इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

संवैधानिक नैतिकता और व्यक्तिगत संबंध

  • 17 Jul 2023
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 14/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘An unacceptable verdict in the constitutional sense’’ लेख पर आधारित है। इसमें अंतर-धार्मिक लिव-इन रिलेशनशिप पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के दोषों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

LGBTQ+ के अधिकार, नाज़ फाउंडेशन बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार (2009), मौलिक अधिकार

मेन्स के लिये:

संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा और महत्त्व

संवैधानिक नैतिकता (Constitutional morality) एक ऐसी अवधारणा है जो व्यक्तिगत पसंद और संबंधों के मामलों में व्यक्तिगत स्वायत्तता, स्वतंत्रता, समानता, गरिमा, निजता एवं गैर-भेदभाव जैसे संवैधानिक लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के पालन को संदर्भित करती है।

किरण रावत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में इलाहबाद उच्च न्यायालय का निर्णय संवैधानिक नैतिकता के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ उच्च न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक अंतर-धार्मिक युगल को इस आधार पर पुलिस उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया कि उनका संबंध अनैतिक, अवैध और निजी कानूनों के विरुद्ध है।

संविधान के सिद्धांतों द्वारा शासित लोकतांत्रिक समाज के कार्यकरण को आकार और दिशा देने में संवैधानिक नैतिकता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जबकि यह व्याख्या का विषय है और इसकी अपनी चुनौतियाँ हैं। यह मूल अधिकारों की रक्षा करने, न्याय सुनिश्चित करने और शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिये एक मार्गदर्शक ढाँचे के रूप में कार्य करता है।

संवैधानिक नैतिकता का महत्त्व: 

  • व्यक्तिगत स्वायत्तता और निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा:
    • इससे अंतरंग पसंदों और संबंधों को मानव व्यक्तित्व के अंतर्निहित एवं अविभाज्य पहलुओं के रूप में मान्यता मिलती है।
    • इससे सार्वजनिक या सामाजिक नैतिकता के आधार पर विनियमन करने या दंड देने की राज्य की शक्ति सीमित होती है।
  • संवैधानिक मूल्यों का सम्मान:
    • इससे धर्मनिरपेक्षता, बहुलवाद (pluralism) और विविधता की रक्षा होती है।
    • इससे उन व्यक्तियों पर धार्मिक या सांस्कृतिक मानदंडों को थोपे जाने को निषिद्ध किया जाता है जो स्वेच्छा से उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं।
  • बहुलवाद और विविधता को बढ़ावा देना:
    • इससे विभिन्न समूहों और समुदायों के बीच सहिष्णुता, सम्मान और संवाद की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
    • यह व्यक्तियों को बिना किसी भय या दबाव के अपनी पहचान और प्राथमिकताओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में सक्षम बनाने में महत्त्वपूर्ण है।

संवैधानिक नैतिकता की रक्षा करने वाले प्रमुख ऐतिहासिक निर्णय:

  • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006):
    • अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक युग्लों को उत्पीड़न एवं हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
  • एस. ख़ुशबू बनाम कन्नियाम्माल और अन्य (2010):
    • विवाह के बाहर सहमत वयस्कों के बीच यौन संबंधों को वैध और निजता के अधिकार के अंतर्गत घोषित किया गया।
  • नाज़ फाउंडेशन बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार (2009):
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को मूल अधिकारों का उल्लंघन घोषित करते हुए वयस्कों के बीच सहमत समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।
  • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018):
    • व्यभिचार (adultery) को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया और इसे समानता, गरिमा, निजता एवं स्वायत्तता के अधिकारों का उल्लंघन घोषित किया गया।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018):
    • इसमें LGBTQ+ व्यक्तियों के अपनी यौन उन्मुखता और पहचान को गरिमा के साथ व्यक्त कर सकने के अधिकारों की पुष्टि की गई।
  • शफीन जहां बनाम अशोकन के.एम. (2018):
    • इस निर्णय में धर्म या जाति की परवाह किये बिना अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की पुष्टि की गई और हिंदू-मुस्लिम विवाह के इस मामले को रद्द करने के फ़ैसले को न्यायालय ने निरस्त कर दिया।
  • शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (2018):
    • अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक युगलों की ‘ऑनर किलिंग’ और उनके विरुद्ध हिंसा की निंदा की गई तथा इस पर रोक और उनकी सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए।

