भारतीय राजव्यवस्था
अनुच्छेद 143 के अंतर्गत राष्ट्रपति की शक्ति
- 20 May 2025
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प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 143, सर्वोच्च न्यायालय, राज्यपाल, अनुच्छेद 200 और 201, केंद्रीय मंत्रिपरिषद, अनुच्छेद 145(3), मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व, कॉलेजियम प्रणाली, रिट मेन्स के लिये:भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 का महत्त्व, विधेयक पारित करने में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संघर्ष, केंद्र-राज्य संघीय तनाव, शक्तियों का पृथक्करण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 का प्रयोग करते हुए 14 संवैधानिक प्रश्नों पर परामर्शदायी राय हेतु सर्वोच्च न्यायालय को निर्देशित किया है।
- यह निर्देश हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय के बाद दिया गया है, जिसमें तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले, 2023 में अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिये राज्यपालों और राष्ट्रपति के समयावधि निर्धारित की गई थी।
- इस संदर्भ में 14 प्रमुख प्रश्नों पर विचार करने का निर्देश दिया गया है, जो मुख्य रूप से अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं, तथा विधेयक के अधिनियम बनने से पहले कार्यकारी कार्रवाइयों की न्यायसंगतता से संबंधित हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 क्या है?
- अनुच्छेद 143 (सलाहकार क्षेत्राधिकार) के तहत भारत के राष्ट्रपति को किसी भी कानून या तथ्य के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की सलाहकारी राय लेने का अधिकार है, जो सार्वजनिक महत्त्व का है और जिसके उठने की संभावना है या जो पहले ही उठ चुका है।
- यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के सलाहकार क्षेत्राधिकार को स्थापित करता है, जो केवल राष्ट्रपति के लिये है।
- संदर्भित प्रश्नों के प्रकार:
- अनुच्छेद 143 (1): राष्ट्रपति किसी भी विधि या तथ्य के प्रश्न को, जो सार्वजनिक महत्त्व का हो या जिसके उठने की संभावना हो, राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है या देने से इंकार कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 में राम जन्मभूमि मामले के संबंध में अपनी राय देने से इंकार कर दिया था।
- अनुच्छेद 143(2): यह राष्ट्रपति को संविधान-पूर्व किसी भी संधि, समझौते, वचन, सनद या अन्य समान दस्तावेज़ों से उत्पन्न विवादों को राष्ट्रपति को संदर्भित करने की अनुमति देता है। सर्वोच्च न्यायालय को अपनी राय राष्ट्रपति को देनी चाहिये।
- अनुच्छेद 143 (1): राष्ट्रपति किसी भी विधि या तथ्य के प्रश्न को, जो सार्वजनिक महत्त्व का हो या जिसके उठने की संभावना हो, राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है या देने से इंकार कर सकता है।
- सलाह की प्रकृति: दोनों मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई राय केवल परामर्शात्मक है, न कि न्यायिक घोषणा।
- इसलिये, यह राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी नहीं है; वह इस राय का पालन कर सकता है या नहीं भी कर सकता है।
- हालाँकि, यह सरकार को किसी मामले पर निर्णय लेने हेतु आधिकारिक कानूनी राय प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है।
राष्ट्रपति संदर्भ के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- अनुच्छेद 143 के अंतर्गत राष्ट्रपति को यह शक्ति प्राप्त है कि वह केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर किसी विधि या सार्वजनिक महत्त्व के तथ्य के प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय को उसकी राय के लिये प्रेषित कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 145 (3) के अनुसार ऐसे संदर्भों की सुनवाई कम-से-कम पाँच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जाएगी।
- ऐतिहासिक संदर्भ: अनुच्छेद 143 के अंतर्गत परामर्शात्मक क्षेत्राधिकार की उत्पत्ति भारत सरकार अधिनियम, 1935 से हुई है, जिसके अंतर्गत गवर्नर-जनरल को संघीय न्यायालय को कानूनी प्रश्नों के संदर्भ में भेजने की अनुमति थी।
- कनाडा का संविधान अपने सर्वोच्च न्यायालय को कानूनी मत देने की अनुमति देता है, जबकि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय शक्ति पृथक्करण की सख्ती बनाये रखने के लिये परामर्शात्मक मत देने से बचता है।
- ऐसे संदर्भों के पिछले उदाहरण: अनुच्छेद 143 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति द्वारा लगभग 15 संदर्भ भेजे गए हैं। कुछ ऐतिहासिक मामले इस प्रकार हैं:
- दिल्ली कानून अधिनियम मामला (1951): इसने प्रतिनिधिक विधायन (Delegated Legislation) की सीमा को परिभाषित किया।
- केरल शिक्षा विधेयक (1958): निर्देशक सिद्धांतों के साथ मौलिक अधिकारों का सामंजस्य स्थापित किया।
- बेरुबारी मामला (1960): यह निर्णय दिया गया कि क्षेत्रीय हस्तांतरण के लिये संवैधानिक संशोधन आवश्यक है।
- केशव सिंह केस (1965): इसने विधायी विशेषाधिकारों की व्याख्या की।
- राष्ट्रपति चुनाव मामला (1974): इसमें कहा गया कि राज्य विधानसभाओं में रिक्तियों के बावजूद चुनाव कराए जा सकते हैं।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (1998): न्यायिक नियुक्तियों के लिये कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना की गई ।
- वर्तमान संदर्भ में प्रमुख मुद्दे: यह इस बारे में मुद्दा उठाता है कि क्या न्यायालय राष्ट्रपति और राज्यपालों पर समयसीमा लागू कर सकते हैं, जो संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं है (विशेषकर अनुच्छेद 200 एवं 201 के अंतर्गत )।
- यह अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय प्रावधान) के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति की सीमा पर भी प्रश्न उठाता है ।
- सलाहकार संदर्भ के माध्यम से निर्णय पलटने की शक्ति: वर्ष 1991 के कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के अनुसार , अनुच्छेद 143 का उपयोग स्थापित न्यायिक निर्णयों की समीक्षा करने या उन्हें पलटने के लिये नहीं किया जा सकता है।
- हालाँकि, सरकार अभी भी तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले, 2023 के निर्णय को चुनौती देने के लिये समीक्षा या उपचारात्मक याचिकाएँ दायर कर सकती है।
राष्ट्रपति संदर्भ प्रणाली का महत्त्व क्या है?
