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डेली न्यूज़

  • 20 Apr, 2024
  • 57 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

FII का भारत के सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड्स में निवेश

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), विदेशी संस्थागत निवेशक, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, वैधानिक तरलता अनुपात, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक

मेन्स के लिये:

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, ग्रीन बॉण्ड की स्थिति, ग्रीन फाइनेंस पहल।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड (SGrBs) भारत की निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था के लिये वित्तपोषण का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं, इसके लिये हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) के अंर्तगत कार्य करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) को निवेश करने की अनुमति देने का निर्णय लिया है जो इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

नोट:

  • FII संस्थागत निवेशक हैं जो अपने संगठन के स्थान से भिन्न देश की परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) देश में FII निवेश को नियंत्रित करता है, जबकि RBI, FII भागीदारी को नियंत्रण में रखने के लिये निवेश सीमा को बनाए रखता है।

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड (SGrBs) क्या हैं?

  • परिचय:
    • केंद्रीय बजट 2022-23 में वित्त मंत्री ने SGrBs जारी करने की घोषणा की, यह एक प्रकार का सरकारी ऋण है जिससे विशेष रूप से न्यून कार्बन अर्थव्यवस्था में भारत की परियोजनाओं को वित्तपोषित किया जाता है।
    • SGrBs के माध्यम से एकत्रित की गई धनराशि विशेष रूप से हरित परियोजनाओं के लिये निर्धारित की जाती है, जिससे फंड के उपयोग में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
    • SGrBs आमतौर पर सरकारी-प्रतिभूतियों (G-Secs) की तुलना में कम ब्याज दरों को प्रस्तुत करते हैं, जो सतत् विकास उद्देश्यों के साथ उनके संरेखण को दर्शाता है।
    • SGrBs जारी करने हेतु वित्तपोषित परियोजनाओं की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हरित मानकों एवं प्रमाणन प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है।
  • वर्गीकरण:
    • SGrB को वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के तहत वर्गीकृत किया गया है, जो वित्तीय संस्थानों के लिये RBI द्वारा निर्धारित तरलता दर है।
      • वित्तीय संस्थानों को ग्राहकों को ऋण देने से पहले SLR अपने पास रखना चाहिये, जिससे अन्य उद्देश्यों हेतु धन की उपलब्धता प्रभावित होती है।
  • ग्रीनियम:
    • चूंँकि SGB आमतौर पर पारंपरिक G-सेक की तुलना में न्यूनतम ब्याज दरें प्रदान करते हैं, SGrB और G-सेक के बीच ब्याज दरों के अंतर को ग्रीनियम कहा जाता है।
      • वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंक और सरकारें हरित भविष्य में परिवर्तन का समर्थन करने के लिये ग्रीनियम को अपनाने को प्रोत्साहित करती हैं।
  • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड फ्रेमवर्क:
    • वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2022 में भारत का पहला SGrB फ्रेमवर्क जारी किया, जिसमें इस प्रकार की परियोजनाओं का विवरण दिया गया, जिन्हें इस वर्ग के बॉण्ड के माध्यम से धन प्राप्त होगा।
    • वित्तपोषित परियोजनाएँ:
      • फंड को नौ हरित परियोजना श्रेणियों की ओर निर्देशित किया जाएगा: जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ परिवहन, जलवायु अनुकूलन, सतत् जल प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण, सतत् भूमि उपयोग, हरित भवन और जैवविविधता संरक्षण शामिल हैं।
      • बहिष्कृत परियोजनाएँ:
        • जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण, परमाणु ऊर्जा उत्पादन और प्रत्यक्ष अपशिष्ट दहन से जुड़ी परियोजनाएँ। इसके अतिरिक्त शराब, हथियार, तंबाकू, जुआ या पाम ऑयल उद्योगों से संबंधित परियोजनाओं को भी पृथक रखा गया है। 
        • इसके अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्रों से बायोमास का उपयोग करने वाली नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, लैंडफिल परियोजनाएँ और 25 मेगावाट से बड़े जलविद्युत संयंत्र पात्र नहीं हैं।
    • भारत सरकार ने विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये नॉर्वे स्थित वैलिडेटर सिसेरो से मान्यता की मांग की है। सिसेरो ने अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाज़ार संघ (ICMA) द्वारा निर्धारित वैश्विक हरित मानकों के साथ संरेखण दर्शाते हुए "सुशासन" के स्कोर के साथ भारतीय ढाँचे का "हरित माध्यम" के रूप में मूल्यांकन किया।
  • SGrB की विशेषताएँ:
    • इन्हें समान मूल्य नीलामी (एक सार्वजनिक विक्रय जहाँ एक ही कीमत पर समान वस्तुओं की एक निश्चित संख्या बेची जाती है) के माध्यम से जारी किया जाता है।
    • पुनर्खरीद लेन-देन (रेपो) के लिये पात्र।
    • SLR प्रयोजनों के लिये पात्र निवेश के रूप में गिनती।
    • द्वितीयक बाज़ार में व्यापार के लिये पात्र।
  • प्रबंधन:
  • लाभ:
    • भारतीय हरित बॉण्ड न केवल स्थिरता लक्ष्यों का समर्थन करते हैं बल्कि निवेशकों को आकर्षित करके और केंद्रीय बैंक के भीतर निधि बढ़ाकर भारतीय मुद्रा को भी मज़बूत करते हैं।
    • सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार निवेश की बढ़ती मांग और हरित बॉण्ड की सीमित आपूर्ति उनकी कीमत और उपज बढ़ा सकती है।

हरित बॉण्ड में FII का निवेश भारत के हरित संक्रमण को कैसे बढ़ावा देता है?

