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भारत में बाढ़ का कहर

  • 18 Jul 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 17/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Monsoon havoc in India’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में बाढ़ से संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग, मानसून, चक्रवात अम्फान, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र, गंगा डॉल्फिन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

मेन्स के लिये:

भारत में वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक, बाढ़ संबंधी आपदा के शमन हेतु उपाय

भारत ऐसा देश है जो हर साल बाढ़ और सूखे की दोहरी चुनौतियों का सामना करता है। मानसून का मौसम (जो वार्षिक वर्षा में लगभग 75% भाग का योगदान करता है) अत्यधिक परिवर्तनशीलता एवं अनिश्चितता की अवधि भी है। साल-दर-साल जैसे-जैसे मानसून का मौसम आता है, बाढ़ का कहर भी शुरू हो जाता है जिससे काफी तबाही होती है। वर्ष 2023 में भी जैसे-जैसे मानसून आगे बढ़ रहा है, बाढ़ से होने वाली क्षति और विनाश का वही पुराना पैटर्न सामने आ रहा है। इस समस्या की भयावहता तब स्पष्ट हो जाती है जब हम इसके चौंका देने वाले आँकड़ों पर नज़र डालते हैं: हर साल औसतन कम से कम एक बड़ी बाढ़ की घटना सामने आती है, जिसके परिणामस्वरूप जन-धन की काफी हानि होती है।

भारत में बाढ़ हेतु उत्तरदायी कारक:

  • अधिक वर्षा (Heavy Rainfall):
    • यह भारत में बाढ़ का सबसे आम कारण है। मानसून का मौसम (जो जून से सितंबर माह तक रहता है) देश के विभिन्न हिस्सों में तीव्र एवं अनियमित वर्षा का कारण बनता है।
    • कई बार, वर्षा की मात्रा मृदा की जल अवशोषण क्षमता या जल निकासी प्रणाली द्वारा अतिरिक्त जल को बहा सकने की क्षमता से अधिक हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण के लिये जुलाई 2023 में दिल्ली में 3-10 जुलाई के बीच इन आठ में से पाँच दिनों में ‘अतिरिक्त’ (excess) और ‘वृहत अतिरिक्त’ (large excess) वर्षा हुई। 9 जुलाई को 221.4 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो पूरे जुलाई माह के औसत 209.7 मिमी से भी अधिक थी।
      • इससे शहर के बड़े हिस्से में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • बर्फ का पिघलना (Snowmelt):
    • बढ़ते तापमान के कारण पर्वतों की बर्फ और ग्लेशियर पिघलने लगते हैं, जिससे नदियों और जलधाराओं में जल की मात्रा बढ़ जाती है।
    • इससे उनका जल स्तर बढ़ सकता है और निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है।
    • उदाहरण के लिये फ़रवरी 2021 में उत्तराखंड में एक हिमनद के फटने के कारण बर्फ, हिम और मलबे का स्खलन होने से व्यापक ‘फ्लैश फ्लड’ उत्पन्न हुआ।
  • चक्रवात और तूफ़ान (Cyclones and Storms):
    • ये मौसमी घटनाएँ हैं जो भारत के तटीय क्षेत्रों में तेज़ पवनों (आँधी) और भारी बारिश का कारण बन सकती हैं।
    • ये तूफ़ान महोर्मि (storm surges) की उत्पत्ति का कारण बन सकते हैं, जो निम्न वायुमंडलीय दाब और अत्यंत प्रबल पवनों (high winds) के कारण समुद्र के स्तर में अचानक वृद्धि की स्थिति है।
    • तूफ़ान महोर्मि से निचले इलाकों में जल भर सकता है और यह तटीय बाढ़ का कारण बन सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, मई 2020 में चक्रवात अम्फान (Cyclone Amphan) 185 किमी/घंटा तक की पवन गति और 5 मीटर तक के तूफ़ान महोर्मि के साथ पश्चिम बंगाल और ओडिशा तट से टकराया।
  • नदी का अतिप्रवाह (River Overflow):
    • यह भी बाढ़ का एक कारण है यह तब देखा जाता है जब किसी नदी में ऊपरी क्षेत्र से आने वाली जलधारा का अत्यधिक प्रवाह होता है या निचले क्षेत्र की धारा में गाद जमा होने से कम प्रवाह होता है।
    • नदी का अतिप्रवाह भारी वर्षा, बर्फ पिघलने, चक्रवात, बाँध या बैराज से अधिक जल छोड़ने या नदियों में अत्यधिक गाद जमा होने जैसे कारकों से हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जैसे ऊपरी राज्यों में भारी वर्षा के कारण यमुना नदी का जल स्तर काफी अधिक हो गया। दिल्ली में अवस्थित बैराज इस अतिप्रवाह को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में असमर्थ थे, जिससे नदी के पास के कई क्षेत्रों में बाढ़ आ गई।

