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भूगोल

सौर ऊर्जा

  • 07 May 2021
  • 15 min read

सूर्य से प्राप्त होने वाले विकिरण और विभिन्न उपलब्ध तकनीक जैसे फोटोवोल्टिक पैनल, सौर हीटर आदि का उपयोग विद्युत और थर्मल ऊर्जा के रूप में किया जाता है।

पृष्ठभूमि: 

  • भारत उष्णकटिबंधीय मेखला (Tropical Belt) में स्थिति है जहाँ वर्ष के 300 दिन सौर विकिरण की उच्च मात्रा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इस मेखला में 2300-3,000 घंटे की धूप/सूर्य प्रकाश की मात्रा 5,000 ट्रिलियन किलोवाट घंटा (kWh) के बराबर है।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority) के अनुसार, भारत की वर्तमान स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता 26025.97 मेगावाट है, जो कि कुल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का 34% है (अर्थात फरवरी 2019 तक 75055.92 मेगावाट)।
  • भारत को अपनी ऊर्जा माँग को पूरा करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, सौर ऊर्जा, ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर बहस विश्व  को जीवाश्म आधारित ऊर्जा से स्वच्छ और हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने हेतु मज़बूर कर रही है।
  • प्रदूषण मुक्त प्रकृति, निरंतर आपूर्ति और वैश्विक वितरण के साथ, सौर ऊर्जा एक अत्यधिक आकर्षक ऊर्जा संसाधन है।
  • भारत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (India's Intended Nationally Determined Contributions- INDCs) के तहत वर्ष 2022 तक 175 GW अक्षय ऊर्जा में 100 GW सौर ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्ध है।

सौर ऊर्जा की आवश्यकता 

ऊर्जा सुरक्षा-

  • भारत की ऊर्जा आवश्यकता काफी हद तक ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोत से पूरी होती है।
  • जीवाश्म संसाधनों की कमी अक्षय ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता पर बल देती है। 
  • सौर ऊर्जा की प्रचुरता भारत की स्वच्छ ऊर्जा की माँग को पूरा कर सकती है।
  • भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने हेतु आयात पर निर्भर है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में भारी व्यय और अनिश्चितता उत्पन्न होती है।

आर्थिक विकास-

  • विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत को औद्योगिक विकास और कृषि हेतु बिजली की आवश्यकता है
  • भारत को न्यूनतम लागत के साथ विद्युत उत्पादन में आत्मनिर्भरता होने की  आवश्यकता है, विद्युत की नियमित आपूर्ति का आश्वासन उद्योगों और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा।

सामाजिक विकास-

  • बिजली की कटौती और अनुपलब्धता की समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में, मानव विकास में रुकावट उत्पन्न करती है।
  • अधिकांश ऊर्जा ज़रूरतों को ग्रामीण क्षेत्रों में रियायती दर पर मिलने वाले मिट्टी के तेल (Kerosene Oil) से  पूरा किया जाता है जिससे सरकारी खजाने को नुकसान होता है।

पर्यावरणीय चिंता- 

  • भारत की ऊर्जा माँग का एक बड़ा हिस्सा तापीय ऊर्जा द्वारा (Thermal Energy) से पूरा किया जाता है जो काफी हद तक जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) पर निर्भर है।
    • इससे पर्यावरण प्रदूषण भी होता है।
  • सौर ऊर्जा, ऊर्जा संसाधन का स्वच्छ रूप है, जो एक विकल्प हो सकता है।

प्रौद्योगिकी:

  • सोलर फोटोवोल्टिक- सोलर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic- SPV) सेल्स  सौर विकिरण (सूर्य के प्रकाश) को विद्युत में परिवर्तित करती हैं। एक सोलर सेल, सिलिकॉन (Silicon) या अन्य सामग्रियों से बना एक अर्द्धचालक उपकरण (Semiconducting Device) है, जो सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर विद्युत ऊर्जा  उत्पन्न करता है।
  • सोलर थर्मल- सोलर थर्मल पावर सिस्टम (Solar Thermal Power systems), जिसे कंसंट्रेटिंग सोलर पावर सिस्टम (Concentrating Solar Power systems) के रूप में भी जाना जाता है, विद्युत उत्पादन करने हेतु थर्मल रूट का उपयोग कर  उच्च तापमान ऊर्जा स्रोत के रूप में संकेंद्रित सौर विकिरण (Concentrated Solar Radiation) का उपयोग किया जाता है।

