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भारतीय राजनीति

भारत में अप्रूवल वोटिंग का दायरा

  • 19 Jul 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 18/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Many of the Above’’ लेख पर आधारित है। इसमें अप्रूवल वोटिंग सिस्टम और इससे जुड़ी चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र, NOTA, संसद, फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट

मेन्स के लिये:

अप्रूवल वोटिंग से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ

भारत एक विविध और बहुदलीय लोकतंत्र है, जहाँ 600 से अधिक राजनीतिक दल आम चुनाव में भाग लेते हैं और लगभग तीन दर्जन दलों का कम से कम एक सदस्य संसद में होता है। 

फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (First-Past-The-Post- FPTP) पद्धति भारत की अनूठी राजनीतिक विविधता के साथ अधिक संगत नहीं है, क्योंकि यह कई दलों के बीच मतों के बँटवारे को बढ़ावा देती है और विभिन्न दलों के बीच अवसरवादी एवं अप्राकृतिक गठबंधन के लिये प्रोत्साहन पैदा करती है। 

दूसरी ओर अप्रूवल वोटिंग (Approval voting) मतदाता विखंडन को कम कर सकती है और वैचारिक राजनीति को प्रोत्साहित कर सकती है, क्योंकि यह मतदाताओं को अपना मत बर्बाद करने या सबसे कम पसंदीदा विकल्प की मदद करने के भय के बिना विभिन्न दलों के लिये अपना समर्थन व्यक्त करने की अनुमति देती है। यह चुनाव के बाद होने वाले दलबदल और खरीद-फरोख्त (horse-trading/political vote trading) पर भी रोक लगा सकती है, क्योंकि यह दलों के बीच चुनाव-पूर्व गठबंधन और सीट बँटवारे की आवश्यकता को कम कर देती है। 

‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली:

  • परिचय: 
    • यह एक चुनावी प्रणाली है जिसमें मतदाता एक ही उम्मीदवार को मत दे सकते हैं और सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार चुनाव में विजयी घोषित किया जाता है। 
      • इसे साधारण बहुमत प्रणाली (simple majority system) या बहुलवादी प्रणाली (plurality system) के रूप में भी जाना जाता है। 
    • यह सबसे सरल और सबसे पुरानी चुनावी प्रणालियों में से एक है जो यूके, यूएसए, कनाडा और भारत जैसे देशों में प्रचलित है। 
  • फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली की विशेषताएँ: 
    • मतदाताओं को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा नामांकित या निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की एक सूची प्रस्तुत की जाती है। 
    • मतदाता अपने मतपत्र पर निशान लगाने या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर बटन दबाने के माध्यम से अपनी पसंद के उम्मीदवार को चुनते हैं। 
    • किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है। 
    • विजेता को मतों का बहुमत (50% से अधिक) प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि केवल मतों की बहुलता (सबसे अधिक मत) प्राप्त करनी होती है। 
  • वैकल्पिक चुनावी प्रणालियाँ: 
    • आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation- PR) प्रणालियाँ: 
      • ये ऐसी प्रणालियाँ हैं जो राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों को लोकप्रिय मत की उनकी हिस्सेदारी के अनुसार सीटें आवंटित करती हैं। 
    • रैंकिंग वोटिंग प्रणालियाँ (Ranked Voting Systems/ Ranked-choice Voting Systems): 
      • ये ऐसी प्रणालियाँ हैं जो मतदाताओं को किसी एक उम्मीदवार को चुनने के बजाय उम्मीदवारों को अपनी पसंद के क्रम में रैंक करने की अनुमति देती हैं। 
    • स्कोर वोटिंग प्रणालियाँ (Score Voting Systems): 
      • ये ऐसी प्रणालियाँ हैं जो मतदाताओं को किसी एक उम्मीदवार को चुनने या उनकी रैंकिंग करने के बजाय संख्यात्मक पैमाने पर उम्मीदवारों की स्कोरिंग करने की अनुमति देती हैं। 

अप्रूवल वोटिंग (Approval Voting):

