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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में श्रम बल का रूपांतरण

  • 05 May 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस, बंधुआ मजदूरी, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन, गिग श्रमिक, जनसांख्यिकी लाभांश

मेन्स के लिये:

सामाजिक न्याय और श्रम अधिकार, भारतीय अर्थव्यवस्था एवं रोज़गार संबंधी मुद्दे, श्रम उत्पादकता और आर्थिक विकास

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

1 मई को विश्व भर में कार्य की गरिमा एवं श्रमिकों के अधिकारों का सम्मान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस मनाया जाता है। भारत में इस दिन को श्रमिकों के योगदान के स्मरण के रूप में मनाया जाता है साथ ही बंधुआ और शोषणकारी श्रम को खत्म करने के लिये श्रम कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की आवश्यकता पर भी बल दिया जाता है।

भारत के श्रम बल की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत की समग्र श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 59.6% पर अपेक्षाकृत स्थिर रही। यह आँकड़ा वर्ष 2023 के 59.8% से मामूली कमी को दर्शाता है। 
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) में भी मामूली गिरावट देखी गई, जो 58.0% से घटकर 57.7% हो गई। 
    • अखिल भारतीय स्तर पर बेरोज़गारी दर में मामूली वृद्धि हुई और यह 3.1% से बढ़कर 3.2% हो गई।

भारत की श्रम बल प्रणाली से संबंधित वर्तमान मुद्दे क्या हैं?

  • अनौपचारिकता: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार, भारत के 47 करोड़ कार्यबल में से लगभग 39 करोड़ असंगठित क्षेत्र से संबंधित है जिनके पास रोज़गार की सुरक्षा, अनुबंध और सामाजिक संरक्षण का अभाव है। 
    • इसके अतिरिक्त, संगठित क्षेत्र में 9.8% श्रमिक अनौपचारिक हैं जिससे व्यापक आउटसोर्सिंग और श्रमिक भेद्यता पर प्रकाश पड़ता है।
    • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का औपचारिकरण 56% तक पहुँच गया है और श्रम बाज़ार औपचारिकता 15% पर है (सिटी रिसर्च 2024)।
      • कोविड के बाद 54 मिलियन नए रोज़गार सृजित हुए हैं जिनमें से अधिकांश स्वरोज़गार थे, न कि औपचारिक वेतन रोज़गार।
  • निम्न-गुणवत्ता वाले रोज़गार और कौशल अंतराल: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की इंडिया एम्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 से इस बात पर प्रकाश पड़ता है कि अनौपचारिक क्षेत्र में निम्न-गुणवत्ता वाले रोज़गार का प्रभुत्व है तथा प्रवासियों एवं अनौपचारिक श्रमिकों को अक्सर बंधुआ मजदूरी जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 से पता चलता है कि भारत के केवल 51.25% स्नातक ही रोज़गार योग्य माने जाते हैं, जिससे कौशल अंतराल पर प्रकाश पड़ता है।
  • श्रम कानूनों का समय पर कार्यान्वयन न होना: भारत में श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन में देरी हो रही है क्योंकि ट्रेड यूनियनों ने अधिकारों में कमी तथा श्रमिकों की सुरक्षा में कमी पर आपत्ति जताई है। इसके अतिरिक्त, आवश्यक नियमों का मसौदा तैयार करने तथा उन्हें लागू करने के लिये राज्यों की तत्परता भी एक प्रमुख कारक रही है।
    • इसके अतिरिक्त, गिग श्रमिकों (2020-21 तक 7.7 मिलियन गिग श्रमिक) को न्यूनतम वेतन कानूनों, व्यावसायिक सुरक्षा विनियमों तथा औद्योगिक संबंध संहिता 2020 से बाहर रखा गया है जिससे वे स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं तथा इसके साथ ही विवाद समाधान तंत्र का अभाव बना हुआ है।
  • श्रम बल में लैंगिक असमानताएँ: महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2023 के 41.3% से घटकर वर्ष 2024 में 40.3% हो गई, जबकि पुरुषों की भागीदारी दर 78.3% से बढ़कर 79.2% हो गई। 
    • शहरी महिलाओं में बेरोजगारी दर 8.2% है तथा 25 वर्ष से अधिक आयु की केवल 3% कार्यरत महिलाओं के पास उचित डिग्री है जिससे शिक्षित महिलाओं के कौशल तथा रोज़गार असंतुलन पर प्रकाश पड़ता है।
  • निम्न श्रम उत्पादकता:  भारत सबसे लंबे समय तक कार्य करने के मामले में विश्व स्तर पर 13वें स्थान पर है, जहाँ लोग प्रति सप्ताह औसतन 46.7 घंटे कार्य करते हैं तथा 51% से अधिक कर्मचारी 49 घंटे या उससे अधिक कार्य करते हैं। 
    • इसके बावजूद, भारत की श्रम उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है (प्रति कार्य घंटे GDP 8 अमेरिकी डॉलर है) जिससे यह विश्व स्तर पर 133वें स्थान पर है।
    • उच्च दबाव वाले कार्य वातावरण (विशेषकर कॉर्पोरेट क्षेत्रों में) से कर्मचारियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ावा मिल रहा है।
      • श्रम उत्पादकता (आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्द्धा का एक प्रमुख संकेतक) जीवन स्तर में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष कुल कार्य घंटों में 2% से अधिक की कमी आने की आशंका है, जिससे उत्पादकता की समस्या और भी गंभीर हो जाएगी।