प्रकार: 

ग्रिड में विद्युत आपूर्ति हेतु सौर ऊर्जा- 

  • विभिन्न ग्रिडों को आपस में जोड़ने हेतु प्रयोग की जाने वाली सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर फोटोवोल्टिक सेल्स और संकेंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्रों से प्राप्त किया जाता है।

ऑफ-ग्रिड के समाधान हेतु सौर ऊर्जा-

  • ग्रिड तक आसान पहुँच वाले क्षेत्रों में ग्रिड कनेक्टिविटी का उपयोग किया जाता  है। जिन स्थानों पर विद्युत की उपलब्धता बहुत कम या बहुत महंगी है, ऐसे क्षेत्रों में आने वाली पीढ़ियों के पास कोई और विकल्प उपलब्ध नहीं है।
    • ऐसे स्थान जहाँ विद्युत की आसान पहुँच का अभाव है, छोटे स्थानीय जनरेटर की एक विविध शृंखला में बैटरी या जीवाश्म ईंधन (डीजल, गैस) और स्थानीय रूप से उपलब्ध अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों (सोलर फोटोवोल्टिक, वायु, बायोमास आदि) का उपयोग कर विद्युत उत्पादन किया जाता है जिसे ऑफ-ग्रिड विद्युत के रूप में जाना जाता है।

लाभ: 

  • सौर ऊर्जा की उपलब्धता पूरे दिन बनी रहती है विशेष रूप से उस समय भी जब विद्युत ऊर्जा की मांग सर्वाधिक होती है।
  • सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने वाले उपकरणों की अवधि अधिक होती  है और उनके रखरखाव की भी कम आवश्यकता होती है ।
  • पारंपरिक ताप विद्युत उत्पादन (कोयले द्वारा) के विपरीत सौर ऊर्जा से प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है तथा स्वच्छ विद्युत ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है।
  • देश के लगभग सभी हिस्सों में मुफ्त सौर ऊर्जा की प्रचुरता है।
  • सौर ऊर्जा के  उपयोग में विद्युत के तार एवं ट्रांसमिशन का  उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है 

सौर ऊर्जा के उपयोग में चुनौतियाँ: 

  • भारत की सौर ऊर्जा आवश्यकता काफी हद तक आयात पर निर्भर है।
  • सौर ऊर्जा उत्पादन हेतु भारत निर्मित उपकरणों को WTO के समक्ष कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • भारत को अपने घरेलू लक्ष्यों को प्राथमिकता देने और डब्ल्यूटीओ की प्रतिबद्धताओं के मध्य चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • उत्पादों की  डंपिंग स्थानीय निर्माताओं के लिये नुकसानदायक  है।
  • चीनी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये भारतीय घरेलू निर्माता, तकनीकी और आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं हैं।
  • उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण भारत में सौर संयंत्र को स्थापित करने हेतु भूमि की उपलब्धता कम है।
  • वर्ष 2050 तक भारत में  सौर कचरे का अनुमान 1.8 मिलियन के आसपास होने की संभावना है।

सरकारी पहल: 

