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महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट्स की जिस्ट

विविध

CBD की छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट

  • 10 Apr 2019
  • 77 min read

परिचय

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने नवंबर 2011 में संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक आयोजित करके राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य (National Bio Diversity Target-  NBT) की स्थापना की प्रक्रिया शुरू की।
  • जैव विविधता (2011-2020) हेतु रणनीतिक योजना (SP) एवं इसके 20 आइची टारगेट (20 Aichi Targets) के अनुरूप NBTs विकसित करके भारत की राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य-योजना (NBSAP) 2008 को अद्यतन करने के लिये विशिष्ट विषय केंद्रित अंतर-मंत्रिस्तरीय बैठक एवं हितधारकों से व्यापक परामर्श किया गया।

राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य

कई राज्यों के अपने राज्य जैव विविधता एक्शन प्लान्स (SBAPs) हैं, जिन्हें NBTs की मदद से लागू किया जा रहा है।

NBT- 1

वर्ष 2020 तक जनसंख्या के एक बड़े हिस्से, विशेष तौर पर युवाओं, को जैव विविधता के महत्त्व, इसके संरक्षण एवं सतत् उपयोग के प्रति जागरूक करना।

NBT-1 से संबंधित अभिसमय:

  1. जैव विविधता पर अभिसमय (CBD), 1993
  2. के प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS), 1983
  3. वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES), 1975
  4. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स पर अभिसमय, विशेष रूप से जलपक्षी आवास (रामसर कन्वेंशन), ​​1975
  5. वनस्पति संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (IPPC), 1952
  6. खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधन पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ITPGRFA), 2004
  7. मरुस्थलीकरण को रोकने हेतु संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCCD), 1996
  8. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), 1994

यह आइची लक्ष्य संख्या 1 (जैव विविधता मूल्यों के प्रति जागरूकता) को समाहित करता है।

NBT- 2

वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय एवं राज्य योजनाओं, विकास कार्यक्रमों तथा गरीबी उन्मूलन से जुडी योजनाओं को जैव विविधता के मूल्यों के साथ एकीकृत करना।

NBT-2 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स पर अभिसमय, विशेष रूप से जलपक्षी आवास (रामसर कन्वेंशन), ​​1975
  3. ITPGRFA, 2004
  4. UNFCCC, 1994
  5. UNFF, 2000

यह आइची लक्ष्य संख्या 2 (जैव विविधता मूल्यों का एकीकरण) को समाहित करता है।

NBT- 3

वर्ष 2020 तक पर्यावरणीय अमलीकरण और मानव कल्याण के लिये सभी प्राकृतिक आवासों के क्षरण, विखंडन और हानि की दर को कम करने के लिये रणनीति को अंतिम रूप देना।

NBT-3 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स पर अभिसमय, विशेष रूप से जलपक्षी आवास (रामसर कन्वेंशन), ​​1975
  3. UNFCCD, 1996
  4. समुद्री क़ानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS), 1994
  5. संयुक्त राष्ट्र फोरम ऑन फॉरेस्ट (UNFF), 2000
  6. UNFCCC, 1994

यह आइची लक्ष्य संख्या 5 (आवासों का विखंडन),15 (पारिस्थितिकी तंत्र का लचीलापन) और SDG 6, 7, 11, 13, 14 तथा 15 को समाहित करता है।

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NBT- 4

वर्ष 2020 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों एवं उनके आने के मार्गों की पहचान कर प्राथमिकता वाले आक्रामक विदेशी प्रजातियों की आबादी को प्रबंधित करने के लिये रणनीति तैयार करना।

NBT-4 से संबंधित अभिसमय:

  1. CMS, 1983
  2. CITES, 1975
  3. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स पर अभिसमय, विशेष रूप से जलपक्षी आवास (रामसर कन्वेंशन), ​​1975
  4. IPPC, 1952
  5. UNCLOS, 1994
  6. UNFCCC, 1994
  7. सैनेटरी और फाइटोसैनेटरी (Phytosanitary) उपायों के उपयोग पर समझौता, 1995
  8. द इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर द कंट्रोल एंड मैनेजमेंट ऑफ शिप्स बैलास्ट वाटर एंड सेडिमेंट्स (BWM कन्वेंशन), ​​2004

यह आइची लक्ष्य संख्या 14 (आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ) एवं SDG 15 को समाहित करता है।

NBT- 5

वर्ष 2020 तक कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन के सतत्प्रबंधन के लिये उपाय अपनाए जाने हैं।

NBT-5 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. IPPC, 1952
  3. ITPGRFA, 2004
  4. UNCCD, 1996
  5. UNCLOS, 1994
  6. UNFF, 2000
  7. UNFCCC, 1994

यह आइची लक्ष्य संख्या 6 (सतत् मत्स्य पालन), 7 (स्थायी या सतत् प्रबंधन के तहत क्षेत्र) एवं 8 (प्रदूषण को न्यूनतम करना) को समाहित करता है।

NBT- 6

पारिस्थितिकी रूप से महत्त्वपूर्ण भूमि, जल, तटीय एवं समुद्री क्षेत्र (विशेष तौर पर वे क्षेत्र जो किसी खास प्रजाति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) को समान और प्रभावी रूप से संरक्षित क्षेत्र, प्रबंधन और अन्य आधारों पर संरक्षित किया जा रहा है। 2020 तक व्यापक परिदृश्य और समुद्री क्षेत्रों को एकीकृत करते हुए देश के भौगोलिक क्षेत्र का 20% से अधिक भाग इसके अंतर्गत शामिल कर लिया जाएगा।

NBT-6 से संबंधित अभिसमय:

  1. CMS, 1983
  2. CITES, 1975
  3. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स पर अभिसमय, विशेष रूप से जलपक्षी आवास (रामसर कन्वेंशन), ​​1975
  4. खाद्य और कृषि के लिये प्लांट जेनेटिक रिसोर्स पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ITPGRFA), 2004
  5. विश्व धरोहर सम्मेलन, 1977
  6. UNFF, 2000
  7. CBD, 1993

यह आइची लक्ष्य संख्या 10 (सुभेद्य पारिस्थितिकी तंत्र), 11 (संरक्षित क्षेत्र), 12 (प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकना) एवं SDG 6, 11, 14 और 15 की उपलब्धि में योगदान देता है।

NBT- 7

कृषि, कृषि में उपयोग होने वाले पशुधन, वनों में पाई जाने वाली इनकी प्रजातियाँ साथ ही अन्य सभी प्रजितियाँ, जो सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं, की आनुवंशिक विविधता को बनाए रखा गया है। आनुवंशिक क्षरण को कम करने के लिये आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने हेतु रणनीतियाँ बनाई और लागू की गई हैं।

NBT-7 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. IPPC, 1952
  3. ITPGRFA, 2004
  4. आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल, 2014

यह आइची लक्ष्य संख्या 13 (कृषि जैव विविधता के माध्यम से आनुवंशिक विविधता को बनाए रखना) एवं SDG 2 और 3 का समर्थन करता है।

NBT- 8

वर्ष 2020 तक जल, मानव स्वास्थ्य, आजीविका और कल्याण से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं की गणना की जा रही है तथा उन्हें सुरक्षित करने के उपायों की पहचान महिलाओं और स्थानीय समुदायों, विशेषकर निर्धन और सुभेद्य वर्ग की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए की जा रही है।

यह आइची लक्ष्य संख्या 14 (आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को सुरक्षित रखना) एवं एसडीजी 3, 4, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 14 और 15 की आवश्यकता को पूरा करता है।

NBT – 9

वर्ष 2015 तक नागोया प्रोटोकॉल के अनुसार आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग (GRs) तक पहुँच और इसके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और समान बँटवारा हेतु संगत राष्ट्रीय कानून।

NBT-9 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और इनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल, 2014

1. यह आइची लक्ष्य संख्या 16 (आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल, 2014) को समाहित करता है।