भारत अपने श्रम बल की उत्पादकता और समावेशिता किस प्रकार बढ़ा सकता है?

  • औपचारिकीकरण को बढ़ावा देना: भारत को श्रम संहिता, 2020 को प्रभावी ढंग से लागू करके तथा EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) एवं ESIC (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) के तहत कवरेज का विस्तार करके अनौपचारिक से औपचारिक रोज़गार में श्रमिकों के परिवर्तन को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, MSME उद्यम एवं रोजगार संवद्ध प्रोत्साहन (ELI) जैसी योजनाओं को मज़बूत करने तथा उन्हें टियर 2 एवं टियर 3 शहरों में बुनियादी ढाँचे के विकास से जोड़ने से रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
    • औपचारिकीकरण से स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन तथा रोज़गार की सुरक्षा जैसे श्रमिक लाभों तक पहुँच सुनिश्चित होगी, जिससे समग्र उत्पादकता में सुधार होगा तथा असमानता में कमी आएगी।
  • कौशल विकास को बढ़ावा देना: कौशल भारत और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी योजनाओं के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण की गुणवत्ता और प्रासंगिकता में सुधार करना तथा भविष्य के रोज़गार हेतु डिजिटल, हरित और सॉफ्ट कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हुए उद्योग-अकादमिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण करना आवश्यक है।
    • इस संबंध में भारत शिक्षा और उद्योग के बीच मज़बूत संबंध को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर आयरलैंड मॉडल से सीख सकता है।
  • संवाद के माध्यम से श्रम संहिताओं पर पुनर्विचार: भारत को भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) को पुनः आयोजित करके सामाजिक संवाद तंत्र को संस्थागत बनाना चाहिये। 
    • संगठन बनाने की स्वतंत्रता पर ILO अभिसमय संख्या 87 तथा संगठित होने और सामूहिक सौदाकारी के अधिकार पर ILO अभिसमय संख्या 98 का ​​अनुसमर्थन करने से, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिये, संघीकरण को बढ़ावा मिलेगा। 
    • इससे इन श्रमिकों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान होगा, जिसमें रोज़गार  सुरक्षा अभाव, सौदाकारी की सीमित शक्ति और कार्य की अनुपयुक्त स्थितियाँ शामिल हैं, साथ ही उचित वेतन और बेहतर कार्य स्थितियाँ सुनिश्चित होंगी।
  • लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और मातृत्व लाभ अधिनियम (2017) जैसी नीतियों के माध्यम से श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी चाहिये।
    • महिला श्रम बल भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये सुरक्षित कार्यस्थल, सुविधानुसार कार्य करने, घर से काम करने के विकल्प, बाल देखभाल सहायता और जेंडर-सेंसिटिव नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है।
  • श्रमिक स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों में सुधार: व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों, विशेष रूप से खनन, निर्माण और वस्त्र जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सुधार किये जाने चाहिये। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रमुख अभिसमय कौन-से हैं?