भारत में बाढ़ के प्रभाव: 

  • जान की हानि:
    • बाढ़ की स्थिति में लोगों के डूबने, घायल होने, संक्रमण के प्रसार या बिजली का करंट लगने जैसे कई कारणों से मौतें हो सकती हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) के अनुसार भारत में बाढ़ सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में से एक है।
    • हर साल बाढ़ के कारण औसतन 1,600 लोगों की जान चली जाती है।
    • वर्ष 2023 की अभी आधी अवधि में ही उत्तर भारत में बाढ़ के कारण कम से कम 60 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि वास्तविक आँकड़े इससे अधिक भी हो सकते हैं।
  • संपत्ति की क्षति:
    • बाढ़ से घरों, इमारतों, सड़कों, पुलों, रेलवे, बिजली लाइनों, संचार नेटवर्क और अन्य अवसंरचना को क्षति पहुँच सकती है।
    • बाढ़ फसलों, पशुधन, वाहनों और अन्य संपत्तियों को भी क्षति पहुँचा सकती है या अपने साथ बहा ले जा सकती है।
    • NDMA के अनुसार भारत में बाढ़ प्रतिवर्ष लगभग 75 लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को प्रभावित करती है और फसलों, घरों एवं सार्वजनिक उपयोगिताओं की क्षति के रूप में 1,805 करोड़ रुपए मूल्य की हानि का कारण बनती है।
    • वर्ष 2023 में दिल्ली में आई बाढ़ ने लाल किला और सर्वोच्च न्यायालय जैसे कई स्थलों को व्यापक नुकसान पहुँचाया।
  • लोगों का विस्थापन:
    • बाढ़ लोगों को अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने के लिये विवश कर सकती है। इससे उनके सामान्य जीवन और आजीविका को बाधा पहुँच सकती है।
    • बाढ़ खाद्य, जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की उपलब्धता को प्रभावित करके मानवीय संकट भी उत्पन्न कर सकती है।
    • आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (Internal Displacement Monitoring Centre- IDMC) के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत में बाढ़ से लगभग 5.4 मिलियन लोग विस्थापित हुए।
    • वर्ष 2023 में बाढ़ ने उत्तर भारत में (विशेषकर हिमाचल प्रदेश और पंजाब में) हज़ारों लोगों को विस्थापित किया।
  • पर्यावरणीय क्षरण:
    • मृदा अपरदन, वनस्पतियों एवं जीवों के प्राकृतिक पर्यावासों को बदलने, जल स्रोतों को प्रदूषित करने और भूस्खलन एवं महामारी के खतरे को बढ़ाने के रूप में बाढ़, पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
    • बाढ़, नदियों और आर्द्रभूमियों के जल विज्ञान एवं जैव विविधता को बदलकर उनके पारिस्थितिकी संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये, बाढ़ संकटग्रस्त गंगा डॉल्फिन और यमुना नदी के घड़ियालों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है।
  • आर्थिक हानि:
    • बाढ़ कृषि उत्पादन को कम कर, औद्योगिक उत्पादन को बाधित कर, व्यापार एवं वाणिज्य को प्रभावित कर और राहत एवं पुनर्वास पर व्यय को बढ़ाकर भारत की आर्थिक वृद्धि एवं विकास को प्रभावित कर सकती है।
    • बाढ़ सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक आकर्षण स्थलों को क्षति पहुँचाकर पर्यटन क्षेत्र को भी प्रभावित कर सकती है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, बाढ़ से भारत को प्रतिवर्ष लगभग 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रत्यक्ष हानि होती है।