  • भारत की हरित परियोजनाओं में निवेश करने वाले FII देश के महत्त्वाकांक्षी 2070 शुद्ध शून्य लक्ष्यों को वित्तपोषित करने के लिये पूंजी पूल का विस्तार करते हैं, जिसका लक्ष्य भारत की 50% ऊर्जा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना और देश की कार्बन तीव्रता को 45% तक कम करना, जैसा कि ग्लासगो 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 26) में वादा किया गया था।
  • FII फंडिंग का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करते हैं, घरेलू उधारदाताओं पर दबाव कम करते हैं और अन्य उपयोगों के लिये पूंजी मुक्त करते हैं।
  • विदेशी निवेशकों के हालिया समावेश ने भारत के SGrB के लिये संभावित निवेशकों के पूल का विस्तार किया है, जिससे संभावित हरित परियोजनाओं के लिये अधिक निधि प्राप्त हो रही है, जिसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना है तथा भारत के सतत् विकास लक्ष्यों में योगदान देना है।
    • सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 2024 में SGrB के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपए जुटाना है और वित्त वर्ष 2025 के पहले छह महीनों में 12,000 करोड़ रुपए उधार लेने की योजना है।
  • विदेशी निवेशक हरित प्रौद्योगिकियों और परियोजना प्रबंधन में बहुमूल्य ज्ञान एवं अनुभव प्रदान कर भारतीय हरित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को लाभ पहुँचा सकता हैं।

SGrB के संबंध में भारत की क्या चुनौतियाँ हैं?

  • हरित वर्गीकरण का अभाव:
    • किसी निवेश की पर्यावरणीय साख का आकलन करने के लिये हरित वर्गीकरण या मानकीकृत पद्धति का अभाव एक चुनौती उत्पन्न करता है।
      • स्पष्ट मानदंडों के बिना ग्रीनवॉशिंग का जोखिम होता है, जहाँ परियोजनाएँ फंडिंग सुरक्षित करने के लिये पर्यावरण के अनुकूल होने का झूठा दावा करती हैं।
  • रूपरेखा का कार्यान्वयन:
    • वित्त मंत्रालय ने भारत की पहली SGrB रूपरेखा जारी की, इसका कार्यान्वयन और प्रवर्तन संकटपूर्ण बना हुआ है।
    • यह सुनिश्चित करना कि वित्तपोषित परियोजनाएँ परिभाषित मानदंडों के अनुरूप हों और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान दें, इसके लिये मज़बूत निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र की आवश्यकता होती है।
  • परियोजना चयन और प्रभाव:
    • विश्वसनीय ऑडिट ट्रेल्स और उच्च प्रभाव वाली नई हरित परियोजनाओं की पहचान करना SGrB आय की इष्टतम प्राप्ति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • सीमित निजी पूंजी वाली परियोजनाएँ, जैसे कि वितरित नवीकरणीय ऊर्जा और MSME के लिये स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण हेतु पर्याप्त धन आकर्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • उपयुक्त परियोजनाओं की उपलब्धता:
    • पात्र हरित परियोजनाओं की पाइपलाइन को सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेष रूप से अपतटीय पवन ग्रिड पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन और इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles- EVs) जैसे क्षेत्रों में।
      • सरकार को निवेश के अवसरों के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये ऐसी परियोजनाओं के विकास को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • ग्रीन बॉण्ड जारी करने में पारदर्शिता बढ़ाना और मौजूदा चुनौतियों का समाधान करना।
    • हरित परियोजनाओं में निवेश के लाभों को बढ़ावा देने के लिये विशेष जागरूकता कार्यक्रम लागू करना।
  • निजी निवेशकों के लिये अनुकूल वातावरण सुनिश्चित कर कानूनी, डिफॉल्ट, तरलता और अन्य जोखिमों को कम करना।
    • निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये डिफॉल्टरों के संबंध में मज़बूत कानूनी ढाँचे को लागू करना।
  • घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने के लिये हरित पूंजी पूल की स्थापना को प्राथमिकता देना।
  • हरित परियोजनाओं को संस्थागत निवेशकों के पोर्टफोलियो में एकीकृत करना, जिसमें संभावित रूप से भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India - IRDAI) जैसे भारतीय संस्थान शामिल हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हरित परियोजनाओं में निवेश को बढ़ावा देने और भारत के ग्रीन बॉण्ड बाज़ार के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये आवश्यक नीतिगत उपायों का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारतीय सरकारी बॉण्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता है/होते हैं?

