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डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

भारत में गरीबी

प्रिलिम्स के लिये: गरीबी, विश्व बैंक, गिनी इंडेक्स, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान और समग्र शिक्षा

मेन्स के लिये: भारत में गरीबी के रुझान, समता, वितरणात्मक न्याय और समावेशी विकास।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया द्वारा किये गए एक नए शोध पत्र में पाया गया है कि भारत ने वर्ष 2011–12 से वर्ष 2023–24 के बीच चरम गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है।

सारांश:

  • भारत में गरीबी में तीव्र गिरावट देखी गई है, जिसमें चरम गरीबी लगभग 2% तक कम हो गई है, साथ ही सामाजिक और धार्मिक समूहों में भी महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
  • बढ़ती खपत, मज़बूत कल्याण प्रणाली और व्यापक ग्रामीण सुधारों ने गरीबी में कमी लाने में सहायता की है।

गरीबी पर अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • चरम गरीबी लगभग समाप्त: वर्ष 2011–12 से वर्ष 2023–24 के बीच गरीबी 21.9% से घटकर 2.3% हो गई, जिससे चरम गरीबी के लगभग समाप्त होने का संकेत मिलता है। यह गिरावट बढ़ती खपत और कल्याण, पोषण तथा मूलभूत सेवाओं तक बेहतर पहुँच के कारण हुई।
  • सभी सामाजिक समूहों में गरीबी में कमी: अनुसूचित जातियाँ (SC), अनुसूचित जनजातियाँ (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और FC सभी में गरीबी में महत्त्वपूर्ण कमी आई। अनुसूचित जनजातियों में गरीबी 8.7% तक घट गई। हालाँकि यह अन्य समूहों की तुलना में अभी भी अधिक है।
    • धार्मिक आधार पर गरीबी का अंतर तेज़ी से कम हुआ है और अब मुस्लिम समुदाय में ग्रामीण गरीबी हिंदुओं की तुलना में थोड़ी कम दर्ज की गई है, जिससे यह सामान्य धारणा कि मुस्लिम समुदाय में अधिक गरीबी है, बदल गई है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में तीव्र कमी: ग्रामीण गरीबी में 22.5 प्रतिशत अंकों की गिरावट हुई, जो शहरी क्षेत्र की 12.6 अंकों की गिरावट से अधिक है। यह मज़बूत कल्याण और बढ़ती खपत के कारण संभव हुआ।
  • लगभग शून्य गरीबी: हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा, दिल्ली, चंडीगढ़ और दमन-दीव में गरीबी स्तर लगभग शून्य के करीब रिकॉर्ड किये गए।

गरीबी क्या है?

