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राज्यसभा

विशेष/इन-डेप्थ: स्टेम सेल

  • 21 Apr 2018
  • 17 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
जिन गंभीर रोगों में इलाज की मौज़ूदा व्यवस्था प्रभावी नहीं हो पाती, उनके इलाज के लिये स्टेम सेल में मौजूद संभावनाओं पर दुनियाभर में तेज़ी से काम चल रहा है और यह काफी लोकप्रिय भी हो रहा है। स्टेम सेल ऐसी अविभाजित कोशिकाएँ हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग की कोशिका के रूप में विकसित होने की क्षमता होती है। कैंसर, ल्यूकीमिया, थैलेसीमिया और अल्ज़ाइमर जैसे विकट और जानलेवा रोगों का हल खोजने में स्टेम सेल थेरेपी ने सहायता की है। आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में स्टेम सेल एक क्रांतिकारी पहल है और भविष्य में इसे पूर्ण मान्यता मिलने के बाद इसका व्यापक उपयोग होना तय है। 

क्या है स्टेम सेल?
स्टेम सेल शरीर की मूल कोशिका है, इसलिये पहला स्टेम सेल भ्रूण में ही बनता है। मनुष्य का शरीर असंख्य कोशिकाओं से बना हुआ है और इनके अपने-अपने कार्य होते हैं। स्टेम सेल विभाजित होने के बाद भी फिर से पूर्ण रूप धारण कर लेता है। इससे शरीर की लगभग सभी कोशिकाओं को कृत्रिम रूप से निर्मित किया जा सकता है, अर्थात् स्टेम सेल से शरीर के किसी अंग की कोशिका तैयार की जा सकती है।

स्टेम सेल की संरचना 

  • स्टेम सेल ब्लैंक सेल होते हैं, जिनमें शरीर के भीतर लगभग सभी प्रकार की अलग-अलग कोशिकाओं के रूप में विकसित हो जाने की अद्भुत क्षमता होती है। 
  • ऊतकों की अंदरूनी मरम्मत का काम भी करते हैं ये सेल और आपस में विभक्त होकर अन्य खराब कोशिकाओं की क्षतिपूर्ति करते रहते हैं। ये सेल ऐसा तब तक करते रहते हैं, जब तक मनुष्य जीवित रहता है। 
  • विभक्त होते रहना इनका स्वभाव है और जैसे ही कोई एक स्टेम सेल विभक्त होता है, तो उससे बनने वाले सेल के अंदर भी उसके जैसे गुण उत्पन्न हो जाते हैं। 
  • कई बार नया सेल किसी अन्य प्रकार का सेल बन जाता है, जैसे-माँसपेशी, लाल रक्त कण या मस्तिष्क का सेल। ये सेल साधारण सेल्स से कुछ अलग होते हैं क्योंकि ये ब्लैंक सेल होते हैं, जो आपस में विभक्त होते रहते हैं तथा कुछ विशेष परिस्थितियों में किसी अंग विशेष का सेल बनाया जा सकता है।

चार प्रकार के होते हैं स्टेम सेल
वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल्स को चार प्रमुख प्रकारों में बाँटा है:

  • टोटीपोटेंट: इन भ्रूण सेल्स को कृत्रिम रूप से विकसित किया जाता है और अपनी संख्या को बढ़ाते रहना इनकी विशेषता होती है। 
  • मल्टीपोटेंट: ये कोशिकाएँ किसी अंग को बढ़ाने या उसकी मरम्मत करने का काम करती हैं, जैसे-अस्थि मज्जा या रक्त बनाने में सहायक कोशिकाएँ। 
  • प्लूरीपोटेंट: इन सेल्स की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये किसी भी कोशिका का रूप ले लेती हैं। 
  • यूनीपोटेंट: इस प्रकार की कोशिकाएँ स्वयं ही बढ़ने वाली होती हैं तथा समय पड़ने पर परिपक्व कोशिका का रूप ले लेती हैं।