  1. यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कार्रवाई
  2.  भारतीय रिज़र्व बैंक की कार्रवाई
  3.  मुद्रास्फीति एवं अल्पावधि ब्याज दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: नवंबर 2021 में ग्लासगो में COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के वर्ल्ड लीडर्स समिट में शुरू की गई ग्रीन ग्रिड पहल के उद्देश्य की व्याख्या कीजिये। यह विचार पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में कब लाया गया था? (2021)


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम, लाइफ कैंपेन, कार्बन क्रेडिट, क्योटो प्रोटोकॉल, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर

मेन्स के लिये:

ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के तहत कवर की गई गतिविधियाँ, ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम से संबंधित चिंताएँ।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने स्पष्ट किया है कि ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) के तहत केवल वृक्षारोपण के बजाय पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम क्या है?

  • परिचय:
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) एक अभिनव बाज़ार-आधारित तंत्र है, जिसे व्यक्तियों, समुदायों, निजी क्षेत्र के उद्योगों और कंपनियों जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 'LiFE' पहल के हिस्से के रूप में एक स्थायी जीवनशैली और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • कवर की गई गतिविधियाँ: ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम में पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के उद्देश्य से आठ प्रमुख गतिविधियाँ शामिल हैं:
    • वृक्षारोपण: हरित आवरण को बढ़ाने और वनाच्छादन से निपटने के लिये पेड़ लगाना।
    • जल प्रबंधन: जल संसाधनों के कुशलतापूर्वक प्रबंधन और संरक्षण के लिये रणनीतियों को लागू करना।
    • सतत् कृषि: पर्यावरण-अनुकूल और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।
    • अपशिष्ट प्रबंधन: पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिये प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू करना।
    • वायु प्रदूषण में कमी: पहल का उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना और वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।
    • मैंग्रोव संरक्षण और पुनर्स्थापना: पारिस्थितिक संतुलन हेतु मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और पुनर्स्थापन।
  • शासन एवं प्रशासन:
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के परिचालन ढाँचे में एक ऐसी प्रक्रिया शामिल है, जहाँ व्यक्तियों और निगमों दोनों को 'निम्नीकृत' समझे जाने वाले वनों की बहाली के प्रयासों में वित्तीय रूप से योगदान करने का अवसर दिया जाता है।
      • इसे पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र इकाई, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) के अनुप्रयोगों के माध्यम से सुविधाजनक बनाया गया है।
      • ICFRE वन बहाली के लिये निर्देशित वित्तीय योगदान की देख-रेख हेतु ज़िम्मेदार है, जिसे बाद में संबंधित राज्य वन विभागों द्वारा निष्पादित किया जाता है।
    • वनीकरण प्रयासों के बाद दो वर्ष की अवधि के पश्चात् ICFRE लगाए गए पेड़ों का मूल्यांकन करता है।
      • सफल मूल्यांकन पर प्रत्येक पेड़ को एक 'ग्रीन क्रेडिट' के बराबर मूल्य दिया जाता है। इन अर्जित ग्रीन क्रेडिट का उपयोग फंडिंग ऑर्गनाईज़ेशन द्वारा कुछ तरीकों से किया जा सकता है:
        • सबसे पहले ये उन संगठनों के लिये एक अनुपालन तंत्र के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिन्हें वन कानूनों द्वारा वनीकरण के लिये भूमि का एक तुलनीय क्षेत्र प्रदान करके गैर-वानिकी उद्देश्यों हेतु वन भूमि के अपयोजन को ऑफसेट करने के लिये अनिवार्य किया गया है।
        • वैकल्पिक रूप से इन क्रेडिट को पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) मानकों के पालन की रिपोर्ट करने या कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के दायित्वों को पूरा करने के लिये एक मीट्रिक के रूप में नियोजित किया जा सकता है।
  • ग्रीन क्रेडिट से प्राप्त आय एवं गणना: ग्रीन क्रेडिट अर्जित करने के लिये प्रतिभागियों को एक समर्पित वेबसाइट के माध्यम से अपनी पर्यावरणीय गतिविधियों को पंजीकृत करने की आवश्यकता होती है।
    • इसके बाद एक नामित एजेंसी इस परिचालन का सत्यापन करेगी। इस एजेंसी की रिपोर्ट के आधार पर प्रशासक आवेदक को ग्रीन क्रेडिट प्रमाणपत्र प्रदान करेगा।
    • ग्रीन क्रेडिट की गणना वांछित पर्यावरणीय परिणामों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक संसाधन आवश्यकताओं, पैमाने, दायरे, आकार के साथ अन्य प्रासंगिक मापदंडों जैसे कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • ग्रीन क्रेडिट रजिस्ट्री तथा ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म: इस कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण घटक ग्रीन क्रेडिट रजिस्ट्री की स्थापना करना है, जो अर्जित क्रेडिट को ट्रैक एवं प्रबंधित करने में सहायता प्रदान करेगा।
    • इसके अतिरिक्त प्रशासक घरेलू बाज़ार में ग्रीन क्रेडिट्स के व्यापार को सुनिश्चित करने के लिये एक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का निर्माण करेगा और उसे बनाए रखेगा।
  • महत्त्व: 
    • भारत की पर्यावरण संरेखित नीतियाँ: भारत की पर्यावरण नीतियाँ, जैसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 एवं राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती हैं।
      • GCP के साथ-साथ इन नीतियों का उद्देश्य वनों, वन्य जीवन एवं समग्र प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना है।
    • भारत के जलवायु उद्देश्यों के अनुरूप: GCP वैश्विक दायित्वों को बनाए रखने के भारत के प्रयासों का एक उदाहरण है, जो कि COP26 पर सहमति के अनुरूप है।
    • अंतर्राष्ट्रीय पारिस्थितिकी तंत्र बहाली का पूरक: GCP संयुक्त राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र बहाली दशक (वर्ष 2021-2030) के अनुरूप है, जो बहाली गतिविधियों को बढ़ाने पर ज़ोर देता है।
      • इस संबंध में भारत के दृष्टिकोण में बहाली प्रक्रिया में सभी हितधारकों को शामिल करना तथा पारंपरिक ज्ञान एवं संरक्षण का लाभ प्राप्त करना शामिल है।

क्या ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम कार्बन क्रेडिट को भी कवर करता है? 

  • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, 2023 के तहत प्रदान किये गए कार्बन क्रेडिट से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है, जो वर्ष 2001 के ऊर्जा संरक्षण अधिनियम द्वारा शासित होता है।
    • कार्बन क्रेडिट, जिसे कार्बन ऑफसेट के रूप में भी जाना जाता है, ऐसे परमिट होते हैं जो मालिक को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति देते हैं।
      • एक क्रेडिट 1 टन कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों के बराबर उत्सर्जन की अनुमति देता है।
  • ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने वाली पर्यावरणीय गतिविधि में जलवायु सह-लाभ हो सकते हैं, जैसे कार्बन उत्सर्जन को कम करना या हटाना, जिससे संभावित रूप से ग्रीन क्रेडिट के अलावा कार्बन क्रेडिट का अधिग्रहण हो सकता है।

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के साथ क्या चुनौतियाँ हैं?

  • वन पारिस्थितिकी पर प्रभाव: आलोचकों ने चिंता जताई है कि ग्रीन क्रेडिट नियम वन पारिस्थितिकी के लिये हानिकारक हो सकते हैं। ये नियम राज्य वन विभागों को ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिये वृक्षारोपण के लिये 'निम्नीकृत भूमि पार्सल' की पहचान करने का निर्देश देते हैं। 
    • हालाँकि इस दृष्टिकोण की अवैज्ञानिक और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये संभावित विनाशकारी के रूप में आलोचना की गई है।
    • झाड़ियों और खुले वनों के लिये ''निम्नीकृत' जैसे शब्दों का उपयोग अस्पष्ट माना जाता है और इससे औद्योगिक पैमाने पर वृक्षारोपण हो सकता है जो मृदा की गुणवत्ता को अपरिवर्तनीय रूप से बदल सकता है, स्थानीय जैवविविधता को प्रतिस्थापित कर सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • हरित रेगिस्तानों का निर्माण: ऐसी आशंका है कि ग्रीन क्रेडिट नियमों से 'हरित रेगिस्तानों' का निर्माण हो सकता है।
    • यह शब्द उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है जहाँ मूल परिदृश्य की पारिस्थितिक जटिलताओं और जैवविविधता पर विचार किये बिना वृक्षारोपण किये जाते हैं।
    • इस तरह के वृक्षारोपण पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बाधित कर सकते हैं और प्राकृतिक वन की तरह विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का समर्थन नहीं करते हैं।
    • वनों को केवल पेड़ों की गिनती के आधार पर मापने के लिये नियमों की आलोचना की गई है, जो एक कार्यात्मक वन और उससे जुड़े वन्यजीवों की बहुस्तरीय संरचना को नज़रअंदाज़ करता है।
  • पद्धति संबंधी चिंताएँ: ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने की पद्धति, विशेष रूप से वृक्षारोपण के माध्यम से इसकी पर्यावरणीय सुदृढ़ता पर प्रश्न उठाया गया है। 
    • आलोचकों को चिंता है कि यह कार्यप्रणाली संभावित नियामक कमियों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करती है और इससे पर्यावरणीय गिरावट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • 'बंजर भूमि' पर दबाव: 'अपघटित भूमि खंडों' पर पेड़ लगाने पर ज़ोर उन क्षेत्रों पर दबाव डालता है जिन्हें अक्सर बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ये क्षेत्र घास के मैदानों की तरह कार्बन पृथक्करण और अद्वितीय जैवविविधता का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन क्षेत्रों में वनीकरण पर ज़ोर देने से स्थानिक प्रजातियों तथा पारिस्थितिक कार्यों का नुकसान हो सकता है।

आगे की राह

  • जैवविविधता आधारित वनीकरण: पेड़ों की गणना से हटकर जैवविविधता-आधारित वनीकरण पर ध्यान केंद्रित करना, जहाँ लक्ष्य केवल बड़ी संख्या में पेड़ लगाने के बजाय विविध मूल प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करना है।
    • यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि नव स्थापित वृक्षारोपण प्राकृतिक वनों की नकल करते हैं और वन्यजीवों की एक विस्तृत शृंखला का समर्थन करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: वृक्षारोपण के लिये उपयुक्त वास्तव में निम्नीकृत भूमि की पहचान करने के लिये सुदूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग) और उपग्रह इमेज़री का उपयोग करना, जिससे मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचने का जोखिम कम हो सके।
  • पारदर्शिता और ज्ञान साझा करना: कार्यक्रम दिशा-निर्देशों के अंतर्गत "अपघटित भूमि (Degraded land)" और "बंजर भूमि (Wasteland)" जैसे शब्दों की स्पष्ट और पारदर्शी परिभाषा सुनिश्चित करना।
    • पर्यावरण की दृष्टि से ज़िम्मेदार प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये वन विभाग, व्यवसायों और गैर सरकारी संगठनों सहित हितधारकों के बीच ज्ञान साझा करने तथा क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम को लागू करने के संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि ऐसे कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास के बीच प्रभावी ढंग से संतुलन बनाते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
(b) क्योटो प्रोटोकॉल
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(d) जी-8 शिखर सम्मेलन, हेलीजेंडम