NBT- 10

वर्ष 2020 तक एक प्रभावी भागीदारी तथा अद्यतन राष्ट्रीय जैव विविधता योजना को शासन के विभिन्न स्तरों पर संचालित किया जाना है।

NBT-10 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. CMS, 1983
  3. CITES, 1975
  4. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स पर अभिसमय, विशेष रूप से जलपक्षी आवास (रामसर कन्वेंशन), ​​1975
  5. IPPC, 1952
  6. ITPGRFA, 2004
  7. अनवरत कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants-POPs) पर स्टॉकहोम सम्मेलन, 2004
  8. UNCCD, 1996
  9. UNFF, 2000
  10. UNFCCC, 1994
  11. विश्व विरासत सम्मेलन (WHC), 1977

यह आइची लक्ष्य संख्या 3 (प्रोत्साहन), 4 (प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग), 17 (NBSAPs) को समाहित करता है।

NBT - 11

वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय विधानों एवं अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के तहत जैव विविधता से संबंधित समुदायों के पारंपरिक ज्ञान का उपयोग कर राष्ट्रीय पहलों को मज़बूत किया जा रहा है ताकि इस ज्ञान को संरक्षित किया जा सके।

NBT-11 से संबंधित अभिसमय:

  1. CBD, 1993
  2. IPPC, 1952
  3. WHC, 1977
  4. विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार संगठन (WIPO) सम्मेलन (1967)

यह आइची लक्ष्य संख्या 18 (पारंपरिक ज्ञान) एवं SDG 6, 9, 11, 12 और 14 से संबंधित है।

NBT- 12

वर्ष 2020, जैव विविधता 2011-2020 के लिये रणनीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुगम बनाने हेतु वित्तीय, मानव और तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाने का अवसर है तथा राष्ट्रीय लक्ष्यों की पहचान की जा रही है एवं संसाधन जुटाने की रणनीति अपनाई जा रही है।

यह आइची लक्ष्य संख्या 20 (संसाधन जुटाना) से संबंधित है।

कार्यान्वयन के उपाय, उनकी प्रभावशीलता और बाधाएँ

NBT -1

मुख्य उपाय:

A. प्रमुख नीतियों, कानूनी एवं कार्यक्रम के उपायों में शामिल हैं:

  1. जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अनुसार सरकार जैव विविधता के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं सार्वजनिक शिक्षा को प्रोत्साहित करती है।
  2. राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 पर्यावरण संरक्षण के लिये व्यक्तिगत व्यवहार में सामंजस्य बढ़ाने के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
  3. राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 पर्यावरण संरक्षण सहित विभिन्न पहलों में युवाओं की भागीदारी का आह्वान करती है।
  4. शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति, 1986 (1992 में संशोधित) में कहा गया है कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता के विषय को स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षण में शामिल करना चाहिये।
  5. राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों को अपना CEPA (Communication, Education & Public Awareness) कार्यक्रम लागू करना चाहिये।
  6. जैव विविधता के मुद्दों के बारे में समझ एवं जागरुकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (IDB) मनाया जाता है।

B. अन्य उपाय:

CEPA के लिये एक समग्र दृष्टिकोण को विशिष्ट कार्यक्रमों / पहलों के माध्यम से अपनाया गया है।

CEPA कार्यक्रम और पहल

  1. सभी स्कूल और कॉलेज स्तरों पर पर्यावरण शिक्षा का समावेश
  2. स्कूली बच्चों के लिये सह-पाठ्यक्रम कार्यक्रम
  3. युवाओं और अन्य लोगों के लिये जागरूकता और क्षमता निर्माण कार्यक्रम
  4. उद्योग और कॉर्पोरेट क्षेत्र की पहल
  5. BMCs (जैव विविधता प्रबंधन समिति), PRI (पंचायती राज संस्थान), समुदायों और CSO के माध्यम से स्थानीय स्तर पर उपाय

B1. सभी स्कूल और कॉलेज स्तरों पर पर्यावरण शिक्षा (EE) का समावेश

B1.1 जैव विविधता संरक्षण तथा सतत् उपयोग पर्यावरण शिक्षा (EE) के अभिन्न अंग है। EE को पूरे देश में शिक्षा के सभी स्तरों पर पाठ्यक्रमो में अनिवार्य घटक बनाया गया है।

B1.2 विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षकों और संकायों की क्षमता निर्माण किया जा रहा है। EE के संचालन के लिये शिक्षा-विषयक उपकरण पेशेवर रूप से बनाए गए हैं।

B2. स्कूली बच्चों के लिये सह-पाठयक्रम कार्यक्रम

  • इको-क्लब कार्यक्रम
  • पर्यावरण मित्र (प्रकृति के मित्र) कार्यक्रम
  • DBT (Department of Biotechnology) का प्राकृतिक संसाधन जागरूकता क्लब (DNA क्लब)

B3. युवाओं और अन्य लोगों के लिये जागरूकता एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रम

  • स्कूल स्ट्रीम से बाहर के लोग, युवा एवं बच्चे अन्य माध्यमों से पहुँचते हैं जैसे कि:
  • मोबाइल प्रदर्शनी, जैसे, साइंस एक्सप्रेस- एक प्रदर्शनी जो एक ट्रेन में आयोजित होती है और यह ट्रेन पूरे भारत में भ्रमण करती है। यह विभिन्न विषयों पर नौ चरणों में यात्रा पूरी कर चुकी है।
  • उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा जैव विविधता पर एक मोबाइल प्रदर्शनी ‘प्रकृति बस’ शुरू की गई तथा अन्य राज्यों द्वारा भी इसी तरह की अन्य पहल की गई है।
  • सार्वजनिक मीडिया का उपयोग।

B3.1 जागरूकता और क्षमता निर्माण: जागरूकता और क्षमता निर्माण के लिये की गई पहल

  1. UNDP-GEF-ABS क्षमता निर्माण परियोजना
  2. UNEP-GEF-MoEFCC-ABS परियोजना
  3. GIZ ने ABS साझेदारी प्रोजेक्ट का समर्थन किया
  4. GEF UNDP सुरक्षित हिमालय परियोजना
  5. GEF UNDP लघु अनुदान कार्यक्रम
  6. आसियान इंडिया ग्रीन फंड
  7. सीमा पार परियोजना
  8. क्षेत्रीय पहल

CEPA ज़मीनी स्तर पर कार्रवाई करने हेतु जागरूकता निर्माण एवं क्षमता पैदा करने के लिये एक प्रभावी उपकरण साबित हुआ है। आवास, वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों की पहचान, रक्षा एवं संरक्षण के कार्य कई बार लोगों द्वारा दूसरों की प्रेरणा के माध्यम से किया जाता हैं परंतु अक्सर यह कार्य स्व-प्रेरणा द्वारा भी किया जाता है।

कुछ सैंपल केस स्टडी यहाँ दिये जा रहे हैं।

  • महिला हैरगिला (ग्रेटर एडजुटैंट) सेना

असम के दादरा, पचरिया और सिंगिमारी गाँवों में प्रत्येक में पाँच सदस्यों वाले चौदह स्व-सहायता समूह शामिल हैं, जिन्होंने आमतौर पर Greater Adututant Stork के खिलाफ प्रतिकूल व्यवहार को रोकने एवं बदलने के लिये 70 महिलाओं की हरगिला सेना के रूप में खुद को तैयार किया तथा IUCN की लाल सूची में सूचीबद्ध इस पक्षी को उनके गाँवों से गायब होने से बचाया, जो कि इन पक्षियों का एक महत्त्वपूर्ण निवास स्थान हुआ करता था। यह सब CEPA के प्रभावी उपयोग के साथ एक महिला पक्षी शोधकर्त्ता द्वारा शुरू किया गया, जो इन गाँवों में ग्रेटर एडजुटैंट निवास स्थान को बचाने के लिये दृढ़-संकल्प थी। एक बार इस कार्य के लिये प्रेरित होने के बाद इन महिलाओं ने अपने बच्चों एवं अपने घरों तथा आसपास के अन्य सदस्यों को इसमें शामिल करके ग्रेटर एडजुटैंट के लिये समर्थन के आधार को व्यापक किया। महिलाओं द्वारा लगातार किये जा रहे प्रयास ने प्रशासन, पुलिस, वन, स्वास्थ्य और राज्य चिड़ियाघर प्राधिकरण आदि विभागों के साथ-साथ ज़िला अधिकारियों का समर्थन भी प्राप्त किया तथा प्रत्येक ने समन्वित तरीके से इस "ग्रेटर एडजुटैंट बचाओ" लक्ष्य में योगदान दिया।

