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डेली न्यूज़

  • 18 Apr, 2024
  • 44 min read
भारतीय राजनीति

नगरीय निकाय चुनावों में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य निर्वाचन आयोग, संवैधानिक निकाय, नगरीय निकाय चुनाव

मेन्स के लिये:

नगरीय निकाय चुनावों से संबंधित चुनौतियाँ और प्रतीक्षित सुधार।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

चंडीगढ़ मेयर चुनाव पर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला स्थानीय नगरीय निकायों की चुनावी प्रक्रियाओं से जुड़े मुद्दों को पुनः उजागर करता है।

  • भारत में लोक सभा और राज्य विधानसभा चुनावों के विपरीत, नगरीय निकायों के चुनावों को अभी भी समय पर चुनाव तथा सत्ता परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

स्थानीय निकायों के चुनावों के लिये कानूनी प्रावधान:

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये मतदाता सूची की तैयारी तथा सभी चुनावों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission - SEC) में निहित होगा।
    • 74वाँ संवैधानिक संशोधन नगर पालिकाओं के चुनावी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है।
    • 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 243U शहरी स्थानीय सरकारों के लिये पाँच साल का कार्यकाल अनिवार्य करता है।
  • कानूनी प्रावधान:
    • सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले, 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस संवैधानिक जनादेश की अनुल्लंघनीयता पर बल दिया।

ECI

भारत में स्थानीय निकाय चुनावों की स्थिति क्या है?

  • जनाग्रह (गैर-लाभकारी संस्थान) द्वारा भारत की शहरी प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023:
    • सितंबर 2021 तक भारत में 1,400 से अधिक नगर पालिकाओं में निर्वाचित परिषदें नहीं थीं।
    • यह पूरे देश में एक महत्त्वपूर्ण और व्यापक मुद्दे का संकेत देता है।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा की गई ऑडिट से पता चला कि वर्ष 2015 व 2021 के बीच 1,500 से अधिक नगर पालिकाओं में निर्वाचित परिषदें मौजूद नहीं थीं।
    • चेन्नई, दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में चुनाव कराने में महीनों से लेकर वर्षों तक देरी का सामना करना पड़ा।

स्थानीय निकाय चुनावों से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • चुनाव निर्धारण में विवेकाधीन शक्तियाँ:
    • अस्पष्ट संवैधानिक सुरक्षा उपायों के कारण, जब चुनाव शेड्यूल करने की बात आती है तो SEC जैसे सरकारी अधिकारियों के पास वर्तमान में विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं।
    • यह लचीलापन कभी-कभी असंगत या विलंबित चुनाव की समय-सीमा का कारण बन सकता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
  • राज्य सरकारों द्वारा अनुचित दबाव:
    • राजनीतिक या रणनीतिक कारणों से चुनाव में विलंब हेतु राज्य सरकारों द्वारा संभावित अनुचित दबाव के बारे में चिंता।
    • इस तरह का हस्तक्षेप चुनावी प्रक्रिया की अखंडता से समझौता कर सकता है और लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता का विश्वास कम कर सकता है।
  • मैनुअल मतपत्र-आधारित प्रक्रियाओं पर निर्भरता:
    • मैन्युअल मतपत्र-आधारित प्रक्रियाओं पर निरंतर निर्भरता से कमज़ोरियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे गिनती में त्रुटियाँ, छेड़छाड़ की संभावना और चुनाव परिणाम घोषित करने में विलंब, आदि।
    • यह पारंपरिक दृष्टिकोण आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) जितना कुशल या सुरक्षित नहीं हो सकता है, जो चुनावी परिणामों की पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता को बढ़ा सकता है।
  • परिषदों के गठन में देरी:
    • चुनावों के बाद भी शहरी स्थानीय सरकारों में नगरपालिका परिषदों का गठन तुरंत नहीं किया गया।
      • उदाहरण के लिये: कर्नाटक में चुनाव के बाद 12-24 माह का विलंब हुआ।

स्थानीय निकाय चुनावों के संबंध में संभावित समाधान क्या हैं?

