सुविधाओं/बैंकों के लिये ई-लिंकेज के संबंध में ऑनलाइन सूचना प्रदान करने को भी सुगम बनाएगी।
  • एक व्यापक भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली लंबे समय से लंबित मध्यस्थता मामलों एवं सीमा-संबंधी विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने में मदद करेगी, जिससे न्यायपालिका एवं प्रशासन पर बोझ कम होगा।

DILRMP किस प्रकार लाभप्रद सिद्ध हो सकता है?

  • भूमि अभिलेखों की गुणवत्ता और अभिगम्यता में सुधार:
    • DILRMP का उद्देश्य भूमि-स्वामित्व और लेन-देन (जैसे बिक्री विलेख, विरासत अभिलेख, बंधक एवं पट्टे के दस्तावेज, भू-कर मानचित्र आदि) के शाब्दिक एवं स्थानिक अभिलेख को डिजिटलीकृत करना और उन्हें अद्यतन करना है।
    • ये अभिलेख आम लोगों के लिये ऑनलाइन उपलब्ध कराए जाते हैं और नियमित रूप से अपडेट किये जाते हैं। यह भूमि डेटा में व्याप्त त्रुटियों, विसंगतियों और अंतरालों को कम करने तथा उन्हें अधिक विश्वसनीय एवं पारदर्शी बनाने में मदद करता है।
  • मुकदमेबाजी और धोखाधड़ी को कम करना:
    • DILRMP का उद्देश्य स्वामित्व की गारंटी के साथ निर्णायक भूमि-स्वामित्व प्रणाली को लागू करना है, जिसका अभिप्राय है कि भूमि अभिलेख भूमि के स्वामित्व का एक निर्णायक प्रमाण प्रदान करेंगे और सरकार द्वारा समर्थित होंगे।
    • स्वामित्व धारक (title holder) अन्य दावेदारों द्वारा किसी भी चुनौती या विवाद से सुरक्षित होंगे और स्वामित्व में किसी भी त्रुटि से उत्पन्न हानि के मामले में सरकार द्वारा क्षतिपूर्ति के हक़दार होंगे।
    • यह भूमि संबंधी विवादों और धोखाधड़ी के दायरे एवं आवृत्ति को कम करने में मदद करेगा, जो भारत में न्यायालय में लंबित मामलों के एक बड़े भाग का निर्माण करते हैं।
  • विकास और वृद्धि को बढ़ावा:
    • DILRMP का उद्देश्य लेन-देन की लागत, जोखिम और अनिश्चितताओं को कम करके भूमि बाज़ारों एवं लेन-देन के लिये अनुकूल वातावरण का निर्माण करना है।
    • यह भूस्वामियों को संपार्श्विक के रूप में अपने भूमि स्वामित्व का उपयोग कर ऋण, बीमा और बाज़ार पहुँच पाने में सक्षम बनाता है।
    • यह निवेश को आकर्षित करने, औद्योगीकरण को बढ़ावा देने और कृषि, अवसंरचना, आवास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है।
  • समानता और अधिकारिता सुनिश्चित करना:
    • DILRMP का उद्देश्य भूमि सुधारों के कार्यान्वयन का समर्थन करना है, जो समाज के भूमिहीन और हाशिये पर स्थित वर्गों के बीच भूमि का पुनर्वितरण करने पर लक्षित है।
    • यह महिलाओं और अन्य कमज़ोर समूहों को उनके भूमि अधिकारों को मान्यता देने और भूमि संबंधी सेवाओं तक उनकी पहुँच बढ़ाने के रूप में सशक्त बनाता है।
    • इससे उनकी आजीविका, गरिमा और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने में मदद मिलती है।