उत्तर: (b)


प्रश्न. "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है? (2011)

(a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली क्योटो प्रोटोकॉल के संयोजन में संपुष्ट की गई थी।
(b) कार्बन क्रेडिट उन देशों या समूहों को प्रदान किया जाता है जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाकर उसे उत्सर्जन अभ्यंश के नीचे ला चुके होते हैं।
(c) कार्बन क्रेडिट का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हो रही वृद्धि पर अंकुश लगाना है।
(d) कार्बन क्रेडिट का क्रय-विक्रय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर नियत मूल्यों के आधार पर किया जाता है।

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. क्या यू.एन.एफ.सी.सी.सी. के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्त्वों का अनुसरण जारी रखा जाना चाहिये, यद्यपि कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है ? आर्थिक संवृद्धि  के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)


शासन व्यवस्था

अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौता और दोहरा कराधान बचाव समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौते, दोहरा कराधान अपवंचन समझौता, कर चोरी

मेन्स के लिये:

कर निश्चितता सुनिश्चित करने में APAs का महत्त्व, दोहरा कराधान बचाव समझौते और उनका महत्त्व, व्यवसाय करने में आसानी

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes - CBDT) ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 125 अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौतों (Advance Pricing Agreements - APAs) पर हस्ताक्षर करके एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है।

  • APA हस्ताक्षरों में यह उछाल स्थानांतरण मूल्य निर्धारण नियमों के बढ़ते महत्त्व और करदाताओं को निश्चितता प्रदान करने के प्रयासों को रेखांकित करता है।
  • एक अतिरिक्त विकास में भारत और मॉरीशस ने कर चोरी पर अंकुश लगाने और निष्पक्ष कराधान प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये अपने दोहरे कराधान अपवंचन समझौते (Double Taxation Avoidance Agreement - DTAA) में संशोधन किया है।

 अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौता क्या है?

  • परिचय:
    • APA करदाता और कर प्राधिकरण के बीच स्थानांतरण कीमतों पर एक औपचारिक व्यवस्था है।
    • APA व्यवसायों को कर अधिकारियों द्वारा उनके लेन-देन की कीमतों को चुनौती दिये जाने के जोखिम को कम करने की अनुमति देता है।
    • APA कार्यक्रम का व्यापार करने में सुलभता (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) को बढ़ावा देने के भारत सरकार के मिशन में महत्त्वपूर्ण योगदान है, विशेष रूप से बहुराष्ट्रीय उद्यमों (MNEs) के लिये जिनके समूह संस्थाओं के भीतर बड़ी संख्या में सीमा पार लेनदेन होते हैं।
  • APAs के प्रकार:
    • एकपक्षीय APA:
      • घरेलू संस्थाओं के बीच लेन-देन के लिये जोखिम सीमित करना।
      • विदेशी संस्थाओं के साथ लेन-देन पर दोहरे कराधान से बचने की कोई गारंटी नहीं। अन्य APA प्रकारों की तुलना में अपेक्षाकृत कम कार्यवाही।
    • द्विपक्षीय APA:
      • घरेलू इकाई और विदेशी इकाई के बीच लेन-देन के लिये जोखिम सीमित करना। दोहरे कराधान के जोखिम को समाप्त करना। लंबी कार्यवाही के लिये दोनों राज्यों को सहमत होना होगा।
    • बहुपक्षीय APA (MAPA):
      • वे 3 या अधिक राज्यों में संबंधित संस्थाओं के बीच लेन-देन के जोखिम को कम करते हैं, जटिल लेन-देन के लिये एक सुरक्षात्मक उपकरण के रूप में कार्य करते हैं और दोनों पक्षों के लिये सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, हालाँकि कार्यवाही में अधिक समय लगता है।
  • APA की प्रमुख विशेषताएँ:
    • APA प्रक्रिया स्वैच्छिक है और स्थानांतरण मूल्य निर्धारण विवादों को हल करने के लिये अपील और अन्य दोहरे कराधान अपवंचन समझौते तंत्र की पूरक होगी।
    • APA की अवधि अधिकतम 09 वर्ष हो सकती है (यदि करदाता ने रोल रोलबैक तंत्र का विकल्प चुना है तो पाँच वर्ष संभावित और 04 वर्ष पूर्वव्यापी सहित)।
    • यह प्रक्रिया व्यवसायों द्वारा प्रदान किये  गए संवेदनशील डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
    • सांख्यिकीय डेटा और सारांश जानकारी प्रकाशित की जाती है, लेकिन निष्कर्षित व्यवस्था वाली संस्थाओं या आवेदकों के नामों का खुलासा किये बिना।
  • व्यवसायों के लिये APA का महत्त्व:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन हेतु निकटतम दूरी की कीमत निर्धारित करने के लिये कर निश्चितता (Tax Certainty) प्रदान करता है।
    • द्विपक्षीय या बहुपक्षीय APA के माध्यम से संभावित दोहरे कराधान के जोखिम को कम करता है।
    • स्थानांतरण मूल्य निर्धारण ऑडिट जोखिम को समाप्त करके और विवादों को हल करके अनुपालन लागत को कम करता है।
    • आवश्यक दस्तावेज़ों को पहले से रिकॉर्ड रखने का बोझ कम हो जाता है।
    • APA, व्यवसायों को उनके लेन-देन की कीमतों को अनुचित तरीके से निर्धारित करने या कर अधिकारियों द्वारा चुनौती दिये जाने के जोखिम को कम करेगा।
    • APA व्यवसायों के लिये अपने कर जोखिमों और योजना का प्रबंधन करने के लिये एक प्रभावी उपकरण हो सकता है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT):

