लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कितना उचित है ‘कार्बन टैक्स’ का विचार

  • 12 Dec 2017
  • 12 min read

संदर्भ

  • यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत में आज वायु प्रदूषण सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है।
  • वायु प्रदूषण के कई भयावह परिणाम देखने को मिलते हैं, लेकिन दो उदाहरणों से इस समस्या की गंभीरता की पहचान की जा सकती है।
    ► पहला यह कि ‘प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लांसेट आयोग’ (Lancet Commission on pollution and health) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष 19 लाख लोग प्रदूषण के कारण समय से पहले काल के गाल में समा जाते हैं।
    ► भारत में बाल चिकित्सा से संबंधित एक जर्नल द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि दिल्ली जैसे प्रदूषित वातावरण में बड़े होने वाले बच्चों के फेफड़े अमेरिका में पले-बढ़े बच्चों के फेफड़ों की तुलना में 10% छोटे होते हैं।
  • वायु प्रदूषण से निपटने के लिये ‘कार्बन टैक्स की अवधारण’ को अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।

कार्बन टैक्स और वायु प्रदूषण के मध्य संबंध

क्या है कार्बन टैक्स?

  • कार्बन टैक्स प्रदूषण पर कर का एक रूप है, जिसमें कार्बन के उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण एवं उपयोग पर शुल्क लगाया जाता है।
  • सरकार कार्बन के उत्सर्जन पर प्रतिटन मूल्य निर्धारित करती है और फिर इसे बिजली, प्राकृतिक गैस या तेल पर टैक्स में परिवर्तित कर देती है।
  • क्योंकि यह टैक्स अधिक कार्बन उत्सर्जक ईंधन के उपयोग को महँगा कर देता है। अतः यह ऐसे ईंधनों के प्रयोग को हतोत्साहित करता है एवं ऊर्जा दक्षता को बढ़ाता है।

कार्बन टैक्स का आधार

  • कार्बन टैक्स, नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के आर्थिक सिद्धांत (the economic principle of negative externalities) पर आधारित है।
  • एक्सटर्नलिटीज़ (externalities) वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन से प्राप्त लागत या लाभ (costs or benefits) हैं, जबकि नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ वैसे लाभ हैं जिनके लिये भुगतान नहीं किया जाता है।
  • जब जीवाश्म ईंधन के दहन से कोई व्यक्ति या समूह लाभ कमाता है तो होने वाले उत्सर्जन का नकारात्मक प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है।
  • यही नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ है, अर्थात् उत्सर्जन के नकारात्मक प्रभाव के एवज़ में लाभ तो कमाया जा रहा है लेकिन इसके लिये कोई टैक्स नहीं दिया जा रहा है।
  • नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ का आर्थिक सिद्धांत मांग करता है कि ऐसा नहीं होना चाहिये और नेगेटिव एक्सटर्नलिटीज़ के एवज़ में भी टैक्स वसूला जाना चाहिये।

कार्बन टैक्स का विचार उचित क्यों?

  • वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहन:

► यह लोगों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के लिये प्रोत्साहित करता है।
► दरअसल, कार्बन टैक्स के कारण जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग महँगा पड़ने लगता है।
► इसका प्रभाव यह होता है कि जिससे व्यापारिक कंपनियाँ एवं उद्योग पर्यावरण अनुकूल एवं कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं।

  • co2 के उत्सर्जन में कमी:

► कार्बन टैक्स के कारण बड़ी मात्रा में CO2 का उत्सर्जन करने वाले संगठन एवं कंपनियाँ कम हो जाती हैं।
► इससे पर्यावरण में co2 की मात्रा में कमी आती है जिससे प्रदूषण का स्तर घटता है।

  • ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में कमी:

► वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की कमी के कारण ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कम होता है।
► ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव यदि कम हुआ तो प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में कमी आती है।

सरकार के राजस्व में वृद्धि

► कार्बन टैक्स के ज़रिये सरकार को अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होती है।
► सरकार बढ़े हुए राजस्व से इन आपदाओं एवं प्रदूषण से निपटने में कम राजस्व खर्च करना पड़ेगा।

कार्बन टैक्स की अवधारणा चुनौतीपूर्ण क्यों?

  • कार्बन टैक्स की राशि निर्धारित करने की चुनौती:
    ► दरअसल किसी भी प्रकार का टैक्स आरोपित करने हेतु कुछ आधारों की ज़रूरत होती है जैसे, वह कौन सी आय है जिस पर टैक्स लिया जाए या और दर से टैक्स लिया जाए।
    ► कार्बन टैक्स के सन्दर्भ में यह निर्धारित करना कठिन है कि उत्सर्जन की वह कौन सी मात्रा है जिस पर कि टैक्स आरोपित किया जाए।
    ► किस दर से कार्बन टैक्स लिया जाए यह भी निर्धारित करना काफी मुश्किल हो सकता है।
  • राजनैतिक एवं प्रशासनिक दिक्कतें:

► कार्बन टैक्स को पूर्णतः लागू करने के पक्ष में राजनीतिक सहमति बना पाना आसान नहीं हैं।
► इसे लागू करने में कई प्रशासनिक चुनौतियाँ भी है। इसका कार्यान्वयन एवं टैक्स का एकत्रण काफी महँगा हो सकता है।

