प्रारंभिक परीक्षा
भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगाँठ
- 07 Nov 2025
- 50 min read
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने 7 नवंबर, 2025 को वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक वर्ष तक चलने वाले समारोहों का उद्घाटन किया। भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’, जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने रचा था, ऐसा माना जाता है कि यह 7 नवंबर, 1875 को अक्षय नवमी के दिन लिखा गया था।
वंदे मातरम् से जुड़े प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- वंदे मातरम्: इसे ‘बंदे मातरम्’ भी उच्चारित किया जाता है। इसकी रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। वंदे मातरम् पहली बार 7 नवंबर, 1875 को साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था और बाद में उनकी अमर कृति आनंदमठ (1882) में शामिल किया गया।
- रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इसे संगीतबद्ध किया गया, जिसके बाद यह भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया, जो एकता, त्याग एवं भक्ति की भावना को अभिव्यक्त करता है।
- राष्ट्रीय गीत का दर्जा: वंदे मातरम् के पहले दो पदों को वर्ष 1937 में कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया।
- 24 जनवरी, 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि जबकि जन गण मन को राष्ट्रीय गान के रूप में स्वीकार किया जाएगा, स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत के रूप में समान सम्मान दिया जाएगा।
- भारत के संविधान में राष्ट्रीय गीत का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है। हालाँकि, अनुच्छेद 51A(a) के तहत नागरिकों से संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करने का कर्त्तव्य अपेक्षित है।
वंदे मातरम् – प्रतिरोध और सामूहिक चेतना का गीत
- वंदे मातरम् पुनर्जाग्रत् राष्ट्रवाद का प्रबल उद्घोष बनकर उभरा, जो मातृभूमि के प्रति अटूट निष्ठा और औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बन गया।
- अंग्रेज़ों ने लोगों को एकजुट करने की इसकी क्षमता को पहचाना और कई स्थानों पर इसके सार्वजनिक गायन या प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया।
- कांग्रेस द्वारा स्वीकृति: वर्ष 1896 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वंदे मातरम् गाया। जल्द ही, इसके पहले दो पद कांग्रेस की सभाओं का एक नियमित हिस्सा बन गए।
- यह आज़ाद हिंद की अंतरिम सरकार की उद्घोषणा के समय भी गाया गया था।
- वर्ष 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में ‘वंदे मातरम्’ को सर्व-भारतीय आयोजनों के लिये अपनाया गया।
- बंदे मातरम् संप्रदाय: मातृभूमि के प्रति समर्पण को बढ़ावा देने के लिये अक्तूबर, 1905 में उत्तरी कलकत्ता में स्थापित।
- सदस्य हर रविवार को प्रभात फेरी लगाते थे, वंदे मातरम् गाते थे और स्वैच्छिक दान एकत्र करते थे।
- बंदे मातरम्-अ इंग्लिश डेली: अगस्त 1906 में बिपिन चंद्र पाल के नेतृत्व में इंग्लिश डेली बंदे मातरम् की शुरुआत हुई, जिसमें बाद में श्री अरविंद संयुक्त संपादक के रूप में शामिल हुए। यह एक प्रमुख राष्ट्रवादी आवाज़ बन गया, जिसने आत्मनिर्भरता, एकता और औपनिवेशिक शासन के प्रतिरोध के विचारों का प्रसार किया।
- श्री अरबिंदो जैसे विचारकों का मानना था कि वंदे मातरम् में आध्यात्मिक शक्ति होती है और यह सामूहिक चेतना को जाग्रत् करता है, जिससे इसका पाठ एक राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों कार्य बन गया।
