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डेली न्यूज़

  • 19 Apr, 2024
  • 41 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम-सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

CDP-सुरक्षा का परिचय, भारत में बागवानी की स्थिति, कृषि प्रौद्योगिकी।

मेन्स के लिये:

किसानों की आय दोगुनी करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका, कृषि सब्सिडी से संबंधित मुद्दे और आगे की राह, कृषि में निवेश, कृषि सुधार।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने क्लस्टर विकास कार्यक्रम (CDP) के तहत बागवानी क्षेत्र के किसानों को सब्सिडी देने के लिये CDP-सुरक्षा नामक एक नया प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है।

  • इससे भारत के बागवानी क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, जो कृषि सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में लगभग एक- तिहाई का योगदान देता है।

क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम-सुरक्षा क्या है?

  • परिचय:
    • यहाँ सुरक्षा का अर्थ है “एकीकृत संसाधन आवंटन, ज्ञान एवं सुरक्षित बागवानी सहायता हेतु प्रणाली”
    • यह प्लेटफॉर्म नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) से ई-रुपी (E-RUPI) वाउचर का उपयोग करके किसानों के बैंक खातों में शीघ्र सब्सिडी प्रदान करने की अनुमति देगा।
    • इसमें पीएम-किसान के साथ डेटाबेस एकीकरण, NIC के माध्यम से क्लाउड-आधारित सर्वर स्पेस, UIDAI सत्यापन, eRUPI एकीकरण, स्थानीय सरकार निर्देशिका (LGD), सामग्री प्रबंधन प्रणाली, जियोटैगिंग और जियो-फेंसिंग जैसी विशेषताएँ शामिल हैं।
  • कार्यान्वयन:
    • यह प्लेटफॉर्म किसानों, विक्रेताओं, कार्यान्वयन एजेंसियों (IA), क्लस्टर विकास एजेंसियों (CDA), और राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) के अधिकारियों तक पहुँच की अनुमति देता है।
    • इसमें किसान अपने मोबाइल नंबर का उपयोग करके लॉगिन कर सकता है, ऑर्डर दे सकता है और रोपण सामग्री की लागत में अपने हिस्से का योगदान कर सकता है।
    • भुगतान के बाद एक ई-रुपी वाउचर जेनरेट होगा। यह वाउचर एक विक्रेता को प्राप्त होगा, जो किसान को आवश्यक रोपण सामग्री प्रदान करेगा।
    • सामग्री की डिलीवरी के बाद किसानों को अपने खेत की जियो-टैगिंग तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से डिलीवरी को सत्यापित करना होगा।
    • सत्यापन के पश्चात् कार्यान्वयन एजेंसियाँ (IA) ई-रुपी वाउचर हेतु विक्रेता को पैसा जारी करेंगी। विक्रेता को भुगतान का चालान पोर्टल पर अपलोड करना होगा।
    • IA सभी दस्तावेज़ एकत्र करेगा और सब्सिडी जारी करने के लिये उन्हें CDA के साथ साझा करेगा, इस प्रक्रिया के बाद ही IA को सब्सिडी जारी की जाएगी।
    • हालाँकि जिस किसान ने प्लेटफॉर्म का उपयोग करके पौध सामग्री की मांग की है, वह केवल पहले चरण में ही सब्सिडी का लाभ उठा सकता है।

ई-रुपी क्या है?

  • यह एकमुश्त भुगतान व्यवस्था (One-time Payment Mechanism) है जो उपयोगकर्त्ताओं को यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ई-प्रीपेड वाउचर स्वीकार करने वाले व्यापारियों को कार्ड, डिजिटल भुगतान एप या इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस के बिना वाउचर को भुनाने में सक्षम बनाता है।
  • e-RUPI को किसी विशिष्ट उद्देश्य या गतिविधि के लिये संगठनों द्वारा SMS या क्यूआर कोड के माध्यम से लाभार्थियों के साथ साझा किया जाएगा।