  • SEC को सशक्त बनाना: चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये SEC को संविधान के अनुच्छेद 243K और 243ZA में उल्लिखित शक्तियों का उपयोग करके चुनावी प्रक्रिया की देखरेख में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
  • वार्ड परिसीमन के लिये सशक्तीकरण: 35 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 11 ने SEC को वार्ड परिसीमन करने का अधिकार दिया है।
    • नगर निगम चुनावों में निष्पक्ष एवं न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु वार्ड परिसीमन महत्त्वपूर्ण है।
    • SEC को अधिक अधिकार दिये जाने चाहिये, जिसमें वार्ड परिसीमन करने की शक्ति भी शामिल है।
  • जवाबदेही तंत्र: नगरपालिका चुनावों के संचालन में किसी भी देरी अथवा अनियमितता के लिये चुनाव अधिकारियों के साथ-साथ अन्य प्राधिकारियों को जवाबदेह ठहराना। यह पारदर्शी जाँच प्रक्रियाओं एवं उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • नीति सुधार: चुनावों के समय-निर्धारण से लेकर निष्पक्ष प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने तक, उजागर की गई चुनौतियों का समाधान करने हेतु व्यापक नीति सुधारों की आवश्यकता है। 
    • स्थानीय निकायों के कुशल एवं समय पर चुनाव जैसे प्रमुख मुद्दों को ध्यान में रखकर 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार को स्पष्ट किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में नगरपालिका चुनावों से संबंधित व्यापक सुधारों, देरी को संबोधित करने, संवैधानिक जनादेशों को लागू करने, राज्य निर्वाचन आयोगों को सशक्त बनाने के साथ-साथ पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु चुनावी प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. समय पर चुनाव एवं स्थानीय निकायों की सत्ता के सुचारू परिवर्तन के संबंध में चुनौतियों तथा संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है। 
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है। 
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

POEM-3 मिशन और अंतरिक्ष मलबा

प्रिलिम्स के लिये:

इसरो का PSLV-C58/XPoSat मिशन, PSLV ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-3, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, PSLV-C53 मिशन, लो अर्थ ऑर्बिट, प्रोजेक्ट NETRA, स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस कंट्रोल सेंटर।

मेन्स के लिये:

POEM मिशन, अंतरिक्ष मलबे से संबंधित दुनिया भर की पहल।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इसरो के PSLV-C58/एक्सपोसैट मिशन ने अपने अंतिम चरण को PSLV ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-3 (POEM-3) में परिवर्तित करके पृथ्वी की कक्षा में लगभग शून्य मलबा (near-zero debris) उत्सर्जित किया, तथा अपने मिशन को पूरा करने के बाद कक्षा में रहने के बजाय सुरक्षित रूप से वायुमंडल में पुनः प्रवेश किया।  

POEM क्या है?

  • POEM विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) द्वारा विकसित एक अंतरिक्ष प्लेटफॉर्म है।
    • यह विभिन्न पेलोड के साथ अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोगों के संचालन हेतु PSLV रॉकेट के चौथे चरण को एक स्थिर कक्षीय स्टेशन में पुन: उपयोग करता है।
    • इसका उद्घाटन जून, 2022 में PSLV-C53 मिशन के दौरान हुआ।
      • आमतौर पर, PSLV का चौथा चरण उपग्रहों को तैनात करने के बाद अंतरिक्ष मलबा के रूप परिवर्तित हो जाता है, लेकिन PSLV-C53 मिशन में, इसने प्रयोगों हेतु एक स्थिर प्लेटफॉर्म के रूप में काम किया।
    • इसरो के अनुसार, POEM में स्थिरीकरण के लिये एक समर्पित नेविगेशन मार्गदर्शन और नियंत्रण (NGC) प्रणाली है, जो अनुमत सीमा के भीतर किसी भी एयरोस्पेस वाहन के अभिविन्यास को नियंत्रित करने के लिये है।
  • POEM-3 मिशन: इसे 1 जनवरी, 2024 को PSLV C-58 मिशन के भाग के रूप में लॉन्च किया गया था।
    • एक्सपोसैट उपग्रह को तैनात करने के बाद, चौथे चरण को POEM-3 में बदल दिया गया और 350 किलोमीटर की कक्षा में उतारा गया, जिससे अंतरिक्ष मलबे के उत्पादन का ज़ोखिम काफी कम हो गया।