महत्त्वपूर्ण परिणामों में से एक सभी कदंब पेड़ों (नियोल्मरकेडिया कैदम्बा) का बचाव करना भी शामिल है जो ग्रेटर एडजुटैंट स्टॉर्क के निवास स्थान के रूप में कार्य करते हैं। इनकी संख्या 2008 में 28 थी जो 2015 में बढ़कर 143 हो गई है। असम राज्य चिड़ियाघर के सहयोग से घायल पक्षियों के बचाव तथा पुनर्वास प्रणाली की स्थापना की गई, इसके तहत 14 स्वयं सहायता समूहों के बीच 28 हथकरघा वितरित किये गए हैं। इसके अतिरिक्त यह समुदाय के लिये वैकल्पिक आजीविका विकल्पों हेत्तु कार्यक्रम के रूप में भी शुरू किया गया है। इसके तहत महिलाओं के लिये फैशन और वस्त्र डिज़ाइनिंग डिप्लोमा कोर्स (विशेष तौर पर ग्रेटर एडजुटैंट सारस की डिज़ाइन में) की शुरुआत की गई हैं। पक्षीयों के संरक्षण के लिये 10,000 से अधिक लोग आगे आए।

  • मध्य प्रदेश राज्य (एमपी) में मोगली उत्सव

रुडयार्ड किपलिंग के उपन्यास 'जंगल बुक ’के एक काल्पनिक चरित्र मोगली के नाम पर इस उत्सव को मध्य प्रदेश राज्य द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है, जो स्कूली बच्चों को जैव विविधता से संबंधित मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाता है। SBB ने राज्य में चार राष्ट्रीय उद्यानों- कान्हा नेशनल पार्क, माधव नेशनल पार्क, बांधवगढ़ नेशनल पार्क और सतपुड़ा नेशनल पार्क में 2017 में महोत्सव का आयोजन किया तथा बच्चों को पार्क सफारी, निवास स्थान की खोज, प्रश्नोत्तरी गतिविधि, पेंटिंग प्रतियोगिताओं, बैनर, नाटकों एवं अन्य रोमांच केघटनाओं पर संदेश लेखन जैसी गतिविधियों की ओर प्रोत्साहित किया। 2017 में आयोजित उत्सव में लगभग 300 छात्रों और 100 से अधिक शिक्षकों ने भाग लिया। प्रत्येक वर्ष उत्सव में होने वाले कार्यक्रमों के विजेताओं को प्रमाण पत्र और पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। यह जैव विविधता के मूल्यों के बारे में जागरूक करने और उन्हें संरक्षण देने के कार्य हेतु हितधारकों के रूप में युवाओं तक पहुँच बनाने का एक प्रभावी साधन साबित होता है।

NBT-2

  • भारत में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से लोगों ने जैव विविधता को महत्त्व दिया है। शहरीकरण और विकास की आधुनिक अनिवार्यता जैव विविधता के संरक्षण के लिये चुनौतियाँ पैदा करती हैं।
  • इन चुनौतियों का सामना करने के लिये विकास योजना और गरीबी उन्मूलन रणनीतियों में और जैव विविधता के संरक्षण के लिये बनाई गई नीतियों में एकीकरण को बढ़ावा दिया गया है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) योजना, वनों के सह-प्रबंधन, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन, मृदा मानचित्रण और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसे कार्यक्रमों ने जैव विविधता, भूमि एवं जल संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने वाली भूमि और समुद्र तटों का सुधार करने में मदद की है।

A. मुख्य नीतियों और विधायी उपायों में शामिल हैं:

  1. राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति एवं कार्य-योजना (NBSAP) जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों के पूर्व मूल्यांकन को एक अभिन्न अंग बनाने का प्रावधान करती है।
  2. राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (NEP), 2006 जैव विविधता संसाधनों को महत्त्व देते हुए लागत-लाभ विश्लेषण के माध्यम से विकासात्मक परियोजना के मूल्यांकन की मांग करती है तथा अतुलनीय मूल्यों वाली संस्थाओं के रूप में हॉटस्पॉट्स एवं जैव विविधता विरासत स्थलों पर विचार करने पर बल देती है।
  3. जैव विविधता अधिनियम, 2002 जैव विविधता के महत्त्व को मान्यता देता है तथा इसका उद्देश्य जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग को सुनिश्चित करना है।
  4. राष्ट्रीय वन नीति, 1988 यह निर्धारित करती है कि ऐसी परियोजनाएँ, जिनमें वन भूमि का परिवर्तन गैर-वन भूमि में करना हो, लागू करने पर पुन: वनीकरण करने के लिये निवेश कोष से राशि प्रदान करनी होगी, साथ ही अन्य विकल्प अपनाने होंगे।
  5. राष्ट्रीय वन नीति 1988, वन संरक्षण अधिनियम 1980, वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जारी किये गए नियम और दिशानिर्देश किसी भी उद्देश्य के लिये परिवर्तित किये गए वन क्षेत्र के बराबर भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण के लिये शुद्ध वर्तमान मूल्य निधियों की प्राप्ति के लिये अधिकृत करती हैं।

B. अन्य उपाय:

  1. पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन पर पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता अर्थशास्त्र (TEEB) भारत पहल (TII) परियोजना का कार्यान्वयन विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के संस्थानों तथा विशेषज्ञों के सहयोग से MoEFCC द्वारा किया गया है।
  2. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), हर खेत को पानी, जनजातीय उत्पादों का बाज़ार विकास / उत्पादन (TRIFED), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT), गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम जैसे-MGNREGA तथा अन्य प्रासंगिक कार्यक्रमों की रणनीतियों की योजना और डिज़ाइनिंग में जैव विविधता मूल्यों पर विचार करना शामिल है।
  3. नीतियों का अंतिम उद्देश्य सौर ऊर्जा को जीवाश्म ऊर्जा के प्रतिस्पर्द्धी रूप में स्थापित करना है, जैसे:

1. विशेष सौर पार्कों की स्थापना करना तथा सौर परियोजनाओं को आधारभूत संरचना का दर्जा देना।
2. हरित ऊर्जा गलियारा परियोजना के माध्यम से बिजली पारेषण नेटवर्क का विकास।
3. राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति।
4. रूफटॉप परियोजनाओं के लिये बड़े सरकारी परिसरों / भवनों की पहचान।
5. लक्ष्य प्राप्त करने के लिये ग्रीन क्लाइमेट फंड के माध्यम से धन जुटाना।

NBT- 3:

जंगलों, कृषि एवं गैर-कृषि भूमि वाले तटीय तथा स्थलीय निवास सहित जलीय क्षेत्रों को लक्ष्य के तहत कवर किया गया है। पहले से मौजूद विधायी एवं नीति तंत्र लक्ष्य के प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी ढाँचा प्रदान करते हैं। अन्य विधायी, नीति और कार्यक्रमों के साथ मिलकर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये रणनीतियों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन का एक मज़बूत तंत्र बनाया गया है।