e-RUPI

भारत में बागवानी क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • भारत फलों और सब्ज़ियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • देश में कुल बागवानी उत्पादन का लगभग 90% हिस्सा फलों और सब्जियों का है।
  • भारतीय बागवानी क्षेत्र कृषि सकल मूल्यवर्द्धित (Gross Value Added- GVA) में लगभग 33% योगदान देता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत वर्तमान में खाद्यान्नों की तुलना में अधिक बागवानी उत्पादों का उत्पादन कर रहा है, जिसमें 25.66 मिलियन हेक्टेयर बागवानी से 320.48 मिलियन टन और बहुत छोटे क्षेत्रों से 127.6 मिलियन हेक्टेयर खाद्यान्न का उत्पादन होता है।
    • बागवानी फसलों की उत्पादकता खाद्यान्न उत्पादकता (2.23 टन/हेक्टेयर के मुकाबले 12.49 टन/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत अधिक है।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत कुछ सब्ज़ियों (अदरक तथा भिंडी) के साथ-साथ फलों (केला, आम तथा पपीता) के उत्पादन में अग्रणी है।
    • निर्यात के मामले में भारत सब्ज़ियों में 14वें और फलों में 23वें स्थान पर है तथा वैश्विक बागवानी बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1% है।
    • बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, नीदरलैंड, मलेशिया, श्रीलंका, यूके, ओमान और कतर ताज़े फल और सब्जियों के प्रमुख निर्यातक हैं।
  • भारत में लगभग 15-20% फल और सब्ज़ियाँ आपूर्ति शृंखला या उपभोक्ता स्तर पर बर्बाद हो जाती हैं, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में योगदान करती हैं।

क्लस्टर विकास कार्यक्रम (CDP) क्या है?

  • परिचय :
    • यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य पहचान किये गए बागवानी क्लस्टर को विकसित करना है ताकि उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके।
    • बागवानी क्लस्टर लक्षित बागवानी फसलों का क्षेत्रीय/भौगोलिक संकेंद्रण है।
  • कार्यान्वयन:
    • इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
    • इस प्रायोगिक (Pilot) परियोजना कार्यक्रम के लिये चुने गए कुल 55 बागवानी क्लस्टरों में से 12 बागवानी क्लस्टरों में लागू किया जाएगा।
      • इन क्लस्टरों को क्लस्टर विकास एजेंसियों (CDA) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा जिन्हें संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार की सिफारिशों के आधार पर नियुक्त किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • भारतीय बागवानी क्षेत्र से संबंधित सभी प्रमुख मुद्दों (उत्पादन, कटाई/हार्वेस्टिंग प्रबंधन, लॉजिस्टिक, विपणन और ब्रांडिंग सहित) का समाधान करना।
    • CDP का लक्ष्य लक्षित फसलों के निर्यात में लगभग 20% सुधार करना और क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड बनाना है।
    • भौगोलिक विशेषज्ञता (Geographical Specialisation) का लाभ उठाकर बागवानी क्लस्टरों के एकीकृत तथा बाज़ार आधारित विकास को बढ़ावा देना।
    • सरकार की अन्य पहलों जैसे कि कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के साथ अभिसरण।
  • उदाहरण: 
    CDP के कार्यान्वयन के लिये पहचाने गए कुछ क्लस्टर हैं:
    • अनानास के लिये सिपाहीजला (त्रिपुरा)।
    • अनार के लिये सोलापुर (महाराष्ट्र) और चित्रदुर्ग (कर्नाटक)।
    • हल्दी के लिये पश्चिम जैंतिया हिल्स (मेघालय)।