नोट: इसरो ने पहली बार वर्ष 2019 में PSLV-C44 मिशन के साथ एक ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म के रूप में PS4 (PSLV का चौथा चरण) का उपयोग कर उसकी क्षमता का प्रदर्शन किया, जिसने माइक्रोसैट-R और कलामसैट-V2 उपग्रहों को उनकी निर्दिष्ट कक्षाओं में स्थापित किया। उस मिशन के चौथे चरण को अंतरिक्ष-आधारित प्रयोगों के लिये एक ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म के रूप में बचाकर रखा गया था।

अंतरिक्ष मलबा क्या है?

  • परिचय: लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) में अंतरिक्ष मलबे के रूप में मुख्य रूप से अंतरिक्ष यान, रॉकेट और निष्क्रिय उपग्रहों के टुकड़े शामिल हैं, जो उपग्रह-विरोधी मिसाइल परीक्षणों के परिणामस्वरूप नष्ट हो गए हैं।
    • LEO पृथ्वी की सतह से 100 किमी से 2000 किमी ऊपर तक फैला हुआ है।
    • यहाँ जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट (GEO) में कम मात्रा में मलबा मौजूद है, जो पृथ्वी की सतह से 36,000 किमी ऊपर है।
  • जोखिम: अंतरिक्ष का मलबा अक्सर 27,000 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज़ गति से गमन करता है। अपनी अत्यधिक मात्रा और तीव्र गति के कारण, वे कई अंतरिक्ष परिसंपत्तियों के लिये जोखिम उत्पन्न करते हैं।
    • यह दो प्रमुख जोखिमों को भी जन्म देता है, पहला, यह अत्यधिक मलबे के कारण कक्षा के अनुपयोगी क्षेत्रों का निर्माण करता है, और 'केसलर सिंड्रोम (एक टक्कर के परिणामस्वरूप कैस्केडिंग टकराव के कारण अधिक मलबे का निर्माण) की ओर जाता है।
    • इसरो के अनुमान के अनुसार, LEO में 10 सेमी से अधिक आकार की अंतरिक्ष वस्तुओं (मलबा या कार्यात्मक उपकरण) की संख्या 2030 तक लगभग 60,000 होने की उम्मीद है।
      • निजी अंतरिक्ष एजेंसियों का उदय इस समस्या को बढ़ा रहा है।
  • वर्तमान स्थिति: भारतीय अंतरिक्ष स्थिति मूल्यांकन रिपोर्ट (ISRO’s Space Situational Assessment Report), 2022 के अनुसार, दुनिया ने अकेले 2022 में 179 प्रमोचनों में 2,533 ऑब्जेक्ट्स को अंतरिक्ष में रखा।
    • 2022 में सैटेलाइट से संबंधित कक्षा में नष्ट होने की तीन प्रमुख घटनाएँ घटित हुईं, जो उस वर्ष निर्मित अधिकांश मलबे में योगदान करती हैं:
      • मार्च 2022: एंटी-सैटेलाइट परीक्षण में रूस के कॉसमॉस 1048 को जानबूझकर नष्ट करना।
      • जुलाई 2022: GOSAT-2 उपग्रह को तैनात करते समय जापानी H-2A के ऊपरी चरण का नष्ट होना।
      • नवंबर 2022: चीन के युनहाई- 3 के ऊपरी चरण में दुर्घटनावश विस्फोट
    • अन्य संबंधित घटनाएँ: 
      • नासा ने हाल ही में पुष्टि की है कि फ्लोरिडा के एक घर के पास दुर्घटनाग्रस्त हुई रहस्यमयी वस्तु वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का मलबा था।
      • 2023 में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तटों पर खोजी गई एक वस्तु की पहचान इसरो रॉकेट के मलबे के रूप में की गई थी।
  • संबंधित अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून: वर्तमान में LEO मलबे से संबंधित कोई अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून नहीं हैं।
    • हालाँकि, अधिकांश अंतरिक्ष-खोज करने वाले देश अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (Inter-Agency Space Debris Coordination Committee) द्वारा निर्दिष्ट स्पेस डेब्रिस मिटिगेशन दिशानिर्देश, 2002 का पालन करते हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 2007 में समर्थन दिया था।
      • दिशानिर्देश कक्षा में आकस्मिक टकराव, संचालन के दौरान ब्रेक-अप, जानबूझकर विनाश और मिशन के बाद ब्रेक-अप को सीमित करने के तरीकों की रूपरेखा तैयार करते हैं।