A. मुख्य उपाय

वन, जलीय और अन्य स्थलीय निवास के लिये विधायी और नीतिगत उपाय किये गए हैं।

वन पर्यावास

  • जन-भागीदारी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर वनों की कटाई के लिये राष्ट्रीय वनीकरण योजना (NAP), ग्रामीण स्तर पर JFMCs के माध्यम से, तथा वन प्रभाग स्तर पर वन विकास एजेंसी (FDA), राज्य स्तर पर राज्य वन विकास एजेंसी (SFDA)।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य-योजना 2017-2030 में समावेशी दृष्टिकोण, व्यापक परिदृश्य एवं समुद्री तट के साथ जुड़ाव इसके महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में शामिल हैं।
  • ईको-टास्क फोर्स (ईटीएफ), कठिन क्षेत्रों में पारिस्थितिकी बहाली तथा पूर्व सैनिकों के सार्थक रोज़गार को बढ़ावा देने के उद्देश्यों पर आधारित है।
  • BSI और ZSI द्वारा वर्गीकरण संबंधी पहचान तथा परिगणना के लिये वनस्पतियों और जीवों का सर्वेक्षण
  • ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) वन आवरण को बढ़ाने, वनों की रक्षा करने, उनके पुनर्स्थापन तथा जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया के लिये अधिकृत है।
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जंगलों से खाना पकाने के ईंधन के दबाव को कम करने के लिये BPL परिवारों में LPG कनेक्शन के माध्यम से वैकल्पिक खाना पकाने के ईंधन के रूप में।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (MGNREGA) ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिये है, यह अधिकांश रोज़गार सृजन गतिविधियों प्राकृतिक संसाधनों की बहाली, पुनर्वास और संरक्षण से संबंधित हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में से एक है।

जलीय निवास स्थान

  • नमामि गंगे (NG), गंगा संरक्षण मिशन, गंगा नदी के प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन, संरक्षण और कायाकल्प के लिये कार्यक्रम है। नमामि गंगे (NG) का उद्देश्य गंगा का कायाकल्प करना है।
  • राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NWQMP), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCBs) द्वारा राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों में जल (प्रदूषण की रोकथाम तथा नियंत्रण) नियम, 1974 के तहत बनाए गए हैं।
  • एकीकृत प्रबंधन योजनाओं के माध्यम से आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (NPCA) के संरक्षण की राष्ट्रीय योजना।
  • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, 1995 से परिचालन में है, जिसका उद्देश्य नदियों के प्रदूषण को कम करना तथा प्रदूषण उन्मूलन कार्यों के माध्यम से जल की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प (MoWR, RD & GR) मंत्रालय के तहत एक्विफर प्रबंधन कार्यक्रम देश में जलभृत (Aquifer) प्रणालियों का मानचित्रण एवं प्रबंधन करने के लिये।
  • जल क्रांति अभियान का उद्देश्य आधुनिक तकनीकों और पारंपरिक ज्ञान, सतह और भूजल का संयुक्त उपयोग, वर्षा-जल संचयन तथा उपयोगकर्त्ताओं की जवाबदेही को बढ़ावा देते हुए जल सुरक्षा को बढ़ाना है।
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड भूजल संसाधनों के लिये राष्ट्रीय नीतियों के विकास/प्रसार, निगरानी और कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत एकीकृत तटीय और समुद्री क्षेत्र प्रबंधन (ICMAM) कार्यक्रम, सभी क्षेत्रीय विकास गतिविधियों में पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताओं को शामिल करके तटीय क्षेत्र के स्थायी प्रबंधन और संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देता है तथा उसे सुगम बनाता हैं।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), 2015 में शुरू की गई, जिसका उद्देश्य 'हर खेत को पानी' के साथ पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार हेतु आदर्श वाक्य 'प्रति बूँद अधिक फसल' (Per Drop More Crop) के साथ स्रोत निर्माण, वितरण, प्रबंधन, क्षेत्र अनुप्रयोग तथा पानी से संबंधित विस्तार गतिविधियों पर अंतिम समाधान ढूंढना है।

मरुस्थलीकरण को रोकना (Combating Desertification)

  • PMKSY में पूर्ववर्ती सूखा क्षेत्र विकास कार्यक्रम, रेगिस्तान विकास कार्यक्रम और एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम को समेकित करके वाटरशेड विकास कार्यक्रम तैयार किया गया है।
  • भारत का मरुस्थलीकरण और भूमि ह्रास मानचित्र 2016, 2003-05 एवं 2011-2013 की स्थितियों की तुलना करता है तथा भेद्यता और जोखिम मूल्यांकन के आधार पर कार्रवाई को प्राथमिकता देने के लिये आधारभूत आँकड़ा प्रदान करता है।

अन्य स्थलीय निवास स्थान

  • भूमि की क्षमता, मिट्टी, भूमि की सिंचाई आदि के मूल्यांकन के लिये मिट्टी का विवरण प्राप्त करके मृदा संसाधनों की प्रकृति, सीमा और क्षमता के बारे में ज़िलेवार जानकारी जुटाने हेतु मृदा और भूमि उपयोग सर्वेक्षण (LUSI) द्वारा मृदा संसाधन मानचित्रण।
  • चरागाहों के विकास के लिये चारा और चारा विकास योजना (Fodder and Feed Development Scheme), जिसमें घास के भण्डार, निम्नीकृत घास के मैदानों का सुधार तथा लवणीय, अम्लीय एवं भारी मिट्टी जैसी समस्याग्रस्त मिट्टी में वनस्पति आच्छादन शामिल है।
  • इसरो जियोस्फेयर बायोस्फीयर प्रोग्राम (ISRO Geosphere Biosphere Programme) के तहत गहन क्षेत्र एवं रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग करके मिट्टी के कार्बनिक और अकार्बनिक कार्बन घनत्व की डिजिटल मैपिंग के लिये राष्ट्रीय कार्बन परियोजना (NCP)।
  • EIA: पर्यावरणीय प्रभाव (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत अधिसूचित उद्योगों और उद्यमों के मामले में EIA अधिसूचना पर्यावरण के प्रभाव के मूल्यांकन के बाद ही अधिकृत की जाती है।
  • भागीदारों में राष्ट्रीय सरकार, उप-राष्ट्रीय सरकारें, पंचायती राज संस्थान, JFMC, वन अधिकार अधिनियम समितियाँ (ग्राम सभाएँ), महिलाएँ, स्कूली बच्चे, अनुसंधान संस्थान शामिल हैं।
  • संकेतकों के माध्यम से लक्ष्य की निगरानी की जा रही है। प्रत्येक संकेतक की निगरानी के लिये समय अवधि निर्धारित है।

B. संस्थागत व्यवस्था सहित अन्य उपाय:

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य-योजना (NAPCC) के तहत गठित राष्ट्रीय मिशनों के अधिदेश और कार्यक्रम

♦ ग्रीन इंडिया मिशन
♦ राष्ट्रीय सौर मिशन
♦ ऊर्जा दक्षता में वृद्धि पर राष्ट्रीय मिशन
♦ सतत्कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन
♦ स्थायी निवास पर राष्ट्रीय मिशन,
♦ हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन
♦ जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
♦ राष्ट्रीय जल मिशन जैव विविधता के मूल्यों को पहचानना है तथा आवासों में हो रहे क्षय को रोकने एवं पुनर्वास करने में योगदान देन।

  • भारत ने राष्ट्रीय REDD + रणनीति 2018 जारी की है, जो प्रभावी हितधारकों, स्वदेशी एवं स्थानीय समुदायों की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी को सुनिश्चित करके भूमि क्षय, पट्टेदारी के मुद्दों, वन प्रशासन के मुद्दों, लिंग संबंधी विचारों और सुरक्षा के मुद्दों को सुलझाने में मदद करती है।

पर्यटन मंत्रालय द्वारा सतत् पर्यटन को बढ़ावा दिया गया:

पर्यटन मंत्रालय (MoT) द्वारा उत्तरदायी पर्यटन को बढ़ावा देने तथा प्राकृतिक आवासों को पर्यटन के किसी भी हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिये पहल की जाती है।

मंत्रालय वार्षिक राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कारों के माध्यम से पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने एवं ऐसे अभ्यास करने के लिये हितधारकों को प्रोत्साहित करता है जैसे कि सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण के अनुकूल होटल, सर्वोत्तम उत्तरदायी पर्यटन परियोजना, विभिन्न क्षेत्रों में टूर ऑपरेटरों द्वारा सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार।