बागवानी क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • उत्पादन चुनौतियाँ: जैसे- छोटी परिचालन भूमि, सिंचाई सुविधाओं की कमी और खराब मृदा प्रबंधन, कीटों का खतरा आदि।
  • संस्थागत चुनौतियाँ: कृषि बीमा और कृषि मशीनीकरण की सीमित पहुँच, छोटे एवं सीमांत किसानों के लिये संस्थागत ऋण तक पहुँच की कमी इस क्षेत्र में कम निवेश का कारण है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाएँ जैसे कि मौसम के बदलते पैटर्न, सूखा, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ, एक और गंभीर चुनौती है जो फसल की विफलता तथा नुकसान का कारण बन सकती है।
  • किसान उत्पादक संगठन (FPO): कमज़ोर FPO भी इस क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ हैं, जो किसानों को उपलब्ध अवसरों का पूरा लाभ उठाने की क्षमता को सीमित करते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे के मुद्दे: अन्य चुनौतियाँ जैसे फलों और सब्ज़ियों की खराब होने वाली प्रकृति, खराब रसद और समान कोल्ड स्टोरेज एवं गोदाम सुविधाओं की कमी, साथ ही किसानों के मार्गदर्शन की कमी कि कौन-सी फसलें बोई जाएँ, जिसके परिणामस्वरूप कुछ वस्तुओं का अधिक उत्पादन और अन्य की कमी होती है।

बागवानी क्षेत्र के विकास के लिये क्या पहलें की गई हैं?

  • राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB): 
    • इसकी स्थापना वर्ष 1984 में भारत सरकार द्वारा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी।
    • इसका उद्देश्य बागवानी उद्योग के एकीकृत विकास में सुधार करना और फलों तथा सब्ज़ियों के उत्पादन और प्रसंस्करण के समन्वय एवं रखरखाव में सहायता करना है।
  • क्लस्टर विकास कार्यक्रम: 
    • इसका उद्देश्य बागवानी समूहों की भौगोलिक विशेषज्ञता का लाभ उठाकर पूर्व-उत्पादन, उत्पादन, कटाई के बाद, रसद, ब्रांडिंग और विपणन गतिविधियों के एकीकृत और बाज़ार-आधारित विकास को बढ़ावा देना है।
  • CHAMAN (कोआर्डिनेटड हॉर्टिकल्चर एसेसमेंट एंड मैनेजमेंट):
  • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH): 
  • बागवानी क्षेत्र उत्पादन सूचना प्रणाली (HAPIS): 
    • यह बागवानी फसलों के क्षेत्र तथा उत्पादन से संबंधित ज़िला-स्तरीय डेटा ऑनलाइन जमा करने हेतु एक वेब पोर्टल है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY):
    • यह सिंचाई की समस्या का समाधान कर रही है जिसका उद्देश्य सिंचाई के बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देना, खेती योग्य क्षेत्रों का विस्तार करना और साथ ही खेत की जल दक्षता में वृद्धि करना है।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने एवं किसानों की आजीविका में सुधार हेतु सब्सिडी का प्रभावी एवं समय पर वितरण आवश्यक है।
  • भारतीय बागवानी क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने की अत्यधिक संभावनाएँ है जो वर्ष 2050 तक देश की 650 मिलियन मीट्रिक टन फलों एवं सब्ज़ियों की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिये अनिवार्य है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत में विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु सब्सिडी का उपयोग करने की व्यवहार्यता की चर्चा कीजिये तथा विश्लेषण कीजिये कि क्या यह राजकोषीय वित्त पर बोझ डालती है। प्रासंगिक उदाहरणों के साथ अपने तर्क का समर्थन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)

  1. कृषि संपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी 
  2. कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद 
  3. खेतिहर परिवारों की उपभोग आवश्यकता 
  4. फसल के बाद का खर्च 
  5. पारिवारिक आवास का निर्माण एवं ग्राम कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना

निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. बागवानी फार्मों के उत्पादन, उत्पादकता एवं आय में वृद्धि करने में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एन.एच.एम.) की भूमिका का आकलन कीजिये। यह किसानों की आय बढ़ाने में कहाँ तक सफल हुआ है? (2018)


कृषि

उत्तर भारत में कपास की खेती

प्रिलिम्स के लिये:

पिंक बॉलवार्म, कपास, बीटी कपास, कपास को नुकसान पहुँचाने वाले कीट, खरीफ, कस्तूरी कपास

मेन्स के लिये:

भारत के लिये कपास का महत्त्व, भारत में कपास उत्पादन में परिणामी गिरावट से जुड़े कारण, भारत के कपास क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों? 