नोट: अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति अंतरिक्ष में मानव निर्मित और प्राकृतिक मलबे के मुद्दों से संबंधित गतिविधियों के विश्वव्यापी समन्वय के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है। इसरो इसकी सदस्य एजेंसी है

Space debris

विश्वभर के देश अंतरिक्ष मलबे की समस्या से कैसे निपट रहे हैं?

  • भारत: भारत सक्रिय रूप से अंतरिक्ष मलबे के मुद्दों से अवगत करा रहा है। POEM मिशनों के अलावा, इसरो ने मूल्यवान संपत्तियों को टकराव से बचाने के लिये एक अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता नियंत्रण केंद्र की स्थापना भी की है।
    • प्रोजेक्ट नेत्र अंतरिक्ष में भारतीय उपग्रहों के मलबे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये एक पूर्व चेतावनी प्रणाली भी है।
    • मनस्तु स्पेस, एक भारतीय स्टार्टअप, अंतरिक्ष में ईंधन भरने वाले उपग्रह की डी-ऑर्बिटिंग और उसका जीवन काल बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • जापान: अंतरिक्ष मलबे से निपटने के लिये जापान के पास एक परियोजना है, जिसे वाणिज्यिक मलबा प्रदर्शन निपटान (Commercial Removal of Debris Demonstration- CRD2) कहा जाता है।
  • यूरोप: यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने 'ज़ीरो डेब्रिस चार्टर' अपनाया है, जिसमें अंतरिक्ष मलबे को कम करने के विभिन्न तरीके शामिल हैं। इसने वर्ष 2030 तक शून्य अंतरिक्ष मलबा हटाने का भी आह्वान किया है।
  • नासा ने वर्ष 1979 में कक्षीय मलबे को समाप्त करने के तरीके खोजने और मौजूदा मलबे को ट्रैक करने के साथ ही इसके प्रबंधन के लिये उपकरण निर्मित करने हेतु अपना ऑर्बिटल डेब्रिस प्रोग्राम शुरू किया था।
    • छठवीं अमेरिकी सशस्त्र बल विंग, जिसे स्पेस फोर्स कहा जाता है, LEO में अंतरिक्ष मलबे एवं उनमें होने वाले टकराव को ट्रैक करता है।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष-आधारित पुनर्चक्रण एवं पुनर्प्रयोजन: कक्षा में अंतरिक्ष मलबे को एकत्रित करने एवं संसाधित करने हेतु प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
    • ये "अंतरिक्ष रिफाइनरियाँ" अंतरिक्ष में नए अंतरिक्ष यान अथवा आवास के निर्माण के लिये मलबे को उपयोगी सामग्रियों के रूप में विभाजित कर सकती हैं, जिससे पृथ्वी से नए प्रक्षेपण की आवश्यकता कम हो जाएगी।
    • 3D प्रिंटिंग जैसी तकनीकें पुनर्चक्रित सामग्रियों का उपयोग कर सकती हैं, जिससे हमारे द्वारा अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले कच्चे माल की मात्रा कम हो जाएगी।
  • रोबोटिक हथियार एवं कैप्चर तंत्र: मलबे से निपटने के लिये कैमरे तथा सेंसर से सुसज्जित उन्नत रोबोटिक हथियार विकसित करना। इन रोबोटों को मलबे के बड़े टुकड़ों को पकड़ने के साथ डीऑर्बिट करने के लिये सेवा उपग्रहों से स्थापित किया जा सकता है जो टकराव से उत्पन्न खतरे को समाप्त कर सकते हैं।
    • विनिर्माण के दौरान उपग्रहों पर डॉकिंग तंत्र स्थापित किया जा सकता है, जिससे सेवा उपग्रहों को निष्क्रिय उपग्रहों से सरलता पूर्वक जोड़ने और साथ ही डीऑर्बिट करने की अनुमति प्राप्त होती है।
  • अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्रणालियाँ: मलबे का पता लगाने और संभावित टकरावों की भविष्यवाणी करने हेतु परिष्कृत अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्रणालियाँ विकसित करना।
    • यह सक्रिय उपग्रहों को मलबे से बचाने के लिये उपयोगी होगा, जिससे आकस्मिक टकराव का जोखिम कम हो जाएगा परिणामस्वरूप और अधिक मलबा निर्मित नही होगा है।
    • एक व्यापक अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्रणाली बनाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण है जो अंतरिक्ष अन्वेषण की सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