  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy) भारत की नवीकरणीय ऊर्जा के मुद्दों से निपटने हेतु नोडल एजेंसी है।
  •  राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission), भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए तथा पारिस्थितिक रूप से स्थायी विकास को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक बड़ी पहल है।
  • भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (Indian Renewable Energy Development Agency- IREDA) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान है जो नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं हेतु  ऋण प्रदान उपलब्ध कराती है।
  • सौर ऊर्जा का राष्ट्रीय संस्थान (National Institute of Solar Energy) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत स्वायत्त संस्थान के रूप में बनाया गया है जो अनुसंधान एवं विकास हेतु  सर्वोच्च निकाय है। 
  • सौर पार्कों (Solar Parks) और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजना (Ultra Major Solar Power Project) की स्थापना और ग्रिड कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना।
  • नहर बैंक (Canal Bank) और सौर नहर टैंक अवसंरचना (Canal Tank Solar Infrastructure) का  संवर्धन करना।
  • सस्टेनेबल  रूफटॉप इम्प्लीमेंटेशन ऑफ सोलर ट्रांसफ़िगरेशन ऑफ़ इंडिया (SRISTI) योजना का सतत् कार्यान्वयन करना।
  • योग्य कार्यबल तैयार करने हेतु  सूर्यमित्र कार्यक्रम।
  • बड़े ऊर्जा उपभोक्ता ग्राहकों हेतु नवीकरणीय खरीद दायित्व।
  • राष्ट्रीय हरित ऊर्जा कार्यक्रम और हरित ऊर्जा गलियारा।

क्षमता 

भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ एक समय में हर घर तक  बिजली की पहुँच एक सपना माना जाता था अब वास्तविकता के करीब है। सभी के लिये विद्युत (Power for All)  जैसी सरकारी पहल देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना को परिवर्तित कर रही है।

  • सौर ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर सृजन करने की अपार संभावनाएँ विद्यमान हैं; 1 गीगावाट GW सोलर मैन्युफैक्चरिंग सुविधा लगभग 4000 लोगों के लिये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार उत्पन्न करती है।
  • सौरऊर्जा के विकास के अलावा इसके , संचालन और रखरखाव क्षेत्र में अतिरिक्त रोज़गार सर्जित होता है।
  • सौर ऊर्जा के भंडारण हेतु विकास कार्य प्रगति पर है जिससे इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर क्रांति लाने की क्षमता विद्यमान है, तब तक नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों की धीरे-धीरे बढ़ती हिस्सेदारी जीवाश्मों स्रोतों पर निर्भरता को कम कर सकती  है।
  • वर्ष 2035 तक वैश्विक  सौर क्षमता में भारत की हिस्सेदारी  8% होने की उम्मीद है। 363 गीगावाट (GW) की भविष्य की संभावित क्षमता के साथ, भारत का ऊर्जा के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के रूप में उभरने की संभावना  है।

अंतर्राष्ट्रीय पहल:

  • भारत के INDC में सकल घरेलू उत्‍पाद उत्सर्जन की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्‍तर की तुलना में वर्ष 2030 तक 33-35 प्रतिशत तक कम करना शामिल है।
  • वर्ष 2030 तक हरित जलवायु कोष सहित प्रौद्योगिकी और कम लागत वाले अंतर्राष्ट्रीय वित्त के हस्तांतरण की सहायता से, गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी विद्युत ऊर्जा स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) जो कि भारत की एक पहल है, 122 से अधिक देशों का एक संगठन है। इसमें अधिकांश मकर  और मकर रेखा के मध्य स्थित  वे देश शामिल हैं जो सौर ऊर्जा से सम्पन्न हैं।
  • वर्ष 2030 तक बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा के विकास और भविष्य में इस दिशा में कार्य करने तथा सौर प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु 1000 बिलियन से अधिक केअमेरिकी डॉलर का निवेश किये जाने की आवश्यकता है।

आगे की राह: 

  • सौर परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु मज़बूत वित्तीय उपायों को अपनाने की आवश्यकता है, हरित बाॅण्ड, संस्थागत ऋण और स्वच्छ ऊर्जा निधि जैसे अभिनव कदम इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण  भूमिका निभा सकते हैं।
  • अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है विशेष रूप से भंडारण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में।
  • चीन द्वारा सौर उपकरणों की डंपिंग से निपटने हेतु उचित रणनीति को अपनाने की आवश्यकता है।
  • नीति निर्धारण और कार्यान्वयन में अनावश्यक देरी से बचने हेतु एक रूपरेखा को निर्मित किया जाए। 
  • सौर अपशिष्ट प्रबंधन और विनिर्माण हेतु भारत को एक मानक नीति को अपनाने की  आवश्यकता है।
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