यहाँ से लिये जाते हैं स्टेम सेल
भ्रूण (Foetal): इस प्रकार के स्टेम सेल लेने के लिये 16 हफ्ते के गर्भ का माता-पिता की अनुमति लेकर गर्भपात कराया जाता है और उससे ये स्टेम सेल लिये जाते हैं। इसमें भी मैचिंग की जरूरत होती है और यह अमानवीय भी है। कानूनन इसकी अनुमति नहीं है।

गर्भनाल (Umbilical Cord): यह स्टेम सेल्स और ऊतकों का एक समृद्ध स्रोत है। परंपरागत रूप से गर्भनाल को काटने के बाद इसे स्टेम सेल बैकों में सुरक्षित रखवा दिया जाता है। इससे मिलने वाले स्टेम सेल्स और ऊतकों का उपयोग शिशु के संपूर्ण जीवनकाल के दौरान आने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के निवारण में किया जा सकता है। यदि ये स्टेम सेल शिशु के भाई-बहनों से मेल खाते हैं तो उनके लिये भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

वयस्क (अस्थि-मज्जा या रक्त) स्टेम सेल
वयस्क स्टेम सेल दो तरह के होते हैं--बोन मैरो और कॉर्ड ब्लड, लेकिन इन दोनों ही तरह के हासिल किये गए सेल्स से बीमारियों का इलाज करने के लिये मैचिंग की जरूरत होती है। अर्थात् किसी के कॉर्ड ब्लड से लिये गए सेल को किसी को भी नहीं दिया जा सकता। इसके लिये उसी तरह मैचिंग की ज़रूरत होती है, जैसे किसी रोगी को रक्त्त चढ़ाते समय होती है।

स्टेम सेल शोध में ओटोलोगस बोन मेरो स्टेम सेल को सबसे उच्चतम मानक माना जाता है, क्योंकि इसमें अधिकतम क्षमता होती है। इसलिये इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। भ्रूण सेल की तुलना में वयस्क स्टेम सेल में गुणवत्ता अधिक होती है। 

वयस्क स्टेम सेल तकनीक से इलाज करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे रोगी की ही अस्थि-मज्जा से लिया जाता है, जिससे बाहर के किसी वायरस या बीमारी होने का खतरा नहीं रहता और शरीर भी आसानी से स्टेम सेल को स्वीकार लेता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

स्टेम सेल थेरेपी क्या है?

  • स्टेम सेल थेरेपी में यह अद्भुत क्षमता होती है कि यह शरीर के उन ऊतकों और अंगों को पुनर्जीवित कर देती है जो किसी रोग या जन्मजात विकृतियों के कारण बेकार हो गए हैं। 
  • स्टेम सेल ऐसी मुख्य कोशिकाएँ हैं जो मस्तिष्क कोशिकाओं, रक्त कोशिकाओं आदि जैसी विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं और अंगों के ऊतकों (Tissues) में विकसित हो सकती हैं। 
  • यह दावा तो नहीं किया जा सकता कि इस थेरेपी से असाध्य रोग पूरी तरह ठीक हो जाएंगे, लेकिन इसमें रोगमुक्त होने तथा अंगों के पुनर्जीवित होने की अद्भुत क्षमता होती है। 
  • इस थेरेपी की यह क्षमता इसे थैलेसीमिया, ल्यूकीमिया, लिंफोमा और अन्य कैंसर जैसे विकट रोगों का उपचार करने के लिये एक आदर्श विकल्प बनाती है। 
  • इनके अलावा रीढ़ की हड्डी की चोट, लिवर संबंधी विकार,टाइप-1 और 2 डायबिटीज, हृदय संबंधी विकार, तंत्रिका तंत्र के विकार, आनुवंशिक विकार, किडनी विकार, पार्किंसन्स रोग, अल्ज़ाइमर आदि में भी स्टेम सेल थेरेपी को उपयोगी माना जा रहा है। 

लेकिन यह भी उतना ही सच है कि विश्वभर में अभी तक स्टेम सेल से इलाज के लिये जो तरीका मान्यताप्राप्त है, वह अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण (Bone Marrow Tranplantation) का ही है तथा कानूनन अन्य सभी प्रयोग अभी शोध के चरण में हैं। इन पर सवाल यह उठाया जाता है कि जिस तकनीक के अभी तक क्लीनिकल ट्रायल ही नहीं हुए, उस तकनीक को मरीज़ों पर इस्तेमाल करना कितना सही है?