प्रश्न. अंतरिक्ष मलबे के बढ़ते खतरे के आलोक में, उन नवीन रणनीतियों एवं प्रौद्योगिकियों पर चर्चा कीजिये जो इस वैश्विक चिंता को प्रभावी ढंग से कम कर सकती हैं। इस मुद्दे के समाधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कैसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। 'हवाई क्षेत्र' से आप क्या समझते हैं ? इस हवाई क्षेत्र के ऊपर अंतरिक्ष पर इन कानूनों के क्या प्रभाव हैं? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के उपाय सुझाइये। (2014)


शासन व्यवस्था

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जीवन का अधिकार, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार, अनुच्छेद 51A(g), एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ (2000), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों की परस्पर प्रकृति

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण के अधिकार को भारतीय संविधान में निहित जीवन के मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 21) और समता (अनुच्छेद 19) के भाग के रूप में स्वीकार किया है।

  • यह निर्णय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से संबंधित एक मामले के दौरान आया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों के अंतर्संबंध पर तीव्रता  से ध्यान केंद्रित किया गया है।

जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार: 

  • जीवन और आजीविका का अधिकार: जलवायु परिवर्तन तूफान या बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं के कारण लोगों के जीवन के अधिकार को सीधे प्रभावित कर सकता है, जिससे जीवन और संपत्ति की हानि हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, निचले तटीय क्षेत्रों में, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ने से लोगों के घरों और आजीविका को खतरा हो सकता है, जिससे उन्हें स्थानांतरित होने के लिये विवश होना पड़ सकता है।
  • स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच: जलवायु परिवर्तन जल स्रोतों को प्रभावित कर सकता है, जिससे जल की कमी या प्रदूषण हो सकता है।
    • इससे लोगों के स्वच्छ जल और स्वच्छता का अधिकार प्रभावित होता है।
    • उन क्षेत्रों में जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक पड़ता है, यहाँ समुदायों को सुरक्षित पेयजल तक पहुँचने के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • स्वास्थ्य और कल्याण: जलवायु परिवर्तन आर्थिक रूप से कमज़ोर आबादी के लिये स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, हीट वेव के बढ़ने से गर्मी से संबंधित बीमारियों और मौतों का कारण बन सकता है, जिससे स्वास्थ्य का अधिकार प्रभावित हो सकता है।
    • इसी तरह मौसमी बदलाव से खाद्य सुरक्षा और पोषण पर भी असर पड़ सकता है, जिससे लोगों का समग्र हित प्रभावित हो सकता है।
  • प्रवासन और विस्थापन: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित घटनाएँ जैसे समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम की घटनाएँ या मरुस्थलीकरण लोगों को पलायन करने या अपने घरों से विस्थापित होने के लिये मजबूर कर सकता है। यह मानवाधिकारों, विशेष रूप से निवास के अधिकार और शरण मांगने के अधिकार के साथ जुड़ा हुआ है।
    • उदाहरण के लिये, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण स्थानांतरित होना पड़ सकता है, जिससे पुनर्वास और अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • आदिवासियों के अधिकार: जलवायु परिवर्तन उन समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है जो अपनी आजीविका तथा सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
    • उदाहरण के लिये, जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव से खेती अथवा मछली पकड़ने जैसी पारंपरिक आजीविका के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है, जिससे आदिवासियों के भूमि, संसाधनों एवं सांस्कृतिक विरासत के अधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या कैसे करता है?