भूमि अभिलेख डिजिटलीकरण से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • राज्यों के बीच समन्वय और सहयोग का अभाव:
    • भूमि राज्य सूची का विषय है और DILRMP का कार्यान्वयन राज्य सरकारों की इच्छा एवं सहयोग पर निर्भर करता है।
    • कुछ राज्य राजनीतिक, प्रशासनिक, कानूनी या तकनीकी बाधाओं जैसे विभिन्न कारणों से DILRMP को अपनाने के प्रति अनिच्छुक या पर्याप्त सुस्त हैं।
    • भूमि कानूनों, नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों के संदर्भ में विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय एवं मानकीकरण का भी अभाव है।
  • अपर्याप्त संसाधन और क्षमता:
    • DILRMP को देश में भूमि अभिलेख प्रणाली के आधुनिकीकरण के वृहत कार्य को पूरा करने के लिये पर्याप्त वित्तीय, मानवीय और तकनीकी संसाधनों एवं क्षमता की आवश्यकता है।
    • लेकिन कार्यान्वयन के विभिन्न स्तरों पर धन, कर्मचारियों, उपकरणों और अवसंरचना की कमी है।
    • भूमि अभिलेख प्रबंधन के लिये आधुनिक तकनीक एवं उपकरणों के उपयोग के मामले में संबद्ध अधिकारियों और कर्मियों के प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण की भी आवश्यकता है।
  • हितधारकों के बीच जागरूकता और भागीदारी की कमी होना:
    • DILRMP के सफल कार्यान्वयन हेतु भू-स्वामियों, खरीदारों, विक्रेताओं, किसानों, बिचौलियों जैसे विभिन्न हितधारकों (जो भूमि अभिलेख प्रणाली में रूपांतरण से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं) की सक्रिय संलग्नता एवं भागीदारी की आवश्यकता है।
    • लेकिन इन हितधारकों में DILRMP के लाभों एवं प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता तथा संवेदनशीलता का अभाव देखा जाता है।

आगे की राह: 

  • राज्यों के बीच समन्वय और सहयोग बढ़ावा देना:
    • DILRMP से संबंधित चुनौतियों एवं समस्याओं को दूर करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
    • इस क्रम में विभिन्न राज्यों में प्रचलित भूमि संबंधित कानूनों, नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों को सुसंगत एवं सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही इन्हें DILRMP की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं और अनुभवों को परस्पर साझा करने की भी आवश्यकता है।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना:
    • DILRMP में होने वाली किसी भी तरह की हेरफेर या भ्रष्टाचार के विरुद्ध केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
    • भूमि सर्वेक्षण, डिजिटलीकरण, सत्यापन और स्वामित्व प्रदान करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
    • DILRMP से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद या शिकायत के समाधान हेतु एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की भी आवश्यकता है।
  • पर्याप्त संसाधन जुटाने के साथ क्षमता विकास पर बल देना:
    • DILRMP के कार्यान्वयन हेतु केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्याप्त धन, कार्मिक, उपकरण और अवसंरचनात्मक ढाँचा प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन हेतु आधुनिक तकनीक एवं उपकरणों के उपयोग के संबंध में संबंधित अधिकारियों एवं कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • इस संदर्भ में दक्षता बढ़ाने हेतु सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का भी लाभ उठाया जा सकता है।
  • हितधारकों के बीच जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देना:
    • केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा DILRMP के लाभों एवं प्रक्रियाओं के बारे में संलग्न हितधारकों को बताना एवं इस संदर्भ में संवेदनशीलता विकसित करने की आवश्यकता है।
    • स्पष्ट और सटीक जानकारी प्रदान करने के माध्यम से DILRMP के बारे में हितधारकों की आशंकाओं या भ्रामक धारणाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
    • भूमि अभिलेख प्रबंधन की प्रक्रिया में हितधारकों की संलग्नता एवं भागीदारी को प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) एक पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रणाली विकसित करने के लिये शुरू किया गया था। इस योजना के लाभों एवं चुनौतियों की चर्चा करते हुए आगे की राह बताइये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्र. स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?

(a) हदबंदी कानून पारिवारिक जोत पर केंद्रित थे, न कि व्यक्तिगत जोत पर।
(b) भूमि सुधारों का प्रमुख उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि भूमि प्रदान करना था।
(c) इसके परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती, कृषि का प्रमुख रूप बन गई।
(d) भूमि सुधारों ने हदबंदी सीमाओं को किसी भी प्रकार की छूट की अनुमति नहीं दी।

उत्तर: (b)


मेन्स

प्र. कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका की विवेचना कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों को चिह्नित कीजिये। (2016)

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