  • पर्यटन उद्योग के प्रमुख क्षेत्रों के लिये व्यापक स्थायी पर्यटन मानदंड (STCI), अर्थात्, आवास, टूर ऑपरेटर, समुद्र तट, बैकवाटर, झील तथा नदी क्षेत्र आदि पूरे देश के लिये लागू होते हैं। विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के बाद मानदंड विकसित किये गए हैं। पर्यटन मंत्रालय हितधारकों को उत्तरदायी एवं पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन प्रथाओं के मानदंड अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर रहा है।
  • पर्यटन सेवा प्रदाता पर्यटन के लिये एक आचार संहिता की आवश्यकता होती है ताकि वह स्थायी पर्यटन प्रथाओं को पूरी तरह से लागू कर सके जैसे-कूड़े और प्लास्टिक सामग्री के कचरे को फ़ैलाने से हतोत्साहित करना आदि।
  • हितधारकों के बीच उत्तरदायी पर्यटन प्रथाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये 2016 के दौरान MoT और इकोटूरिज्म सोसाइटी ऑफ इंडिया (ESOI) के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए। 2017 में दो कार्यशालाएँ आयोजित की गईं तथा छह ओर कार्यशालाएँ 2018-19 के दौरान प्रस्तावित हैं।

NBT- 4

A. उपाय

  • भारत में वन और जैव विविधता के सतत्प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय कार्य-योजना कोड, 2014 में वन स्वास्थ्य और जीवनी शक्ति के रखरखाव एवं वृद्धि के लिये आक्रामक प्रजातियों का प्रबंधन करना शामिल है।
  • बाघों का राष्ट्रीय आकलन, आक्रामक पौधों की निगरानी, सह-शिकारियों, शिकार एवं उनके निवास स्थान का अभिन्न हिस्सा है, 2006 के बाद से हर चौथे वर्ष में इसका आकलन किया जाता है।
  • पौधे, फल और बीज (भारत में आयात का विनियमन) आदेश 1989 (PFS आदेश 1989): यह भारत में पौधों, फलों या बीजों के आयात को नियंत्रित करता है।
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 वनों के संरक्षण और इससे जुड़े मामलों के लिये प्रावधान करता है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 जानवरों, पौधों और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की रक्षा एवं संरक्षण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।

नीतियाँ और उपाय जो मुख्य उपायों का समर्थन करते हैं:

  • 2018 में संशोधित राष्ट्रीय वन नीति 1988: मौजूदा वनों की स्थिति एवं गुणवत्ता में सुधार तथा विभिन्न खतरों एवं क्षय के कारकों के खिलाफ उनकी रक्षा करना।
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002 केंद्र तथा राज्य सरकारों को जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग हेतु कदम उठाने के लिये अधिकृत करता है।
  • पशुधन आयात अधिनियम, 1898 केंद्र सरकार को पशुधन के आयात के नियमन के लिये प्रावधान करने हेतु सक्षम बनाता है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पर्यावरण के संरक्षण एवं सुधार तथा पौधों, मनुष्यों, अन्य जीवित प्राणियों और संपत्ति के खतरों की रोकथाम के लिये प्रावधान करता है।
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927 में समय-समय पर संशोधन कर सरकार द्वारा वनों की सुरक्षा के उपाय किये जाते हैं।

B. अन्य उपाय

2009 में शुरू हुई वन प्रबंधन योजना की गहनता (Intensification of Forest Management Scheme- IFMS) में घटक के रूप में वन आक्रामक प्रजातियों का नियंत्रण और उन्मूलन शामिल है।

NBT- 5

A. स्थायी कृषि प्रबंधन के लिये मुख्य नीति और विधायी उपायों में शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय किसान नीति, 2007 का उद्देश्य जल, जैव विविधता और आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण में आर्थिक हिस्सेदारी के माध्यम से कृषि की उत्पादकता, लाभप्रदता एवं स्थिरता को बढ़ाना है।
  • प्लांट क्वारेंटाइन (भारत में आयात का विनियमन) आदेश, 2003, सूची में निर्दिष्ट कृषि सामग्रियों के आयात को प्रतिबंधित और नियंत्रित करता है।
  • नेशनल एग्रोफोरेस्ट्री पॉलिसी, 2002 का उद्देश्य किसानों की आय को बढ़ाना, एग्रोफोरेस्ट्री के तत्त्वों के बीच अभिसरण एवं तालमेल को सुरक्षित करना है।
  • पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार अधिनियम, 2001 पौधों की किस्मों, किसानों और पौधों के प्रजनकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक प्रणाली स्थापित करता है, जिसमें नए पौधों की किस्मों के विकास के लिये किसी भी समय संरक्षण, सुधार और आनुवंशिक संसाधनों को उपलब्ध कराने में योगदान के संबंध में अधिकार शामिल हैं।
  • उर्वरक नियंत्रण आदेश, 1985 उर्वरकों के व्यापार, मूल्य, गुणवत्ता और वितरण तथा इससे जुड़े मामलों को नियंत्रित करता है।
  • बीज अधिनियम, 1966 बिक्री के लिये तथा उससे जुड़े मामलों के लिये बीजों की गुणवत्ता को नियंत्रित करता है।
  • बीज (नियंत्रण) आदेश, 1983 सभी डीलरों को किसी भी स्थान पर बीज निर्यात - आयात संबंधी व्यवसाय के लिये लाइसेंस प्राप्त करने को बाध्य करता है।
  • कीटनाशक अधिनियम, 1968 कीटनाशक नियम, 1971 (समय-समय पर संशोधित) के साथ कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग को नियंत्रित करता है।
  • विनाशकारी कीड़े और कीट अधिनियम, 1914 (संशोधित) फसलों के लिये किसी भी कीट, कवक या कीट के इस्तेमाल को रोकता है।

अन्य उपायों में शामिल हैं:

  • इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) और क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) के राष्ट्रीय नवाचारों के माध्यम से R&D द्वारा समर्थित चार राष्ट्रीय मिशनों को लागू करना हैं।
  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के समग्र विकास के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) में आईपीएम, जल और मिट्टी संरक्षण, लघु / सूक्ष्म सिंचाई, प्रयोगशालाओं की स्थापना आदि इसके घटक शामिल हैं।

लिंग (Gender) मुख्यधारा के उपायों में शामिल हैं:

  • संविधान का अनुच्छेद 243D और 243T यह प्रावधान करता है कि शहरी क्षेत्रों के नगरपालिका निकायों तथा ग्रामीण क्षेत्रों के पंचायतों में क्रमशः एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित होंगी। अधिकांश राज्यों ने इस आरक्षण को 50% तक बढ़ा दिया है। यह योजना निर्माण, कार्यान्वयन और शासन में महिलाओं की बड़े पैमाने पर भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • केंद्र सरकार के वार्षिक बजट के हिस्से के रूप में जेंडर बजट: सरकारी कार्यक्रमों एवं योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी तथा प्रतिनिधित्व के लिये विशिष्ट प्रावधान।

सतत् कृषि सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMSA)

  1. सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMSA), 2014
  2. राष्ट्रीय कृषि विस्तार और प्रौद्योगिकी मिशन (NMAET), 2014
  3. ऑयलसीड्स एंड ऑयल पाम के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMOOP), 2014
  4. बागवानी के एकीकृत विकास के लिये मिशन (MIDH), 2014

निम्नलिखित उपायों द्वारा जैव कृषि के लिये समर्थन और प्रोत्साहन:

  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKMY) 2015: 10,000 क्लस्टर्स को शामिल करके प्रमाणित जैव खेती को बढ़ावा देना चाहती है।
  • सहभागी गारंटी प्रणाली (PGS): यह एक स्वैच्छिक जैव गारंटी कार्यक्रम है। इसमें जैव उत्पादों के लिये निर्धारित मानकों का पालन सुनिश्चित करके एक-दूसरे की प्रक्रिया एवं मानकों का निरीक्षण और सत्यापन करने के लिये एक ही या निकटवर्ती गाँवों के समान भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले किसानों को शामिल किया गया है।
  • वाणिज्य मंत्रालय के अधीन जैव उत्पादन के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPOP) के तहत मान्यता प्राप्त प्रमाणन निकायों द्वारा निर्यात के लिये जैव खेती का प्रमाणन।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER), 2014-15 में उपभोक्ताओं के साथ उत्पादकों को जोड़कर मूल्य श्रृंखला मोड में प्रमाणित जैव उत्पादन विकसित करना।

जल उपयोग तथा ऊर्जा दक्षता का वैज्ञानिक प्रबंधन:

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), 2015 सटीक / सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से खेत के स्तर पर जल उपयोग दक्षता सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश के अभिसरण को प्राप्त करने का प्रयास करती है।
  • सौर फोटोवोल्टिक जल पम्पिंग को बढ़ावा देने के लिये नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) पूंजी सब्सिडी योजना।
  • सौर ऊर्जा पंपों के लिये किसान उर्जा सुरक्षा उत्थान महाभियान (KUSUM)।

NBT- 6

A. मुख्य उपाय:

  • राष्ट्रीय वन नीति 1988 स्थानीय समुदायों और वनवासियों की भागीदारी और सहयोग को सूचीबद्ध करके प्राचीन वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण तथा मुख्य वन क्षेत्रों की मुख्य पारिस्थितिकी अखंडता हेतु अशांत एवं घटते हुए जंगलों की पुनर्बहाली के माध्यम से पर्यावरण स्थिरता के रखरखाव पर ज़ोर देती है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 संरक्षण के लिये परिदृश्य और सीस्केप दृष्टिकोण पर जोर देती है।
  • वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 राज्यों को उनके संबंधित अधिकार-क्षेत्रों में वेटलैंड्स के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिये उत्तरदायी बनाता है।
  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 वनों के संरक्षण और उससे जुड़े मामलों के लिये प्रावधान करता है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 संरक्षित क्षेत्रों को चार श्रेणियों अर्थात् राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, सामुदायिक अभयारण्यों और संरक्षण रिज़र्वों में नामित करने का प्रावधान करता है।
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927 किसी भी जंगल या बंजर भूमि को आरक्षित / संरक्षित वन के रूप में अधिसूचित करने के लिये राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को सशक्त बनाता है।

B. अन्य उपाय:

  • राष्ट्रीय वनीकरण योजना (NAP) का उद्देश्य जन-भागीदारी द्वारा घटते हुए वन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी को पूर्वावस्था प्रदान करना है।
  • ग्रीन इंडिया मिशन (GIM), NAPCC के अंतर्गत वन / वृक्ष आच्छादन को बढ़ाने हेतु एक मिशन है।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZs) राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्यों के चारों ओर के अधिसूचित क्षेत्रों के आसपास पर्यावरण को अनुकूल बनाने हेतु पर्यावरण की मदद करने के रूप में परिदृश्य में सुधार और इसके संरक्षण में योगदान देता है।
  • CMS, CBD और CITES कन्वेंशन के तहत प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों की सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये भारत की राष्ट्रीय कार्य-योजना (INAPCMB) का क्रियान्वयन।
  • राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य नीति, 2017 का उद्देश्य वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लिये स्थायी फसल के माध्यम से समुद्री जीवन संसाधनों के स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी अखंडता सुनिश्चित करना है।
  • भारत का समुद्री क्षेत्र (विनियमन और विदेशी जहाज़ों द्वारा मछली पकड़ना) अधिनियम, 1981, विदेशी जहाज़ों द्वारा मछली पकड़ने के विनियमन और उससे जुड़े मामलों के लिये प्रावधान करता है।

NBT-7
A. मुख्य उपाय (नीति और विधायी):

  • जैव विविधता अधिनियम 2002 के तहत जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के स्थायी उपयोग और जैव संसाधनों, ज्ञान तथा इसके साथ जुड़े या आकस्मिक मामलों के उपयोग से प्राप्त होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण सुनिश्चित करता हैं।
  • पादप किस्मों और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत पौधों की किस्मों, किसानों और पौधों के प्रजनकों के अधिकारों की सुरक्षा और नए पौधों की किस्मों के विकास के लिये संयंत्र तथा आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण एवं सुधार में किसी भी समय योगदान प्रदान करने के संबंध में अधिकार शामिल हैं।

B. अन्य उपाय:

  1. कृषि की महत्त्वपूर्ण आनुवंशिक विविधता के संरक्षण के लिये ICAR प्रणाली के तहत बनाए गए राष्ट्रीय स्तर के ब्यूरो / संगठन।
  2. जलवायु आधारित कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA) जलवायु परिवर्तन के प्रति कृषि का लचीलापन बढ़ाता है।
  3. नई दिल्ली के नेशनल हरबेरियम ऑफ कल्टिवेटेड प्लांट्स (NHCP) में मुख्य रूप से देशी/स्थानीय एवं जंगली मूल की फसलों के आनुवंशिक रूप से समान पौधों एवं कृषि से प्राप्त करों को संग्रहित किया जाता हैं।
  4. खाद्य, चारा, ईंधन, फाइबर, ऊर्जा और औद्योगिक उपयोग हेतु नए संयंत्र स्रोतों का पता लगाने और उनका घरेलूकरण करने के लिये संभावित फसलों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान नेटवर्क (AICRNPC)।
  5.  मेरा गाँव मेरा गौरव (My Village My Pride) वैज्ञानिकों / अधिकारियों द्वारा गाँवों को गोद लेकर और व्यक्तिगत दौरों के माध्यम से विनियमित समय-सीमा में किसानों को तकनीकी एवं अन्य संबंधित पहलुओं की जानकारी उपलब्ध कराने के लिये उनके दरवाज़े तक तकनीकी सेवाएँ प्रदान करने की एक पहल है।
  6. राष्ट्रीय गोकुल मिशन 2014 में स्वदेशी नस्लों के विकास और संरक्षण, चयनात्मक प्रजनन और गैर-विवरणीय गोजातीय आबादी के आनुवंशिक उन्नयन के लिये शुरू किया गया था। मिशन के दो घटक हैं:

1. किसानों को अधिक पारिश्रमिक देने के लिये दुग्ध उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिये गोवंश उत्पादकता पर राष्ट्रीय मिशन।
2. वैज्ञानिक एवं समग्र तरीके से स्वदेशी नस्लों के संरक्षण तथा विकास के लिये तंत्र की स्थापना करके गोवंश प्रजनन हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम।

पशु प्रजनन संरक्षण में केस स्टडीज
बारगुर मवेशियों का संरक्षण

बारगुर मवेशी मूलतः पश्चिमी तमिलनाडु में ईरोड जिले के एंथियूर तालुक के बारगुर वन पहाड़ियों में पाए जाते हैं। वे अपने धीरज और गति क्षमता के लिये जाने जाते हैं। उनकी संख्या में तेज़ी से गिरावट आ रही थी तथा अतीत में उन क्षेत्रों तक पहुँच बहुत सीमित होने के कारण उन्हें बचाने के लिये कोई उपाय नहीं किये जा सके। 2013 में इस नस्ल के बीस नर बछड़ों की खरीद की गई तथा एक संगठित झुंड में उनका पालन-पोषण किया गया और 15 बैलों का वीर्य एकत्र किया गया। अब उन क्षेत्रों में कृत्रिम गर्भाधान (AI) सेवाएँ प्रदान की जाती हैं तथा औसतन 40 से 50 कृत्रिम गर्भाधान (AI) प्रतिमाह किये जाते हैं। NBAGR के जीन बैंक में 10,000 वीर्य की खुराक संरक्षण करने की क्षमता है।