  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • अनुच्छेद 48A जो पर्यावरण संरक्षण को अनिवार्य बनाता है और अनुच्छेद 51A(g) जो वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देता है, जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित रहने के अधिकार की अंतर्निहित गारंटी प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है जबकि अनुच्छेद 14 इंगित करता है कि सभी व्यक्तियों को विधि के समक्ष समानता तथा विधि का समान संरक्षण प्राप्त होगा।
      • ये लेख स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
      • एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ मामले, 2000 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार जीवन के अधिकार का विस्तार है।
  • हालिया निर्णयों के निहितार्थ: 
    • इस निर्णय के महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं कि यह भारत में पर्यावरण संरक्षण प्रयासों के लिये कानूनी आधार को मज़बूत करता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता के विरुद्ध कानूनी चुनौतियों के लिये एक रूपरेखा भी प्रदान करता है।
      • यह जलवायु परिवर्तन के मानवाधिकार आयामों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के अनुरूप है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम तथा मानवाधिकार के साथ-साथ पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक द्वारा उल्लिखित है।

मानवाधिकार संरक्षण के साथ जलवायु परिवर्तन शमन को संतुलित करने में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • व्यापार-बंद: कुछ जलवायु शमन उपाय मानवाधिकारों के साथ टकराव कर सकते हैं, जैसे संरक्षण परियोजनाओं के लिये भूमि उपयोग पर प्रतिबंध अथवा नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण विस्थापन।
    • ऐसे समाधान ढूँढना कठिन हो सकता है जो लाभांश को अनुकूलित करते हुए त्रुटियों को कम करे।
  • संसाधनों तक पहुँच: नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन अथवा कार्बन मूल्य निर्धारण को लागू करने जैसी जलवायु गतिविधियाँ, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये ऊर्जा, जल तथा भोजन जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुँच को प्रभावित कर सकती हैं।
  • पर्यावरणीय प्रवासन: जलवायु-प्रेरित प्रवासन सामाजिक प्रणालियों पर दबाव डाल सकता है और साथ ही मेज़बान समुदायों में संसाधनों एवं अधिकारों पर संघर्ष का कारण बन सकता है।
    • प्रवासन प्रवाह को इस तरह से प्रबंधित करना कि प्रवासियों तथा मेज़बान आबादी दोनों के अधिकारों का सम्मान हो, यह एक बहुआयामी चुनौती प्रस्तुत करती है।
  • अनुकूलन बनाम शमन: जलवायु प्रभावों के अनुकूलन में निवेश के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (शमन) को कम करने के प्रयासों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • एक को दूसरे पर प्राथमिकता देने से मानवाधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर उन समुदायों पर, जो पहले से ही जलवायु संबंधी जोखिमों का सामना कर रहे हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है जिसके लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
    • यह राष्ट्रीय जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के बीच संतुलन बनाने का एक कठिन प्रयास है, साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि जलवायु पहल विदेशों में कमज़ोर समूहों के अधिकारों का उल्लंघन न करें।