  • यह एक वैधानिक निकाय है, जिसे केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 के तहत स्थापित किया गया है, यह वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग का एक हिस्सा है।
  • CBDT भारत में प्रत्यक्ष करों की नीति और योजना के लिये आवश्यक इनपुट प्रदान करता है, साथ ही यह आयकर विभाग के माध्यम से प्रत्यक्ष कर कानूनों के प्रशासन के लिये भी ज़िम्मेदार है।

दोहरा कराधान बचाव समझौता (DTAA):

  • DTAA दो या दो से अधिक देशों के बीच हस्ताक्षरित एक कर संधि है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि इन देशों में करदाता एक ही आय पर दो बार कर लगाने से बच सकें।
  • DTAA उन मामलों में लागू होता है, जहाँ करदाता एक देश में रहता है और दूसरे देश में आय अर्जित करता है।
  • DTAA या तो आय के सभी स्रोतों को कवर करने के लिये व्यापक हो सकते हैं या कुछ क्षेत्रों तक सीमित हो सकते हैं जैसे शिपिंग, हवाई परिवहन, विरासत आदि से आय पर कर लगाना।
  • वर्ष 1983 में भारत और मॉरीशस दोहरे कराधान को रोकने के लिये DTAA पर सहमत हुए। DTAA दोनों देशों के निवासियों पर लागू होता है।

भारत और मॉरीशस DTAA संशोधन में क्या शामिल है?

  • मुख्य उद्देश्य परीक्षण (PPT):
    • संशोधित प्रोटोकॉल भारत-मॉरीशस दोहरे कराधान बचाव समझौते (DTAA) में मुख्य उद्देश्य परीक्षण (PPT) पेश करता है।
      • यदि उन लाभों को प्राप्त करना किसी लेन-देन या व्यवस्था का प्राथमिक उद्देश्य हो तो PPT समझौता लाभों से इनकार करता है।
  • अनुच्छेद 27B:
    • समझौते में एक नया अनुच्छेद 27B शामिल किया गया है, जो 'लाभ की पात्रता' (Entitlement to Benefits) को परिभाषित करता है।
      • यह अनुच्छेद उन शर्तों को निर्दिष्ट करता है, जिनके तहत समझौते के लाभ, जैसे कि ब्याज, रॉयल्टी और लाभांश पर प्रतिधारण कर (Withholding Tax) को कम करने से इनकार किया जाता है।
  • समझौते के दुरुपयोग को रोकने पर ध्यान देना:
    • संशोधन का उद्देश्य DTAA के दुरुपयोग के माध्यम से कर चोरी और बचाव से संबंधित चिंताओं को दूर करना है।
    • PPT को शामिल करके, संशोधित समझौता यह सुनिश्चित करता है कि कर लाभों का अनुचित उद्देश्यों के लिये दुरुपयोग न किया जाए।
  • विगत निवेशों के संबंध में अनिश्चितता:
    • संशोधन के बावजूद DTAA के विगत प्रावधानों के तहत किये गए पिछले निवेशों के संबंध में स्पष्टता का अभाव है।
    • वित्त मंत्रालय ने अभी तक मौजूदा निवेशों पर नए प्रावधानों के लागू होने के बारे में स्पष्टीकरण जारी नहीं किया है।

भारत तथा मॉरीशस के बीच वाणिज्यिक संबंध:

  • वर्ष 2005 से भारत, मॉरीशस के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है।
  • वित्तीय वर्ष 2022-2023 के लिये मॉरीशस को भारतीय निर्यात 462.69 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जबकि भारत को मॉरीशस का निर्यात 91.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें कुल व्यापार 554.19 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
    • भारत एवं मॉरीशस के बीच व्यापार में पिछले 17 वर्षों में 132% तक की वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2019 के मध्य तक पेट्रोलियम उत्पाद, भारत से मॉरीशस को निर्यात की गई मुख्य वस्तु थी। मॉरीशस को अन्य भारतीय निर्यातों में फार्मास्यूटिकल्स, अनाज, कपास, झींगा एवं गोजातीय मांस आदि शामिल थे।
  • मॉरीशस से भारत में निर्यात की मुख्य मदों में वेनिला, चिकित्सा उपकरण, सुइयाँ, एल्युमीनियम मिश्रधातु, स्क्रैप पेपर, परिष्कृत ताँबा एवं पुरुषों हेतु सूती वस्त्र शामिल हैं।
  • वर्ष 2000 से 2022 के बीच मॉरीशस से भारत में 161 बिलियन अमेरिकी डॉलर का संचयी FDI प्राप्त हुआ, जो मुख्य रूप से DTAA के कारण था।
  • मॉरीशस और भारत ने 2021 में व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौते (CECPA) पर हस्ताक्षर किये।
    • CECPA किसी अफ्रीकी देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला व्यापार समझौता है।
  • वर्ष 2024 में मॉरीशस में यूनिफ़ाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) एवं RuPay कार्ड सेवाएँ भी लॉन्च की गईं।
    • मॉरीशस एवं भारत में उपयोगकर्त्ताओं को RuPay तथा UPI को अपनाने से घरेलू के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन करने में सुविधा प्राप्त होगी।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के भारत के प्रयासों पर वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा APA हस्ताक्षरों में वृद्धि के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।