  • परिचय: विश्व बैंक के अनुसार, ‘कल्याण में स्पष्ट कमी’ है। गरीब वे लोग हैं जिनकी आय या उपभोग इतना नहीं है कि वे एक न्यूनतम स्वीकार्य स्तर से ऊपर उठ सकें।
    • अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा, जिसका उपयोग निम्न-आय अर्थव्यवस्थाओं में अत्यधिक गरीबी को मापने के लिये किया जाता है, प्रति व्यक्ति प्रति दिन 3.00 अमेरिकी डॉलर पर निर्धारित की गई है (वर्ष 2021 की क्रय शक्ति समानता के आधार पर)।
    • NITI आयोग के अनुसार, गरीबी को मापने के लिये गरीबी रेखा निर्धारित की जाती है (बुनियादी सामाजिक रूप से स्वीकार्य आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु आवश्यक न्यूनतम व्यय) और गरीबी अनुपात उस जनसंख्या के हिस्से को दर्शाता है जो इस रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है।
  • भारत में गरीबी का आकलन:
    • स्वतंत्रता के बाद: योजना आयोग (1962) ने आधिकारिक गरीबी आकलन शुरू किया।
      • बाद में अलघ समिति (1979) और लकड़ावाला समिति (1993) जैसी समितियों ने विधियों को परिष्कृत किया, जिसमें उपभोग व्यय तथा कैलोरी मानदंड पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • तेंदुलकर समिति (2009): कैलोरी-आधारित मानकों से हटकर, एक समान अखिल भारतीय पॉवर्टी लाइन बास्केट (PLB) की सिफारिश की गई और मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (MRP) उपभोग डेटा को अपनाया गया।
      • इसने वर्ष 2011-12 की गरीबी रेखा का अनुमान 816 रुपये (ग्रामीण) और 1,000 रुपये (शहरी) प्रति व्यक्ति प्रति माह लगाया।
    • रंगराजन समिति (2014): तेंदुलकर पद्धति की आलोचना के बाद गठित, इसने ग्रामीण और शहरी PLB को अलग कर दिया, जिसका अनुमान 972 रुपये (ग्रामीण) तथा 1,407 रुपये (शहरी) प्रति व्यक्ति प्रति महीना था।
      • हालाँकि, सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसकी सिफारिशों को नहीं अपनाया।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI):  संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (OPHI) द्वारा वर्ष 2010 में शुरू किया गया, MPI आय से परे गरीबी को मापता है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में अभावों को ध्यान में रखा जाता है।
    • यह एक साथ गरीब व्यक्तियों के अनुपात और उनके द्वारा अनुभव की जाने वाली अभावग्रस्तताओं की औसत संख्या दोनों को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (NMPI): नीति आयोग NMPI को मापने के लिये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) का उपयोग करता है।
    • भारत में बहुआयामी गरीबी वर्ष 2013-14 में 29.17% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.28% हो गई है, जिससे लगभग 24.82 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए हैं।
    • गिनी इंडेक्स वर्ष 2011-12 में 28.8 से घटकर वर्ष 2022-23 में 25.5 हो गया, जो असमानता में कमी को दर्शाता है।

गरीबी का प्रकार

परिभाषा

चरम गरीबी

इसे 2021 की क्रय शक्ति समता के आधार पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन 3.00 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करने के रूप में परिभाषित किया गया है।

सापेक्ष गरीबी

गरीबी का मापन समाज की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में किया जाता है।

बहुआयामी गरीबी (MPI)

यह केवल आय ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में मौजूद विभिन्न कमियों पर विचार करता है।

उपभोग आधारित गरीबी

घरेलू उपभोग व्यय के आधार पर मापा जाता है।

भारत में गरीबी में योगदान देने वाले कारक क्या हैं? 

  • P – निरंतर असमानता: आय का केंद्रीकरण उच्च बना हुआ है, शीर्ष 10% व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है, जिससे निम्न आय वाले परिवारों के लिये अपने जीवन स्तर में सुधार करने के लिये कम संसाधन और अवसर बचते हैं।
  • R – ग्रामीण आर्थिक निर्भरता: कृषि भारत के 46% कार्यबल को नियोजित करती है, लेकिन GDP में इसका योगदान केवल 18% है, जिससे व्यापक स्तर पर अल्प-नियोजन और कम आय की समस्या उत्पन्न होती है।
  • E – शिक्षा और कौशल की कमी: ASER की वर्ष 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि कक्षा 5 के 50% छात्र कक्षा 2 के पाठ को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं, जिससे भविष्य में आय संबंधी गतिशीलता सीमित हो जाती है।
  • S – सामाजिक बहिष्कार: विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, महिलाएँ श्रम आय का केवल 18% ही अर्जित करती हैं, और महिला श्रम बल की भागीदारी लगभग 31% ही बनी हुई है, जो गहरी सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दर्शाती है।
  • S – मलिन बस्तियों का विस्तार और शहरी भेद्यता: भारत की शहरी जनसंख्या का लगभग 17% हिस्सा मलिन बस्तियों में रहता है (जनगणना 2011), जिसमें हालिया वृद्धि प्रवासन और सीमित किफायती आवास के कारण हुई है।
  • U – बेरोज़गारी और अनौपचारिक कार्य: युवा बेरोज़गारी दर 10.2% (PLFS 2023-24) है, जो स्नातकों के लिये बढ़कर 29% हो गई है और कार्यबल का 80% से अधिक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा के बिना अनौपचारिक नियोजन में कार्यरत है।
  • R – क्षेत्रीय असमानताएँ: बिहार जैसे राज्यों में गरीबी का स्तर 25% से अधिक बना हुआ है, जबकि केरल में चरम गरीबी शून्य है, जो संपूर्ण भारत में असमान विकास को दर्शाता है।
  • E – पर्यावरणीय और जलवायु तनाव: लगभग 51% भारतीय बालक गरीबी और जलवायु भेद्यता के दोहरे बोझ का सामना करते हैं; चक्रवात अम्फान जैसी आपदाओं ने अकेले वर्ष 2020 में 24 लाख लोगों को विस्थापित किया।