 

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस अथवा मई दिवस की उत्पत्ति वर्ष 1886 में शिकागो के हेमार्केट घटना से हुई, जहाँ आठ घंटे के कार्यदिवस की मांग कर रही श्रमिकों की शांतिपूर्ण रैली हिंसक हो गई थी। 
    • "हेमार्केट शहीदों" के सम्मान में सेकेंड इंटरनेशनल (श्रमिकों का अंतर्राष्ट्रीय संगठन) ने वर्ष 1889 में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में नामित किया। 
    • यह आंदोलन कार्य के उचित घंटों के लिये वैश्विक संघर्ष का प्रतीक था जिसमें 8 घंटे कार्य के, 8 घंटे विश्राम के और 8 घंटे निजी जीवन के, दृष्टिकोण पर बल दिया गया था।
  • भारत में, श्रमिक दिवस जिसे कामगार दिवस अथवा अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में भी जाना जाता है, पहली बार 1 मई 1923 को चेन्नई में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा मनाया गया था। 

बंधुआ मज़दूरी क्या है?

  • परिचय: बंधुआ मज़दूरी अथवा ऋण बंधन आधुनिक दासता के सबसे साधारण लेकिन सबसे कम अभिज्ञात रूपों में से है। 
    • इसका आशय किसी व्यक्ति को ऋण चुकाने के लिये कार्य करने के लिये मजबूर किये जाने से है, जिसमें सामान्यतः भ्रामक शर्तों के तहत, अत्यंत निम्न अथवा कोई पारिश्रमिक  नहीं दिया जाता।
  • कारण: बंधुआ मज़दूरी जातिगत भेदभाव, सामंती भूमि व्यवस्था, अत्यंत गरीबी और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के अभाव के कारण उत्पन्न हुई है। आजीविका के सीमित विकल्पों के कारण परिवार अंतर-पीढ़ीगत बंधन से उबर नहीं पाते हैं। 
    • नगरीय प्रवास से भी अनौपचारिक क्षेत्रों जैसे घरेलू कार्य, होटल और बाल भिक्षा वृत्ति में बंधुआ मज़दूरी को बढ़ावा मिलता है।
  • संबंधित संवैधानिक और विधिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 23 के अंतर्गत बंधुआ मज़दूरी प्रतिबंधित है। 
    • बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976 के अंतर्गत विधिक रूप से बंधुआ मज़दूरी को समाप्त किया गया और इससे संबंधित सभी समझौतों को रद्द कर दिया गया है। इसके तहत श्रमिकों को कर्ज़ के दायित्वों से मुक्त किया गया और बंधित कर्ज़ की वसूली पर रोक लगाईं गई। 
  • भारत में इसकी व्याप्ति: वर्ष 2016 में, सरकार ने वर्ष 2030 तक 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूरों को संरक्षण प्रदान करने और उनका पुनर्वास करने की योजना की घोषणा की।
    • हालाँकि, वर्ष 2021 तक, पाँच वर्षों की अवधि में केवल 12,760 बंधुआ मज़दूरों को इससे मुक्त किया गया। 
      • यह सामान्यतः कृषि, ईंट भट्टों, खनन, रेशम, माचिस, वस्त्र और पटाखा उद्योगों में व्याप्त है, तथा बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और पंजाब में इसकी व्याप्ति अधिक है।

निष्कर्ष:

भारत को औपचारिक, सुरक्षित और सार्थक रोजगार अवसरों के सृजन को प्राथमिकता देनी चाहिये। मानव पूंजी में निवेश करके, लैंगिक समानता को बढ़ावा देकर, कार्यबल को औपचारिक बनाकर और उद्योगों की परिवर्तित होती मांगों के अनुरूप कौशल विकास के साथ, भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का पूर्णतम उपयोग कर सकता है। भविष्य के लिये तत्पर कार्यबल को आकार देने के लिये तत्काल और निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में श्रमिकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। श्रम कानूनों के तहत उनके लिये बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये क्या सुधार लागू किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है? (2016) 

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना

उत्तर: (a)


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013)

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर:(c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

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