उत्तर प्रदेश Switch to English
रानी लक्ष्मीबाई की जयंती
चर्चा में क्यों?
राष्ट्र ने रानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की तथा 1857 के विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित नेताओं में से एक और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में उनके योगदान का सम्मान किया।
मुख्य बिंदु
रानी लक्ष्मीबाई के बारे में:
- प्रारंभिक जीवन:
- उनका जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था तथा उनका वास्तविक नाम मणिकर्णिका था।
- उन्होंने बचपन में घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और निशानेबाज़ी का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया, जो उनके शारीरिक कौशल तथा युद्ध क्षमता के प्रति प्रारंभिक झुकाव को दर्शाता है।
- उनका पालन-पोषण नाना साहेब और तात्या टोपे जैसे उल्लेखनीय साथियों के बीच हुआ, जिन्होंने बाद में 1857 के विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई।
- मणिकर्णिका बनी झाँसी की रानी:
- चौदह वर्ष की आयु में मणिकर्णिका का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव नेवालकर से हुआ और इसके बाद उन्हें रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना गया।
- उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसकी बचपन में ही मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् शाही दंपत्ति ने महाराजा के परिवार से दत्तक पुत्र दामोदर राव को गोद लिया, जो सिंहासन का उत्तराधिकारी बना।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- वर्ष 1853 में गंगाधर राव की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने दत्तक उत्तराधिकारी को मान्यता देने से इंकार कर दिया और व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of Lapse) के तहत झाँसी को हड़पने का प्रयास किया।
- रानी लक्ष्मीबाई ने इसका सशक्त विरोध किया और ब्रिटिश सेना के विरुद्ध उल्लेखनीय रूप से लड़ाई लड़ी तथा असाधारण साहस के साथ झाँसी की रक्षा की।
- झाँसी छोड़ने के बाद भी उन्होंने लड़ाई जारी रखी और अंततः 17 जून, 1858 को युद्धक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की।
- उनकी विरासत ने स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित करना जारी रखा, जिसमें वर्ष 1943 में भारतीय राष्ट्रीय सेना की पहली महिला इकाई, झाँसी की रानी रेजिमेंट भी शामिल है।
व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse)
- यह लॉर्ड डलहौज़ी (1848-1856) के कार्यकाल के दौरान लागू की गई एक विलय नीति थी।
- इसमें प्रावधान किया गया था कि यदि किसी रियासत के शासक की मृत्यु उसके प्राकृतिक पुरुष उत्तराधिकारी के बिना हो जाती है, तो ब्रिटिश प्रभाव के अधीन रियासत को विलय कर लिया जाएगा तथा दत्तक पुत्रों को उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी।
- इस सिद्धांत का उपयोग करते हुए डलहौज़ी ने सतारा (1848), जैतपुर और संबलपुर (1849), बघाट (1850), उदयपुर (1852), झाँसी (1853) तथा नागपुर (1854) सहित कई राज्यों को अपने अधीन कर लिया।
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साउंड्स ऑफ कुंभ
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित और प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ से प्रेरित संगीत एल्बम ‘साउंड्स ऑफ़ कुंभ’ को 68वें ग्रैमी अवार्ड के लिये नामांकित किया गया है।
मुख्य बिंदु
- एल्बम साउंड्स ऑफ कुंभ सिद्धांत भाटिया द्वारा निर्मित 12-ट्रैक का प्रोडक्शन है, जिसमें ग्रैमी विजेताओं सहित 50 से अधिक वैश्विक कलाकार शामिल हैं।
- यह एल्बम महाकुंभ के संपूर्ण अनुभव पर आधारित है, जिसमें तीर्थयात्रा, नदी संगम, मंत्रोच्चारण और अनुष्ठानों की परिवेशगत ध्वनियों को समाहित किया गया है, जिससे वैश्विक मंच पर भारत की सांस्कृतिक विरासत प्रतिबिंबित होती है।
- इसे अनुष्का शंकर और बैंड शक्ति जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के साथ सर्वश्रेष्ठ वैश्विक संगीत एल्बम श्रेणी में नामांकित किया गया है।
- 68वाँ ग्रैमी समारोह 1 फरवरी, 2026 को लॉस एंजिल्स में आयोजित किया जाएगा।
ग्रैमी अवार्ड
- ग्रैमी अवार्ड संयुक्त राज्य अमेरिका में रिकॉर्डिंग अकादमी द्वारा संगीत उद्योग में उत्कृष्ट उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिये प्रतिवर्ष प्रदान किये जाते हैं।
- इन्हें बिलबोर्ड म्यूजिक अवार्ड्स और अमेरिकन म्यूजिक अवार्ड्स के साथ "बिग थ्री" प्रमुख अमेरिकी संगीत पुरस्कारों में से एक माना जाता है।
- ये पुरस्कार कलात्मक उत्कृष्टता और तकनीकी दक्षता दोनों को मान्यता देने के लिये जाने जाते हैं, जिनमें कलाकार, संगीतकार, निर्माता, ध्वनि इंजीनियर तथा संयोजक शामिल हैं।
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कौशांबी में बौद्ध पर्यटन
चर्चा में क्यों?