प्रश्न. कर चोरी को रोकने तथा भारत एवं मॉरीशस के बीच निष्पक्ष कराधान प्रथाओं को सुनिश्चित करने हेतु किये गए संशोधन के उद्देश्यों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. अप्रवासी सत्त्वों द्वारा दी जा रही ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर भारत द्वारा 6% समकरण कर लगाए जाने के निर्णय के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2018)

  1. यह आय कर अधिनियम के भाग के रूप में लागू किया गया है।
  2. भारत में विज्ञापन सेवाएँ देने वाले अप्रवासी सत्त्व अपने गृह देश में "दोहरे कराधान से बचाव समझौते" के अंतर्गत टैक्स क्रेडिट का दावा कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


भारतीय अर्थव्यवस्था

तमिलनाडु में विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

सकल मूल्यवर्द्धन (GVA), विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण मॉडल, क्लस्टर विकास, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन, सेवा क्षेत्र

मेन्स के लिये: 

औद्योगिक विकास में पूंजीपतियों के समूह की भूमिका, भारत का औद्योगिक क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र के विकास हेतु सरकारी पहल

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु का आर्थिक परिदृश्य एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है, जो अपनी कृषि बुनियादों से आगे बढ़कर एक विविध और औद्योगिक अर्थव्यवस्था को अपना रहा है।

  • यह बदलाव मुख्य रूप से पूंजीपतियों के समूह और 'छोटे उद्यमियों (‘Entrepreneurs from Below)' के उद्भव के लिये ज़िम्मेदार है, जो विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में विकास को गति दे रहे हैं।

तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था कितनी विविध और औद्योगीकृत है?

  • हालाँकि गुजरात के GVA (15.9%) और कार्यबल (41.8%) में कृषि की हिस्सेदारी तमिलनाडु के 12.6% और 28.9% की तुलना में अधिक है।
  • राष्ट्रीय औसत की तुलना में तमिलनाडु के कृषि क्षेत्र का सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) और नियोजित श्रम बल (28.9%) में न्यूनतम भाग (12.6%) है।
  • अखिल भारतीय आँकड़ों की तुलना में राज्य की अर्थव्यवस्था में उद्योग, सेवाओं और निर्माण की हिस्सेदारी अधिक है।
  • तमिलनाडु की कृषि अपने आप में विविधतापूर्ण है, पशुधन उपक्षेत्र कृषि GVA में 45.3% का महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जो सभी राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है।
  • राज्य ने वस्त्र, इंजीनियरिंग, चमड़ा, खाद्य प्रसंस्करण इत्यादि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई उद्योग क्लस्टर विकसित किये हैं।
  • गुजरात तमिलनाडु की तुलना में अधिक औद्योगीकृत है, जहाँ कारखाना क्षेत्र (Factory Sector) राज्य के GVA का 43.4% उत्पन्न करता है और अपने कार्यबल का 24.6% संलग्न करता है, जबकि तमिलनाडु का क्रमशः 22.7% और 17.9% है।
  • यह गुजरात की अर्थव्यवस्था को तमिलनाडु की तुलना में कम विविध और संतुलित बनाता है।

तमिलनाडु के आर्थिक परिवर्तन को किन कारकों ने प्रेरित किया है?

  • विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण:
    • तमिलनाडु में केवल कुछ प्रमुख व्यावसायिक संस्थाएँ हैं जिनका वार्षिक राजस्व 15,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
    • हालाँकि तमिलनाडु के आर्थिक परिवर्तन को मध्यम स्तर के व्यवसायों द्वारा संचालित किया गया है, जिनका टर्नओवर 100 करोड़ रुपए से 5,000 करोड़ रुपए तक है, जिनमें से कुछ 5,000-10,000 करोड़ रुपए के स्तर तक पहुँच गए हैं। 
      • औद्योगीकरण को विकेंद्रीकृत किया गया है और समूहों के विकास के माध्यम से फैलाया गया है।
      • इस विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण ने अधिक विविध और संतुलित आर्थिक परिदृश्य को संभव बनाया है।
  • क्लस्टर-आधारित विकास:
    • क्लस्टर विकास आर्थिक विकास का एक रूप है जिसमें व्यवसायों को एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रखना शामिल है। 
      • इसका लक्ष्य उत्पादकता बढ़ाना और क्षेत्रीय दक्षता को अधिकतम करना है।
    • तमिलनाडु में सफल क्लस्टर के उदाहरण:
      • तिरुपुर: कपास से बुना हुआ कपड़ा (800,000 लोगों को रोज़गार);
      • कोयंबटूर: कताई मिलें और इंजीनियरिंग सामान;
      • शिवकाशी: सुरक्षित माचिस, पटाखे, और छपाई;
    • इन समूहों ने न केवल रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये हैं बल्कि उद्यमिता और नवाचार की संस्कृति को भी बढ़ावा दिया है, जिससे राज्य के समग्र आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
  • कृषि से परे विविधीकरण:
    • क्लस्टर शहरों में रोज़गार के सृजन ने तमिलनाडु के कार्यबल की खेती पर निर्भरता कम कर दी है, जिससे कृषि से परे विविधीकरण हुआ है।
      • इस परिवर्तन ने वैकल्पिक रोज़गार विकल्प प्रदान करके राज्य के आर्थिक आधार का विस्तार किया है।
  • ज़मीनी स्तर पर उद्यमिता:
    • अधिक सामान्य किसान वर्ग और प्रांतीय व्यापारिक जातियों के उद्यमियों ने राज्य के आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
      • इन उद्यमियों ने विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसायों का निर्माण और विस्तार किया है, जिससे तमिलनाडु के समग्र औद्योगीकरण और आर्थिक विकास में योगदान मिला है।
    • विविध सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से कृषि से परे औद्योगीकरण एवं विविधीकरण प्राप्त करने में सफल रहा है।
  • सामाजिक प्रगति सूचकांक:
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा में निवेश के परिणामस्वरूप उच्च सामाजिक प्रगति सूचकांकों ने संभवतः कृषि से परे औद्योगीकरण एवं विविधीकरण प्राप्त करने में तमिलनाडु की सापेक्ष सफलता में योगदान दिया है।
    • सामाजिक विकास पर राज्य के आर्थिक विकास के साथ-साथ परिवर्तन हेतु अनुकूल वातावरण निर्मित किया है, जिससे जीवन स्तर एवं आर्थिक अवसरों में सुधार हुआ है।

विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण मॉडल क्या है?

  • परिचय:
    • विकेंद्रीकरण में समाज में विभिन्न राजनीतिक तथा आर्थिक एजेंटों के मध्य शक्तियों एवं कार्यों का व्यवस्थित वितरण शामिल होता है।
    • उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के साथ-साथ स्थान, संगठन एवं निर्णय लेने का विकेंद्रीकरण सभी इसके राजनीतिक तथा आर्थिक पहलुओं में शामिल हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • ग्रामीण एवं उप-शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों का विस्तार करना साथ ही शहरी केंद्रों पर निर्भरता कम करना शामिल है।
    • स्थानीय उद्यमिता एवं आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने हेतु स्थानीय समुदायों के स्वामित्व वाले छोटे एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
    • रोज़गार के अवसर सृजित करने के साथ ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को कम करने हेतु श्रम-केंद्रित उत्पादन विधियों पर ज़ोर दिया गया।
    • स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने तथा सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय संसाधनों एवं कौशल का उपयोग।
    • विभिन्न ग्राम उद्योगों के बीच परस्पर निर्भरता एक आत्मनिर्भर आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती है।
    • उत्पादन इकाइयों की विकेंद्रीकृत व्यवस्था के माध्यम से उत्पादन एवं वितरण को समान बनाना।
  • लाभ:
    • संतुलित क्षेत्रीय विकास को सुगम बनाता है और स्थानिक असमानताओं को कम करता है।
    • ग्रामीण समुदायों को आर्थिक अवसर प्रदान करके समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
    • विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों में विविधता लाकर आर्थिक प्रभाव के प्रति लचीलापन बढ़ाता है।
    • विकास प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी एवं स्वामित्व को बढ़ावा देता है।
    • स्थानीय संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के साथ पर्यावरणीय प्रभावों को कम करके सतत् विकास का समर्थन करता है।
  • चुनौतियाँ:
    • सीमित तकनीकी क्षमता अधिक अक्षमता का कारण बन सकती है।
    • विकेंद्रीकृत मॉडल से, विशेषकर खरीद में पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के हानि के कारण लागत में वृद्धि हो सकती है।
    • विकेंद्रीकृत मॉडल में कुशल श्रम सभी क्षेत्रों में समान रूप से उपलब्ध नहीं हो सकता है और साथ ही इसके परिणामस्वरूप कुछ स्थानों पर कौशल अंतराल हो सकता है।

गांधीजी की विकेंद्रीकरण की अवधारणा:

  • गांधी ने समतावादी ढाँचे पर आधारित एक सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की, जिसमें निर्णय लेने और उत्पादन के साधनों के स्वामित्व में विकेंद्रीकरण पर बल दिया गया।
  • उन्होंने खादी और ग्रामोद्योग जैसी लघु-स्तरीय, श्रम-गहन उत्पादन इकाइयों के माध्यम से ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा देने, ग्रामीण स्तर की आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण की वकालत की।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये पहल

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. आर्थिक विविधीकरण और क्षेत्रीय दक्षता में विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण और क्लस्टर-आधारित विकास के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: b


मेन्स

प्रश्न.1 "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं?  (2017)

प्रश्न.2 आमतौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


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