हितधारकों को 2024-25 में उत्तर भारतीय खरीफ रोपण सीज़न के करीब आने पर  कपास के रकबे में संभावित गिरावट की आशंका है।

  • यह बदलाव कई कारकों के एक साथ घटित होने से प्रेरित है, जिसमें गंभीर पिंक बॉलवार्म संक्रमण, फाइबर फसल की कम कीमतें और बढ़ती श्रम लागत शामिल है।
  • इन चुनौतियों का सामना करने वाले किसान धान, मक्का और ग्वार जैसी वैकल्पिक फसलों का विकल्प चुन सकते हैं।

पिंक बॉलवर्म (PBW) संक्रमण क्या है?

  • परिचय:
    • पिंक बॉलवर्म या PBW (Pectinophora gossypiella) अमेरिकी बॉलवॉर्म एक प्रमुख जटिल कीट है, जो मुख्य रूप से कपास की फसलों को प्रभावित करता है।
    • PBW को सॉन्डर्स के नाम से भी जाना जाता है जो फूल की कली (वर्ग) और बीज युक्त बीजकोष जैसे विकसित हो रहे कपास के फलों को नुकसान पहुँचाता है।
    • कीट कलियों, फूलों और बीजकोषों पर अंडे देता है, जिससे निकलने वाले लार्वा बीजों को खाने के लिये बीजकोषों में घुस जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लिंट को नुकसान होता है और गुणवत्ता में गिरावट आती है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • PBW जैसे कीटों का प्रतिरोध करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास की शुरुआत करने का उद्देश्य जोखिमों को कम करना था। हालाँकि PBW ने समय के साथ बीटी कॉटन के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है, जिससे समस्या बढ़ गई है।
  • विकास में योगदान देने वाले प्रतिरोधी कारक:
    • मध्य और दक्षिणी कपास उत्पादन क्षेत्रों में फसल चक्र के बिना कपास की निरंतर बुआई ने PBW को बढ़ावा दिया है।
    • किसानों द्वारा अस्वीकृत Bt/HT बीजों की अवैध कृषि ने PBW प्रतिरोधी विकास में योगदान दिया है।
    • दीर्घावधि के संकरण की विस्तारित कृषि ने PBW हेतु निरंतर मेज़बान उपलब्धता की स्थिति प्रदान की।
    • कपास की फसल को अनुशंसित अवधि से आगे बढ़ाने की वजह से PBW के जीवित रहने और उसे प्रजनन में मदद दी।
    • विदेशज रोपण (Refugia Planting) में कमी के कारण PBW के Bt प्रोटीन के निरंतर संपर्क में रहने से प्रतिरोधी विकास में वृद्धि हुई है।
      • विदेशज पौधे जैवविविधता वाले पौधे हैं, जो कृषिगत पौधों के आसपास उगते हैं और प्राकृतिक कीटों को संरक्षण हेतु स्थान एवं भोजन प्रदान करते हैं।
  • फसल की पैदावार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
    • PBW संक्रमण के परिणामस्वरूप उपज में काफी नुकसान होता है और कपास के रेशे की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे किसानों की आय और स्थिरता प्रभावित होती है।
    • कीट विज्ञानियों के अनुसार, हरियाणा में कपास के खेतों को काफी नुकसान हुआ है, लगभग 25% खेतों में 50% नुकसान की सूचना है।
    • पंजाब में 65% नुकसान देखा गया है, हालाँकि राजस्थान 90% नुकसान के साथ सूची में शीर्ष पर है, जो किसानों और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के लिये गंभीर आर्थिक परिणामों को रेखांकित करता है।

कपास के कीट:

        कीट

          लक्षण 

चित्तीदार सुंडी
(Earias vitella)

  • केंद्रीय अंकुर सूख जाते हैं, मुरझा जाते हैं और गिर जाते हैं।
  • यह फूलों की कलियों, बीजकोषों में छेद कर देता है और उनके टूटने का कारण बनता है।

अमेरिकी सुंडी
(Helicoverpa armigera)

  • छालों का उभरना (फूल की कली को पिरामिड जैसी आकृति में घेरना)।
  • चौकों (squares) पर कीटमल से भरे बोरहोल।

तंबाकू कैटरपिलर
(Spodoptera litura) 