- बंगाल विभाजन के दौरान वंदे मातरम्: 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में विद्यार्थियों के जुलूसों के दौरान पहली बार वंदे मातरम् का प्रयोग राजनीतिक नारे के रूप में किया गया। यही घटना बंगाल में स्वदेशी आंदोलन और विभाजन-विरोधी आंदोलन की प्रेरणा बनी।
- वर्ष 1905 में बंगाल के विभाजन-विरोधी आंदोलनों के दौरान लगभग 40,000 लोग कोलकाता टाउन हॉल में एकत्र हुए और विरोधस्वरूप वंदे मातरम् गाया।
- इसके प्रभाव की तीव्रता इतनी अधिक थी कि लॉर्ड कर्ज़न ने इसे गाने वाले किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया, जो इसके राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है।
- गुलबर्गा का वंदे मातरम् आंदोलन: यह हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में विद्यार्थियों के नेतृत्व में चलाया गया एक प्रमुख विरोध आंदोलन था।
- नवंबर 1938 में ब्रिटिश सरकार द्वारा वंदे मातरम् पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उस्मानिया विश्वविद्यालय और गुलबर्गा विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के छात्रों ने इसे खुलकर गाकर विरोध दर्ज कराया। परिणामस्वरूप, कई छात्रों को गृह नज़रबंदी और निष्कासन का सामना करना पड़ा।
- आंदोलन को रोकने के लिये अंग्रेज़ों ने परिसरों में पुलिस तैनात कर दी।
- विदेशों में भारतीय क्रांतिकारियों पर प्रभाव: वर्ष 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने बर्लिन के स्टटगार्ट में भारत के बाहर पहली बार तिरंगा झंडा फहराया। इस झंडे पर वंदे मातरम् लिखा था।
- अगस्त 1909 में जब मदन लाल ढींगरा को इंग्लैंड में फाँसी दी गई, तो फाँसी पर चढ़ने से पहले उनके आखिरी शब्द थे "बंदे मातरम्।"
- वर्ष 1909 में पेरिस में रहने वाले भारतीय देशभक्तों ने जिनेवा से 'बंदे मातरम्' नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
- अक्तूबर 1912 में गोपाल कृष्ण गोखले का केप टाउन में “वंदे मातरम्” के नारे के साथ एक भव्य जुलूस के साथ स्वागत किया गया।
बंकिम चंद्र चटर्जी (1838-94)
- वह 19वीं सदी के एक अग्रणी बंगाली लेखक थे जिनके उपन्यासों, कविताओं और निबंधों ने आधुनिक बंगाली गद्य और प्रारंभिक भारतीय राष्ट्रवाद को आकार दिया।
- उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं आनंदमठ, दुर्गेशनंदिनी, कपालकुंडला और देवी चौधुरानी, जिनमें उपनिवेशित समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्षों को दर्शाया गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. वंदे मातरम् की रचना किसने की?
वंदे मातरम्: इसे “बंदे मातरम्” भी कहा जाता है, इसकी रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1875 में संस्कृत में की थी और बाद में इसे उनके बंगाली उपन्यास ‘आनंदमठ’में शामिल किया गया था।
2. क्या संविधान में राष्ट्रीय गीत का उल्लेख है?
कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। अनुच्छेद 51A(a) संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करने का मौलिक कर्त्तव्य निर्धारित करता है।
3. वे दो ऐतिहासिक आंदोलन कौन से हैं जिनमें वंदे मातरम् केंद्र में था?
बंगाल विभाजन (1905) के दौरान कलकत्ता टाउन हॉल में जनसमूह द्वारा विरोधस्वरूप वंदे मातरम् गाया गया। गुलबर्गा (1938) में छात्रों ने इस गीत पर लगे प्रतिबंध का उल्लंघन किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और निष्कासित कर दिया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. इनमें से कौन अंग्रेज़ी में अनूदित प्राचीन भारतीय धार्मिक गीतिकाव्य–'सॉन्ग्स फ्रॉम प्रिज़न' से संबद्ध हैं? (2021)
(a) बाल गंगाधर तिलक
(b) जवाहरलाल नेहरू
(c) मोहनदास करमचंद गांधी
(d) सरोजिनी नायडू
प्रश्न. भारत के राष्ट्रीय ध्वज में धर्मचक्र (अशोक चक्र) में कितनी तीलियाँ होती हैं? (2008)
(a) 16
(b) 18
(c) 22
(d) 24
उत्तर: (d)