भारत में निर्धनता कम करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

निरंतर बनी रहने वाली निर्धनता को कम करने के लिये भारत को प्रभावी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है जिससे अवसरों का विस्तार हो, सुरक्षा संजाल सुदृढ़ हो तथा समावेशी एवं अनुकूल विकास को बढ़ावा मिले। 

  • P- लोक सेवाओं को प्रभावी बनाना: आयुष्मान भारत, पोषण अभियान और समग्र शिक्षा के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा तक पहुँच का विस्तार करना चाहिये ताकि दीर्घकालिक मानव पूंजी के साथ अनुकूलनशीलता का निर्माण किया जा सके।
  • R- ग्रामीण आजीविका में विविधता लाना: गैर-कृषि ग्रामीण आय को बढ़ावा देने हेतु MGNREGA पर बल देने के साथ PM-KUSUM, डेयरी/मत्स्य पालन मिशन के माध्यम से संपत्ति सृजन को बढ़ावा देकर कम उत्पादकता वाली कृषि पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना।
  • O – कौशल विकास और रोज़गार के अवसर: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को उन्नत बनाकर तथा मेक इन इंडिया के तहत श्रम-प्रधान क्षेत्रों को बढ़ावा देकर युवा बेरोज़गारी का समाधान करना।
  • S - सामाजिक सुरक्षा संजाल को सुदृढ़ करना: आर्थिक असंतुलन से संवेदनशील परिवारों की सुरक्षा हेतु वन नेशन वन राशन कार्ड, प्रधानमंत्री आवास योजना - शहरी (PMAY-U) 2.0 और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणालियों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा, आवास और प्रत्यक्ष सहायता को सुदृढ़ करना।
  • P - महिलाओं और उपेक्षित समूहों की समावेशिता बढ़ाना: आकांक्षी ज़िलों में DAY-NRLM SHG और लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से आर्थिक भागीदारी को गहन करना।
  • E - जलवायु-अनुकूल प्रणालियों का विकास करना: मिशन LiFE के तहत जल संरक्षण मिशनों तथा जलवायु-अनुकूल प्रथाओं के माध्यम से ग्रामीण आजीविका की सुरक्षा करना।
  • R - क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना: संतुलित विकास सुनिश्चित करने हेतु PM-जनमन और आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम के माध्यम से पिछड़े राज्यों तथा आदिवासी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।

निष्कर्ष

भारत में निर्धनता की समस्या व्यापक अभाव से परे असमानता, जलवायु दबाव और क्षेत्रीय विषमताओं जैसे कुछ विशेष क्षेत्रों में व्याप्त संवेदनशीलता तक सीमित हो गई है। सुनियोजित PROSPER रणनीति से भारत को समावेशी एवं धारणीय रूप से निर्धनता उन्मूलन में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स का प्रश्न:

