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POCSO अधिनियम, 2012 में लैंगिक तटस्थता की पुनर्समीक्षा

  • 19 Nov 2025
  • 51 min read

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक महिला पर POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 3 के तहत एक नाबालिग लड़के के साथ ‘पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ करने के आरोप के संदर्भ में नोटिस जारी किया गया है।

  • इस मामले से इस अधिनियम की लैंगिक तटस्थता पर विमर्श को बढ़ावा (विशेषकर इस संदर्भ में कि क्या यह अधिनियम महिला अपराधियों द्वारा किये गए बाल यौन शोषण को भी कवर करता है) मिला है।

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 क्या है?

  • परिचय: POCSO अधिनियम, 2012 को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बालकों के खिलाफ यौन उत्पीड़न एवं शोषण जैसे जघन्य अपराधों से निपटने हेतु अधिनियमित किया गया था।
    • वर्ष 2019 में इसमें संशोधन करते हुए कड़े दंड (गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के मामलों में मृत्युदंड तक) का प्रावधान किया गया।
    • प्रमुख विशेषताएँ: 
      • लैंगिक तटस्थता: यह अधिनियम लैंगिक तटस्थ है।

      • बालकों की परिभाषा: किसी भी 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बालक माना गया है।

      • अपराधों का दायरा: यह अधिनियम पेनिट्रेटिव और नॉन-पेनिट्रेटिव यौन अपराध के साथ यौन उत्पीड़न तथा अश्लील साहित्य को भी कवर करता है। यदि किसी व्यक्ति द्वारा विश्वास या अधिकार में या मानसिक रूप से बीमार बच्चे के विरुद्ध अपराध किया है। यौन उद्देश्यों हेतु बाल तस्करी भी दंडनीय है।

    • श्रेणीबद्ध दंड: पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (10 वर्ष से आजीवन कारावास) अग्रेवेटेड (20 वर्ष से आजीवन कारावास)। यदि बालक 16 वर्ष से कम उम्र का है तो और कठोर दंड का प्रावधान है। 
      • बाल पोर्नोग्राफी के निर्माण, उपयोग या प्रोत्साहन पर जुर्माना या 7 वर्ष तक की सज़ा।
    • न्यायिक प्रक्रिया: इस अधिनियम के अनुसार, अपराधों की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की आवश्यकता है। इसमें सुनिश्चित किया गया है कि बालक का साक्ष्य 30 दिनों के अंदर दर्ज किया जाए तथा जहाँ तक संभव हो, मुकदमा एक वर्ष के अंदर पूरा हो जाए।
    • दायरा और अधिभावी प्रभाव: यदि कोई विसंगति है तो POCSO अधिनियम अन्य विधियों पर अधिभावी होता है। यह केवल बाल पीड़ितों और वयस्क अपराधियों पर लागू होता है जबकि बालक पर बालक या बालक से वयस्क पर होने वाले अपराध के मामले किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के अंतर्गत आते हैं।

    क्या POCSO अधिनियम, 2012 द्वारा लैंगिक तटस्थता को बनाए रखा गया है?

    • वैधानिक व्याख्या: POCSO अधिनियम की धारा 3 में पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को परिभाषित करते समय लैंगिक-तटस्थ शब्दों का उपयोग किया गया है और इससे अपराध केवल पुरुष अपराधियों तक सीमित नहीं है।
      • इसके अतिरिक्त, अधिनियम में प्रयुक्त सर्वनाम ‘he’ (वह/उसने) की व्याख्या साधारण खंड अधिनियम, 1897 की धारा 13(1) पर आधारित है, जिसके अनुसार“पुल्लिंग शब्दों में स्त्रीलिंग भी शामिल माना जाएगा, जब तक संदर्भ अन्यथा न हो।” 
    • अपराधों का दायरा: इस अधिनियम की परिभाषा में मौखिक, डिजिटल, वस्तु-आधारित पेनिट्रेशन शामिल है। ये सभी अपराध किसी भी लिंग के व्यक्ति द्वारा किये जा सकते हैं।
      • इस अधिनियम की धारा 3(d) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन कृत्य करने के लिये उकसाता है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है।
    • विधायी उद्देश्य: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लोकसभा में दिये गए लिखित उत्तर में स्पष्ट कहा कि POCSO “एक लैंगिक तटस्थ अधिनियम” है। 
      • POCSO संशोधन विधेयक, 2019 के उद्देश्य और कारण विवरण में भी स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि यह अधिनियम लैंगिक तटस्थ है।

    भारत बाल संरक्षण के लिये संतुलित कानूनी और नीतिगत ढाँचे को कैसे सुनिश्चित कर सकता है?

