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प्रिलिम्स फैक्ट्स

रैपिड फायर

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर

स्रोत: पी.आई.बी. 

नौसेना प्रमुख ने गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (National Maritime Heritage Complex- NMHC) का दौरा किया। 

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर 

  • परिचय: यह लोथल, गुजरात में एक महत्त्वाकांक्षी सांस्कृतिक और पर्यटन परियोजना है जिसका उद्देश्य भारत की समृद्ध और विविध 4,500 वर्ष पुरानी समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने और विश्व में सबसे बड़ा समुद्री विरासत परिसर स्थापित करना है। 
    • प्रमुख परियोजनाओं में विश्व स्तरीय दीपस्तंभ संग्रहालय तटीय राज्य मंडप और समुद्री थीम पर आधारित इको-रिसॉर्ट शामिल हैं। 
  • विकास एवं वित्तपोषण: भारत के सागरमाला कार्यक्रम के अंतर्गत, पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) का विकास कर रहा है, तथा इसका दीपस्तंभ व दीपपोत महानिदेशालय (DGLL) विश्व के सबसे ऊँचे दीपस्तंभ संग्रहालय का वित्तपोषण कर रहा है। 

लोथल 

  • यह हड़प्पा सभ्यता के सबसे दक्षिणी स्थलों में से एक है, जो गुजरात के भाल क्षेत्र में, खंभात की खाड़ी के पास भोगावो और साबरमती नदियों के बीच स्थित है। 
    • गुजराती में लोथल का अर्थ है “मृतकों का टीला”, जो सिंधी में मोहनजोदड़ो के समान है। 
    • इस स्थल की खोज वर्ष 1954 में एस.आर. राव ने की थी और इसे अप्रैल 2014 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था। 
  • महत्व: यह विश्व की सबसे पुराने ज्ञात बंदरगाह (डॉक) के लिये प्रसिद्ध है, जो शहर को साबरमती नदी के प्राचीन मार्ग से जोड़ती थी। 
    • यह स्थल मनकों (मोतियों) की कार्यशालाओं के लिये भी प्रसिद्ध था और लगभग 4,000 वर्ष पूर्व मेसोपोटामिया और मिस्र के साथ समुद्री व्यापारिक संबंधों हेतु जाना जाता है। 

Harrapan_Sites

क्या आप जानते हैं? 

  • सबसे प्राचीन मानव निर्मित डॉकयार्ड की खोज वर्ष 1957 में गुजरात के लोथल में खुदाई के दौरान हुई थी। 
  • पुरातात्विक प्रमाणों से यह सिद्ध हुआ है कि हड़प्पावासी समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से भारतीय तटरेखा से कहीं आगे तक जुड़े हुए थे। 
  • पश्चिम में मेसोपोटामिया और मिस्र से लेकर पूर्व में जापान तक के साथ उनके संबंधों के प्रमाण मिले हैं। 
  • संक्षेप में भारत का समुद्री इतिहास 4500 वर्षों से भी अधिक पुराना है। 
और पढ़ें: लोथल: दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात बंदरगाह 

रैपिड फायर

आत्म-सम्मान आंदोलन के 100 वर्ष

स्रोत: द हिंदू 

वर्ष 2025 में आत्म-सम्मान आंदोलन की शताब्दी पूरी हुई, जिसने तर्कवाद, सामाजिक समानता और जातिवाद-विरोधी विचारधारा को बढ़ावा दिया। 

आत्म-सम्मान आंदोलन 

  • परिचय: इसे वर्ष 1925 में ई. वी. रामासामी (पेरियार) द्वारा तमिलनाडु में आरंभ किया गया था, जिन्होंने बाद में द्रविड़र कड़गम (Dravidar Kazhagam) की स्थापना की और तमिल साप्ताहिक कुड़ी अरसु (गणराज्य) शुरू किया।  
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य जाति व्यवस्था का उन्मूलन, ब्राह्मणवादी प्रभुत्व का खंडन और तर्कसंगत सोच व व्यक्तिगत गरिमा को बढ़ावा देना था, जैसा कि इसके पुस्तिकाओं नामथु कुरिक्कोल और तिरावितक कालका लेतैयम में उल्लिखित है। 
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • आत्म-सम्मान विवाह की पहल की – सरल, पुरोहित रहित समारोह जो कानूनी रूप से मान्य थे। 
    • देवदासी प्रथा, जातिवाद भेदभाव और विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। 
    • महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा दिया, जिसमें अन्नाई मीनाम्बल और वीरमल जैसी प्रमुख हस्तियाँ शामिल थीं। 
      • मीनाम्बल ने ई. वी. रामासामी को ‘पेरियार’ की उपाधि प्रदान की और बी. आर. अम्बेडकर द्वारा उन्हें “मेरी बहन मीना” के रूप में संबोधित किया गया।
और पढ़ें: भारत में जातिगत आंदोलन 