प्रश्न: भारत में निर्धनता अब जनजातीय और पिछड़े क्षेत्रों में केंद्रित है। इस पर चर्चा करने के साथ नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के तहत किसका मापन किया जाता है?
MPI के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा तथा जीवन स्तर में अभावों का मापन किया जाता है, जिसमें निर्धन लोगों का अनुपात तथा उनके समक्ष विद्यमान अभावों की औसत संख्या को शामिल किया जाता है।

2. गिनी सूचकांक के तहत किसका मापन किया जाता है?
इसके तहत आय या उपभोग वितरण में असमानता को मापा जाता है जिसमें 0 का अर्थ पूर्ण समानता है तथा 100 का अर्थ पूर्ण असमानता है। भारत का उपभोग-आधारित गिनी सूचकांक 28.8 (वर्ष 2011-12) से गिरकर 25.5 (वर्ष 2022-23) हो गया। 

3. भारत में ‘उपभोग-आधारित निर्धनता’ क्या है?
इसके तहत निर्धनता को आय के बजाय घरेलू उपभोग व्यय के आधार पर मापा जाता है, जो घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (CES) जैसे सर्वेक्षणों पर आधारित होती है जिसमें 7-दिन, 30-दिन और 365-दिन की संदर्भ अवधि का उपयोग किया जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. UNDP के समर्थन से 'ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व' द्वारा विकसित 'बहु-आयामी निर्धनता सूचकांक' में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)

1. पारिवारिक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति तथा सेवाओं से वंचन

2. राष्ट्रीय स्तर पर क्रय-शक्ति समता

3. राष्ट्रीय स्तर पर बजट घाटे की मात्रा और GDP की विकास दर

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 

मेन्स

प्रश्न. निर्धनता और कुपोषण एक विषाक्त चक्र का निर्माण करते हैं, जो मानव पूंजी निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इस चक्र को तोड़ने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं ? (2024)


मुख्य परीक्षा

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बंगाल की भूमिका

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि उसने रवींद्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय सहित बंगाल के राष्ट्रीय नायकों के योगदान को कमतर आँका है।

  • उनकी टिप्पणियों ने राष्ट्रीय प्रतीकों, क्षेत्रीय पहचान और ऐतिहासिक विरासत की राजनीति, विशेष रूप से राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को लेकर बहस को जन्म दिया है।

सारांश

  • बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का बौद्धिक और क्रांतिकारी केंद्र था, जिसने जन आंदोलनों, क्रांतिकारी विचारों एवं सशस्त्र प्रतिरोध को गति प्रदान की।
  • टैगोर, बोस और बंकिम चंद्र जैसी प्रतिष्ठित विभूतियों ने इस आंदोलन की सांस्कृतिक और वैचारिक नींव को आकार दिया, हालाँकि उनकी विरासतें जटिल हैं।
  • वंदे मातरम जैसे प्रतीकों और इन विभूतियों पर चल रहे विमर्श क्षेत्रीय पहचान, ऐतिहासिक स्मृति एवं राष्ट्रीय आख्यानों के बीच तनाव को दर्शाता है।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बंगाल की क्या भूमिका है?