स्टेम सेल बैंक

  • स्टेम सेल्स के उपयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये कोशिकाएँ हमारे अपने शरीर की होती हैं तथा हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इन्हें बाह्य समझकर अस्वीकार नहीं करता।
  • स्टेम सेल बैंकिंग शिशु को स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में किया गया एक प्रयास है। 
  • आजकल कई माता-पिता अब गर्भनाल को स्टेम सेल बैंक में जमा करने का विकल्प अपनाने लगे हैं, ताकि इन जीवनदायी स्टेम सेल्स और ऊतकों का भविष्य में बीमारियों की स्थिति में उपयोग किया जा सके। 
  • स्टेम सेल बैंकिंग दो प्रकार की होती है--पब्लिक व प्राइवेट। 
  • पब्लिक स्टेम सेल बैंकिंग के तहत अभिभावक स्वेच्छा से अपने शिशु की गर्भनाल रक्त कोशिकाएँ बैंक को डोनेट करते हैं। इनकी मदद से किसी भी ज़रूरतमंद व्यक्ति का इलाज किया जा सकता है। 
  • प्राइवेट स्टेम सेल बैंकिंग के तहत जिस शिशु की गर्भनाल रक्त कोशिकाएँ स्टोर की जाती हैं, उसके या उसके परिवार के किसी सदस्य के इलाज के लिये उन सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है। 
  • भारत में एम्स जैसे कुछ विशेष मेडिकल संस्थानों में पब्लिक स्टेम सेल बैंक हैं, वहीं प्राइवेट स्टेम सेल बैंकिंग की सुविधा भी कई जगह उपलब्ध है।
  • माना जाता है कि मान्यता मिल जाने के बाद स्टेम सेल्स का उपयोग 80 प्रकार की चिकित्सकीय परिस्थितियों में किया जा सकता है। 
  • स्टेम सेल बैंकिंग की प्रक्रिया में सेल्स को क्रायोजेनिक तरीके से (-196°C तापमान पर) कई वर्षों के लिये संरक्षित करके रखा जा सकता है। 
  • प्रयोगशाला में कोशिका को उपयुक्त पोषक पदार्थ और वृद्धि कारकों की उपस्थिति में संवर्द्धित किया जाता है, जिससे विशिष्ट जीन सक्रिय होते हैं, कोशिका विभाजन बढ़ता है और विशेष ऊतकों का निर्माण होता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

स्टेम सेल शोध के लिये नोबेल

  • स्टेम सेल पर बेहतरीन शोध करने के लिये 2012 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार ब्रिटेन के जॉन गरडन और जापान के शिन्या यामानाका को वयस्क शरीर की कोशिकाओं को फिर से भ्रूण वाली स्थिति में पहुँचाने की खोज हेतु संयुक्त रूप से दिया गया था। 
  • यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन के प्रोफेसर गरडन ने जिस साल (1962 में) स्टेम सेल पर अपनी महत्त्वपूर्ण खोज की, उसी साल जापान में यामानाका का जन्म हुआ था। 
  • न दोनों विज्ञानियों ने सेल्स और ऑर्गेनिज्म पर जो शोध किये हैं, उनसे भविष्य में अनेक रोगों का उपचार करना संभव हो सकेगा।
  • इन दोनों ने इस बात का पता लगाया कि विकसित विशेष सेल की प्रोग्रामिंग कर उसे अविकसित सेल में बदला जा सकता है जो शरीर का ऊतक बनने की अवस्था में होता है। 

भारत में स्टेम सेल थेरेपी का नियमन 
भारत में स्टेम सेल थेरेपी अनुमोदित उपचार विधि नहीं है। केवल हेमेटोलॉजिकल विकारों और कैंसरों के लिये अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण ही अनुमोदित स्टेम सेल थेरेपी का एक प्रकार है और पिछले 25 से अधिक वर्षों से चलन में है। अन्य रोग स्थितियों/रोगों के लिये अभी स्टेम सेल थेरेपी को प्रमाणित, सुरक्षित और प्रभावकारी नहीं माना गया है।