आगे की राह

  • मानवाधिकार-आधारित कार्बन मूल्य निर्धारण: प्रगतिशील छूट या लाभांश के साथ कार्बन कर लागू करना। कम आय वाले परिवारों के लिये छूट बड़ी हो सकती है, जिससे उच्च ऊर्जा लागत के प्रभाव की भरपाई हो सकती है और एक न्यायपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित हो सकता है।
    • कार्बन टैक्स से राजस्व को स्वच्छ ऊर्जा पहल, कमज़ोर आबादी के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल और उनके जलवायु शमन एवं अनुकूलन प्रयासों में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
  • हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण: विकासशील देशों को सस्ती दरों पर हरित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना। इसमें बौद्धिक संपदा प्रतिबंधों में ढील देना या प्रौद्योगिकी साझा साझेदारी बनाना शामिल हो सकता है।
    • इससे विकासशील देशों को अपने विकास के अधिकार से समझौता किये बिना कम कार्बन वाले विकास पथ अपनाने की अनुमति मिलेगी।
  • मानवाधिकार प्रभाव आकलन: किसी भी जलवायु परिवर्तन शमन या अनुकूलन रणनीतियों को लागू करने से पहले संपूर्ण मानवाधिकार प्रभाव आकलन करें।
    • इससे संभावित जोखिमों की पहचान करने में सहायता मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि समाधान इस तरह से बनाए गए हैं जो मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कानूनी ढाँचे और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

और पढ़ें: जलवायु परिवर्तन मामले में स्विस महिलाएँ

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 (Universal Declaration of Human Rights,1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)

  1. उद्देशिका
  2.  राज्य के नीति निदेशक
  3.  मूल कर्त्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह यूरोपीय संघ की एक पहल है।
  2. यह लक्षित विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजट में जलवायु परिवर्तन को एकीकृत करने के लिये तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  3. यह विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute) और सतत् विकास के लिये विश्व व्यापार परिषद (World Business Council for Sustainable Development) द्वारा समन्वित है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)


प्रारंभिक परीक्षा

लक्षद्वीप सागर में मिलीं उपकरण उपयोग करने वाली मत्स्य प्रजातियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि दक्षिण-पश्चिमी भारतीय तट से दूर लक्षद्वीप सागर में मछली की तीन प्रजातियाँ (जेन्सन रैस, चेकरबोर्ड रैस, मून रैस) उपकरणों का उपयोग (Tool-Using) क्षमताओं का प्रदर्शन करती हैं।

उपकरणों का उपयोग करने वाली मछली की तीन प्रजातियाँ कौन-सी हैं?

  • परिचय: 
    • प्राइमेट्स, पक्षीऊदबिलावऑक्टोपस और कई अन्य जानवरों को औज़ारों का उपयोग करने में सक्षम माना जाता है।
      • मछलियों द्वारा उपकरणों का उपयोग करना असंभव लगता है, क्योंकि उनके पास वस्तुओं को पकड़ने के लिये हाथ/पंजे का अभाव होता है।
    • हालाँकि, मछली की तीन प्रजातियाँ समुद्री अर्चिन के कठोर आवरणों को क्षतिग्रस्त करने के लिये जीवित या मृत प्रवाल संरचनाओं का उपयोग निहाई (anvils) के रूप में करती हैं ताकि वे उनका उपभोग कर सकें।
      • जेन्सन रैस (थैलासोमा जानसेनी), चेकरबोर्ड रैस (हेलिचोएरेस हॉर्टुलानस) को पहले कभी भी उपकरणों का उपयोग करते हुए नहीं देखा गया है।
      • दूसरी ओर, यह उपकरणों  का उपयोग करने वाली मून रैसेज़ (थैलासोमा लूनारे) का पहला प्रलेखित उदाहरण है।
  • समुद्री अर्चिन:
    • ऐसी काँटेदार, कठोर कोशों के कारण, केवल सीमित संख्या में मछलियाँ ई. मोलारिस समुद्री अर्चिन का उपभोग कर सकती थीं।
    • हालाँकि, जेन्सन, चेकरबोर्ड और मून रैसेज़ को अर्चिन कंकालों को तोड़ने के लिये उपकरणों का उपयोग करते हुए देखा गया, जैसे कि अखरोट के कवर को तोड़ना, आदि।
    • रैसेज़ (Wrasses) में आर्चरफिश (मछली का उपयोग करने वाला उपकरण) जैसे विशेष मुख-भाग नहीं होते हैं, इसलिये वे दरार वाले समुद्री अर्चिन के उपभोग के लिये चतुराई पूर्वक व्यवहार (clever behaviour) अपनाते हैं।
      • वे सावधानीपूर्वक अर्चिन को उसके नीचे के नरम भाग तक पहुँचने के लिये घुमाते हैं, फिर अंदर के नरम भागों को खाने के लिये इसे कठोर प्रवालों पर तोड़ देते हैं।
      • रैसेज़ प्रवाल भित्तियों का उपयोग अर्चिन को पलटने और भोजन हेतु तोड़ने के लिये एक उपकरण के रूप में करते हैं।
  • निष्कर्षों का महत्त्व:
    • वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में लगभग 18 मछली प्रजातियों में निहाई जैसे उपकरणों का उपयोग देखा है, जो सभी लैब्रिडे परिवार (Labridae family) से संबंधित हैं।
      • हाल ही में खोजी गई तीन उपकरण-उपयोग करने वाली प्रजातियाँ भी एक ही परिवार से संबंधित हैं।
    • ये मछलियाँ केकड़े, क्लैम और अर्चिन जैसे अकशेरूकी जीवों तथा शिशु समुद्री कछुओं जैसे कशेरुक जीवों का शिकार करती हैं, लेकिन उनके आकार, दृष्टिकोण, शिकार से निपटने का तरीका व स्थान अलग-अलग होते हैं।