  • बौद्धिक और सांस्कृतिक जागृति: राजा राममोहन रॉय के ब्रह्म समाज ने तर्कवाद और सामाजिक सुधारों को प्रज्वलित किया, जबकि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के वंदे मातरम ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के राष्ट्रगान के रूप में कार्य किया।
    • इसके पश्चात् स्वामी विवेकानंद ने इस भावना को राष्ट्रीय गौरव, आत्मसम्मान तथा सेवा को एक आध्यात्मिक कर्त्तव्य के रूप में संयोजित करते हुए उर्जित किया।
  • प्रारंभिक राजनीतिक संघ: ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन (1851) तथा इंडियन एसोसिएशन (1876) जैसी प्रारंभिक राजनीतिक संस्थाएँ कलकत्ता में आविर्भूत हुई, जिन्होंने संगठित राजनीतिक आंदोलनों का मार्ग प्रशस्त किया और भारत के स्वतंत्रता-संग्राम को आकार दिया।
    • कांग्रेस के शुरुआती अधिवेशनों में बंगाल के नेताओं (सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आनंद मोहन बोस आदि) की प्रमुख भूमिका थी।
  • स्वदेशी आंदोलन और चरमपंथ: बंगाल के विभाजन (वर्ष 1905) से स्वदेशी आंदोलन को प्रेरणा मिली जिससे बहिष्कार, स्वदेशी उद्यम, राष्ट्रीय शिक्षा तथा बिपिन चंद्र पाल एवं अरबिंदो घोष जैसे चरमपंथी नेताओं के माध्यम से आधुनिक क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का उदय हुआ। 
    • इस दौरान अनुशीलन समिति (1902) और युगांतर पार्टी (1906) जैसे क्रांतिकारी समूहों का उदय हुआ, जिससे अलीपुर बम कांड (1908) जैसी घटनाएँ हुईं।
  • राष्ट्रवाद का क्रांतिकारी चरण: प्रमुख कार्रवाइयों में मास्टर दा सूर्य सेन द्वारा चटगांव शस्त्रागार पर छापा (1930) और प्रीतिलता वाड्डेदार (1932) और बीना दास (1932) जैसी महिला क्रांतिकारियों की शहादत शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक और साहित्यिक योगदान: भयमुक्त बंगाली प्रेस (जैसे, अमृत बाज़ार पत्रिका) और सशक्त रंगमंच (जैसे, नील दर्पण) से औपनिवेशिक शोषण पर प्रकाश पड़ा, जबकि रवींद्रनाथ टैगोर (कृति- घरे बाइरे अर्थात द होम एंड द वर्ल्ड) और कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम ने साहित्य, संगीत और भावपूर्ण छंदों के माध्यम से राष्ट्रवादी विचार को गहराई से आकार दिया।
  • गांधीवादी आंदोलनों में भूमिका: चित्तरंजन दास और बसंती देवी जैसे नेतृत्वकर्त्ताओं के अंतर्गत असहयोग आंदोलन (1920-22) के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) में बंगाल की प्रमुख भागीदारी रही जिसमें हज़ारों गिरफ्तारियाँ हुईं। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में सक्रिय भागीदारी के साथ समानांतर यहाँ ताम्रलिप्त जातीय सरकार (1942-44) का गठन हुआ।

निष्कर्ष

बंगाल के अद्वितीय योगदान (बौद्धिक, क्रांतिकारी और सांस्कृतिक) से भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आकार मिला। इससे संबंधित समकालीन विमर्श से स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका पर प्रकाश पड़ता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. बंगाल की भूमिका को 'भारतीय राष्ट्रवाद के क्रूसिबल' के रूप में जाँच और स्वतंत्रता संग्राम में इसके बौद्धिक, क्रांतिकारी तथा सांस्कृतिक योगदान को उजागर कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. बंगाल से कौन-कौन से प्रारंभिक राजनीतिक संगठन उभरे?
कोलकाता में स्थापित ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन (1851), इंडियन लीग (1875) और इंडियन एसोसिएशन (1876) प्रमुख प्रारंभिक राजनीतिक संगठन थे।

2. 'वंदे मातरम' ऐतिहासिक रूप से विवादास्पद प्रतीक क्यों रहा?
हालाँकि यह एक शक्तिशाली औपनिवेशिक विरोधी गीत था, लेकिन बंकिम चंद्र के उपन्यास आनंदमठ में इसका संदर्भ और स्पष्ट हिंदू प्रतीकवाद के कारण इसके बारे में विवाद हुए, जिसके परिणामस्वरूप केवल इसके पहले दो पदों को राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया।

3. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का कांग्रेस की मुख्यधारा से वैचारिक भिन्न दृष्टिकोण क्या था?
बोस स्वतंत्रता के लिये अधिक उग्र, समाजवादी और केंद्रीकृत संगठित दृष्टिकोण के पक्षधर थे, जिसके परिणामस्वरूप फाॅरवर्ड ब्लॉक और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आज़ाद हिंद फौज) का गठन हुआ।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी घटना सबसे पहले हुई? (2018)