- भूमिकाओं की संवैधानिक व्याख्या: यह राष्ट्रपति और राज्यपालों की संवैधानिक भूमिकाओं को स्पष्ट कर सकता है , तथा यह भी स्पष्ट कर सकता है कि क्या गैर-समयबद्ध कार्यकारी कार्य न्यायिक निगरानी के अधीन हो सकते हैं ।
- लोकतांत्रिक ढाँचे की पुनः पुष्टि: यह विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को पुनः परिभाषित करने का अवसर प्रदान करता है , तथा अतिक्रमण को रोककर संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित करता है ।
- प्रक्रियागत निश्चितता: यह अंतर-सरकारी मामलों में प्रक्रियागत अनिश्चितताओं का समाधान करता है और भविष्य में संस्थागत घर्षण को हल करने के लिये दिशानिर्देश स्थापित करने में सहायता प्रदान कर सकता है।
- सुचारू संघीय कार्यप्रणाली: संघीय ढाँचे में, यह संदर्भ केंद्र और राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को परिभाषित करने में सहायता प्रदान करता है, तथा विवाद समाधान के लिये स्पष्ट कानूनी ढाँचे के माध्यम से सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है।
राष्ट्रपति संदर्भ प्रणाली में चुनौतियाँ क्या हैं?
- गैर-बाध्यकारी प्रकृति: सर्वोच्च न्यायालय की अनुच्छेद 143 की सलाह राष्ट्रपति पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, जिससे इसका व्यावहारिक प्रभाव सीमित हो जाता है और इसकी प्रभावशीलता पर संदेह उत्पन्न होता है।
- संभावित राजनीतिकरण: यह प्रणाली राजनीतिक दुरुपयोग के जोखिम से जुड़ी होती है, विशेष रूप से जब सत्तारूढ़ सरकार विवादास्पद निर्णयों को वैध सिद्ध करने या प्रतिकूल निर्णयों पर प्रश्न उठाने के लिये इसका उपयोग करती है। इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है तथा उसे राजनीतिक विवादों में शामिल किया जा सकता है।
- संदर्भ के लिये अस्पष्ट मानदंड: संविधान में यह स्पष्ट नहीं है कि "सार्वजनिक महत्त्व के किसी मामले पर विधिक प्रश्न उठने पर" किसे माना जाएगा। इस कारण कार्यपालिका को अत्यधिक विवेकाधिकार प्राप्त हो जाता है, जिससे कभी-कभी ऐसे मामलों को भी संदर्भित किया जा सकता है जिनका वास्तविक संवैधानिक महत्त्व नहीं होता।
- संस्थागत तनाव: संदर्भ अक्सर न्यायपालिका-कार्यपालिका के विवादों से उत्पन्न होते हैं, जिससे तनाव बढ़ सकता है और विशेष रूप से स्थापित निर्णयों की पुन: समीक्षा के समय न्यायिक स्वतंत्रता दुर्बल हो सकती है।
- प्रतिक्रिया के लिये समय-सीमा का अभाव: संविधान में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रपति संदर्भ पर प्रतिक्रिया देने के लिये कोई निश्चित समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, जिससे आवश्यक मामलों में देरी हो सकती है और शासन तथा नीतिगत स्पष्टता में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक विकास को दर्शाता है। यह न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं, अनुच्छेद 142 के अधिकार-क्षेत्र और कार्यपालिका की कार्रवाइयों की न्यायिक समीक्षा योग्यताओं को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से यह शक्तियों के पृथक्करण को आकार देता है और अधिक संवैधानिक स्पष्टता के द्वारा भारत की संघीय लोकतांत्रिक संरचना को सुदृढ़ करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: अनुच्छेद 143 की संवैधानिक अस्पष्टताओं के समाधान में भूमिका का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। पूर्व में राष्ट्रपति द्वारा किये गए संदर्भों के माध्यम से यह किस प्रकार विकसित हुआ है, स्पष्ट कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. केन्द्र और राज्यों के बीच होने वाले विवादों का निर्णय करने की भारत के उच्चतम न्यायालय की शक्ति किसके अन्तर्गत आती है? (2014) (a) परामर्शी अधिकारिता के अन्तर्गत उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है ? व्याख्या कीजिये। (2019) |