  • अप्रूवल वोटिंग एक मतदान पद्धति है जो मतदाताओं को विकल्पों की सूची से जितने चाहें उतने उम्मीदवारों या दलों को चुनने की अनुमति देती है। 
    • इसमें विजेता वह उम्मीदवार या दल होता है जिसे मतदाताओं से सबसे अधिक अनुमोदन (approvals) या टिक मार्क प्राप्त होते हैं। 
  • अप्रूवल वोटिंग, FPTP पद्धति से भिन्न है, जहाँ मतदाताओं को केवल एक विकल्प चुनने के लिये विवश किया जाता है और सबसे अधिक मत पाने वाले विकल्प को विजयी घोषित किया जाता है, भले ही उसे मतों का बहुमत प्राप्त न हुआ हो। 
  • अप्रूवल वोटिंग, रैंकिंग वोटिंग से भी भिन्न है, जहाँ मतदाताओं द्वारा अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवारों या दलों की रैंकिंग करने की आवश्यकता होती है और न्यूनतम पसंद किये जाते विकल्पों को तब तक हटाते जाने की प्रक्रिया ज़ारी रहती है जब तक कि एक विकल्प बहुमत न प्राप्त कर ले। 
  • अप्रूवल वोटिंग एक सुशोधित मतदान पद्धति है जिसका उपयोग विभिन्न विश्वसनीय विकल्पों वाले चुनावों में किया जाता है जैसे कि संयुक्त राष्ट्र में, अमेरिका में इंटरनल पार्टी प्राइमरी में और कभी-कभी पोप के चुनाव में। 

‘MOTA’ अप्रूवल वोटिंग को लागू करने का एक तरीका कैसे प्रदान करता है? 

  • भारत में अप्रूवल वोटिंग को मतपत्र पर MOTA (Many Of The Above) नामक एक नया विकल्प जोड़कर लागू किया जा सकता है, जो एक प्रकार से NOTA (None Of The Above) जैसा ही होगा, जो हमारे पास पहले से ही प्रत्येक मतपत्र पर मौजूद होता है। 
  • MOTA मतदाताओं को केवल एक उम्मीदवार या दल को चुनने के लिये विवश करने के बजाय विकल्पों की सूची में से जितने चाहें उतने उम्मीदवारों या दलों को चुनने की अनुमति देगा। 
  • MOTA के प्रयोग के लिये मौजूदा चुनावी प्रणाली या मशीनरी में किसी बड़े बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि इसमें केवल मतपत्र पर एक नया विकल्प जोड़ना और प्रत्येक विकल्प के लिये अनुमोदन की संख्या की गणना करना शामिल होगा। 
  • MOTA किसी भी संवैधानिक या विधिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करेगा, क्योंकि यह मतदान के अधिकार या संसद में लोगों के प्रतिनिधित्व को किसी प्रकार प्रभावित नहीं करेगा। 

भारत के लिये अप्रूवल वोटिंग के लाभ:

  • कुल मतदान में वृद्धि (Increase in Voter Turnout): 
    • इससे कुल मतदान और मतदाता भागीदारी बढ़ सकती है, क्योंकि मतदाताओं के पास अपनी पसंद व्यक्त करने के लिये अधिक विकल्प और स्वतंत्रता होगी। 
  • ध्रुवीकरण में कमी (Reduce Polarization): 
    • यह ध्रुवीकरण और अतिवाद (extremism) को कम कर सकता है, क्योंकि मतदाता चरम सीमाओं के बीच चयन करने के बजाय अधिक उदार और समावेशी विकल्पों पर विचार करने के लिये प्रोत्साहित होंगे। 
  • व्यापक प्रतिनिधित्व (Wider Representation): 
    • यह प्रतिनिधित्व और जवाबदेही की समृद्धि कर सकता है, क्योंकि उम्मीदवारों और दलों को संकीर्ण हितों या अपने निष्ठावान आधारों को संतुष्ट करने के बजाय व्यापक और अधिक विविध मतदाताओं से अपील करनी होगी। 
  • स्थिरता सुनिश्चित करना (Ensure Stability): 
    • यह स्थिरता और शासन को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि यह उन गठबंधनों पर निर्भरता को कम करेगा जो प्रायः अस्थिर होते हैं और भ्रष्टाचार या ‘ब्लैकमेलिंग’ की संभावना रखते हैं। 

भारत के लिये अप्रूवल वोटिंग से संबंधित चुनौतियाँ:  