(a) स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की।

(b) दीनबंधु मित्र ने ‘नीलदर्पण’ का लेखन किया।

(c) बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘आनंदमठ' का लेखन किया।

(d) सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता पाने वाले प्रथम भारतीय बने। 

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन अंग्रेज़ी में प्राचीन भारतीय धार्मिक गीतों के अनुवाद 'सॉन्ग्स फ्रॉम प्रिज़न' से संबंधित है? (2021)

(a) बाल गंगाधर तिलक
(b) जवाहरलाल नेहरू
(c) मोहनदास करमचंद गांधी
(d) सरोजिनी नायडू

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. लॉर्ड कर्ज़न की नीतियों और राष्ट्रीय आंदोलन पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (2020)

प्रश्न. गांधीवादी प्रावस्था के दौरान विभिन्न स्वरों ने राष्ट्रवादी आंदोलन को सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाया था। विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिये। (2019)


सामाजिक न्याय

विश्व असमानता रिपोर्ट 2026

प्रिलिम्स के लिये: विश्व असमानता रिपोर्ट 2026, विश्व असमानता प्रयोगशाला, क्रय शक्ति समता (PPP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी, प्रगतिशील कर प्रणाली

मेन्स के लिये: विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 के प्रमुख निष्कर्ष तथा असमानता को कम करने हेतु प्रस्तावित नीतिगत समाधान। WIR 2026 में भारत की स्थिति तथा भारत द्वारा असमानता को कम करने के लिये उठाए गए कदम।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

विश्व असमानता प्रयोगशाला द्वारा जारी की गई तीसरी विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 (WIR 2026) आय, संपत्ति, लैंगिक असमानता, जलवायु ज़िम्मेदारी तथा क्षेत्रीय विभाजन जैसे विभिन्न पहलुओं में मौजूद अभूतपूर्व वैश्विक असमानता को उजागर करती है और इससे निपटने के लिये त्वरित तथा प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल देती है।

सारांश

  • रिपोर्ट वैश्विक असमानता को उजागर करती है, जहाँ शीर्ष 10% लोगों के पास कुल संपत्ति का 75% हिस्सा है और वे पूंजी से जुड़ी 77% कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • असमानता बहुआयामी है, जो आय, संपत्ति, लिंग, जलवायु ज़िम्मेदारी और भौगोलिक स्थिति तक फैली हुई है, और ये सभी परस्पर प्रभाव डालते हैं।
  • रिपोर्ट न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देने के लिये प्रगतिशील कर प्रणाली, लैंगिक समान नीतियाँ और वैश्विक वित्तीय सुधार सुझाती है।

विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • अत्यधिक धन-संकेंद्रण: शीर्ष 10% के पास वैश्विक संपत्ति का तीन-चौथाई हिस्सा है, जबकि नीचे के आधे के पास केवल 2% है।
    • विश्व के सबसे धनी 0.001%  (लगभग 60,000 बहु-मिलियनर) आबादी  के पास आधी जनसंख्या की कुल संपत्ति से 3 गुना अधिक संपत्ति है। इनका हिस्सा वर्ष 1995 में 4% से बढ़कर वर्ष 2025 में 6% से अधिक हो गया है।