विश्व के अन्य अधिकांश देशों की तरह भारत में भी स्टेम सेल उपचार अभी अनुसंधान के स्तर पर है, लेकिन विदेशों में इसके नियमन की बेहतर व्यवस्था है। इस क्षेत्र में विपुल संभावनाओं के बावजूद परेशानियाँ भी कम नहीं हैं, इसीलिये इसका जितना विकास देश में होना चाहिये था, उतना हुआ नहीं है। इस दिशा में नियमन और नियंत्रण के लिये कोई कानून नहीं है, इसके कारण शोध आदि करने में कठिनाई होती है। एक अन्य कारण इसका बहुत महँगा होना भी है। इसके अलावा, भारत में क्लीनिकल ट्रायल करना भी आसान नहीं है और इसका फायदा विदेशों को मिल रहा है। 

  • इस मामले में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने वर्ष 2002 में ‘मूल कोशिका अनुसंधान के लिये मसौदा दिशानिर्देश/विनियम’ जारी किये थे, जिन पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग में व्यापक स्तर पर कार्य किया गया। 
  • इसके परिणामस्वरूप स्टेम सेल अनुसंधान एवं थेरेपी के लिये दिशा-निर्देश 2007 में जारी किये गए थे। 
  • इसके बाद सभी हितधारकों से प्राप्त सूचना और परामर्श को सम्मिलित करके मसौदा दिशा-निर्देश को नेशनल गाइडलाइंस फॉर स्टेम सेल रिसर्च 2013 के तौर पर तैयार किया गया। 
  • यह दस्तावेज़ इस क्षेत्र में कार्य कर रहे चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को वैज्ञानिक तौर पर उत्तरादायी और शिष्टाचार में संवेदनशील तरीके से अनुसंधान करने के लिये मार्गदर्शन करता है। 
  • 2013 के इस दस्तावेज़ में कुछ संशोधनों को सम्मिलित करके तथा अन्य नियमों और विनियमों के सम्मिश्रण के साथ संशोधन कर 11 अक्तूबर, 2017 को जारी किया गया था । 
  • स्टेम सेल थेरेपी अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय दिशानिर्देश-2017 के अनुसार केवल रक्त संबंधी विकारों (रक्त कैंसर और थैलेसीमिया सहित) के लिये बोन मैरो/हेमारोपोइटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण के लिये स्टेम सेल थेरेपी के उपयोग की मंज़ूरी दी गई है। 

निष्कर्ष: जन्म से मृत्युपर्यंत मनुष्य के शरीर में काफी कुछ बनता-बिगड़ता रहता है, अर्थात् शरीर के अंदर सेल्स का बनना और खत्म होना जारी रहता है। मानव शरीर के भीतर एक ऐसा सिस्टम काम करता है, जिसके ज़रिये शरीर के अंदर होने वाली इस टूट-फूट की मरम्मत अपने आप होती रहती है, लेकिन जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, मरम्मत का यह काम भी धीमा पड़ता जाता है। ऐसे में जब कभी शरीर पर वायरस या बैक्टीरिया का हमला होता है, तो बीमारी आसानी से जकड़ लेती है। कभी-कभी सेल भी खराब या बीमार होना शुरू हो जाते हैं और धीरे-धीरे यह स्थिति लाइलाज बीमारियों का रूप लेने लगती है, जैसे-कैंसर जैसी स्थितियाँ। 

जब ऐसी लाइलाज़ बीमारियों को ठीक करने के लिये दवाएं काम करना बंद कर देती हैं तो उम्मीद की एक ही किरण बचती है कि खराब सेल्स के स्थान पर शरीर में नए सेल पैदा हों। स्टेम सेल थेरेपी इन नए सेल्स को शरीर में उत्पन्न करने का काम करती है। स्टेम सेल थेरेपी पर दशकों से दुनियाभर में शोध चल रहे हैं। कई बार नैतिकता के आधार पर तो कई बार किन्हीं और वज़हों से इस पर रोक भी लगाई गई, लेकिन ऐसा तय माना जा रहा है कि लाइलाज बीमारियों में इस तकनीक से सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।

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