भारत में बाढ़ प्रबंधन हेतु उपलब्ध समाधान:

संरचनात्मक उपाय (Structural Measures)

  • भंडारण जलाशय (Storage Reservoirs):
    • ये कृत्रिम संरचनाएँ हैं जो उच्च प्रवाह अवधि के दौरान जल को संग्रहीत करती हैं और निम्न प्रवाह अवधि के दौरान इसे छोड़ती हैं।
    • ये नीचे की ओर बहते जल की मात्रा और उसके वेग को कम कर बाढ़ को नियंत्रित कर सकते हैं।
    • ये सिंचाई, बिजली उत्पादन, जल आपूर्ति और अन्य उद्देश्यों के लिये जल का संरक्षण भी कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, सतलुज नदी पर बना भाखड़ा नांगल बाँध लगभग 9.34 BCM (Billion Cubic Meters) की भंडारण क्षमता रखता है और यह बाढ़ नियंत्रण के साथ-साथ बिजली उत्पादन एवं सिंचाई में मदद करता है।
  • तटबंध (Embankments):
    • तटबंध ऐसी उभरी हुई संरचनाएँ हैं जो जल के प्रवाह को एक चैनल के भीतर या किनारे तक सीमित रखती हैं।
    • वे नदी की वहन क्षमता बढ़ाकर या अतिरिक्त जल को अन्य चैनलों की ओर मोड़कर निकटवर्ती क्षेत्रों की बाढ़ से रक्षा कर सकते हैं।
    • वे नदी के किनारे सड़कें और मनोरंजक सुविधाएँ भी प्रदान कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, बिहार में कोसी तटबंध परियोजना का उद्देश्य कोसी नदी के दोनों किनारों पर तटबंध का निर्माण कर बाढ़ को रोकना है।
  • डायवर्जन बाँध (Diversions Dam):
    • ये ऐसी संरचनाएँ हैं जो जल के एक अंश को या पूरे प्रवाह को एक चैनल से दूसरे चैनल की ओर मोड़ देती हैं।
    • वे अतिरिक्त जल को कम संवेदनशील क्षेत्रों या भंडारण जलाशयों में स्थानांतरित करके बाढ़ की तीव्रता को कम कर सकते हैं।
    • वे अन्य क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा या पेयजल भी उपलब्ध करा सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, इंदिरा गांधी नहर परियोजना सतलुज और ब्यास नदियों के जल को राजस्थान में थार मरुस्थल की ओर सिंचाई सुविधा और पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मोड़ती है।

गैर-संरचनात्मक उपाय (Non-structural Measures):

  • बाढ़ का पूर्वानुमान और चेतावनी (Flood Forecasting and Warning):
    • यह एक ऐसी प्रणाली है जो मौसम संबंधी और जल विज्ञान संबंधी आँकड़ों के आधार पर आने वाली बाढ़ का पूर्व अनुमान प्रदान करती है।
    • इससे लोगों और चल संपत्तियों को समय पर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने में मदद मिलती है।
    • यह जलाशय संचालन और बाढ़ राहत समन्वय में भी मदद करती है।
    • उदाहरण के लिये, केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC) देश भर में बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशनों का एक नेटवर्क संचालित करता है, जो बाढ़ की स्थिति पर दैनिक बुलेटिन एवं अलर्ट जारी करते हैं।
  • बाढ़ मैदान का क्षेत्रीकरण (Flood Plain Zoning):
    • यह एक विनियामक उपाय है जो बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में उनकी संवेदनशीलता और उपयुक्तता के आधार पर भूमि के उपयोग को प्रतिबंधित या नियंत्रित करता है।
    • इसका उद्देश्य उच्च जोखिमपूर्ण क्षेत्रों में विकास गतिविधियों को हतोत्साहित या प्रतिबंधित कर मानव बस्तियों और आधारभूत संरचना के जोखिम एवं क्षति को कम करना है।
    • यह आर्द्रभूमि और वनों जैसे प्राकृतिक ‘फ्लड बफर’ के संरक्षण एवं पुनर्बहाली को भी बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिये, NDMA ने भारत में ‘फ्लड प्लेन ज़ोनिंग’ के लिये दिशानिर्देश जारी किये हैं, जहाँ भूमि को चार क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है: निषिद्ध (prohibited), नियंत्रित (restricted), विनियमित (regulated) और मुक्त (free)।

