जैव विविधता और पर्यावरण
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समुद्री मत्स्यपालन का कार्बन फुटप्रिंट वैश्विक औसत से कम
- 15 Mar 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु सुनम्य कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA), समुद्री मत्स्यपालन से उत्सर्जन मेन्स के लिये:समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर बढ़ते कार्बन फुटप्रिंट के प्रभाव और इसे कम करने की पहल |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (CMFRI) के अनुसार, भारत में समुद्री मात्स्यिकी ने वर्ष 2016 में एक किलोग्राम मछली के उत्पादन के लिये 1.32 टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्पादन किया, जो 2 टन के वैश्विक औसत से कम है।
CMFRI के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- परिचय:
- वर्ष 2011 में शुरू की गई एक शोध परियोजना, जलवायु सुनम्य कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA) के मत्स्य घटक की समीक्षा बैठक में निष्कर्षों पर चर्चा की गई।
- निष्कर्ष:
- सक्रिय मत्स्य ग्रहण क्षेत्र में 90% से अधिक ईंधन की खपत होती है, जो एक वर्ष में 4,934 मिलियन किलोग्राम CO2 उत्सर्जन में योगदान देता है।
- समुद्री यंत्रीकृत मत्स्य ग्रहण क्षेत्र से देश का कार्बन उत्सर्जन 16.3% है, जो वैश्विक स्तर से कम है।
- जबकि जीवाश्म ईंधन के उपयोग ने मत्स्यपालन के लिये मछली की उपलब्धता में वृद्धि की है, जीवाश्म ईंधन पर मत्स्य ग्रहण क्षेत्र की निर्भरता जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं को प्रकट करती है।
- निम्न कार्बन फुटप्रिंट के कारण:
- भारतीय समुद्री मत्स्यपालन के कार्बन फुटप्रिंट कम हैं क्योंकि ये काफी हद तक मानव शक्ति पर निर्भर हैं।
- वर्ष 1950 के दशक के अंत में भारत में मशीनीकृत मछली पकड़ने वाली बड़ी नावें शुरू की गईं, लेकिन बेड़े के आकार में वृद्धि हो रही है। उनकी संख्या वर्ष 1961 के 6,708 से बढ़कर 2010 में 72,559 हो गई है।
समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर बढ़ते कार्बन फुटप्रिंट के प्रभाव क्या हैं?
- महासागरीय अम्लीकरण:
- जब समुद्री जल में कार्बन डाइऑक्साइड घुलता है, तो यह कार्बोनिक एसिड बनाता है, जो जल के pH स्तर को कम करता है।
- इससे कई समुद्री जीवों को उनके कवच और अस्थिपंजर के निर्माण तथा उनके पोषण में चुनौती मिल सकती है, जिसका उनके अस्तित्त्व पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- समुद्री खाद्य जाल में परिवर्तन:
- कार्बन फुटप्रिंट बढ़ने से समुद्री खाद्य-जाल का मुख्य आधार माने जाने वाले प्लैंकटन के वितरण और प्रचुरता में परिवर्तन हो सकता है।
- यह मछली, समुद्री स्तनधारियों और अन्य प्रजातियों के विकास एवं अस्तित्त्व को प्रभावित कर सकता है।
- प्रवाल विरंजन:
- प्रवाल भित्तियाँ पानी के तापमान और रासायनिक परिवर्तन के प्रति अत्यंत संवेदनशील होती हैं तथा बढ़ते कार्बन फुटप्रिंट, व्यापक स्तर पर प्रवाल विरंजन का कारण बन सकते हैं।
- प्रजातियों की विविधता में परिवर्तन:
- चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि, समुद्र के स्तर में वृद्धि और हिंद महासागर के गर्म होने के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में नकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं।
- समुद्री प्रजातियों की विविधता में बदलाव आ रहा है। उदाहरण के लिये प्रवाल विरंजन के दौरान प्रवाल- भित्तियों से संबंधित या उन पर आश्रित मछलियों की प्रजाति का अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है।
मत्स्यपालन क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये क्या पहलें की गई हैं?
- ग्रीन फिशिंग प्रैक्टिसेज़ को बढ़ावा देना:
- 750 करोड़ रुपए के निवेश के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत मत्स्यपालन की स्थायी पद्धतियों को बढ़ावा देने और तटीय मछुआरों को पूरी तरह से नीली अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने के लिये एकीकृत आधुनिक तटीय मत्स्यपालन आधारित गांँवों का विकास किया जाएगा।
- सरकार मत्स्यपालन के क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा जैसे कि सौर ऊर्जा से चलने वाली नावें और पवन टर्बाइन के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
- वैकल्पिक आजीविका को प्रोत्साहित करना:
- सरकार अत्यधिक मछली पकड़ने और समुद्री संसाधनों पर दबाव को कम करने के लिये मछुआरों एवं महिलाओं हेतु वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा दे रही है।
- ईंधन दक्षता उपायों को अपनाना:
- सरकार ने मत्स्यन जहाज़ों में ईंधन दक्षता में सुधार के उपाय शुरू किये हैं, जैसे उच्च दक्षता प्रणोदन प्रणाली के उपयोग को अनिवार्य करना एवं निष्क्रिय समय को कम करना।
- मत्स्यन जहाज़ों की निगरानी:
- मत्स्यन की गतिविधियों की निगरानी करने और अवैध मत्स्यन को कम करने हेतु सरकार ने पोत निगरानी प्रणाली (ReALCraft: पंजीकरण और लाइसेंसिंग ऑफ फिशिंग क्राफ्ट) लागू की है।
- प्राधिकरण मत्स्यन जहाज़ों के स्थान और संचालन को ट्रैक करने हेतु प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे मत्स्यन की स्थायी प्रथाओं का पालन करते हैं।
- CMFRI पहल:
- CMFRI एक जलवायु-स्मार्ट मूल्य शृंखला विकसित कर रहा है, जो यह तय करने हेतु विज्ञान का उपयोग करेगा कि हस्तक्षेप की आवश्यकता कहाँ है।
- इसके अलावा संस्थान भारत के तटीय ज़िलों में संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने हेतु तटीय जलवायु जोखिम एटलस भी विकसित कर रहा है।
- CMFRI कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु हरित मत्स्यन के तरीकों पर काम कर रहा है। इसमें ईंधन के उपयोग को अनुकूलित करना और ईंधन की बर्बादी को कम करना शामिल है।
केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI):
- CMFRI की स्थापना भारत सरकार द्वारा वर्ष 1947 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत की गई थी एवं बाद में यह वर्ष 1967 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ( Indian Council of Agricultural Research- ICAR) में शामिल हो गया।
- CMFRI कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने वाले दुनिया में कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा संस्थानों का सबसे बड़ा नेटवर्क है।
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