भारतीय राजव्यवस्था
महत्त्वपूर्ण संविधान संशोधन भाग-1
- 01 Jun 2020
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परिचय
विश्व के अन्य संविधानों की तरह ही भारतीय संविधान में भी बदलती परीस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने का प्रावधान किया गया है।
- संविधान के भाग 20 का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान तथा इसकी प्रक्रियाओं को संशोधित करने की शक्तियाँ प्रदान करता है। अनुच्छेद 368 में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार संसद संविधान में नये उपबंध जोड़कर या किसी उपबंध को हटाकर या बदलकर संविधान में संशोधन कर सकती है।
- हालाँकि संसद संविधान के मूल ढाँचे से जुड़े प्रावधानों में संशोधन नहीं कर सकती है। मूल ढाँचे से जुड़े इस सिद्धांत को सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती वाद (वर्ष 1973) में प्रतिपादित किया था।
महत्त्वपूर्ण संशोधनः
प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951:
- संशोधनः
- इसके तहत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को उन्नति के लिये विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्तियाँ दी गई।
- कानून की रक्षा के लिये संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था।
- भमि सुधार तथा न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानूनों को नौंवी अनुसूची में स्थान दिया गया।
- अनुच्छेद 31 में दो उपखंड 31(क) और 31 (ख) जोड़े गये।
- वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के तीन आधार जोड़े गये, ये थे- लोक आदेश, अपराध करने के लिये उकसाना तथा विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिये। प्रतिबंधों को और तर्क सांगत बनाया और इस प्रकार ये न्याययोज्य बना दिये गए।
- यह व्यवस्था की गई कि राज्य ट्रेडिंग और राज्य द्वारा किसी व्यवसाय या व्यापार के राष्ट्रीयकरण को केवल इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता कि यह व्यापार या व्यवसाय के अधिकार का उल्लंघन करता है।
4वाँ संशोधन अधिनियम, 1955:
- संशोधन
- निजी संपत्ति के अनविार्य अधिग्रहण के स्थान पर दिये जाने वाले भत्ते क्षतिपूर्ति की मात्रा को न्यायालयों की जाँच के दायरे से बाहर किया गया।
- राज्य को किसी भी व्यापार का राष्ट्रीयकरण करने का अधिकार दिया गया (या प्राधिकृत किया गया।)
- नौवीं अनुसूची में कुछ और कानून (अधिनियम) जोड़े गये।
- अनुच्छेद 31(।) (कानूनों का संरक्षण) के दायरे को विस्तृत किया गया।
7वाँ संशोधन 1956:
- कारण
- यह संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को तथा राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 को लागू करने के लिये किया गया था।
- संशोधनः
- द्वितीय तथा सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।
- राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति (भाग-क, भाग-ख, भाग-ग और भाग-घ) की गई और इनके स्थान पर 14 राज्यों एवं 6 संघ शासित प्रदेशों को स्वीकृति दी गई।
- उच्च न्यायालयों के न्यायक्षेत्र का विस्तार संघशासित प्रदेशों तक किया गया।
- दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक कॉमन (उभय) उच्च न्यायालय की स्थापना की व्यवस्था (प्रावधान) की गई।
- उच्च न्यायालय में अतिरिक्त एवं कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई।
9वाँ संशोधन अधिनियम, 1960:
- कारण
- भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच हुए समझौतों के अनुसरण में पाकिस्तान को कतिपय राज्य क्षेत्रों का हस्तांतरण करने की दृष्टि से यह संशोधन किया गया।
- इस समझौते के पश्चात् संघ ने इस मामले को उच्चतम न्यायालय के पास भेजा। न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 3 के तहत किसी राज्य के भू-क्षेत्र को घटाने की संसद की शक्ति भारत के किसी भू-भाग को किसी दूसरे देश को सौंपने के मामले पर लागू नहीं होती।
- अतः किसी भारतीय भू-भाग को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करके ही किसी विदेशी राज्य को सौपा जा सकता है।
- संशोधनः
- पश्चिम बंगाल में स्थित बेरूबारी संघराज्य क्षेत्र को भारत-पाक समझौते (1958) के तहत पाकिस्तान को सौंप दिया गया।
