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भारतीय राजव्यवस्था

न्यायिक सक्रियता पर बहस

  • 03 May 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

न्यायिक अतिरेक, शक्तियों का पृथक्करण, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, न्यायिक समीक्षा, मौलिक अधिकार, कॉलेजियम प्रणाली, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) 

मेन्स के लिये:

न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन, भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही का महत्त्व और संबंधित चिंताएँ, लंबित मामलों की संख्या।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत में न्यायपालिका के बढ़ते प्रभाव को लेकर बहस बढ़ हो रही है, जहाँ एक ओर 'न्यायिक निरंकुशता' (judicial despotism) पर चिंता व्यक्त की जा रही है, वहीं दूसरी ओर यह मत भी है कि सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप संविधानिक मूल्यों की रक्षा के लिये आवश्यक है।

  • हाल के कुछ निर्णयों ने शक्तियों के पृथक्करण और इस प्रश्न पर बहस छेड़ दी है कि क्या न्यायपालिका ने अपने संविधानिक सीमाओं का अतिक्रमण किया है।

न्यायिक निरंकुशता क्या है?

  • न्यायिक निरंकुशता से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जहाँ न्यायपालिका, विशेष रूप से उच्च न्यायालय, अत्यधिक या अनियंत्रित शक्ति का प्रयोग करते हैं, जो अक्सर अपने संविधानिक अधिकार-क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य करती है, जिससे विधायिका और कार्यपालिका की भूमिका कमज़ोर हो जाती है । 
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • अन्य अंगों में अतिरेक: जब न्यायालय संविधानिक सीमाओं से परे जाकर कानून बनाने का कार्य (विधायी कार्य) करने लगते हैं या प्रशासनिक निर्णयों (कार्यपालिका के कार्य) में सीधे हस्तक्षेप करते हैं।
    • असाधारण शक्तियों का बार-बार उपयोग: उदाहरण के लिये, स्पष्ट कानूनी या संवैधानिक समर्थन के बिना अनुच्छेद 142 (जो सर्वोच्च न्यायालय को "पूर्ण न्याय" करने की अनुमति देता है) का बार-बार आह्वान करना।
    • लोकतांत्रिक इच्छा का अतिक्रमण: जब अनिर्वाचित न्यायाधीश लगातार बिना किसी पर्याप्त औचित्य के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों द्वारा लिये गए निर्णयों को नकार देते हैं।
    • जवाबदेही का अभाव: उच्च न्यायपालिका को न्यूनतम बाह्य जवाबदेही के साथ व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं, जिसका यदि दुरुपयोग किया जाए तो सत्तावादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल सकता है।

अवधारणा (Concept)

अर्थ (Meaning)

प्रकृति (Nature)

उद्देश्य (Intent)

वैधता (Legitimacy)

उदाहरण (Examples)

प्रभाव (Impact)

न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)

अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की सक्रिय व्याख्या और प्रवर्तन

सुधारात्मक और रचनात्मक

न्याय की रक्षा करना, अधिकारों की सुरक्षा करना

संवैधानिक ढाँचे के भीतर

विशाखा दिशानिर्देश, पर्यावरणीय अधिकारों हेतु जनहित याचिकाएँ

जवाबदेही और अधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देता है

न्यायिक अतिरेक (Judicial Overreach)

न्यायपालिका द्वारा अपनी सीमाएँ पार करना और कार्यपालिका/विधायिका के क्षेत्र में प्रवेश करना

अत्यधिक और दखल देने वाला

शासकीय शून्यता को भरना, प्रायः अच्छे उद्देश्य से

सीमांत रूप से असंवैधानिक

राजमार्गों के पास शराबबंदी के आदेश, नीतिगत हस्तक्षेप

शक्तियों के संतुलन को बाधित करता है

न्यायिक निरंकुशता (Judicial Despotism)

अन्य अंगों पर न्यायिक प्रभुत्व की प्रणालीगत, अनियंत्रित स्थिति

सत्तावादी और अलोकतांत्रिक

श्रेष्ठता का दावा करना, संवैधानिक सीमाओं की अनदेखी करना

अक्सर संवैधानिक सीमाओं के बाहर

अनुच्छेद 142 का बार-बार उपयोग, जन-इच्छा को दरकिनार करना

लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था के लिये खतरा उत्पन्न करता है

न्यायिक सक्रियता और संयम से संबंधित उदाहरण क्या हैं?