  • बाढ़ बीमा (Flood Insurance):
    • यह एक वित्तीय उपाय है जो किसी बीमा कंपनी को प्रीमियम का भुगतान करने वाले व्यक्तियों या समूहों को बाढ़ से हुए नुकसान के लिये मुआवजा प्रदान करने का दायित्व देता है।
    • इसका उद्देश्य सरकार पर राहत एवं पुनर्वास के बोझ को कम करना और बीमित पक्षों द्वारा जोखिम शमनकारी उपायों के प्रयोग को प्रोत्साहित करना है।
    • यह बाढ़ जोखिम और क्षति मूल्यांकन का एक डेटाबेस सृजित करने में भी मदद करता है। उदाहरण के लिये, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को कवर करती है।
  • बाढ़ संबंधी जागरूकता और शिक्षा (Flood Awareness and Education):
    • यह एक सामाजिक उपाय है जिसमें समुदायों, अधिकारियों, मीडिया, गैर-सरकारी संगठनों जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच बाढ़ के बारे में जागरूकता पैदा करना और ज्ञान प्रदान करना शामिल है।
    • इसका उद्देश्य बाढ़ के खतरों, जोखिमों, शमनकारी उपायों, पूर्व चेतावनी प्रणालियों, निकासी मार्गों, आपातकालीन संपर्कों आदि के बारे में जानकारी प्रदान करके लोगों की तैयारी एवं प्रतिक्रिया क्षमता को बढ़ाना है।
    • यह लोगों के बीच बचाव और प्रत्यास्थता की एक संस्कृति के निर्माण में भी मदद करती है।
    • उदाहरण के लिये, NDMA भारत में बाढ़ प्रबंधन पर विभिन्न जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।

आगे की राह:

  • बाढ़ प्रबंधन के लिये संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपायों के पूरे समूह के साथ ही ग्रे, ब्लू और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के एक उपयुक्त मिश्रण पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यता है, जहाँ बाढ़ के प्रवाह को बाद के उपयोग और जल सुरक्षा के लिये संरक्षित किये जा सकने वाले संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
  • पर्यावरण का ध्यान रखते हुए बाढ़ प्रबंधन के लिये नदी बेसिन दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
  • यह विवेकपूर्ण होगा कि हम अब देश में जल-अवसंरचना को उन्नत करें ताकि बढ़ी हुई परिवर्तनशीलता को प्रबंधित करने के साधन समय पर उपलब्ध हों।

अभ्यास प्रश्न: भारत में बाढ़ प्रबंधन में संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपायों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में जल संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों की चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ऐसा संदेह है कि ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में आई बाढ़ का कारण ला नीना था। ला नीना, अल नीनो से किस प्रकार भिन्न है? (2011)

  1. ला नीना में विषुवत रेखीय हिंद महासागर का तापमान आमतौर पर कम होता है जबकि अल नीनो में विषुवत रेखीय प्रशांत महासागर का तापमान असामान्य रूप से अधिक हो जाता है।
  2. अल नीनो का भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है लेकिन ला नीना का मानसूनी जलवायु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (D)


मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

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