कौन-सी अन्य समुद्री प्रजातियाँ उपकरणों का उपयोग करती हैं?

  • ऑक्टोपस: ये सेफलोपोड्स अपने असाधारण रूप से समस्या-समाधान करने और उपकरणों के उपयोग के लिये जाने जाते हैं। 
    • उन्हें, बचाव के लिये नारियल के छिलकों व अन्य वस्तुओं का उपयोग करते हुए, सुरक्षा के लिये फेंके गए छिलकों को इधर-उधर ले जाते हुए और यहाँ तक कि एक्वैरियम में उपकरणों को नष्ट करते हुए तथा फिर से जोड़ते हुए देखा गया है।
  • डॉल्फिन: कुछ डॉल्फिन प्रजातियाँ समुद्र तल पर भोजन खोजते समय अपने थूथन (किसी जीव के मुँह का आगे निकला हुआ हिस्सा) की रक्षा के लिये समुद्री स्पंज का उपयोग करती हैं। 
    • यह व्यवहार, जिसे "स्पंजिंग" के रूप में जाना जाता है, यह डॉल्फिन की कुछ आबादी के लिये अद्वितीय उपकरण उपयोग का एक रूप है।
  • समुद्री ऊदबिलाव (एक अर्धजलीय जीव): ये स्तनधारी भोजन के लिये क्लैम जैसी शेलफिश के ऊपरी भाग को तोड़ने के लिये चट्टानों और अन्य कठोर वस्तुओं का उपयोग उपकरण के रूप में करने के लिये जाने जाते हैं।
    • वे आमतौर पर इसका उपयोग खोल को तोड़ने के लिये करते हैं, जिसे निहाई तकनीक के रूप में जाना जाता है।
  • मछली: प्रवाल भित्तियों में पाई जाने वाली ब्लैकस्पॉट टस्कफिश, क्लैमशेल को खोलने के लिये उपकरणों का उपयोग करती है और अनुकूलन क्षमता का प्रदर्शन करती है ठीक उसी तरह जैसे कि आर्चर फिश सतह के ऊपर शिकार को मारने के लिये पानी की बौछार का उपयोग करती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जीवों के निम्नलिखित प्रकारों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. कॉपपिपोड्
  2. साइनोबैक्टीरिया
  3. डायटम
  4. फोरैमिनिफेरा

उपर्युक्त में से कौन-से जीव महासागरों की आहार शृंखलाओं में प्राथमिक उत्पादक हैं?

(a) 1 और 2 
(b) 2 और 3
(c) 3 और 4 
(d) 1 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. जीवित जीवों के विकास के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा क्रम सही है? (2009)

(a) ऑक्टोपस - डॉल्फिन - शार्क
(b) cपैंगोलिन - कछुआ - बाज
(c) सैलामैंडर - पायथन - कंगारू
(d) मेंढक - केकड़ा - झींगा

उत्तर: (c)


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