वेचुर नस्ल की गाय का संरक्षण

गाय की वेचुर नस्ल केरल की एक देशी नस्ल है, जो अपने दूध एवं घी के औषधीय महत्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण है तथा यह लगभग 60 साल पहले एक लोकप्रिय गाय की नस्ल थी। हालाँकि, प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से उच्च उत्पाद देने वाले मवेशियों को बढ़ावा देने की सरकार की नीति के कारण राज्य में इस नस्ल में गिरावट आई हैं। सुश्री सोसम्मा अय्यप (Sosamma Iype), केरल कृषि विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य ने अपने छात्रों के साथ मिलकर, इस नुकसान को रोकने के लिये स्वैच्छिक कार्य प्रारंभ किया तथा वर्ष 1998 में संरक्षण प्रयासों की शुरुआत की गई। वेचुर मवेशियों को पालने वाले किसानों की पहचान की गई तथा अच्छे उत्तम बैलों का चयन करके एक प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया गया। अनुसंधान के साथ-साथ प्रजातियों के बारे में CEPA आयोजित किया गया था तथा किसानों को मवेशियों को पालने के लिये प्रेरित किया गया। इन मवेशियों में बीमारी की कम आशंका के कारण इन्हें पालना आसान है। ये धूप तथा बारिश का सामना कर सकते हैं और गोबर एवं मूत्र का उपयोग प्राकृतिक खाद के रूप में किया जाता है। समूह के कार्यों के परिणामस्वरूप 26 वर्षों में इस नस्ल की आबादी 41 से बढ़कर 3,000 तक पहुँच गई है। इससे कासरगोड एवं चेरूबली मवेशियों तथा अट्टापडी बकरी जैसी नस्लों का संरक्षण भी हुआ है।

NBT- 8

A. मुख्य उपाय:

मानव विकास सूचकांक के बुनियादी तत्त्व जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, जल एवं ऊर्जा, कनेक्टिविटी एवं शहरी हरित वातावरण, आबादी, स्थानीय समुदायों और पारंपरिक चिकित्सकों का संरक्षण तथा टिकाऊ उपयोग में उनकी भूमिका को समझने एवं निर्वहन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

1. प्रमुख आजीविका कार्यक्रम:

  • MNREGA गरीब, कमज़ोर, स्थानीय समुदायों और महिलाओं के लिये आजीविका प्रदान करता है। MNREGA में यह प्रावधान किया गया है कि कुल लाभार्थियों में से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी की महिलाओं का एक तिहाई भाग होना अनिवार्य है।
  • दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) आजीविका और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये विविध एवं लाभकारी स्वरोज़गार , कुशल मज़दूरी रोज़गार , सामाजिक लामबंदी तथा टिकाऊ सामुदायिक संस्थानों को बढ़ावा देता है।

2. शहरी हरित क्षेत्र (Greenspaces)

  • नगर निगम/ क्लास-1 की स्थिति वाले 200 शहरों में कम-से-कम एक शहर में वनों को विकसित करने के लिये नगर वन उद्योग योजना।
  • स्मार्ट सिटी इनिशिएटिव में नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने, शहरी तापमान के प्रभाव को कम करने और आम तौर पर इको-बैलेंस को बढ़ावा देने के लिये खुले स्थानों- पार्कों, खेल के मैदानों और मनोरंजक स्थानों को संरक्षित तथा विकसित करने के उद्देश्य शामिल हैं।
  • हरियाली और पार्कों जैसे खुले स्थानों को अच्छी तरह से विकसित करके AMRUT जीवन की बेहतर और स्वस्थ गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी नागरिक सुविधाओं की सुरक्षा और वृद्धि करता है।

3. हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना

  • सौर ऊर्जा को जीवाश्म आधारित ऊर्जा विकल्पों के साथ प्रतिस्पर्द्धी बनाने के सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य से बिजली उत्पादन के लिये सौर ऊर्जा के विकास एवं उपयोग को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय सौर मिशन।
  • ग्रामीण विद्युतीकरण और गाँवों को निरंतर बिजली की आपूर्ति के लिये दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना।
  • SAUBHAGYA - मार्च 2019 तक सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण लक्ष्य प्राप्त करने के लिये प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना।
  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT) के तहत शहरों के मापदंडों में ऊर्जा (स्ट्रीट लाइट) ऑडिट शामिल है।
  • ऊर्जा संरक्षण अधिनियम (EC अधिनियम), 2001 ऊर्जा के कुशल उपयोग एवं संरक्षण तथा इससे जुड़े या आकस्मिक मामलों के उपचार का प्रावधान करता है।
  • बढ़ी ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMEEE), ऊर्जा दक्षता हेतु बाज़ार को बढ़ावा देता है।
  • ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC) 2017, भवन डिज़ाइन के लिये मानदंडों एवं मानकों को निर्धारित करता है।

4. सड़क संपर्क

  • असंबद्ध बस्तियों तक सभी मौसम में पहुँच सुनिश्चित करने के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना। इन सड़कों के लिये विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिये PRI और SHG से महिलाएं को लगाया गया हैं।

5. शिक्षा

  • बच्चों के लिये नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रावधान करता है।
  • शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति 1986, शिक्षा को महिलाओं की स्थिति में मुख्य परिवर्तन कारक के रूप में मान्यता देती है तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं से संबंधित अध्ययनों को पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में बढ़ावा देती है।

6. स्वास्थ्य सेवाएँ

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) - इसमें शामिल हैं: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) तथा राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUMM)।
  • संचारी और गैर-संचारी (Communicable and non-communicable) रोगों के लिये राष्ट्रीय रोग नियंत्रण कार्यक्रम।
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यकम (JSSK), राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्षेत्र के माध्यम से मातृ-प्रजनन, नवजात, बाल एवं किशोर स्वास्थ्य, लिंग आधारित हिंसा के कारण स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के लिये विशेष कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • स्वास्थ्य कार्यक्रम और सलाह जैसे- राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (NTCP), बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम तथा फ्लोरोसिस की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम।
  • आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा।

7. पीने का पानी:

  • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, ग्रामीण आबादी को पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये।
  • नमामि गंगे (NG): गंगा संरक्षण मिशन
  • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, 1995 से परिचालन में है, जिसका उद्देश्य नदियों के प्रदूषण भार को कम कर, प्रदूषण उन्मूलन कार्यों के माध्यम से पानी की गुणवत्ता में सुधार करना है।

NBT- 9

मुख्य नीति और विधायी उपायों में शामिल हैं:

  • जैव संसाधन एवं संबद्ध ज्ञान तथा लाभ साझाकरण विनियम, 2014 तक पहुँच पर दिशा-निर्देश।
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002 और जैव विविधता नियम, 2004।
  • पादप विविधता और किसानों के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 2001 पौधों की किस्मों, किसानों और पादप प्रजनकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक प्रणाली स्थापित करता है, जिसमें नए पौधों की किस्मों के विकास के लिये किसी भी समय संरक्षण, सुधार और आनुवंशिक संसाधनों को उपलब्ध कराने में उनके योगदान के संबंध में अधिकार शामिल हैं।
  • पेटेंट अधिनियम, 1970, जैसा कि समय-समय पर संशोधित किया जाता रहा है, एक आविष्कार पर पेटेंट के अनुदान को अस्वीकार करता है, जो कि प्रभावी रूप से पारंपरिक ज्ञान या पारंपरिक रूप से ज्ञात घटक या घटकों के ज्ञात गुणों का एकत्रीकरण या दोहराव है।

B. संस्थागत तंत्र

  • NBA, राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण को लेकर टिकाऊ, विनियामक और सलाहकार कार्यों हेतु, स्थायी उपयोग और लाभ के उचित और न्यायसंगत साझाकरण के लिये।
  • SBB, राज्य स्तर पर सभी राज्यों में संरक्षण को लेकर टिकाऊ, विनियामक और सलाहकार कार्यों के लिये, स्थायी उपयोग और उचित और न्यायसंगत साझाकरण।
  • BMC स्थानीय निकाय स्तर पर आनुवांशिक संसाधनों का दस्तावेज़ और संबद्ध 1K, PIC और MAT (Mutually Agreed Terms) को सुरक्षित करने में भागीदारी, संरक्षण के लिये कार्यान्वयन, स्थायी उपयोग और स्थानीय स्तर पर लाभ का उचित और समान साझाकरण।