  • अनियमित बोरहोल।
  • पत्तियों का शैलमृदाभवन (Skeletonization)
  • भारी पतझड़

सफेद मक्खी
(Bemicia tabaci)

  • पत्तियों से रस चूसना
  • निम्न गुणवत्ता वाला लिंट (Lint)
  • गंभीर मामलों में बोल शेडिंग (Boll Shedding)।

कॉटन एफिड
(Aphis gossypii)

  • शिशु और वयस्क दोनों ही पत्तियों से रस चूसते हैं।
  • मधुमय स्राव के कारण चमकदार उपस्थिति।

कपास मीली बग 
(Phenacoccus solenopsis)

  • झाड़ीदार अंकुर
  • कपास की बुआई के प्रारंभिक चरण में फसल का  मुर्झाना (वृद्धावस्था) जैसी स्थिति देखी जा सकती है।
  • कालिखयुक्त फफूँद का बनना।

उत्तर भारत में कपास की खेती के रुझान क्या हैं?

  • उत्तर भारतीय राज्यों पर प्रभाव:
    • पंजाब, राजस्थान और हरियाणा उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं, सभी में कपास के क्षेत्रफल (Cotton Acreages) में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है।
    • पंजाब में वर्ष 2023-24 के खरीफ सीज़न के दौरान कपास के क्षेत्रफल में 32% की उल्लेखनीय गिरावट देखी गई, जबकि राजस्थान में थोड़ी कमी देखी गई और हरियाणा में मामूली वृद्धि देखी गई।
  • वैकल्पिक फसलों की ओर बदलाव: 
    • उत्तर भारत में किसान गुणवत्ता संबंधी चिंताओं और कम विक्रय के कारण धान, मक्का, ग्वार, मूँग और मूँगफली जैसी वैकल्पिक फसलों का विकल्प तलाश रहे हैं।
    • पंजाब में जहाँ पानी की उपलब्धता अनुकूल है, किसान धान की खेती की ओर लौट सकते हैं। राजस्थान में ग्वार की खेती को प्राथमिकता दी जा सकती है, जबकि मक्का और मूँग अन्य क्षेत्रों में विकल्प के रूप में उभर सकते हैं।
  • श्रम लागत और विक्रय: 
    • बढ़ती श्रम लागत ने उत्तर भारत में कपास किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। इसके अतिरिक्त कीटों के संक्रमण के कारण खराब गुणवत्ता ने किसानों की आय को प्रभावित किया है, जिससे फसल के नुकसान के मुआवज़े को लेकर चिंता उत्पन्न हो गई है।
  • आगामी सीज़न (2024) को लेकर आशाएँ: 
    • मौजूदा चुनौतियों के बावजूद आगामी कपास सीज़न के संबंध में कुछ उम्मीदें हैं। अनुकूल मानसून पूर्वानुमान और अपेक्षाकृत बेहतर कीमतें कपास के रकबे में मामूली वृद्धि की उम्मीद जगाती हैं। हालाँकि चिंताएँ बनी हुई हैं, जिनमें उन्नत तकनीक की कमी और कुछ क्षेत्रों में देखी गई PBW द्वारा क्षति जैसी गंभीर मुद्दे शामिल हैं।

                                                      कपास

बढ़ती परिस्थितियाँ

  • कपास एक खरीफ फसल है जिसे पकने में 6 से 8 महीने लगते हैं।
  • तापमान: 21-30 डिग्री सेल्सियस के बीच (लंबी ठंढ-मुक्त अवधि के साथ गर्म, धूप वाली जलवायु की आवश्यकता होती है)
  • वर्षा: लगभग 50-100 सेमी. (गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में सबसे अधिक उत्पादक)।
  • मृदा आवश्यकता: कपास को मध्यम से लेकर भारी प्रकार की मृदा में बोया जा सकता है, लेकिन कपास की खेती के लिये काली कपास मृदा सबसे आदर्श है।
  • यह 5.5 से 8.5 की pH रेंज को सहन कर सकता है लेकिन जलभराव के प्रति संवेदनशील है।

