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जैव विविधता और पर्यावरण

हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं का प्रभाव

  • 05 Apr 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, भूस्खलन, भूकंप, सतत् हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना  

मेन्स के लिये:

हिमालय क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं का प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

हाल के वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़ी आपदाओं की आवृत्ति अधिक रही है।

हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं की क्षमता:

  • विद्युत उत्पादन हेतु संसाधन का उपयोग करने के लिये अपने प्रचुर जल निकायों और आदर्श स्थलाकृति के साथ हिमालयी क्षेत्र को भारत का पावर हाउस माना जाता है।
  • सरकारी अनुमान बताते हैं कि इस क्षेत्र में 46,850 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ 1,15,550 मेगावाट की उत्पादन क्षमता है।
  • नवंबर 2022 तक इस क्षेत्र के 10 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों में 81 बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ (25 मेगावाट से अधिक) और 26 परियोजनाएँ निर्माणाधीन थीं।
  • केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के तहत केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, अन्य 320 बड़ी परियोजनाएँ विचाराधीन हैं। 

हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं का जोखिम और प्रभाव:

  • भेद्यता:
    • हिमालय भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र का हिस्सा है।
    • इस तथ्य के बावजूद कि हिमालय का पर्यावरण और भूकंपीय गतिविधि इसकी नदी घाटियों को भूस्खलन हेतु प्रवण बनाती है, जलविद्युत परियोजनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। उत्तराखंड के जोशीमठ में जहाँ भूस्खलन के कारण 800 से अधिक संरचनाओं में दरारें आई हैं, सरकार ने 5 जनवरी, 2023 को निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना का काम भी शामिल है। 
  • प्रभाव: 
    • हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाएँ अधिक हो गई हैं और इन परियोजनाओं से जुड़ी आपदाओं में वृद्धि देखी गई है।
    • वर्ष 2012 में अस्सी गंगा नदी में आई बाढ़ ने अस्सी गंगा जलविद्युत परियोजनाओं (Assi Ganga hydroelectric projects-HEP) 1 एवं 2 को क्षतिग्रस्त कर दिया था।
    • वर्ष 2013 की केदारनाथ बाढ़ ने फाटा-ब्युंग, सिंगोली-भटवारी और विष्णुप्रयाग HEP को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था।
    • वर्ष 2021 में भूस्खलन और हिमस्खलन के कारण ऋषि गंगा परियोजना नष्ट हो गई और विष्णुगढ़-तपोवन HEP क्षतिग्रस्त हो गई, इस घटना में 200 से अधिक लोग मारे गए और लगभग 1500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
    • विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, विष्णुगढ़-तपोवन इलाके में स्थिति गंभीर होने के कारण पहले से ही आवर्ती (बार-बार) क्षति का सामना करना पड़ा है।
    • दिसंबर, 2022 में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले के उरनी में गंभीर ढाल परिवर्तन के कारण भूस्खलन की घटना देखी गई, यह घटना उस क्षेत्र में हुई जहाँ 1,091 मेगावाट की करछम वांगटू जलविद्युत संयंत्र हेतु निर्माण कार्य चल रहा था।
    • इन भूस्खलन की घटनाओं के कारण झीलों के जमने, झील का फटना, द्वितीयक भूस्खलन तथा निचले क्षेत्रों में बाढ़ आती है जिससे सामान्यतः पर्यावरण और आस-पास के समुदाय प्रभावित होते हैं।

Unsteady

सरकारी पहल: 

प्रभाव को कम करने हेतु आवश्यक पहल:

  • हाल के वर्षों में हिमालय में भूस्खलन से उत्पन्न जोखिम बढ़ गए हैं, जिससे जलविद्युत परियोजनाएँ अधिक खतरनाक और अस्थिर हो गई हैं।
  • वर्तमान वैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर इन परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करने की सख्त आवश्यकता है।
  • हिमालय में अधिकांश मौजूदा अथवा निर्माणाधीन परियोजनाओं की परिकल्पना 10-15 वर्ष पहले की गई थी, सरकार को नवीन वैज्ञानिक दृष्टिकोणों को अपनाते हुए उचित निर्णय लेना चाहिये।
  • परियोजना पर निर्णय लेने से पूर्व परियोजना के पक्ष में स्थानीय पंचायत की लिखित सहमति ली जानी चाहिये
  • हिमालय क्षेत्र में HEP के प्रभाव का अध्ययन करने के लिये विशेषज्ञ समिति का गठन किये जाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये अलकनंदा और भागीरथी बेसिन में ऐसी 24 जलविद्युत परियोजनाओं की भूमिका की जाँच हेतु संबद्ध मंत्रालय द्वारा स्थापित रवि चोपड़ा समिति

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013) 

प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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