  • जानकारी और समझ का अभाव (Lack of Familiarity and Understanding): 
    • भारतीय राजनीति में अप्रूवल वोटिंग एक अपेक्षाकृत नई अवधारणा है और कई मतदाता इसकी कार्यप्रणाली से अपरिचित हो सकते हैं। 
    • अप्रूवल वोटिंग के कार्यकरण के तरीके और इसके लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा मतदाताओं को शिक्षित करना इसकी स्वीकृति और प्रभावी कार्यान्वयन के लिये आवश्यक होगा। 
  • स्थापित दलों की ओर से विरोध (Resistance from Established Parties): 
    • अप्रूवल वोटिंग को स्थापित राजनीतिक दलों की ओर से विरोध का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से उनकी ओर से जो मौजूदा FPTP प्रणाली से लाभान्वित होते हैं या कुछ क्षेत्रों में अभेद्य प्रभाव रखते हैं। 
    • राजनीतिक दल ऐसी प्रणाली को अपनाने के प्रति अनिच्छुक हो सकते हैं जो उनके प्रभुत्व को चुनौती दे या मौजूदा चुनावी गतिशीलता को बाधित करे। 
  • खंडित परिणामों की संभावना (Potential for Fragmented Results): 
    • अप्रूवल वोटिंग का उद्देश्य विखंडन को कम करना है लेकिन ऐसी संभावना है कि इसके बाद भी खंडित परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, विशेष रूप से यदि उम्मीदवारों की एक बड़ी संख्या को उच्च अप्रूवल रेटिंग प्राप्त हो। 
      • इसके परिणामस्वरूप स्पष्ट विजेता का निर्धारण करने के लिये चुनाव के बाद गठबंधन की आवश्यकता पड़ सकती है। 
  • संवैधानिक और विधिक विचार (Constitutional and Legal Considerations): 
    • अप्रूवल वोटिंग को लागू करने के लिये मौजूदा निर्वाचन कानूनों में संवैधानिक या विधिक संशोधन की आवश्यकता पड़ सकती है। 
    • कानूनी बाधाओं का समाधान करना और संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करना ऐसी चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है जिन्हें सावधानीपूर्वक हल करने की आवश्यकता होगी। 

अप्रूवल वोटिंग को लागू करने और इसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपाय: 

  • जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देना: 
    • मतदाताओं को अप्रूवल वोटिंग की अवधारणा और लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाना। 
    • मतदाता विखंडन को कम करने में अप्रूवल वोटिंग के लाभों के बारे में सूचना प्रसार हेतु नागरिक समाज संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया आउटलेट्स के बीच सहकार्यता का निर्माण। 
  • पायलट कार्यक्रम और केस अध्ययन: 
    • भारतीय संदर्भ में अप्रूवल वोटिंग की व्यवहार्यता एवं प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिये चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों या भूभागों में पायलट कार्यक्रम लागू करना। 
    • अप्रूवल वोटिंग के परिणामों पर केस स्टडी करने एवं अनुभवजन्य डेटा का संग्रह करने से मत विभाजन को कम करने एवं मतदाता भागीदारी को प्रोत्साहित करने की इसकी क्षमता का पता लगाना। 
  • राजनीतिक दलों को संलग्न करना: 
    • राजनीतिक दलों को वैकल्पिक चुनावी पद्धति के रूप में अप्रूवल वोटिंग को अपनाने पर संवाद और चर्चा करने के लिये प्रोत्साहित करना। 
    • वैचारिक राजनीति को बढ़ावा देने और अवसरवादी गठबंधनों पर निर्भरता को कम करने में अप्रूवल वोटिंग के लाभों को उजागर करना। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विशेषज्ञ परामर्श: 
    • उन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और चुनावी विशेषज्ञों के साथ सहयोग का निर्माण करना जिनके पास अप्रूवल वोटिंग या इसी तरह के अन्य वैकल्पिक मतदान प्रणालियों का अनुभव है। 
    • अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिये विशेषज्ञों के साथ परामर्श एवं कार्यशालाएँ आयोजित करना, वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना और भारतीय चुनावों की अनूठी विशेषताओं के अनुरूप अप्रूवल वोटिंग पद्धतियों को अपनाना। 
  • सार्वजनिक विमर्श और चर्चा: 
    • चुनाव सुधारों की आवश्यकता और अप्रूवल वोटिंग के संभावित लाभों पर सार्वजनिक विमर्श एवं चर्चा को प्रोत्साहित करना। 
    • विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, राजनेताओं और नागरिकों को इस विषय पर अपने विचार एवं राय व्यक्त करने के लिये मंच प्रदान करने के द्वारा अप्रूवल वोटिंग की व्यापक समझ और स्वीकृति को बढ़ावा देना। 

अभ्यास प्रश्न: भारत की राजनीतिक विविधता और लोकतंत्र के संदर्भ में अप्रूवल वोटिंग के गुण-दोषों का मूल्यांकन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का चुनाव आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है। 
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है। 
  3. चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022)

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