NBT-10

A. मुख्य नीति और विधायी उपायों में शामिल हैं:

  • समुद्री मत्स्य पालन पर राष्ट्रीय नीति, 2017 वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लाभ के लिये स्थायी फसल के माध्यम से समुद्री जीवन संसाधनों की स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी अखंडता सुनिश्चित करती है।
  • हाइवे कॉरिडोर की हरियाली को बढ़ावा देने के लिये ग्रीन हाईवे (वृक्षारोपण, प्रत्यारोपण, सौंदर्यीकरण एवं रखरखाव) नीति, 2015 इसरो के Bhuvan और GPS एडेड GEO ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) सैटेलाइट सिस्टम के उपयोग के ज़रिए मज़बूत निगरानी तंत्र को बढ़ावा देती है।
  • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति, 2015-2020, जैव संसाधनों के सतत् उपयोग के लिये बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने का आह्वान करती है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006।
  • समुद्री मछली पकड़ने की व्यापक नीति, 2004, मछली पकड़ने वाले समुदायों की विभिन्न श्रेणियों के विकास की आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए समुद्री मत्स्य संसाधनों से उपज को अधिकतम करने का लक्ष्य रखती है।
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002 और जैव विविधता नियम, 2004।
  • राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000।
  • पर्यावरण और सतत्विकास के लिये राष्ट्रीय संरक्षण रणनीति और नीति वक्तव्य, 1992।
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1988, यह निर्धारित करती है कि गैर-वन प्रयोजन के लिये वन भूमि के परिवर्तन से संबंधित परियोजनाएँ लागू करने पर पुनर्जनन / प्रतिपूरक वनीकरण के लिये अपने निवेश कोष से राशि प्रदान करें।

B. अन्य उपाय:

  • NBA / SBBs की सुव्यवस्थित प्रक्रिया के माध्यम से पहुँच और लाभ साझाकरण (ABS) का कार्यान्वयन जैव विविधता संरक्षण के लिये सकारात्मक प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • खेती में जैव विविधता के अनुकूल प्रोत्साहन को बढ़ावा:

♦ जैविक खेती
♦ गुणवत्ता वाले जैव उर्वरकों का उपयोग।
♦ NMSA, NMOOP, NMAET, MIDH के माध्यम से स्थायी कृषि को बढ़ावा देना।

  • वन समुदायों को NAP, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये प्रोत्साहित किया गया।
  • स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देना तथा मिट्टी तेल और पर्यावरण के विमुख ईंधन पर निर्भरता में कमी।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों की बहाली, पुनर्वास तथा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये रोज़गार सृजन।
  • गरीबी उन्मूलन, समावेशी विकास तथा बेहतर कल्याणकारी उपायों को आम लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से किसानों को रसोई गैस सहित सभी कल्याणकारी योजनाओं के तहत प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण।
  • संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिये समुदायों को प्रोत्साहित करने के लिये पुरस्कार।

C. स्थायी उत्पादन के लिये हितधारकों को प्रोत्साहित करने वाले उपाय:

1. उद्योग:

  • भारत जैव विविधता और व्यवसाय पहल, उद्योग एवं व्यवसाय के अंतर्गत हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिये जागरूकता तथा हरित कार्रवाई को बढ़ावा देती है।
  • फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) और अर्थवॉच इंस्टीट्यूट इंडिया (Earthwatch Institute India) शहरी जल निकायों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिये 'नागरिक विज्ञान' की अवधारणा को बढ़ावा देते हैं।
  • सरकार, उद्योग द्वारा गैर-सरकारी संगठनों को सहायता प्रदान करना।
  • CSR: तीन वर्षों में प्रत्येक ब्लॉक में कंपनी द्वारा किये गए औसत शुद्ध लाभ का 2% सीएसआर (CSR) गतिविधियों के लिये उपयोग किया जाना।

2. कृषि क्षेत्र:

  • जल संसाधन:

♦ नमामि गंगे- गंगा संरक्षण, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण की राष्ट्रीय योजना।
♦ सतत्समुद्री संसाधन: NETFISH 2007, एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम (ICZMP)।

  • वनों पर जारी तनाव कम करना

♦ उपयुक्त उत्पादन तकनीकों को अपनाकर कच्चे माल की खपत के अनुकूलन तथा अपशिष्ट उत्पादन को कम करने के लिये अनुदान सहायता योजना, स्वच्छ प्रौद्योगिकी का विकास और संवर्द्धन, 1994।

  • गुणवत्ता वाले जल और मिट्टी की निगरानी:

♦ राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम, डेज़र्टिफिकेशन एंड लैंड डिग्रेडेशन एटलस ऑफ़ इंडिया 2016 का विकास।
♦ मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के माध्यम से मिट्टी की गुणवत्ता की निगरानी।
♦ परियोजना नियोजन और डिज़ाइन के प्रारंभिक चरण में संभावित पर्यावरणीय समस्याओं / चिंताओं को दूर करने तथा उन पर ध्यान देने के लिये EIA और EMP प्रबंधन उपकरण।

NBT-11

मुख्य उपाय
1. कानून और नियम

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002
  • वस्तुओं का भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और सुरक्षा) अधिनियम, 1999

2. नीतियाँ

  • राष्ट्रीय संपदा अधिकार नीति, 2016
  • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006

A. अन्य उपाय
1. एजेंसियाँ ​​और संस्थागत उपाय:

  • NBA (राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण-National Biodiversity Authority) और SBBs (राज्य जैव विविधता बोर्ड- State Biodiversity Board)
  • पारंपरिक ज्ञान और जैव सामग्री (2012) से संबंधित पेटेंट हेतु आवेदनों के प्रसंस्करण के लिये दिशा-निर्देश
  • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL)
  • राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन (NIF), भारत (2010)
  • SRISTI

2. आयुष मंत्रालय के अंतर्गत संस्थागत तंत्र और कार्यक्रम, जो सीधे औषधीय पौधों के उपयोग से संबंधित हैं

  • राष्ट्रीय आयुष मिशन 2015-16
  • राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड

आयुष मंत्रालय के तहत योजनाएँ

  1. औषधीय पौधों का संरक्षण, विकास और सतत्प्रबंधन योजना
  2. औषधीय पादप संरक्षण क्षेत्र
  3. राष्ट्रीय रॉ ड्रग भंडार (NRDR)

NBT-12

जैव विविधता अधिनियम 2002, राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 और संबंधित क्षेत्रीय नीतियाँ गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों सहित एक साथ सभी विकास योजनाओं और कार्यक्रमों में जैव विविधता की मुख्यधारा पर बल देती हैं।

  • ये नीतियाँ समय-समय पर नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा, फंडिंग और कार्यों का विश्लेषणात्मक मूल्यांकन करती हैं तथा जैव विविधता से संबंधित कार्यों के लिये अतिरिक्त बजटीय आवंटन की आवश्यकता का पता लगाती हैं।
  • जैव विविधता वित्त पहल (BIOFIN) के कार्यान्वयन में सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के साथ नियमित रूप से परामर्श, उनकी जैव विविधता प्रासंगिक गतिविधियों और आवंटन का विश्लेषण, इसके अलावा, क्षेत्रीय योजना में जैव विविधता के एकीकरण को गहरा और व्यापक करने के दायरे की जाँच, राष्ट्रीय, वित्तीय एवं तकनीकी संस्थानों की मदद से संसाधन जुटाने की वर्तमान और संभावित संभावनाओं का विश्लेषण तथा संसाधन जुटाने के लिये एक व्यापक क्षेत्र का निर्माण करना शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना, 2008 और इसका परिशिष्ट, 2014।
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