10वाँ संशोधन अधिनियम, 1961:
- संशोधन
- दादरा और नागर-हवेली को भारतीय संघ में जोड़ा गया।
11वाँ संशोधन अधिनियम, 1961:
- संशोधन
- उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव किए गए- इसमें संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मंडल की व्यवस्था की गई।
- राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मंडल में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
12वाँ संशोधन अधिनियमः
- संशोधन
- गोवा, दमन और दीव को भारतीय संघ में शामिल किया गया।
13वाँ संशोधन अधिनियम, 1962:
- संशोधन
- नागालैंड को राज्य का दर्जा दिया गया तथा इसके लिये विशेष उपबंध किये गये।
14वाँ संशोधन अधिनियम, 1962:
- संशोधन
- पुदुचेरी को भारतीय संघ में शामिल किया गया।
- संघशासित प्रदेशों जैसे- हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन एवं दीव तथा पुदुचेरी के लिये विधानमंडल तथा मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई।
17वाँ संशोधन अधिनियम, 1964:
- संशोधन
- यदि भूमि का बाज़ार मूल्य बतौर मुआवजा न दिया जाए तो व्यक्तिगत हितों के लिये भू- अधिग्रहण प्रतिबंधित कर दिया गया।
- नौवीं अनुसूची में 44 अतिरिक्त अधिनियमों की बढ़ोतरी की गई (जोड़ा गया)।
18वाँ संशोधन अधिनियम, 1966:
- संशोधन
- इसमें यह स्पष्ट किया गया कि संसद की नये राज्य के निर्माण की शक्ति का अर्थ यह भी है (या इसमें निहित है) कि संसद किसी दूसरे राज्य या संघशासित प्रदेश के किसी भाग को किसी दूसरे राज्य या संघशासित प्रदेश के साथ जोड़कर नया राज्य बना सकती है।
- इसी दौरान पंजाब और हरियाणा नामक दो नये राज्य बनाए गए।
21वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1967:
- संविधान
- सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।
24वाँ संशोधन अधिनियम, 1971:
- संशोधन
- संसद को यह शक्ति दी गई कि वह अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन कर मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है।
- संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति को मंजूरी (अपनी स्वीकृति) देने के लिये बाध्य कर दिया गया।
25वाँ संशोधन अधिनियम, 1971:
- संशोधन
- संपत्ति के मौलिक अधिकार में कटौती की गई।
- यह भी व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 39 (ख)या (ग) में वर्णित नीति-निर्देशक तत्वों को प्रभावी करने के लिये बनाए गये किसी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वह अनुच्छेद 14, 19 और 31 द्वारा मौलिक अधिकारों के संदर्भ में दी गई गारंटी का उल्लंघन करता है।
26वाँ संशोधन अधिनियम, 1971:
- संशोधन
- इसके तहत देशी राज्यों के भूतपूर्व नरेशों के विशेषाधिकारों तथा प्रिवीपर्स की सुविधाओं को समाप्त कर दिया गया।
31वाँ संशोधन अधिनियम, 1972:
- कारण
- वर्ष 1971 की जनगणना के तहत भारत की जनसंख्या में वृद्धि दर्ज की गई।
- संशोधन
- लोकसभा की सीटों की संख्या को 525 से बढ़ाकर 545 कर दिया गया।
33वाँ संशोधन अधिनियम, 1974:
- संशोधन
- अनुच्छेद 101 और 190 में संशोधन कर प्रावधान किया गया कि संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्यों का त्यागपत्र अध्यक्ष/सभापति केवल तभी स्वीकार कर सकता है जब वह आश्वस्त हो जाए कि त्यागपत्र ऐच्छिक या वास्तविक है।
35वाँ संशोधन अधिनियम, 1975:
- संशोधन
- सिक्किम को दिये गये संरक्षित राज्य के दर्जे को समाप्त किया गया तथा उसे भारतीय संघ के एक सह-राज्य का दर्जा दिया गया।
- दसवीं अनुसूची को जोड़ा गया तथा उसमें सिक्किम को भारतीय संघ में शामिल करने संबंधी नियम एवं शर्ते स्पष्ट की गईं।
36वाँ संशोधन अधिनियम, 1975:
- संशोधन
- सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बनाकर दसवीं अनुसूची को समाप्त कर दिया गया।
38वाँ संशोधन अधिनियम, 1975:
- संशोधन
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषाणा को गैर-वादयोग्य बना दिया गया।
- राष्ट्रपति,राज्यपाल एवं केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासकों द्वारा जारी अध्यादेशों को गैर-वाद योग्य घोषित किया गया।
- राष्ट्रपति को विभिन्न आधारों पर राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा करने की शक्तियाँ दी गई।