  • मानव पूंजी असमानता: सब-सहारा अफ्रीका में प्रति बच्चे पर शिक्षा पर औसत खर्च 220 यूरो (क्रय शक्ति समता- PPP) है, जबकि यूरोप में यह 7,430 यूरो और उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया में 9,020 यूरो है, जो 40 गुना से भी कम है।
  • जलवायु असमानता: सबसे धनी 10% लोग निजी पूंजी स्वामित्व से जुड़ी वैश्विक उत्सर्जन का 77% हिस्सा बनाते हैं, जबकि सबसे गरीब आधा केवल 3% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • जो लोग सबसे कम उत्सर्जन करते हैं (कम आय वाले देशों की आबादी), वे जलवायु आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, जबकि अधिक उत्सर्जन करने वालों के पास इससे निपटने के लिये संसाधन होते हैं।
  • लैंगिक असमानता: महिलाएँ औसतन प्रति सप्ताह 53 घंटे काम करती हैं, जबकि पुरुष 43 घंटे काम (जिसमें घरेलू और देखभाल कार्य शामिल हैं) करते हैं।
    • अवैतनिक श्रम को शामिल किये बिना, महिलाओं की प्रति-घंटा आय पुरुषों की आय का लगभग 61% होती है, लेकिन जब अवैतनिक श्रम (जैसे घरेलू और देखभाल कार्य) को भी शामिल किया जाता है, तो यह घटकर मात्र 32% रह जाती है।
  • क्षेत्रीय आय असमानता: उत्तर अमेरिका और ओशिनिया में प्रति व्यक्ति औसत दैनिक आय 125 यूरो है, जबकि सब-सहारा अफ्रीका में केवल 10 यूरो है — यानी 13 गुना का अंतर। शीर्ष 10% और नीचे के 50% की आय अनुपात देशों के भीतर गंभीर असमानता को दर्शाती है।

  • वैश्विक वित्तीय प्रणाली में असमानता: प्रत्येक वर्ष, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 1% के बराबर शुद्ध वित्तीय हस्तांतरण, जो कुल विकास सहायता का तीन गुना है, गरीब देशों से अमीर देशों की ओर जाता है, जो अमेरिका और यूरोप के सरकारी बॉण्ड की मांग के कारण होता है।

विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 में भारत से संबंधित मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • आय असमानता: शीर्ष 10% आय प्राप्तकर्त्ता राष्ट्रीय आय का असमान रूप से 58% हिस्सा प्राप्त करते हैं, जबकि नीचे के 50% जनसंख्या को केवल 15% ही मिलता है।
  • धन का संकेंद्रण: देश की कुल संपत्ति का लगभग 65% हिस्सा सबसे धनी 10% लोगों के पास है। केवल शीर्ष 1% लोगों के पास ही कुल संपत्ति का लगभग 40% हिस्सा है।
  • महिला श्रम शक्ति की कम भागीदारी: महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर केवल 15.7% है, जो विश्व में सबसे निम्न स्तरों में से एक है।
  • औसत समृद्धि: प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय लगभग 6,200 यूरो (PPP) है और औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो (PPP) है।

विश्व असमानता रिपोर्ट

  • परिचय: विश्व असमानता रिपोर्ट एक प्रमुख वैश्विक प्रकाशन है जो विभिन्न देशों और विभिन्न कालखंडों में आय एवं संपत्ति के वितरण पर व्यापक डेटा और विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
    • इसे पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स स्थित शोध केंद्र, विश्व असमानता प्रयोगशाला द्वारा तैयार किया जाता है।
  • रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ: यह रिपोर्ट सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे पारंपरिक मापदंडों से आगे बढ़कर वैश्विक आय एवं संपत्ति वितरण का गहन मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।
    • यह एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाती है, जिसमें लैंगिक असमानता, जलवायु प्रभाव और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच जैसे पहलू शामिल हैं।

विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 में कौन-सी प्रमुख नीतिगत सिफारिशें प्रस्तुत की गई हैं?