प्रमुख कपास उत्पादक राज्य

  • उत्तरी क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान।
  • मध्य क्षेत्र: गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश।
  • दक्षिणी क्षेत्र: तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु।

महत्त्व

  • कपड़ा उद्योग के लिये प्राथमिक स्रोत, जो भारत की कुल कपड़ा फाइबर खपत का दो-तिहाई हिस्सा है।
  • बिनौला तेल और केक/भोजन का उपयोग खाना पकाने तथा पशुओं एवं मुर्गीपालन के लिये चारे के रूप में किया जाता है।
  • बिनौला तेल भारत का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू उत्पादित वनस्पति तेल है।
  • कपास भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है, जो वैश्विक कपास उत्पादन का लगभग 25% हिस्सा है।
  • इसके आर्थिक महत्त्व के कारण इसे अक्सर "व्हाइट-गोल्ड" कहा जाता है।

पहल

COTTON CULTIVATION

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. कपास की खेती करने वाले किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये तथा खाद्य एवं आय सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु फसल विविधीकरण के साथ सतत् कृषि पद्धतियों के महत्त्व की जाँच कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में काली कपास मृदा की रचना निम्नलिखित में से किसके अपक्षयण से हुई है? (2021)

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी (फिशर) ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित विशेषताएँ भारत के एक राज्य की विशिष्टताएँ हैंः (2011)

  1. उसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है।
  2. उसके मध्य भाग में कपास का उत्पादन होता है।
  3. उस राज्य में खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों की खेती अधिक होती है।

उपर्युक्त सभी विशिष्टताएँ निम्नलिखित में से किस एक राज्य में पाई जाती हैं?

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) कर्नाटक
(d) तमिलनाडु

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के लिये कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)


भूगोल

अंटार्कटिक में भारत का नया डाकघर

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), हिमाद्रि, दक्षिण गंगोत्री, मैत्री उत्तर भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम, अंटार्कटिक संधि प्रणाली

मेन्स के लिये:

अंटार्कटिक में भारत के अनुसंधान स्टेशन का महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में डाक विभाग ने लगभग चार दशकों के बाद अंटार्कटिक के भारती अनुसंधान केंद्र में डाकघर की दूसरी शाखा खोली है।

  • अंटार्कटिक के लिये इच्छित पत्रों को अब एक नए प्रयोगात्मक पिन कोड- MH-1718 के साथ संबोधित किया जाएगा, जो एक नई शाखा के लिये विशिष्ट है।
  • वर्तमान में मैत्री और भारती दो सक्रिय अनुसंधान स्टेशन हैं जिन्हें भारत अंटार्कटिक में संचालित करता है।

अंटार्कटिक में भारत के डाकघर का क्या महत्त्व है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • वर्ष 1984 में भारत ने अंटार्कटिक में अपना पहला डाकघर दक्षिण गंगोत्री (भारत का पहला अनुसंधान स्टेशन) में स्थापित किया।
    • दुर्भाग्य से वर्ष 1988-89 में दक्षिण गंगोत्री बर्फ में डूब गया और बाद में इसे निष्क्रिय कर दिया गया था।
  • परंपरा को जारी रखना:
    • भारत ने 26 जनवरी, 1990 को अंटार्कटिक में मैत्री अनुसंधान केंद्र पर एक और डाकघर स्थापित किया।
    • भारत के दो अंटार्कटिक अनुसंधान बेस, मैत्री और भारती हालाँकि 3,000 किमी. दूर हैं लेकिन दोनों गोवा डाक प्रभाग के अंतर्गत आते हैं।
  • परिचालन प्रक्रिया:
    • अंटार्कटिक में डाकघर के लिये आने वाले पत्र गोवा में राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) को भेजे जाते हैं।
    • NCPOR से अंटार्कटिक के लिये रवाना हुए शोधकर्त्ता अपने साथ पत्रों को ले जाते हैं।
      • अनुसंधान बेस पर पत्रों को 'रद्द' कर दिया जाता है, वापस लाया जाता है और डाक के माध्यम से वापस कर दिया जाता है।
      • 'रद्दीकरण' शब्द का तात्पर्य स्टांप या डाक स्टेशनरी पर लगाए गए उस निशान से है जो उसे पुन: उपयोग के लिये बेकार कर देता है।
  • रणनीतिक उपस्थिति:
    • अंटार्कटिक में भारतीय डाकघर का अस्तित्त्व एक रणनीतिक उद्देश्य की पूर्ति करता है।
    • यह भारतीय क्षेत्र के अंर्तगत वह स्थान है जहाँ आमतौर पर भारतीय डाकघर संचालित है। भारत के पास अंटार्कटिक महाद्वीप पर स्वयं को स्थापित करने के लिये यह एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है क्योंकि यह क्षेत्र अंटार्कटिक संधि के तहत विदेशी एवं तटस्थ है।
    • यह वैज्ञानिक अन्वेषण एवं पर्यावरण के नेतृत्व के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
  • अंटार्कटिक की शासन व्यवस्था:
    • अंटार्कटिक संधि क्षेत्रीय दावों को समाप्त करती है और साथ ही सैन्य अभियानों एवं परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने तथा वैज्ञानिक खोज पर ज़ोर देती है।
    • इस विदेशी भूमि में एक भारतीय डाकघर का होना संधि की भावना के अनुरूप है।