    • कानूनी ढाँचे को सशक्त बनाना: POCSO अधिनियम, 2012 में परिभाषात्मक अंतराल विशेषकर लैंगिक-तटस्थता के संदर्भ में दूर करें, ताकि कानून का समान और न्यायपूर्ण लागू होना सुनिश्चित किया जा सके।
      • साथ ही POCSO, JJ अधिनियम एवं BNS को समन्वित करें और संवेदनशील सजा दिशानिर्देश लागू करें, जो कठोरता तथा सुधारात्मक न्याय के बीच संतुलन बनाए रखें।
    • मज़बूत संस्थागत क्षमता: सभी हितधारकों के लिये विशेष प्रशिक्षण अनिवार्य करें तथा विशेष न्यायालयों और फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL) जैसी बुनियादी संरचना को सशक्त बनाएँ, ताकि मामलों का तीव्र एवं बच्चों के अनुकूल निपटारा सुनिश्चित किया जा सके।
    • सक्रिय और निवारक नीतियाँ: कड़े बाल सुरक्षा नीतियों को अनिवार्य करें, जिसमें छात्रों के लिये वार्षिक व्यक्तिगत सुरक्षा शिक्षा (PSE) शामिल हो। तकनीक का उपयोग करके राष्ट्रीय बाल-सुरक्षा डेटाबेस, डेटा एनालिटिक्स और बच्चों के लिये सुरक्षित, गुमनाम रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से निगरानी को सुदृढ़ करना।
    • डिजिटल युग की चुनौतियों का समाधान: ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न एवं शोषण (OCSAE) के प्रति प्रतिक्रिया को अद्यतन प्रोटोकॉल, विशेष साइबर सेल तथा टेक कंपनियों के साथ सहयोग के माध्यम से मज़बूत करें, ताकि संदिग्ध सामग्री को हटाया जा सके और पीड़ितों की पहचान की जा सके।

    निष्कर्ष

    POCSO अधिनियम, 2012 लैंगिक-तटस्थ है तथा सभी बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और शोषण से बचाता है। इसके प्रावधान, उद्देश्य और न्यायिक व्याख्या किसी भी लैंगिक अपराधियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देते हैं, जिससे न्याय तथा व्यापक बाल सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न

    प्रश्न. भारत में बच्चों को यौन अपराधों से बचाने में POCSO अधिनियम, 2012 के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

    अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

    1. POCSO अधिनियम, 2012 क्या है?
    यह एक लैंगिक-तटस्थ कानून है, जिसे 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और शोषण से बचाने के लिये बनाया गया है। इसमें विशेष न्यायालयों और बच्चों के अनुकूल मुकदमों के प्रावधान शामिल हैं। 

    2. क्या POCSO अधिनियम महिला अपराधियों पर लागू होता है?
    हाँ, वैधानिक व्याख्या और विधानिक उद्देश्य यह स्पष्ट करते हैं कि यह कानून लैंगिक-तटस्थ है, जिससे पुरुष एवं महिला दोनों अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।

    3. यह अधिनियम त्वरित एवं बाल-अनुकूल सुनवाई कैसे सुनिश्चित करता है?

    30 दिनों के भीतर साक्ष्य दर्ज करना, 1 वर्ष के भीतर मुकदमा पूरा करना, बंद कमरे में कार्यवाही, बयानों के लिये महिला अधिकारी तथा आश्रय गृहों या अस्पतालों के माध्यम से तत्काल पुनर्वास।

    UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

    प्रिलिम्स 

    प्रश्न. भारत के संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-से परिकल्पित हैं? (2017)

    1. मानव देह व्यापार और बंधुआ मज़दूरी (बेगारी) का निषेध
    2. अस्पृश्यता का उन्मूलन
    3. अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
    4. कारखानों और खदानों में बच्चों के नियोजन का निषेध

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1, 2 और 4
    (b) केवल 2, 3 और 4
    (c)  केवल 1 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (c)


    मेन्स 

    प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)

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