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उन्नत रडार के साथ ड्रोन रक्षा

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

ऑपरेशन सिंदूर के बाद, भारतीय सेना लो रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) हवाई खतरों का पता लगाने और उन्हें निष्क्रिय करने के लिये उन्नत रडार खरीदकर ड्रोन रक्षा को मज़बूत करने की योजना बना रही है। 

  • ये राडार भारतीय सेना के आकाशतीर वायु रक्षा कमांड-एंड-कंट्रोल नेटवर्क में जुड़ेंगे, जिससे रीयल-टाइम ट्रैकिंग में सुधार होगा। 
  • उन्नत राडारों की प्रमुख तकनीकी विशेषताएँ: 
    • लो लेवल लाइट वेट राडार (इम्प्रूव्ड) – LLLR-I: AESA आधारित 3D राडार, जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में 50 कि.मी. के दायरे में 100 से अधिक हवाई लक्ष्यों को ट्रैक करने की क्षमता है। 
    • लो लेवल लाइट वेट राडार (उन्नत) – LLLR-E: इसमें इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम (EOTS) और पैसिव RF डिटेक्शन जोड़ा गया है, जो ड्रोन की दिन-रात और गुप्त ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान करता है। 
    • एयर डिफेंस फायर कंट्रोल राडार – ड्रोन डिटेक्टर (ADFCR-DD): यह वाहन-स्थापित प्रणाली है जो राडार, फायर कंट्रोल और IFF को एकीकृत करती है, ताकि गनफायर और VSHORADS (वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम) मिसाइलों का समन्वय सुनिश्चित किया जा सके।

Drone

और पढ़ें: भारत में सामरिक रक्षा प्रौद्योगिकियाँ 

रैपिड फायर

तारकीय लंबन

स्रोत: द हिंदू 

खगोलविदों ने तारकीय लंबन/स्टेलर पैरालैक्स का उपयोग करते हुए एक अभिनव तकनीक का प्रदर्शन किया है, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष यान गहरे अंतरिक्ष में पृथ्वी-आधारित संकेतों (Beacons) पर निर्भर हुए बिना नेविगेशन कर सकते हैं। 

  • तारकीय लंबन: जैसे-जैसे पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है, किसी तारे की स्थिति अन्य तारों के सापेक्ष बदलती हुई नजर आ सकती है। इसका कारण यह है कि हर छह महीने में पृथ्वी सूर्य के दोनों विपरीत किनारों पर होती है, जिससे हमें दो अलग-अलग पर्यवेक्षण बिंदु मिलते हैं। 
    • न्यू होराइज़न्स अंतरिक्ष यान ने पृथ्वी से 7 अरब किलोमीटर की दूरी से प्रोक्सिमा सेंटौरी (जो 4.2 प्रकाश वर्ष दूर है) और वोल्फ 359 (जो 7.9 प्रकाश वर्ष दूर है) का अवलोकन किया। 
  • अन्य अंतरिक्ष नेविगेशन विधियाँ: 
    • स्टेलर एस्ट्रोमेट्रिक नेविगेशन: यह तकनीक दो तारों के बीच के कोणीय अंतर को मापकर, तारों और विशेष सापेक्षता के सिद्धांत का उपयोग करते हुए, अंतरिक्ष यान की त्रि-आयामी स्थिति तथा वेग का अनुमान लगाती है। 
    • पल्सर नेविगेशन: यह तेज़ी से घूमने वाले न्यूट्रॉन तारे (पल्सर) का उपयोग करता है, जो अंतरिक्ष में लैंप की तरह कार्य करते हैं, ताकि रास्ता दिखाया जा सके। 
  • नासा ने वर्ष 2006 में न्यू होराइज़न्स अंतरिक्ष यान लॉन्च किया था ताकि बौना ग्रह प्लूटो, उसके चंद्रमा और कुइपर बेल्ट में मौजूद वस्तुओं का अध्ययन किया जा सके। कुइपर बेल्ट सौरमंडल के बाहरी किनारे पर बर्फीले चट्टानों और धूल का एक डिस्क है। 

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और पढ़ें: प्लूटो और चारोन की ब्रह्मांडीय कहानी 

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