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राजस्थान स्टेट पी.सी.एस.

  • 19 Nov 2025
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आना सागर झील

चर्चा में क्यों?

अजमेर में आना सागर झील के निकट आर्द्रभूमि सीमा-चिह्नांकन को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, स्थानीय लोगों ने मत है कि सीमांकन पक्षपातपूर्ण है तथा समुचित वैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना किया गया है।

मुख्य बिंदु

  • आना सागर अजमेर में स्थित 12वीं शताब्दी की एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के दादा आणाजी चौहान द्वारा कराया गया था।
  • बाद में मुगल काल में जहाँगीर ने झील परिसर में दौलत बाग का निर्माण कराया, जिसे आज सुभाष उद्यान के रूप में भी जाना जाता है।
  • शाहजहाँ ने वर्ष 1637 में झील के चारों ओर संगमरमर की बारादरी (मंडप) का निर्माण करवाया, जिसने इसकी सौंदर्यात्मक महत्ता को और बढ़ा दिया।
  • यह झील एक महत्त्वपूर्ण शहरी आर्द्रभूमि के रूप में कार्य करती है और भूजल पुनर्भरण, बाढ़ नियंत्रण तथा स्थानीय सूक्ष्म जलवायु विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


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एशियाई कैराकल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में एक दुर्लभ एशियाई कैराकल देखा गया, जो भारत में इस प्रजाति के अस्तित्व के संरक्षण की संभावना को रेखांकित करता है।

मुख्य बिंदु

  • कैराकल के बारे में:
    • एशियाई कैराकल एक रात्रिचर और अत्यधिक मायावी जंगली बिल्ली है, जो आवागमन, आश्रय तथा शिकार के लिये झाड़ियों से ढके शुष्क भूमि पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर रहती है।

  • शिकार व्यवहार:
  • प्राकृतिक आवास:
    • यह अफ्रीका, मध्य पूर्व और मध्य एशिया में पाई जाती है तथा विरल वनस्पति वाले खुले, शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में निवास करती है।
    • भारत में, यह राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में, विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क झाड़ियों, खड्ड प्रणालियों, खुले घास के मैदानों तथा शुष्क पर्णपाती वन में पाई जाती है। 
    • थार रेगिस्तान क्षेत्र में इसकी उपस्थिति विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ इसका दिखना अत्यंत दुर्लभ है और इसकी आबादी बहुत ही विरल है।
  • संरक्षण की स्थिति:
    • वैश्विक दृष्टि से IUCN रेड लिस्ट के अनुसार यह प्रजाति सबसे कम चिंताजनक (Least Concern) श्रेणी में वर्गीकृत है।
    • भारत में पाई जाने वाली कैरकल सहित, कैराकल की संपूर्ण एशियाई आबादी को CITES परिशिष्ट I में सूचीबद्ध किया गया है। यह वर्गीकरण दर्शाता है कि यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है और इसके नमूनों का वाणिज्यिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आम तौर पर प्रतिबंधित है।
    • इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, अनुसूची I के तहत उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।


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