कौशांबी ज़िले को बौद्ध पर्यटन के विकास का केंद्र बना जा रहा है, क्योंकि ज़िले में उत्तर प्रदेश के बौद्ध सर्किट में इसे एकीकृत करने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न विकास परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं, जिनमें नई वंदे भारत सेवाओं का शुभारंभ भी शामिल है।
मुख्य बिंदु
- पर्यटन परियोजनाएँ:
- उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग कौशांबी ज़िले के कोसम इनाम गाँव को एक प्रमुख बौद्ध पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर रहा है, जिसके तहत 11 हेक्टेयर क्षेत्र में बुद्ध थीम पार्क का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
- गाँव में अन्य विकास कार्यों में एक सामान्य सुविधा केंद्र और एक थीम गेट भी शामिल हैं।
- उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग कौशांबी ज़िले के कोसम इनाम गाँव को एक प्रमुख बौद्ध पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर रहा है, जिसके तहत 11 हेक्टेयर क्षेत्र में बुद्ध थीम पार्क का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
- बौद्ध मठ: कौशांबी में तीन महत्त्वपूर्ण बौद्ध मठ हैं:
- घोसिताराम मठ: यह कौशांबी का सबसे महत्त्वपूर्ण बौद्ध स्थल है। इसे धनाढ्य व्यापारी घोसिता ने बनवाया था। यहाँ बुद्ध ने अपने छठे और नौवें वर्षा निवास (वर्षवास) बिताए तथा अनेक महत्त्वपूर्ण उपदेश दिये।
- कुकुता मठ: इस मठ का उल्लेख प्राचीन बौद्ध ग्रंथों (त्रिपिटक) में स्पष्ट रूप से किया गया है। यह बुद्ध के समय कौशांबी में चार मुख्य स्थलों में से एक था।
- पवरिकम्बवन मठ: बौद्ध धर्मग्रंथों में इसका भी उल्लेख है। यह पवरिक का आम्र उद्यान था, बुद्ध ने यहाँ भी प्रवास किया और उपदेश दिये।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
बिरसा 101
चर्चा में क्यों?
विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्री ने सिकल सेल रोग के लिये भारत की पहली स्वदेशी CRISPR-आधारित जीन थेरेपी ‘बिरसा 101’ का शुभारंभ किया है।
- बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती (15 नवंबर,2025) के उपलक्ष्य में उनके नाम पर शुरू की गई यह थेरेपी राष्ट्र को “सिकल सेल -मुक्त भारत” के लक्ष्य की दिशा में सशक्त बनाती है तथा यह मध्य और पूर्वी भारत के प्रभावित जनजातीय समुदायों को महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करेगी।
मुख्य बिंदु
- थेरेपी के बारे में:
- यह जीन थेरेपी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद–जीनोमिक्स एवं एकीकृत जीवविज्ञान संस्थान (CSIR-IGIB) द्वारा विकसित की गई है तथा एक संरचित प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण समझौते के माध्यम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को हस्तांतरित की गई है, जिससे प्रयोगशाला से बाज़ार तक तीव्र मार्ग सुनिश्चित हुआ।
- इसे सार्वजनिक-निजी मॉडल द्वारा वंचित समुदायों तक उच्च-गुणवत्ता वाली तथा सस्ती जीनोमिक थेरेपी उपलब्ध कराने के लिये तैयार किया गया है।
- CRISPR तकनीक
- CRISPR (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats) बैक्टीरिया में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक रक्षा-तंत्र है, जिसका उपयोग वायरल DNA को काटने के लिये किया जाता है।
- आधुनिक जीन-एडिटिंग में CRISPR-Cas9 का प्रयोग किया जाता है, जहाँ Cas9 विशिष्ट लक्षित स्थलों पर DNA को काटने हेतु आणविक कैंची की भाँति कार्य करता है।
- यह तकनीक सटीक, कुशल तथा कम-लागत वाले जीनोम-एडिटिंग को सक्षम बनाती है, जिसके कारण यह जैव-प्रौद्योगिकी तथा चिकित्सा अनुसंधान में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है।
- इसे प्रथम बार वर्ष 2012 में जीन-एडिटिंग उपकरण के रूप में प्रदर्शित किया गया, जिसका विकास जेनिफर डूडना तथा इमैनुएल चार्पेंटियर ने किया; जिन्हें रसायन-विज्ञान में वर्ष 2020 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
सिकल सेल रोग (SCD)
- सिकल सेल रोग एक ऑटोसोमल रिसेसिव आनुवंशिक रक्त-विकार है, जो HBB जीन में उत्परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है।
- इससे असामान्य हीमोग्लोबिन-S बनता है, जिसके परिणामस्वरूप लाल रक्त कोशिकाएँ अर्धचंद्राकार तथा कठोर हो जाती हैं। इससे एनीमिया, तीव्र दर्द, संक्रमण तथा अंग-संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं ।
- यह रोग मध्य तथा पूर्वी भारत के आदिवासी समुदायों में अत्यधिक प्रचलित है तथा राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (2023–2047) के अंतर्गत एक प्रमुख फोकस-क्षेत्र है।
- इसके पारंपरिक उपचारों में हाइड्रॉक्सीयूरिया, रक्त-आधान तथा स्टेम-सेल प्रत्यारोपण सम्मिलित हैं।
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