नीतिगत क्षेत्र

मुख्य उद्देश्य

सिफारिशें

मानव पूंजी में सार्वजनिक निवेश

जीवन के प्रारंभिक चरण से ही अवसरों को समान बनाना और एक समावेशी समाज का निर्माण करना।

निःशुल्क एवं उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, बाल देखभाल तथा पोषण कार्यक्रमों में निवेश करना।

पुनर्वितरण एवं सामाजिक सुरक्षा

संसाधनों को सीधे निम्न-आय वर्गों की ओर स्थानांतरित करना और आजीविका में स्थिरता प्रदान करना।

संवेदनशील परिवारों के लिये नकद अंतरण, पेंशन तथा बेरोज़गारी भत्तों का कार्यान्वयन।

लैंगिक समानता को आगे बढ़ाना

संरचनात्मक बाधाओं को समाप्त करना और अवैतनिक देखभाल कार्य का पुनर्वितरण करना।

सस्ती बाल देखभाल, समान पैतृक अवकाश की व्यवस्था तथा समान वेतन कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना।

प्रगतिशील एवं हरित कराधान

सार्वजनिक संसाधनों का न्यायसंगत संचयन और राजकोषीय नीति को जलवायु लक्ष्यों के साथ समन्वित करना।

प्रगतिशील संपत्ति/आय कर लागू करना तथा कर एवं सब्सिडी के माध्यम से निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।

वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार

उन प्रणालीगत पूर्वाग्रहों को सुधारना जो संसाधनों को निर्धन से धनी राष्ट्रों की ओर स्थानांतरित करते हैं।

असमान वित्तीय प्रवाहों को कम करने के लिये नई वैश्विक मुद्रा व्यवस्थाओं की संभावनाओं का अन्वेषण करना।

निष्कर्ष

विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 अत्यधिक आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक विषमताओं के एक अंतर्संबद्ध संकट को उजागर करती है। यद्यपि डेटा दर्शाते हैं कि असमानता एक राजनीतिक विकल्प है, तथापि प्रस्तावित बहुआयामी नीतिगत समाधान और मौजूदा राष्ट्रीय पहलें, अधिक समतामूलक और सुदृढ़ समाजों के निर्माण की दिशा में एक स्पष्ट तथा क्रियान्वयन योग्य मार्ग को रेखांकित करते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 द्वारा उजागर वैश्विक असमानता की बहुआयामी प्रकृति का परीक्षण कीजिये। भारत के लिये एक प्रभावी एवं समतामूलक विकास पथ प्रशस्त करने हेतु राजकोषीय और सामाजिक नीति को समेकित करते हुए कौन-से व्यापक कदम आवश्यक हैं?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 वैश्विक संपत्ति के संकेन्द्रण के बारे में क्या उजागर करती है?
शीर्ष 10% के पास वैश्विक संपत्ति का 75% हिस्सा है, जबकि निचले 50% के पास मात्र 2% है; शीर्ष 0.001% मानवता के आधे हिस्से की तुलना में तीन गुना अधिक संपत्ति नियंत्रित करता है।

2. जलवायु असमानता का संपत्ति से क्या संबंध है?
सबसे धनी 10% लोग निजी पूंजी से होने वाले उत्सर्जन के 77% के लिये उत्तरदायी हैं; केवल शीर्ष 1% अकेले 41% योगदान करते हैं, जो असमान ज़िम्मेदारी और जोखिम को दर्शाता है।

3. भारत में लगातार उच्च असमानता का प्राथमिक कारण रिपोर्ट क्या बताती है?
भारत में असमानता गहराई से जड़ें जमा चुकी है, जहाँ शीर्ष 10% राष्ट्रीय आय का 58% हिस्सा अर्जित करते हैं और शीर्ष 1% के पास देश की कुल संपत्ति का 40% हिस्सा है। इसे महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर के 15.7% पर स्थिर बने रहने से और बढ़ावा मिलता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स

प्रश्न. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में उल्लिखित समावेशी विकास में निम्नलिखित में से कौन-सा एक शामिल नहीं है: (2010)

(a) गरीबी में कमी लाना
(b) रोज़गार के अवसरों का विस्तार करना
(c) पूंजी बाज़ार को मज़बूत बनाना
(d) लैंगिक असमानता में कमी लाना 

उत्तर: C


मेन्स

प्रश्न. कोविड-19 महामारी ने भारत में वर्ग असमानताओं एवं गरीबी को गति दे दी है। टिप्पणी कीजिये। (2020)


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