न्यायिक सक्रियता दर्शाने वाले उदाहरण

  • अनुच्छेद 142 का व्यापक उपयोग: कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय पर व्यापक निर्देश जारी करने का आरोप लगाया गया है (जैसे, भीड़ द्वारा हत्या, बाबरी मस्जिद, अपूरणीय क्षति पर तलाक) जहाँ मौजूदा कानून पहले से ही एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।
  • न्यायिक सक्रियता के अन्य उदाहरण:
    • सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिये राज्यों को शराब की दुकानों को राष्ट्रीय राजमार्गों से 500 मीटर दूर रखने का निर्देश दिया गया।
    • राष्ट्रपति और राज्यपालों को राज्य विधान के अनुमोदन के लिये परमादेश रिट जारी करके जवाबदेह बनाना।
    • भोपाल गैस त्रासदी (1989) के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करना।
    • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध दिशा-निर्देश जारी करना (1997)।
    • सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के लिये स्थायी कमीशन की स्थापना करना (2024)।
  • लोकतांत्रिक वैधता: न्यायिक सक्रियता यह सुनिश्चित करके संवैधानिक सर्वोच्चता को कायम रखती है कि निर्वाचित सरकारें संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करें, जैसा कि आई.आर. कोएल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की गई है।

न्यायिक संयम को प्रदर्शित करने वाले उदाहरण

  • केवल चयनात्मक हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय ने सामान्यतः मौजूदा सार्वजनिक नीतियों को बरकरार रखा है और शायद ही कभी कानूनों को अमान्य किया है। इसने नोटबंदी, राफेल डील, असम में NRC और UAPA ज़मानत प्रतिबंधों को बरकरार रखा। इसने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया, पेगासस जाँच की मांग को खारिज कर दिया और EVM तथा CAA पर प्रमुख मामलों की सुनवाई नहीं की।
  • न्यायिक संयम को मान्यता: श्रेया सिंघल मामले (2015) और NJAC मामले (2015) में न्यायालय ने मौलिक अधिकारों और न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिये कार्य किया, न कि सर्वोच्चता स्थापित करने के लिये।
  • प्रमुख मामलों की सुनवाई में विलंब: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और पेगासस निगरानी से संबंधित याचिकाओं में बहुत कम प्रगति हुई है, जिससे चयनात्मक न्यायिक निष्क्रियता के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • सीलबंद साक्ष्य की स्वीकार्यता: पारदर्शिता और उचित प्रक्रिया को कमज़ोर करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना की गई है (उदाहरण के लिये, राफेल और ज़मानत मामलों में)।

न्यायिक समीक्षा क्या है?

  • परिचय: न्यायिक समीक्षा से तात्पर्य संवैधानिक न्यायालयों (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) की विधायी अधिनियमों और कार्यकारी कार्यों की संवैधानिकता की जाँच करने की शक्ति से है। 
  • संवैधानिक प्रावधान: यद्यपि संविधान में "न्यायिक समीक्षा" शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है यह संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में निहित है जैसे:
    • अनुच्छेद 13, जो मौलिक अधिकारों से असंगत किसी भी कानून को शून्य घोषित करता है। 
    • अनुच्छेद 32 और 226, मूल अधिकारों के रक्षक और गारंटीकर्त्ता की भूमिकाएँ सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को सौंपते हैं।
    • अनुच्छेद 131-136 सर्वोच्च न्यायालय को व्यक्तियों, राज्यों और संघ से जुड़े विवादों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई व्याख्याएँ सभी न्यायालयों के लिये बाध्यकारी कानून बन जाती हैं)।
    • अनुच्छेद 137 सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • न्यायिक समीक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
  • न्यायिक समीक्षा के उदाहरण:

अनुच्छेद 142

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को किसी मामले में "पूर्ण न्याय" करने के लिये आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को विधायी त्रुटियों का समाधान करने या ऐसे असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिये अवशिष्ट, विवेकाधीन और असाधारण शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जहाँ किसी विधि का अभाव होता है।
  • ऐतिहासिक उपयोग:

न्यायिक संयम

  • न्यायिक संयम न्यायिक सक्रियता के विपरीत है। यह एक न्यायिक दर्शन है जो न्यायाधीशों को अपनी शक्ति के प्रयोग को सीमित करने और नीति-निर्माण में हस्तक्षेप करने से बचने के लिये प्रोत्साहित करता है। 
  • न्यायाधीशों को संविधान निर्माताओं के मूल आशय और पूर्ववर्ती निर्णयों द्वारा स्थापित एतिहासिक निर्णयों के आधार पर विधि की व्याख्या करनी चाहिये।

आगे की राह

  • न्यायिक संयम का प्रयोग: जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया न्यायपालिका को न्यायिक संयम का प्रयोग करना चाहिये तथा विधायिका या कार्यपालिका की भूमिकाओं का इससे अतिक्रमण न होना सुनिश्चित करना चाहिये। 
  • न्यायिक जवाबदेही को बढ़ावा देना: तर्कसंगत निर्णय, सहकर्मी समीक्षा और निष्पादन लेखापरीक्षा जैसे आंतरिक सुधार न्यायिक स्वतंत्रता और लोक न्यास को संरक्षित करते हुए जवाबदेही को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • संस्थागत संतुलन और संवाद: तीनों अंगों- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को अपने संवैधानिक क्षेत्रों का पालन करना चाहिए, और संघर्ष को कम करने और शक्ति पृथक्करण को बढ़ावा देने के लिये संस्थागत संवाद को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित करना: शक्तियों का निष्पक्ष वितरण सुनिश्चित करने, किसी भी संस्था को अपने अधिदेश का अतिक्रमण करने से रोकने तथा संविधान की प्रधानता को बनाए रखने के लिये तीनों अंगों में नियंत्रण और संतुलन के लिये एक सुदृढ़ तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय संवैधानिक ढाँचे में न्यायिक सक्रियता और न्यायिक संयम में संतुलन का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013) 

  1. राज्यसभा का सभापति और उपसभापति उस सदन के सदस्य नहीं होते। 
  2. जबकि राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्यों को मतदान का कोई अधिकार नहीं होता, उनको उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान का अधिकार होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 
(B) केवल 2 
(C) 1 और 2 दोनों 
(D) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (B)


प्रश्न. संसदीय व्यवस्था वाली सरकार वह होती है, जिसमें- (2020)

(a) संसद के सभी राजनीतिक दलों का सरकार में प्रतिनिधित्व होता है। 
(b) सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होती है और उसके द्वारा हटाई जा सकती है। 
(c) सरकार लोगों के द्वारा निर्वाचित होती है और उनके द्वारा हटाई जा सकती है। 
(d) सरकार संसद के द्वारा चुनी जाती है किंतु निर्धारित समयावधि के पूर्ण होने के पूर्व हटाई नहीं जा सकती।

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली है क्योंकि (2015)

(a) लोकसभा का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है 
(b) संसद संविधान में संशोधन कर सकती है
(c) राज्य सभा भंग नहीं की जा सकती
(d) मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है बल्कि यह “नियंत्रण और संतुलन” के सिद्धांत पर आधारित है? व्याख्या कीजिये। (2019)

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