भारत का अंटार्कटिक कार्यक्रम क्या है?

  • परिचय:
    • यह राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) के अंर्तगत एक वैज्ञानिक अनुसंधान तथा अन्वेषण कार्यक्रम है। इसकी शुरुआत वर्ष 1981 में हुई जब अंटार्कटिका पर पहला भारतीय अभियान चलाया गया।
      • NCPOR की स्थापना वर्ष 1998 में हुई थी।
  • दक्षिणी गंगोत्री:
    • दक्षिणी गंगोत्री भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के एक भाग के रूप में अंटार्कटिक में स्थापित पहला भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशन था।
    • हालाँकि यह वर्ष 1988-89 में बर्फ में डूब गया था तथा बाद में इसे निष्क्रिय कर दिया गया था।
  • मैत्री:
    • मैत्री अंटार्कटिक में भारत का दूसरा स्थायी अनुसंधान स्टेशन है। यह वर्ष 1989 में निर्मित किया गया था।
    • मैत्री, शिरमाकर ओएसिस नामक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। भारत ने मैत्री के आस-पास मीठे पानी की एक झील भी बनाई जिसे प्रियदर्शिनी झील के नाम से जाना जाता है।
  • भारती:
    • भारती, वर्ष 2012 से भारत का नवीनतम अनुसंधान स्टेशन है। इसका निर्माण शोधकर्त्ताओं को खराब मौसम के बावजूद सुरक्षित रूप से कार्य करने में सहायता हेतु किया गया है।
    • यह भारत की पहली प्रतिबद्ध अनुसंधान सुविधा है और मैत्री से लगभग 3000 किमी. पूर्व में स्थित है।
  • अन्य अनुसंधान सुविधाएँ:
    • सागर निधि:
      • वर्ष 2008 में भारत ने अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के गौरव सागर निधि को प्रारंभ किया।
      • यह एक बर्फ श्रेणी का जहाज़ है, जो 40 सेमी. गहराई की पतली बर्फ को काट सकता है और साथ ही यह अंटार्कटिक जल में नौवहन करने वाला पहला भारतीय जहाज़ है।
      • यह देश में अपनी तरह का पहला जहाज़ है, साथ ही इसका प्रयोग दूर से संचालित होने वाले वाहनों (ROV) तथा गहरे समुद्र में नोड्यूल खनन प्रणाली के प्रक्षेपण और पुनर्प्राप्ति के साथ-साथ सुनामी अध्ययन के लिये भी कई बार किया गया है।

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अंटार्कटिक संधि प्रणाली क्या है?