  • ‘पॉल्यूशन हैवेन’ को बढ़ावा:

► यदि कार्बन टैक्स लागू किया गया तो वैकल्पिक स्वच्छ ईंधन के प्रयोग को महँगा मानते हुए बहुत सी कंपनियाँ उन देशों की और रुख करेंगी जहाँ कि कार्बन टैक्स न लगता हो।
► जिन देशों में टैक्स की चोरी सुलभ हो उन्हें ‘टैक्स हैवेन’ कहा जाता है ठीक इसी तरह कार्बन टैक्स बचाने वाले कई ‘पॉल्यूशन हैवेन’ उभर आएंगे और इससे ‘पॉल्यूशन हैवेन’ की अवधारणा को बल मिलेगा।

  • अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव

► यदि व्यापारिक प्रतिष्ठान अपने उद्योगों को उन क्षेत्रों/देशों में ले गए जहाँ कम कार्बन टैक्स न हो, तो इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
► इससे विकास अवरुद्ध तो होगा ही, साथ में बड़ी संख्या में श्रमिक अपना रोज़गार खो देंगे।
► इसे लागू करने से ऊर्जा महँगी हो जाएगी, जिससे उद्योगों की विनिर्माण लागत में बढ़ोत्तरी होगी एवं अंततः मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होगी।

हाल ही में चर्चा में क्यों?

  • दैनिक समाचार पत्र ‘द हिंदू’ में छपे एक लेख में कहा गया है कि भारत को अपनी बदलती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये बड़े स्तर पर निवेश की ज़रूरत है।
  • भारत स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और भू-तापीय ऊर्जा और जल ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है।
  • लेकिन इसके लिये आवश्यक बुनियादे ढाँचे के निर्माण हेतु निवेश की ज़रूरत है। लेख के अनुसार अगले दो दशकों में भारत को इन ज़रूरतों को पूरा करने हेतु अपनी जीडीपी का 1.5 प्रतिशत खर्च करना पड़ेगा।
  • वर्तमान समय में यदि इस क्षेत्र में किये जा रहे निवेश की बात करें तो यह सालाना जीडीपी का 0.6 प्रतिशत ही है।
  • यदि इस व्यय का कार्बन टैक्स से प्राप्त राजस्व द्वारा वित्तपोषण किया जाता है, तो राजकोषीय घाटे पर कोई प्रभाव भी नहीं पड़ेगा और यह एक राजस्व-तटस्थ नीति होगी।

आगे की राह

  • ‘कर एवं लाभांश’ नीति की ज़रूरत:

► दरअसल, कार्बन टैक्स एक ऐसा विचार है जो अमीरों के लिये कम लेकिन गरीबों के लिये अधिक चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि इससे महँगाई बढ़ेगी। लेकिन इसका समाधान है ‘कर एवं लाभांश’ (tax and dividend) की नीति।
► पश्चिम में अर्थशास्त्रियों के मध्य प्रचलित इस नीति में कहा गया है कि इस प्रकार के टैक्स से प्राप्त राशि से सरकार का खज़ाना भरने के बजाय समाज के वंचित लोगों में वितरित कर दी जानी चाहिये।

  • गरीबों को मुफ्त बिजली:

► यदि एक बार यह तय हो गया कि कार्बन टैक्स से प्राप्त राशि का वंचितों के बीच समान वितरण किया जाएगा, तो दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह वितरण हो कैसे?
► इसके लिये डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर जैसे उपाय करने के बजाय गरीबों के लिये मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई जा सकती है और सरकार इस सब्सिडी का खर्च कार्बन टैक्स से पूरा कर सकती है।

  • ऊर्जा का अधिकार अभियान से जोड़ने की ज़रूरत:

► 2014 तक, भारत की 20% से अधिक आबादी के पास बिजली नहीं पहुँचाई जा सकी थी, जबकि ऊर्जा का अधिकार यानी देश के प्रत्येक व्यक्ति तक बिजली की पहुँच की बात आज़ादी के बाद से ही जा रही है।
► कार्बन टैक्स को ऊर्जा के अधिकार से जोड़ते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं, जो इस अभियान के लिये वित्त प्रदान करने के अलावा स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच जैसी ज़रूरतों को भी पूरा करेंगे।

  • वैकल्पिक उपायों पर विचार:

► दरअसल, यह आशंका सही साबित हो सकती है कि कार्बन टैक्स लगते ही कंपनियाँ “पॉल्यूशन हैवेन” की तलाश में देश से बाहर निकल लें।
► अतः कार्बन टैक्स के अलावा अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जाना चाहिये।
► नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि इनके प्रयोग से कंपनियों पर आरोपित होने वाला वित्तीय दबाव कम किया जाए।
► यदि नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग सस्ता एवं वहनीय होगा तो लोग स्वयं इसके उपयोग हेतु प्रोत्साहित होंगे।
► चूँकि क्लाइमेट चेंज वैश्विक तौर पर जन-जीवन को प्रभावित करता है, इसलिये विभिन्न देशों को अपने नीतिगत अनुभवों एवं अनुसंधानों को साझा करना चाहिये, ताकि शमन नीति (mitigation policy) पर पर्याप्त चर्चा की जा सके।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2