संवैधानिक नैतिकता से संबद्ध चुनौतियाँ: 

  • स्पष्ट परिभाषा का अभाव:
    • संवैधानिक नैतिकता की कोई स्पष्ट परिभाषा मौजूद नहीं है, जिससे व्यक्तिगत धारणाओं के आधार पर भिन्न-भिन्न व्याख्याओं की स्थिति बनती है।
  • न्यायिक सर्वोच्चता को बढ़ावा:
    • संवैधानिक नैतिकता न्यायिक सर्वोच्चता (judicial supremacy) को बढ़ावा देती है, जिसके परिणामस्वरूप न्यायपालिका, विधायिका के कार्यकलाप में हस्तक्षेप कर सकती है।
    • यह हस्तक्षेप शक्तियों के पृथक्करण (separation of powers) के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
  • लोक-प्रचलित नैतिकता और धार्मिक मान्यताओं के साथ संघर्ष:
    • संवैधानिक नैतिकता कभी-कभी लोक-प्रचलित नैतिकता (popular morality) या धार्मिक मान्यताओं (religious beliefs) से टकराव की स्थिति उत्पन्न कर सकती है।
    • इससे सामाजिक अशांति और प्रतिरोध की स्थिति बन सकती है।
    • समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने जैसे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर समाज के कुछ वर्गों द्वारा विरोध को ऐसे संघर्षों के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।
  • राजनीतिक विचारों और निजी पूर्वाग्रहों का प्रभाव:
    • संवैधानिक नैतिकता राजनीतिक विचारों या निजी पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो सकती है।
    • ये प्रभाव संवैधानिक नैतिकता की निष्पक्षता एवं वैधता को कमज़ोर कर सकते हैं।

संवैधानिक नैतिकता के लिये आगे की राह:

  • स्पष्ट परिभाषा और समझ:
    • व्याख्या और अनुप्रयोग के लिये ठोस आधार प्रदान करते हुए संवैधानिक नैतिकता की स्पष्ट एवं व्यापक परिभाषा स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • जन जागरूकता और शिक्षा:
    • संवैधानिक नैतिकता के संबंध में सार्वजनिक जागरूकता एवं शिक्षा को बढ़ावा देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • इसमें नागरिक शिक्षा को संवृद्ध करना, सार्वजनिक विमर्श आयोजित करना और इसके सिद्धांतों की गहरी समझ को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न हितधारकों के साथ संलग्न होना शामिल है।
  • न्यायिक संयम और शक्तियों के पृथक्करण का सम्मान:
    • न्यायिक सर्वोच्चता से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिये न्यायिक संयम (Judicial Restraint) और शक्तियों के पृथक्करण के सम्मान पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • न्यायपालिका को विधायी मामलों में हस्तक्षेप करने में सावधानी बरतनी चाहिये और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने एवं सरकार के अन्य अंगों की भूमिकाओं का सम्मान करने के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिये।
  • विकासशील और अनुकूल दृष्टिकोण:
    • संवैधानिक नैतिकता को विकसित हो रहे सामाजिक मानदंडों, मूल्यों एवं चुनौतियों के प्रति लचीला और अनुकूल होना चाहिये।
    • संविधान की व्याख्या के लिये उत्तरदायी न्यायालयों और अन्य संस्थानों को एक गतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिये जो समसामयिक मुद्दों और प्रगतियों से प्रेरित हो।

अभ्यास प्रश्न: संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और एक लोकतांत्रिक समाज में इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये इन्हें कैसे संबोधित किया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न: 'संवैधानिक नैतिकता' शब्द का क्या अर्थ है? संवैधानिक नैतिकता को किस प्रकार बनाए रखा जा सकता है? (2019)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2