  • परिचय:
    • यह अंटार्कटिक में राज्यों के बीच संबंधों को विनियमित करने के लिये की गई व्यवस्थाओं का सम्मिश्रण है।
    • इसका उद्देश्य सभी मानव जाति के हित में यह सुनिश्चित करना है कि अंटार्कटिक का उपयोग हमेशा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाता रहेगा और यह अंतर्राष्ट्रीय कलह का कारण नहीं बनेगा।
    • यह एक वैश्विक उपलब्धि है और 50 से अधिक वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की पहचान रही है।
    • ये समझौते कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं और अंटार्कटिक की अद्वितीय भौगोलिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक विशेषताओं के लिये बनाए गए हैं और इस क्षेत्र के लिये एक मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय शासन ढाँचा तैयार करते हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • हालाँकि अंटार्कटिक संधि कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक समाधान करने में सक्षम है, लेकिन 1950 के दशक की तुलना में 2020 में परिस्थितियाँ मौलिक रूप से भिन्न हैं।
      • अंटार्कटिक आंशिक रूप से प्रौद्योगिकी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के कारण भी अधिक सुलभ है। मूल 12 देशों की तुलना में अब इस महाद्वीप में अधिक देशों के वास्तविक हित हैं।
      • कुछ वैश्विक संसाधन, विशेषकर तेल दुर्लभ होते जा रहे हैं। अंटार्कटिक संसाधनों, विशेष रूप से मत्स्य पालन और खनिजों में राष्ट्रों के हितों के संबंध में काफी अटकलें हैं।
      • इसलिये संधि पर हस्ताक्षर करने वाले सभी, विशेषकर महाद्वीप में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वालों को संधि के भविष्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • संधि प्रणाली के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समझौते:
    • वर्ष 1959 की अंटार्कटिक संधि।
    • अंटार्कटिक सील के संरक्षण के लिये 1972 का कन्वेंशन।
    • अंटार्कटिक समुद्री जीवन संसाधनों के संरक्षण पर 1980 का कन्वेंशन।
    • अंटार्कटिक संधि के लिये पर्यावरण संरक्षण पर 1991 का प्रोटोकॉल।

राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre for Polar and Ocean Research):

  • इसकी स्थापना 25 मई 1998 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास संस्थान के रूप में की गई थी।
  • पहले इसे राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre for Antarctic and Ocean Research) के रूप में जाना जाता था, NCAOR भारत का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान है जो ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्रों में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिए ज़िम्मेदार है।
  • यह देश में ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ संबंधित लॉजिस्टिक गतिविधियों की योजना, प्रचार, समन्वय और निष्पादन के लिये नोडल एजेंसी है।
  • इसके उत्तरदायित्वों में शामिल हैं:
    • भारतीय अंटार्कटिक अनुसंधान बेस "मैत्री" और "भारती" तथा भारतीय आर्कटिक बेस "हिमाद्रि" का प्रबंधन एवं रखरखाव।
    • मंत्रालय के अनुसंधान पोत ORV सागर कन्या के साथ-साथ मंत्रालय द्वारा चार्टर्ड अन्य अनुसंधान जहाज़ों का प्रबंधन।
      • महासागर अनुसंधान वाहन (ORV) सागर कन्या एक बहुमुखी महासागर अवलोकन प्लेटफॉर्म है, जो तकनीकी रूप से उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों और संबंधित सुविधाओं से सुसज्जित है।
  • यह गोवा राज्य में स्थित है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अंटार्कटिक प्रयासों में भारत की प्रमुख उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ क्या हैं? अंटार्कटिक में भारत की उपस्थिति इसकी वैश्विक स्थिति और वैज्ञानिक क्षमताओं में कैसे योगदान देती है। वर्णन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जून की 21वीं तारीख को सूर्य: (2019)

(a) उत्तर ध्रुवीय वृत्त पर क्षितिज के नीचे नहीं डूबता है
(b) दक्षिण ध्रुवीय वृत्त पर क्षितिज के नीचे नहीं डूबता है
(c) मध्याह्न में भूमध्य रेखा पर ऊर्ध्वाधर रूप से व्योमस्थ चमकता है
(d) मकर-रेखा पर ऊर्ध्वाधर रूप से व्योमस्थ चमकता है

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत आर्कटिक प्रदेश के संसाधनों में किस कारण गहन रुचि ले रहा है? (2018)


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